एक लंबे समय से कम्युनिस्ट केजरीवाल को अच्छा बताते हुए उनका समर्थन करते चले आ रहे हैं। दिल्ली की तीसरी जीत पर बाकायदा बड़े - बड़े कामरेड्स ने केजरीवाल को बधाई दी व प्रशंसा में खूब लिखा। मुझे खूब अच्छे तरीके से याद है कि, उत्तर - प्रदेश भाकपा के कार्यालय पर २६ दिसंबर २०१० को पार्टी स्थापना के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के बोल चुकने के बावजूद विलंब से आए केजरीवाल को बुलवा कर अपनी पार्टी के राष्ट्रीय नेता को अपमानित किया गया था। क्या अब भी वे अपना दृष्टिकोण बदलेंगे या अब भी केजरीवाल के समर्थक बने रहेंगे ? ------ विजय राजबली माथुर
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सुधांशु धर द्विवेदी is with Sudhanshu Dwivedi.
क्या वामपंथी देश के दुश्मन हैं? ( दो भागों में से प्रथम)
ऐसा माना जाता है ( जो कुछ दिन पहले खुली वास्तविकता थी ) कि इस्लाम व ईसाइयत से भी ज्यादा संख्या मार्क्सवादी लोगों की है , ज्यादा सही शब्द होगा कि वामपंथी लोगों की है।
वामपंथी विचारधारा अपने अंदर मार्क्स, लेनिन , माओ , ट्राटस्की से लेकर सोशल डेमोक्रेटिक , सोशलिस्ट आदि तमाम धाराओं को समेटे है। इसमें अति वामपंथी भी शामिल हैं जिनको माओवादी कहा जाता है, भारत में इनको नक्सलबाड़ी आंदोलन से निकले होने की वजह से नक्सली कहा जाता है। अति पूंजीवादी देशों में तो लिबरल लोगों को भी वामपंथी मान लिया जाता है( भारत में भी बीजेपी आई टी सेल इनको लिब्रान्डु से लेकर वामी कामी कांगी आदि जाने क्या क्या कहती है।)।
वामपक्ष का उदय इंग्लैंड व फ्रांस से शुरू हुआ ऐसा माना जाता है। ग्यारहवीं व बारहवीं शताब्दी में राजा व सामंतों के बीच अधिकारों को लेकर जंग शुरू हुई। इस जंग का मंच थी इंग्लैंड की नवोदित संसद। इसमें राजा की शक्तियों के तरफदार लोग राजा के सिंहासन के दाहिनी तरफ बैठते थे , वे आमतौर पर रूढ़िवादी लोग थे( आज वे कंजरवेटिव पार्टियों से जुड़े हैं) , वे दक्षिण पंथी कहलाने लगे। राजा के अधिकारों में कटौती करके अधिकारों का विकेंद्रीकरण करने के समर्थक राजा के बाएँ बैठते थे , यही लोग वामपंथी कहलाये ( आज लेबर पार्टी टाइप दल )...ये लोग धर्म , समाज , राजनीति आदि में परिवर्तन वादी थे। बाद में उदारवादी, परिवर्तनवादी, क्रान्तिवादी लोगों के लिए वामपंथी शब्द रूढ़ हो गया। इसीलिए जब फ्रेंच क्रांति के समय स्टेटस जनरल की मीटिंग्स हुईं तो परिवर्तन वादी लोग अध्यक्ष के सिंहासन के बाएँ बैठे, यहाँ से वामपक्ष परिवर्तन कामियों के लिए एक आम प्रचलन वाला शब्द बन गया। यही कारण था कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट हों या लेनिनवादी या फिर माओवादी सभी वामपंथी ही कहे जाते हैं यहाँ तक कम्युनिष्टों को शत्रु मानने वाले सोशलिस्ट भी आख़िर कार कम्युनिस्ट लोगों के ही समान वामपंथी घोषित हो गए क्योंकि आक्रामक रूढिवादियों( दक्षिणपंथी लोगों) के लिए लिबरल , सोशलिस्ट व कम्युनिस्ट सभी उनके विरोधी थे इसलिए वे वामपंथी के रूप में उनके साझा शत्रु समझे जाने लगे।
कम्युनिष्टों में मार्क्सवादी मोटे तौर पर मार्क्सवादी वे लोग थे जो क्रान्ति को स्वतःस्फूर्त मानते थे। लेनिनवादी वे थे जो मानते थे क्रांति को संगठित( पार्टी बनाकर ) करना पड़ेगा। माओ वादी वे लोग थे जो खूनी क्रांति में यकीन रखते थे ( क्योंकि माओ जादोनांग का मानना था कि शक्ति बंदूक की नली से निकलती है)...भारत के नक्सली अपने को माओ व लेनिनवादी दोनों बताते हैं क्योंकि यहाँ पार्टी व सैन्य दल दोनों का गठन होता है। सोशलिस्ट संवैधानिक व्यवस्था के तहत संसाधनों के समान बंटवारे पर जोर देते हैं।भारत में लोहिया , नरेन्द्र देव इसके पुरोधा थे हालाँकि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान ही नेहरू व सुभाष के साथ जेपी , अच्युत पटवर्द्धन आदि लोग समाजवादी खेमे से जुड़े थे। इनको पहले वाम में नहीं गिना जाता था पर जब लिबरल्स को वाम कहा जाने लगा व बीच का रास्ता ही नही बचा ( मध्यम मार्ग इसलिए नही बचा क्योंकि दक्षिण पंथियों ने अपने से अलग पहचान का दावा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपना शत्रु व वामपंथी घोषित कर दिया था)। धीरे धीरे जैसे दुनिया भर में दक्षिण पंथ का बोलबाला शुरू हुआ वाम पक्ष को शत्रु ही नही उनको राक्षस , देशद्रोही इत्यादि घोषित कर देने के लिए पूरी शक्ति झोंक दी गयी। ताकि अखबार , मीडिया व तंत्र पूंजीवादी ताकतों के नियंत्रण में थे इसलिए घृणा व झूठ का यह अभियान बहुत जोर पकड़ चुका है। जबकि असलियत बिल्कुल अलग है।
आज कल अडानी अम्बानी के कालेधन से मजबूत ट्रोलर्स , व्हाट्सएप आर्मी वाली बीजेपी आई टी सेल वाम पंथ के पीछे पड़ी है, जैसे कि मनुष्य मनुष्य की समानता , विषमता का नाश वगैरह अपराध हो ।
राजनीति में उस पक्ष या विचारधारा को कहते हैं जो समाज को बदलकर उसमें अधिक आर्थिक और जातीय समानता लाना चाहते हैं। इस विचारधारा में समाज के उन लोगों के लिए सहानुभूति जतलाई जाती है जो किसी भी कारण से अन्य लोगों की तुलना में पिछड़ गए हों या शक्तिहीन हों।
दुनिया मे जब से वामपक्ष उभर कर सामने आया है तबसे सबसे पढ़े लिखे , रचनात्मक लोग इससे जुड़ते रहे हैं क्योंकि यह रूढिवाद व यथास्थिति वाद का विरोधी था। ग्राम्शी , टेरी ईगलटन , बर्टोल्ड ब्रेख्त , डीपी चटोपाध्याय, डी डी कोसंबी , डेविड हार्वे ,जार्ज लुकाच , रोजा लक्जेमबर्ग, जॉर्जी फ़्लेखनोव, रेमंड विलियम्स, नॉम चोम्स्की , जीन स्टीनबेक, एल्डोस हक्सले, अल्बर्ट आइंस्टीन, हॉवर्ड जिन, थॉमस पिकेटी, एमिल जोला, चार्ल्स डिकिन्स, एच जी वेल्स , गैब्रियल गार्शिया मार्केज, एम एन रॉय , रामविलास शर्मा , मुक्तिबोध जैसे हज़ारों महान लेखक, फ़िल्मकार , इतिहासकार आदि इस विचारधारा से जुड़े रहे हैं। यहाँ तक कि भगत सिंह , चंद्रशेखर आज़ाद , सुभाष चन्द्र बोस , जवाहर लाल नेहरू जैसे अपनी पीढ़ी के सबसे सक्षम लोग वामपंथी थे। आज़ादी के बाद भी कलमकारों व रचनात्मक लोगों की सबसे बड़ी संख्या वामपंथी लोगों की थी।
मैं यकीन के साथ चैलेंज देकर कहता हूँ कि दक्षिण पंथी कट्टरपंथियों ने ही भारत का विभाजन किया चाहे वो मुसंघी हों या हिंदू कट्टरपंथी । आज़ादी के बाद भी ये लगातार भारत को खोखला करने का काम कर रहे हैं। ये लोग दुनिया में भारत की छवि को बिगाड़ने का काम कर रहे हैं। वामपंथी भी अपने मकसद से भटक गए हैं , ज़मीन पर काम करने की ताकत इन्होंने गँवा दी है, इसलिए मध्यम मार्गी लिबरल्स ही अब दक्षिण पंथियों के मुख्य विपक्षी रह गए हैं। दक्षिण पंथी खुले तौर पर विषमता , धार्मिक-जातीय-लैंगिक ऊंच नीच को मान्यता देते हैं व धार्मिक, क्षेत्रीय , भाषायी , धार्मिक अलगाव की गन्दी राजनीति करते हैं। लिबरल्स का यह कर्तव्य है कि वे वामपक्ष द्वारा छोड़े गए निर्वात को भरें व दक्षिणपंथी घृणा अभियान का समुचित प्रति उत्तर दें और बताएँ कि दक्षिण पंथ आम लोगों व प्रगतिशीलता का शत्रु कैसे बन गया है। यह हर उदार भारतीय का कर्त्तव्य है कि वह हर तरह के कट्टरपंथी विचार को बेनकाब करे और हर तरह के आर्थिक , राजनीतिक, सामाजिक , सांस्कृतिक , धार्मिक सच को सामने लाये जो दक्षिणपंथी प्रोपेगैंडा के शोर में दब रहा है।
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