Saturday, 15 August 2015
'देश की तस्वीर' : एक चर्चा स्वतन्त्रता दिवस पर भाकपा,लखनऊ द्वारा --- विजय राजबली माथुर
लखनऊ, 15 अगस्त 2015 : आज प्रातः 10,30 पर पार्टी कार्यालय, 22 क़ैसर बाग परिसर में राष्ट्र ध्वज का आरोहण वयोवृद्ध कामरेड मुख्तार साहब के कर कमलों से सम्पन्न हुआ। राष्ट्र गान के पश्चात जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ द्वारा उपस्थित सभी जनों को मिष्ठान्न वितरण किया गया। इसके उपरांत सभागार में एक गोष्ठी 'देश की तस्वीर' विषय पर आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता कामरेड कनहाई राम जी ने व संचालन कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने किया।गोष्ठी - सभा के प्रमुख वक्ताओं में सर्व कामरेड मधुकर मदुराम, परमानंद दिवेदी, बाल गोविंद, अमर, राम पाल गौतम, रामदेव तिवारी, मोहम्मद अकरम खान, राम इकबाल उपाध्याय, शकिर, कल्पना पांडे, एननूद्दीन, शिवानी, कांति मिश्रा, आशा मिश्रा, विजय माथुर, मोहम्मद ख़ालिक़ तथा कनहाई राम जी एवं दो अन्य साथी रहे।
प्रारम्भ में जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने बताया कि झन्डारोहण तो पार्टी कार्यालय में पहले भी होता रहा है किन्तु इस प्रकार की विचार गोष्ठी का आयोजन पहली बार किया जा रहा है और इसका कारण यह है कि हम जनता की इस निर्मूल धारणा को बदलना चाहते हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी विदेश से प्रेरित है । उन्होने ज़ोर दे कर कहा कि हमारे कार्यकर्ताओं को दृढ़तापूर्वक जनता को समझाना चाहिए कि हम कम्यूनिस्टो ने देश की आज़ादी के लिए बड़ी-बड़ी कुर्बानियाँ दी हैं तथा जन सरोकार से जुड़े हर मुद्दे पर आज भी संघर्ष में सबसे आगे रहते हैं। बावजूद इसके अनेकों वक्ताओं ने विषय से हट कर केवल स्थानीय या व्यक्तिगत मुद्दों पर ही चर्चा की। सबसे पहले कामरेड राम इकबाल उपाध्याय ने ध्यान आकृष्ट किया कि कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक एम एन राय एक बड़े क्रांतिकारी भी थे।उनकी बात का समर्थन कांति मिश्रा जी ने भी किया और आशा मिश्रा जी ने तो विषय की विशद चर्चा करते हुये तमाम क्रांतिकारियों का नामोल्लेख करते हुये बताया कि उनका संबंध कम्युनिस्ट पार्टी से रहा है । इसी क्रम में कुछ साहित्यकारों की भूमिका की चर्चा करते हुये उनको भी कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध बताया। उनका कहना था कि आज़ादी से पहले और आज भी कम्युनिस्टो का मुख्य संघर्ष सांप्रदायिक शक्तियों से रहा है। हम लोगों के कमजोर पड़ने से आज सांप्रदायिक शक्तियाँ सत्ता में हैं उन्होने आह्वान किया कि हमें एक जुट होकर उनको उखाड़ फेंकना होगा।
विशेष उल्लेखनीय वक्तव्य युवा कामरेड शिवानी का रहा जो अपने पिता मधुकर मदुराम की तुलना में भी श्रेष्ठ बोलीं और जिलमंत्री महोदय को टिप्पणी करनी पड़ी कि बच्चा होकर 'दादी' की तरह बोली। मज़ाक-मज़ाक में जब आशा मिश्रा जी ने कहा कि आप 'दादी' शब्द को वापिस लें तो उनका कहना था कि यह शब्द इसलिए वापिस नहीं लिया जा सकता क्योंकि उनकी ओर से यह आशीर्वाद है क्योंकि शिवानी ने पूरी परिक्वता का परिचय दिया है जबकि पुराने लोग भी उतना ध्यान नहीं दे पाते हैं । उन्होने नए लोगों से उम्मीद की कि वे शिवानी से प्रेरणा लेंगे। शिवानी के वक्तव्य में खास ज़ोर इस बात पर था कि हमारे पूर्वजों ने जो कुर्बानी दी थी उसी का नतीजा है कि हम आज आज़ाद हैं और पूरी स्वतन्त्रता से अपनी बात रख पा रहे हैं। अतः आज़ादी को आधा-अधूरा न कह कर उसकी रक्षा की ओर सन्नद्ध होना चाहिए। पार्टी को कैसे मजबूत किया जाये इस विषय पर भी शिवानी ने अपनी बेबाक राय रखी। उनका खास तौर पर कहना था हमें जनता के बीच जाकर उसकी बात सुनना चाहिए।
कामरेड ख़ालिक़ ने अपनी इस टिप्पणी के साथ कि अब तक सबकी राय को लेखनीबद्ध कर रहे विजय माथुर को अब हम सुनना चाहते हैं बोलने को कहा। जबकि सुनने के उपरांत उनकी टिप्पणी थी कि बड़ी समझदारी के साथ विजय माथुर ने उत्तेजित कर दिया है हो सकता है उनका अंदाज़ सही हो कि जब हम सब विफल हो जाएँ तो युवा वर्ग क्रांति का मार्ग अपना ले और आगे बढ़ जाये।
विजय माथुर ने अपनी बात की शुरुआत 15 अगस्त 1947 के भारत/पाक विभाजन से की और बताया कि इसे 'सांप्रदायिक विभाजन' की संज्ञा दी जाती है जबकि यह 'साम्राज्यवादी विभाजन' था। वस्तुतः सांप्रदायिकता साम्राज्यवाद की ही सहोदरी है। विभाजन का फार्मूला व्हाइट हाउस में तय किया गया था जिस पर अमल ब्रिटिश सरकार ने किया। क्योंकि अंग्रेजों ने सत्ता मुगलों से हासिल की थी इसलिए शुरू-शुरू में मुसलमानों को कुचला गया था किन्तु 1857 की क्रांति का नेतृत्व बहादुर शाह जफर ने किया था जिनको शिवाजी के वंशज मराठों का भी समर्थन हासिल था अतः क्रांति को निर्ममता से कुचल देने के बाद ब्रिटिश सरकार ने 'फूट डालो' की नीति चलाई जिसके अंतर्गत 1905 में पहले बंगाल का 'मुस्लिम' व 'हिन्दू' आधार पर विभाजन किया जिसे जनता की एकता के चलते रद्द करना पड़ा। अतः ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन को भड़का कर 'मुस्लिम लीग' की स्थापना 1906 में मदन मोहन मालवीय की मार्फत 'हिंदूमहासभा' की स्थापना 1920 में तथा हेद्गेवार की मार्फत आर एस एस की स्थापना 1925 में अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ती के लिए करवाई थी और इन संगठनों की मदद से ही देश विभाजन को अंजाम दिया गया था। आज़ादी के तुरंत बाद से ही पाकिस्तान तो अमेरिकी प्रभाव में चला गया था किन्तु भारत 'तटस्थ' नीति पर चल रहा था। 1975 की एमर्जेंसी के कारण 1977 की करारी हार के बाद 1980 में इंदिरा गांधी की वापिसी 'इन्दिरा-देवरस' गुप्त समझौते के अंतर्गत आर एस एस के समर्थन से हुई थी। 1989 में राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद/ राम जन्म भूमि का ताला खुलवा कर पूजा शुरू करवाई थी। 2012 के उत्तर प्रदेश के चुनावों में सपा को भाजपा का समर्थन था तो 2014 के लोकसभा चुनावों में सपा का समर्थन भाजपा को था।इसकी रूपरेखा व्हाईट हाउस में तय की गई थी और उस बैठक में भाग लेने वालों में एक प्रोफेसर लखनऊ के भी रहे थे। 2017 के चुनावों में 'मुलायम-मोदी' गुप्त समझौते के अंतर्गत भाजपा द्वारा सपा का फिर सपा द्वारा 2019 के चुनावों में भाजपा का समर्थन किया जाएगा जबकि माकपा के पूर्व महासचिव प्रकाश करात साहब मुलायम सिंह को तीसरे मोर्चे का पी एम प्रत्याशी बनाना चाहते थे।2019 में 'निष्पक्ष' चुनावों की संभावना क्षीण है और वर्तमान प्रवृति से सांप्रदायिकता का मुक़ाबला नहीं किया जा सकता है। हमको अपनी नीतियाँ बदलनी चाहिए ड्राईङ्ग रूम में तय करके सड़कों पर प्रदर्शन करने और आर्थिक लड़ाइयों को लड़ने से ही हमें जनता का समर्थन नहीं मिल जाएगा।यदि लोकतान्त्रिक तरीके से साम्राज्यवाद समर्थक सांप्रदायिक सरकार को हटाना संभव न हुआ तो दिल्ली की सड़कों पर कम्युनिस्टों व सांप्रदायिक शक्तियों में निर्णायक रक्त-रंजित संघर्ष होगा जिसके बाद ही तय होगा कि केंद्रीय सत्ता पर सांप्रदायिक शक्तियों का कब्जा बरकरार रहेगा या कि वामपंथियों के नेतृत्व में जन-हितैषी सरकार सत्ता में आएगी।
जिलामंत्री ख़ालिक़ साहब ने अपने उद्बोद्धन में बताया कि हम एक-एक मुद्दे को लेकर और एक स्थान का चयन करके अंजाम होने तक संघर्ष की रण-नीति पर चलेंगे। उन्होने 15 अगस्त, 02 अक्तूबर और 26 जनवरी पर पार्टी की ओर से कार्यक्रम आयोजित किए जाने की श्रंखला में डॉ अंबेडकर, कबीर दास, स्वामी विवेकानंद आदि की जयंती को भी जोड़ा। उन्होने कुछ आगामी कार्यक्रमों को दृढ़ता पूर्वक सफल करने की अपील की जिसमें एक पहली सितंबर को 'बख्शी का तालाब' तहसील पर किसान समस्याओं पर प्रदर्शन करना भी है।
सभापति कामरेड कनहाई राम जी ने सभी को धन्यवाद देने के साथ-साथ यह भी कहा कि हमें विधानसभा और संसद की सभी सीटों पर 'चुनाव' भी लड़ना चाहिए केवल सड़कों पर संघर्ष करने से ही जनता हमारे साथ नहीं जुड़ सकती । जनता को लगना चाहिए कि कम्युनिस्ट सरकार बना कर उसकी समस्याओं को हल कर सकते हैं तभी वह हमारा साथ देगी।
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