Saturday, 22 June 2019

भारतीय वांग्मय में ही कम्यूनिज्म सफल हो सकता है ------ विजय राजबली माथुर

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वीरेंद्र यादव जी प्रगतिशील चिंतक हैं अतः उनकी तो बात साम्यवादी दलों को ग्रहण कर ही लेनी चाहिए। उनके द्वारा रामचन्द्र गुहा साहब के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेने की सलाह दी गई है। गुहा साहब प्रसिद्ध इतिहासकार हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण कम्युनिस्ट अतीत में उनके आलोचक रहे हैं। 2011 से मैं भी इसी बात को अपने शब्दों में लिखता - कहता रहा हूँ परंतु मैं किस खेत की मूली हूँ ? लेकिन परिणाम तो सबके सामने है ही। 




मेरा आज भी सुदृढ़ अभिमत है कि यदि कम्युनिस्ट -वामपंथी जनता को 'धर्म' का मर्म समझाएँ और बताएं कि जिसे धर्म कहा जा रहा है वह तो वास्तव में अधर्म है,ढोंग,पाखंड,आडंबर है जिसका उद्देश्य साधारण जनता का शोषण व उत्पीड़न करना है तो कोई कारण नहीं है कि जनता वस्तु-स्थिति को न समझे।लेकिन जब ब्राह्मणवादी-पोंगापंथी जकड़न से खुद कम्युनिस्ट-वामपंथी निकलें तभी तो जनता को समझा सकते हैं? वरना धर्म का विरोध करके व एथीस्ट होने का स्वांग करके उसी पाखंड-आडम्बर-ढोंगवाद को अपनाते रह   कर तो जनता को अपने पीछे लामबंद नहीं किया जा सकता है। 

धर्म=जो मानव जीवन व समाज को धारण करने हेतु आवश्यक हैं जैसे;'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। 

अध्यात्म=अपनी 'आत्मा' का अध्यन-अपने कृत कर्मों का विश्लेषण न कि खुराफात का अनुगमन।  

भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)। 
और चूंकि प्रकृति के ये तत्व खुद ही बने हैं और इनको किसी ने बनाया नहीं है इसलिए ये ही खुदा हैं। 

इन तत्वों का कार्य मानव समेत समस्त प्राणियों व वनस्पतियों की उत्पत्ति,पालन,संहार -G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय)=GOD भी यही हैं। 

परमात्मा  या प्रकृति के लिए सभी प्राणी व मनुष्य समान हैं और उसकी ओर से  सभी को जीवन धारण हेतु समान रूप से वनस्पतियाँ,औषद्धियाँ,अन्न,खनिज आदि-आदि बिना किसी भेद-भाव के  निशुल्क उपलब्ध हैं। अतः इस जगत में एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण करना परमात्मा व प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है और इसी बात को उठाने वाले दृष्टिकोण को समष्टिवाद-साम्यवाद-कम्यूनिज़्म कहा जाता है और यह पूर्णता: भारतीय अवधारणा है। आधुनिक युग में जर्मनी के महर्षि कार्ल मार्क्स ने इस दृष्टिकोण को पूर्ण वैज्ञानिक ढंग से पुनः प्रस्तुत किया है। 'कृणवन्तो विश्वमार्यम' का अभिप्राय है कि समस्त विश्व को आर्य=आर्ष=श्रेष्ठ बनाना है और यह तभी हो सकता है जब प्रकृति के नियमानुसार आचरण हो। कम्युनिस्ट प्रकृति के इस आदि नियम को लागू करके समाज में व्याप्त मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करने हेतु 'उत्पादन' व 'वितरण' के साधनों पर समाज का अधिकार स्थापित करना चाहते हैं। इस आर्ष व्यवस्था का विरोध शासक,व्यापारी और पुजारी वर्ग मिल कर करते हैं वे अल्पमत में होते हुये भी इसलिए कामयाब हैं कि शोषित-उत्पीड़ित वर्ग परस्परिक फूट में उलझ कर शोषकों की चालों को समझ नहीं पाता है। उसे समझाये कौन? कम्युनिस्ट तो खुद को 'एथीस्ट' और धर्म-विरोधी सिद्ध करने में लगे रहते हैं। 

काश सभी बिखरी हुई कम्युनिस्ट शक्तियाँ  दीवार पर लिखे को पढ़ें और  यथार्थ को समझें और जनता को समझाएँ तो अभी भी शोषक-उत्पीड़क-सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त किया जा सकता है। लेकिन जब धर्म को मानेंगे नहीं अर्थात 'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य' का पालन नहीं करेंगे 'एथीस्ट वाद' की जय बोलते हुये ढोंग-पाखंड-आडंबर को प्रोत्साहित करते रहेंगे अपने उच्च सवर्णवाद के कारण तब तो कम्यूनिज़्म को पाकर भी रूस की तरह खो देंगे या चीन की तरह स्टेट-कम्यूनिज़्म में बदल डालेंगे।
Saturday, May 14, 2011
भारत में कम्युनिज्म कैसे कामयाब हो ? ------ विजय राजबली माथुर
https://krantiswar.blogspot.com/2011/05/blog-post_14.html
वैदिक मत के अनुसार मानव कौन ?

त्याग-तपस्या से पवित्र -परिपुष्ट हुआ जिसका 'तन'है,
भद्र भावना-भरा स्नेह-संयुक्त शुद्ध जिसका 'मन'है। 
होता व्यय नित-प्रति पर -हित में,जिसका शुची संचित 'धन'है,
वही श्रेष्ठ -सच्चा 'मानव'है,धन्य उसी का 'जीवन' है। 


इसी को आधार मान कर महर्षि कार्ल मार्क्स द्वारा  साम्यवाद का वह सिद्धान्त प्रतिपादित  किया गया जिसमें मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करने का मन्त्र बताया गया है।  वस्तुतः मैक्स मूलर सा : हमारे देश से जो संस्कृत की मूल -पांडुलिपियाँ ले गए थे और उनके जर्मन अनुवाद में जिनका जिक्र था महर्षि कार्ल मार्क्स ने उनके गहन अध्ययन से जो निष्कर्ष निकाले थे उन्हें 'दास कैपिटल' में लिपिबद्ध किया था और यही ग्रन्थ सम्पूर्ण विश्व में कम्यूनिज्म  का आधिकारिक स्त्रोत है। स्वंय मार्क्स महोदय ने इन सिद्धांतों को देश-काल-परिस्थिति के अनुसार लागू करने की बात कही है ;परन्तु दुर्भाग्य से हमारे देश में इन्हें लागू करते समय इस देश की परिस्थितियों को नजर-अंदाज कर दिया गया जिसका यह दुष्परिणाम है कि हमारे देश में कम्यूनिज्म को विदेशी अवधारणा मान कर उसके सम्बन्ध में दुष्प्रचार किया गया और धर्म-भीरु जनता के बीच इसे धर्म-विरोधी सिद्ध किया जाता है। जबकि धर्म के तथा-कथित ठेकेदार खुद ही अधार्मिक हैं परन्तु हमारे कम्यूनिस्ट साथी इस बात को कहते एवं बताते नहीं हैं। नतीजतन जनता गुमराह होती एवं भटकती रहती है तथा अधार्मिक एवं शोषक-उत्पीडक लोग कामयाब हो जाते हैं। आजादी के ६३ वर्ष एवं कम्यूनिस्ट आंदोलन की स्थापना के ८६ वर्ष बाद भी सही एवं वास्तविक स्थिति जनता के समक्ष न आ सकी है.मैंने अपने इस ब्लॉग 'क्रान्तिस्वर' के माध्यम से ढोंग,पाखण्ड एवं अधार्मिकता का पर्दाफ़ाश  करने का अभियान चला रखा है जिस पर आर.एस.एस.से सम्बंधित लोग तीखा प्रहार करते हैं परन्तु एक भी बामपंथी या कम्यूनिस्ट साथी ने उसका समर्थन करना अपना कर्तव्य नहीं समझा है। 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता'  परन्तु कवीन्द्र रवीन्द्र के 'एक्ला चलो रे ' के तहत मैं लगातार लोगों के समक्ष सच्चाई लाने का प्रयास कर रहा हूँ -'दंतेवाडा त्रासदी समाधान क्या है?','क्रांतिकारी राम','रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना','सीता का विद्रोह','सीता की कूटनीति का कमाल','सर्वे भवन्तु सुखिनः','पं.बंगाल के बंधुओं से एक बे पर की उड़ान','समाजवाद और वैदिक मत','पूजा क्या?क्यों?कैसे?','प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है -यह दुनिया अनूठी है' ,समाजवाद और महर्षि कार्लमार्क्स,१८५७ की प्रथम क्रान्ति आदि अनेक लेख मैंने वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित अभिमत के अनुसार प्रस्तुत किये हैं जो संतों एवं अनुभवी विद्वानों के वचनों पर आधारित हैं। 

मेरा विचार है कि अब समय आ गया है जब भारतीय कम्यूनिस्टों को भारतीय सन्दर्भों के साथ जनता के समक्ष आना चाहिए और बताना चाहिए कि धर्म वह नहीं है जिसमें जनता को उलझा कर उसका शोषण पुख्ता किया जाता है बल्कि वास्तविक धर्म वह है जो वैदिक मतानुसार जीवन-यापन के वही सिद्धांत बताता है जो कम्यूनिज्म का मूलाधार हैं। कविवर नन्द लाल जी यही कहते हैं :-

जिस नर में आत्मिक शक्ति है ,वह शीश झुकाना क्या जाने?
जिस दिल में ईश्वर भक्ति है वह पाप कमाना क्या जाने?
माँ -बाप की सेवा करते हैं ,उनके दुखों को हरते हैं। 
वह मथुरा,काशी,हरिद्वार,वृन्दावन जाना क्या जाने?
दो काल करें संध्या व हवन,नित सत्संग में जो जाते हैं। 
भगवान् का है विशवास जिन्हें दुःख में घबराना क्या जानें?
जो खेला है तलवारों से और अग्नि के अंगारों से । 
रण- भूमि में पीछे जा के वह कदम हटाना क्या जानें?
हो कर्मवीर और धर्मवीर वेदों का पढने वाला हो । 
वह निर्बल दुखिया बच्चों पर तलवार चलाना क्या जाने?
मन मंदिर में भगवान् बसा जो उसकी पूजा करता है। 
मंदिर के देवता पर जाकर वह फूल चढ़ाना क्या जानें?
जिसका अच्छा आचार नहीं और धर्म से जिसको प्यार नहीं। 
जिसका सच्चा व्यवहार नहीं 'नन्दलाल' का गाना क्या जानें?


संत कबीर आदि दयानंद सरस्वती,विवेकानंद आदि महा पुरुषों ने धर्म की विकृतियों तथा पाखंड का जो पर्दाफ़ाश किया है उनका सहारा लेकर भारतीय कम्यूनिस्टों को जनता के समक्ष जाना चाहिए तभी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति और जनता का शोषण समाप्त किया जा सकता है। दरअसल भारतीय वांग्मय में ही कम्यूनिज्म सफल हो सकता है ,यूरोपीय वांग्मय में इसकी विफलता का कारण भी लागू करने की गलत पद्धतियाँ ही थीं। सम्पूर्ण वैदिक मत और हमारे अर्वाचीन पूर्वजों के इतिहास में कम्यूनिस्ट अवधारणा सहजता से देखी जा सकती है -हमें उसी का आश्रय लेना होगा तभी हम सफल हो सकते हैं -भविष्य तो उज्जवल है बस उसे सही ढंग से कहने की जरूरत भर है।   
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