Wednesday, 5 August 2015

यह सरकार जनता की जीविका और देश की सम्पदा की लूट को सुनिष्चित करने के लिए ही ------Drag Chandra Prajapati



जनता को मूर्ख बनाने का मिथ्या अभियान:
कुल मिलाकर झूंठे प्रचार में हिटलर के प्रचारमंत्री गोयबल्स को भी पछाड़ते हुए, सरकार मजदूरों पर इतने अमानवीय हमलों को भी उचित ठहराने के लिए मिथ्या प्रचार कर रही है। यह दावा किया जा रहा है कि श्रम कानूनों में संशोधन से पूँजी निवेश आकर्षित होगा और रोजगार का सृजन होगा। कुल मिलाकर कहा ये जा रहा है कि मजदूरों की छंटनी की पूरी छूट मालिकों को देने से वो अधिक रोजगार देने के लिए उत्साहित होंगे। प्राप्त सबूतों से जाहिर है कि यह कथन आधारहीन व औचित्य हीन है। वास्तविकता इसके ठीक उलट ही है। जैसा कि उल्लिखित है कि हमारे देश में श्रम कानूनों का क्रियान्वन कम, उल्लंघन अधिक हुआ है। इसके बावजूद भी पिछले तीन दशकों के दौरान रोजगार सृजन की वृद्धि दर न के बराबर ही रही है। वर्ष 2005-2010 के दौरान सकल घरेलू उत्पादन की वृद्धि दर औसतन 8.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही है। परन्तु रोजगार वृद्धि दर 2000-2005 के दौरान 2.7% से घटकर 2005-2010 के दौरान मात्र 0.7% ही रह गयी।
नवउदारवादी निजाम के तीन दशक लम्बे दौर में, संगठित क्षेत्र में मजदूरों की उत्पादकता में लगातार वृद्धि हुई है। लेकिन वास्तव में वेतन के रुप में उनकी हिस्सेदारी लगातार कम ही होती गयी है। इसके साथ ही साथ संगठित क्षेत्र में स्थायी रोजगार में भारी गिरावट दर्ज हुई है। असंगठित क्षेत्र में लगातार वृद्धि होती गयी है जो इस समय देश की कुल श्रम “शक्ति का 90 प्रतिशत हो गयी है। सबसे खतरनाक बात तो यह है कि संगठित क्षेत्र के स्थायी मजदूरों के स्थान पर, ठेका मजदूरों व अस्थायी मजदूरों को रखा जा रहा है, जिनकी कार्य दशाऐं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के समान ही हैं। इससे यह स्पष्ट है कि आर्थिक मंदी के दौर में भी उद्योगपतियों ने अपने मुनाफों को बनाए रखने के लिए श्रम मूल्य में भारी कटौती की है। देश के कुशल व नौजवान श्रम “शक्ति की बेरोजगारी का फायदा उठाते हुए अनौपचारिक कम वेतन के रोजगार का रास्ता अपनाया है।
लेकिन अधिकांश आम जनता में बढ़ती व गहराती गरीबी के चलते आर्थिक मन्दी और धीमेपन को व्यवस्थित करने की सीमाऐं हैं। पूरे देश में कम वेतन के बावजूद भी विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि दर में लगातार गिरावट दर्ज होते हुए पिछले वित्तीय वर्ष की अन्तिम तिमाही में नकारात्मक स्तर पर पहुँच गयी। इससे काल्पनिक दुष्प्रचार की पोल खुल जाती है कि मनमर्जी से ‘नौकरी पर रखो और निकालो’ की व्यवस्था और श्रमिकों के दमन से रोजगार में वृद्धि हो जाएगी।
यह एक वास्तविकता है। न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनियाँ में यही हालत है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार रोजगार के परिदृश्य में जिन देशों में श्रम कानूनों को अत्यधिक लचीला बनाया गया है, वहाँ रोजगार में कोई वृद्धि दर्ज नहीं हुई है। उसके बाद भी अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने लगातार नजर रखने के बाद भी यही पाया है। इस प्रकार के मिथ्या प्रचार से, श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी एवं मालिकान समर्थक संशोधनों के बारे में झूंठा प्रचार, सरकार की देशी-विदेशी कॉरपोरेटस्@बड़े व्यापारिक घरानों की अन्धी पक्षधरता का पूरा ही खुलासा कर देता है।
यह एक सच्चाई है कि मजदूर वर्ग पर ये घातक हमले और उन पर कॉरपोरेटस् गुलामी थोपना, आर्थिक संकट में आकंठ डूबी सम्पूर्ण पूँजीवादी व्यवस्था के गहराते संकट से निकलने का प्रयास ही है। केन्द्र में बैठी दक्षिणपंथी सरकार देशी-विदेशी कॉरपोरेटस् की चाण्डाल चौकड़ी की समर्थक है। यह सरकार जनता की जीविका और देश की सम्पदा की लूट को सुनिष्चित करने के लिए ही, मजदूरों की जीविका और अधिकारों पर घातक हमले करके, मजदूर वर्ग के आन्दोलन को कमजोर करने पर उतारु है। श्रम कानूनों में मालिकान समर्थक जिन संशोधनों को पिछले 60 वर्षों में करना संभव न हो सका वह नरेन्द्र मोदी सरकार ने एक वर्ष में ही कर डाला है। जनता और देश के खिलाफ बेलगाम साजिशें करने के लिए ही मजदूर आन्दोलन को निशाना बनाया गया है।

साभार :
https://www.facebook.com/groups/cpibihar/permalink/1099623373400879/ 

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