बिहार में वाम के पराभव काल की शुरुआत ......
1996 लोकसभा चुनाव और बिहार के लेनिनग्राद मधुबनी के तीन बार के सांसद भोगेन्द्र झा जिनका मुखर हो कर लालू यादव का विरोध...... इस चुनाव में वाम के टिकट का निर्धारण लालू के गठबंधन और जनता दल के प्रभुत्व के कारण वाम पार्टी द्वारा नहीं लालू यादव द्वारा किया गया और मधुबनी से लगातार सांसद रहे स्थानीय कद्दावर वाम नेता जिनकी पहचान मजदूर किसान और गरीबों के नेता के रूप में रही का टिकट काट कर पंडित चतुरानन मिश्र को टिकट देना.......
भोगेन्द्र झा और चतुरानन मिश्र दोनों मधुबनी के स्थानीय रहे मगर चतुरा बाबु की राजनीति और मधुबनी का सम्बन्ध कभी रहा ही नहीं बावजूद इसके दोनों के व्यक्तित्व में आसमान और धरातल का अंतर था, एक जमीनी वाम दुसरा सोफेसटिकेटेड वाम....... दोनों के चरित्र व्यवहार और वाम विचार में इस अंतर को हटा दें तो दोनों ही मुद्दा आधारित राजनीति करने वाले मुखर वक्ता रहे मगर...........
लालू के इस एक निर्णय ने चतुरानन मिश्र को संसद पहुंचा दिया, पहली बार वाम से मंत्री बनने वालों में चतुरा बाबु भी रहे मगर ये वो निर्णय साबित हुआ जिसके बाद बिहार का लेनिनग्राद खंडहर में तब्दील हो गया.....
मधुबनी से भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी को समाप्त करने का श्रेय लालू यादव के हस्तक्षेप से अधिक वाम का लालू के आगे नतमस्तक होना रहा जिसके बाद वाम ने कभी सर नहीं उठाया.......
जी हाँ मधुबनी के गरीब आवाम से उसका नेता छीन लेने का श्रेय लालू प्रसाद यादव को ही जाता है !!!
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1996 लोकसभा चुनाव और बिहार के लेनिनग्राद मधुबनी के तीन बार के सांसद भोगेन्द्र झा जिनका मुखर हो कर लालू यादव का विरोध...... इस चुनाव में वाम के टिकट का निर्धारण लालू के गठबंधन और जनता दल के प्रभुत्व के कारण वाम पार्टी द्वारा नहीं लालू यादव द्वारा किया गया और मधुबनी से लगातार सांसद रहे स्थानीय कद्दावर वाम नेता जिनकी पहचान मजदूर किसान और गरीबों के नेता के रूप में रही का टिकट काट कर पंडित चतुरानन मिश्र को टिकट देना.......
भोगेन्द्र झा और चतुरानन मिश्र दोनों मधुबनी के स्थानीय रहे मगर चतुरा बाबु की राजनीति और मधुबनी का सम्बन्ध कभी रहा ही नहीं बावजूद इसके दोनों के व्यक्तित्व में आसमान और धरातल का अंतर था, एक जमीनी वाम दुसरा सोफेसटिकेटेड वाम....... दोनों के चरित्र व्यवहार और वाम विचार में इस अंतर को हटा दें तो दोनों ही मुद्दा आधारित राजनीति करने वाले मुखर वक्ता रहे मगर...........
लालू के इस एक निर्णय ने चतुरानन मिश्र को संसद पहुंचा दिया, पहली बार वाम से मंत्री बनने वालों में चतुरा बाबु भी रहे मगर ये वो निर्णय साबित हुआ जिसके बाद बिहार का लेनिनग्राद खंडहर में तब्दील हो गया.....
मधुबनी से भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी को समाप्त करने का श्रेय लालू यादव के हस्तक्षेप से अधिक वाम का लालू के आगे नतमस्तक होना रहा जिसके बाद वाम ने कभी सर नहीं उठाया.......
जी हाँ मधुबनी के गरीब आवाम से उसका नेता छीन लेने का श्रेय लालू प्रसाद यादव को ही जाता है !!!
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बिहार में केवल मधुबनी ही नहीं बेगूसराय जिले के तेघड़ा में भी ऐसे ही कारक काम किया. हमें लगता है पिछले कई वर्षों से बुर्जुआ पार्टियों के साथ गठबंधन करते करते उन्ही के साथ कदम ताल पार्टी के नेतृत्व वर्ग करने लगे हैं. इसका परिणाम लगातार देखने के बाद भी सँभलने के बदले उसी पथ पर चलते जा रहे है . मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि जब पार्टी की चमक बरकरार थी तो किसी न किसी के साथ गठबंधन कर लेते थे लेकिन जब चमक फींकी पड़ने लगी है तो अकेले चुनाव लड़ने की बात क्यों की जा रही है ? इस उलटी सोच का असर हाल के विधान परिषद् के चुनाव में सामने आया . तीन चार सीट पर जहाँ भाजपा और महागठबंधन का अंतराल काफी कम था. यदि वामपंथियों ने महागठबंधन का साथ दिया होता तो आज बिहार विधान परिषद् की तस्वीर कुछ और होती.
ReplyDeleteआभार कामरेड !!!
ReplyDeleteआर्यावर्त
Jay maithila
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