Monday, 27 July 2015

पार्टी मेंबरों को मार्क्सवाद का न तो ज्ञान है और न वे ज्ञान पाना चाहते हैं : जगदीश्वर चतुर्वेदी ------ विजय राजबली माथुर



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स्वामी सहजानन्द सरस्वती जो किसान सभा को मजबूत करने वाले किसान नेता थे और उनका नाम लेकर मार्क्सवाद की आलोचना का अभियान चलाया जा रहा है । इस संबंध में मेरी पोस्ट पर एक दिग्गज कामरेड की टिप्पणी उनके परिचय सहित दी जा रही है। उनके अनुसार सरकारी दफ्तरों की परंपरा अब भाकपा में भी लागू हो गई है जिसके अनुसार अपने आकाओं को खुश करने के लिए रिश्वत या भेंट का चलन हो गया है। उनकी इसी टिप्पणी के मद्देनजर कल 'ईद' पर अपने जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब के बुलावे पर उनको बधाई देने उनके घर नहीं गया केवल sms द्वारा बधाई दे दी थी। जबकि विगत एक वर्ष खुद गया भी था परंतु तब तक आकाओं को खुश रखने की परंपरा संग्यान में नहीं थी।

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/912955335433110?pnref=story 
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इसी जूलाई माह में खुद -ब - खुद रिक्वेस्ट भेज कर फ्रेंड बनने वाले (क्योंकि बीच में चार दिग्गज कामरेड थे इसीलिए स्वीकार कर लिया था ) इन महान व्यक्तित्व को आज ब्लाक कर दिया है ; कारण संलग्न फोटो से सुस्पष्ट हैं।
इन महान व्यक्तित्व के पीछे ब्राह्मणवादी/केजरीवाल समर्थक बड़े कामरेड्स का हाथ है जो इनको मोहरा बना कर अपना खेल खेलते हैं। वामपंथ में शामिल ब्राह्मणवादी RSS सिक्के के दूसरे पहलू का समर्थन पहले के विरोध के नाम पर करते हैं। इस तथ्य को समझने और सतर्क रहने के बजाए यदि आगाह करने वाले पर प्रहार किया जाये तो लाभ किसको होगा ?




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इस शख्स ने निश्चित ही किसी ब्राह्मणवादी के इशारे पर शरारतन फेसबुक पर मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी होगी क्योंकि एक तरफ तो पहली जुलाई 2015 को इस शख्स ने मुझको कहा कि आकाओं को खुश रखो :
इस टिप्पणी का क्या यही अर्थ है कि, लखनऊ भाकपा के जिलामंत्री, प्रदेश सचिव व अन्य पदाधिकारियों की चापलूसी की जाये अथवा उनको रिश्वत भेंट की जाये? इस शख्स के अनुसार तो सरकारी भ्रष्टाचार उत्तर-प्रदेश भाकपा में भी प्रविष्ट हो गया है और चूंकि मैं उसका पालन नहीं कर सकता इसलिए यह सलाह भिजवाई गई है। 
फिर 02 जुलाई को ही एक पोस्ट शेयर मुझसे की एवं 04 व 14 जुलाई को भी मुझसे पोस्ट्स शेयर कीं तथा आज 27 जुलाई 2015 को यह रिमार्क लिख डाला :

 यह शख्स या इसके मंत्र दाता 'क्रांति' का क्या अर्थ लेते हैं ? लगता तो यह है कि न तो इस विद्वान शख्स को न ही इसे मोहरा बनाने वाले ब्राह्मणवादी शख्स को इस बात का ज्ञान है कि, 'विद्रोह' या 'क्रांति' कोई ऐसी चीज़ नहीं होती जिसका विस्फोट एकाएक - अचानक होता है। बल्कि इसके अनंतर 'अंतर' के 'तनाव' को बल मिलता रहता है और अवसर पाकर वह प्रस्फुटित हो जाता है। तथाकथित विद्वान यह शख्स मुझे उपदेश देता है कि "समय आप क्रांति करने में लगाएँ " ----- क्या सोच कर और क्यों यह मेरे पोस्ट्स शेयर करता रहा है? 'अंतर' और 'तनाव' को निरंतर रेखांकित करते हुये ही सभी ब्लाग्स में पोस्ट्स डालता रहा हूँ। वस्तुतः वे पोस्ट्स ही ब्राह्मणवादी तत्वों को नागवार गुजरती हैं जिस कारण इस शख्स सरीखे मोहरों को उकसा कर बेहूदी टिप्पणियाँ लिखवाई जाती हैं। 

साम्यवादी पार्टियों के अंतर्गत पूर्ण रूप से हावी ब्राह्मणवादी वर्चस्व आंतरिक लोकतन्त्र की पूर्ण उपेक्षा करता है। एक ओर स्टालिन की स्तुति की जाती है दूसरी ओर स्टालिन के ही सुझाव को यह कह कर ठुकरा दिया जाता है कि केवल मार्क्स व लेनिन का लिखा मानेंगे और किसी का नहीं। 

 जब पार्टियों में आंतरिक लोकतन्त्र का आभाव होगा तो ब्राह्मणवादी वर्चस्व के चलते ऐसी ही आत्मघाती हरकतें की जाती रहेंगी जिनसे फासीवादी ताकतों को शक्ति मिलती रहेगी व वामपंथ अपने सफाये के ताने-बाने को बुनता रहेगा। 
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कमेंट्स :गूगल प्लस ---
 

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