Thursday, 31 December 2015

स्वतन्त्रता आंदोलन की सबसे पुरानी पार्टी (भाकपा ) : जनता से दूर क्यों? ------ विजय राजबली माथुर

 ***** प्रस्तुत फोटो भाकपा के 90 वर्ष पूर्ण होने पर स्थापना  दिवस समारोहों की झलकी दिखाते हैं *****
बिहार में स्थापना दिवस कार्यक्रम 


उत्तर-प्रदेश (कानपुर ) स्थापना दिवस कार्यक्रम 

http://communistvijai.blogspot.in/2015/12/blog-post_26.html

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एक और गुमराह करती खबर। ये समाचार सोनिया कांग्रेस को 131 वर्ष पुराना और आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाला बता रहे हैं। सच्चाई इस प्रकार है ------
1)--- 1857 की क्रांति में भाग लेने व उसके विफल होने पर 1875 में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 'आर्यसमाज' बना कर और इसकी शाखाएँ ब्रिटिश छावनियों में खोल कर देश की जनता को आज़ादी के संघर्ष के लिए तैयार करना शुरू किया था। ब्रिटिश सरकार उनको REVOLUTIONARY SAINT कहती थी। अतः
2) --- दयानन्द सरस्वती की मुहिम को धक्का पहुंचाने के लिए वाईस राय लार्ड डफरिन ने अपने विश्वस्त रिटायर्ड़ ICS एलेन आकटावियन (AO ) हयूम के जरिये WC (वोमेश चंद ) बेनर्जी की अध्यक्षता में1885 में  08 दिसंबर को जिस इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना करवाई थी वह ब्रिटिश साम्राज्यवाद का SAFTY VALVE थी। दादा भाई नेरोजी और गोपाल कृष्ण गोखले ऐलान करते थे कि वे नस-नस में राज-भक्त हैं।
3 ) --- स्वामी दयानन्द सरस्वती के निर्देश पर आर्यसमाजी कांग्रेस में घुस गए और उसको आज़ादी के संघर्ष में मोड दिया था। 'कांग्रेस का इतिहास ' के लेखक डॉ पट्टाभि सीता रमाइय्या ने कबूला है कि, गांधी जी के सत्याग्रह में जेल जाने वाले कांग्रेसियों में 85 प्रतिशत कांग्रेसी आर्यसमाजी थे।
4 ) --- आज़ादी के संघर्ष पर मुड़ चुकी कांग्रेस को पछाड़ने के लिए ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन के जरिये 'मुस्लिम लीग' 30 दिसंबर 1906 में, लाला लाजपत राय व मदन मोहन मालवीय के जरिये 'हिन्दू महासभा' 1920 में गठित करवाई गईं जिनमें हिंदूमहासभा के असफल रहने पर 1925 में पूर्व क्रांतिकारी सावरकार व पूर्व कांग्रेसी हेडगेवार के जरिये आर एस एस का गठन करवाया गया था।
5 ) क्रांतिकारी आर्यसमाजियों ने कांग्रेस को क्रांति की ओर मोड़ने के उद्देश्य से भारत में भी 1925 में 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' की स्थापना  26 दिसंबर को की थी । इनके ही सदस्य भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल,बटुकेश्वर दत्त आदि-आदि क्रांतिकारी थे।
6 ) --- आज़ादी के बाद कांग्रेस में संघ समर्थकों के सिंडीकेट से भिड़ने के लिए इंदिरा गांधी ने जिस कांग्रेस (आर ) का गठन किया था वही आज की सोनिया कांग्रेस है जो मात्र 46 वर्ष ही पुरानी है और उसका आज़ादी के संघर्ष से कोई वास्ता नहीं रहा है।
7 ) --- आज़ादी वाली पुरानी कांग्रेस तो समाप्त हो गई और संघ से ग्रस्त कांग्रेसियों को तो कांग्रेस (ओ ) के नाम से जाना गया जो 1977 में जनता पार्टी में विलीन होकर समाप्त हो चुकी है।
आज की सोनिया कांग्रेस को 1885 वाली आज़ादी के संघर्ष की कांग्रेस मानना व कहना ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वथा गलत है।
8 ) --- आज आज़ादी के संघर्ष वाली सबसे पुरानी पार्टी सिर्फ 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ' ही है जो ब्राह्मण वाद से ग्रस्त होने के कारण ऐसा दावा प्रस्तुत नहीं कर रही है परंतु सच्चाई तो यही है।



Comments
Prakash Sinha
Prakash Sinha तथ्यपूर्ण जानकारी दी है, विजय जी आपने ।

 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=990365184358791&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=3&theater


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 'ऐतिहासिक सत्य ' तो यही है कि, आज स्वतन्त्रता आंदोलन की संघर्षरत पार्टियों में एकमात्र 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' ही सबसे पुरानी पार्टी है और गलत ढंग से प्रचारित सोनिया कांग्रेस नही। किन्तु पार्टी को नियंत्रित करने वाला ब्राह्मण नेतृत्व भी स्वतन्त्रता संघर्ष का श्रेय सोनिया कांग्रेस को ही देता है अपनी पार्टी को नहीं। अपने अस्तित्व को नकारने के कारण ही 1952 व 1957 के संसदीय  मुख्य विपक्षी दल को आज एक राजनीतिक दल के रूप में अपनी मान्यता समाप्त होने के खतरे से भी झूझना पड़ रहा है। 'इंडिया दैट इज़ भारत दैट इज़ उत्तर-प्रदेश' की नीति पर चल कर ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा हेतु गठित आर एस एस की समर्थक पार्टी स्वतन्त्रता आंदोलन से कोसों दूर रहने के बावजूद आज देश की सत्ता को चला रही है। जबकि शुरुआती मुख्य विपक्षी पार्टी अब भी अस्तित्व रक्षा की बजाए छिन्न-भिन्न होने की दिशा में चल रही है जैसा की उत्तर-प्रदेश में पार्टी के स्थापना समारोहों के फ़ोटोज़ से सिद्ध होता है। 

कानपुर में सम्पन्न मुख्य समारोह अथवा प्रदेश कार्यालय प्रांगण में सम्पन्न समारोह किसी में भी प्रदेश के ही वासी और राष्ट्रीय सचिव जन-प्रिय नेता कामरेड अतुल अंजान साहब को शामिल करना मुनासिब नहीं समझा गया। जबकि बिहार में सम्पन्न समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उनको शामिल किया गया। अकेले अंजान साहब में वह क्षमता है कि उत्तर-प्रदेश व बिहार दोनों प्रदेशों की जनता को वह पार्टी के साथ जोड़ सकते हैं। किन्तु सत्ता-गलियारों में पकड़ जमाये जनाधार-विहीन नेतृत्व को यह गंवारा नहीं है। प्रदेश पार्टी को दो-दो बार तोड़ चुकने वाले लोग वीरेंद्र यादव जी द्वारा वर्णित 80 प्रतिशत पिछड़े व दलित -सर्वहारा वर्ग के लोगों से सिर्फ काम लेना चाहते हैं उनको पद व अधिकार  देना नहीं। जबकि अंजान साहब सबको साथ लेकर चलने वाले है इसलिए इन लोगों के निशाने पर हैं। बार-बार उनके विरुद्ध प्रेस के संपर्कों से अभियान चलाया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप जनता के बीच पार्टी की छवी ठहर ही नहीं पाती। 

एथीस्टवाद की आड़ में पोंगा-पंथ को मजबूत किया जा रहा है और इस वर्ग के प्रदेश पार्टी के सीताराम केसरी को अगला प्रदेश सचिव बनाने कि गुप-चुप मुहिम चल रही है जिसके लिए अंजान साहब को प्रदेश से दूर रखना ज़रूरी है। और इस प्रकार एक स्वर्णिम अवसर को निजी स्वार्थों की बलिवेदी पर चढ़ाया जा रहा है। यदि अब भी पार्टी हितों को सर्वोपरि रखा जाये और अंजान साहब के संरक्षण में प्रदेश पार्टी को चलने को प्रेरित किया जाये तथा साथ ही साथ थोथे एथीज़्म का परित्याग करके वास्तविक 'धर्म' के 'मर्म' को जनता को समझाया जाये तो उत्तर-प्रदेश से फासिस्ट शक्तियों को उखाड़ने में भाकपा को सफलता मिल सकती है। 
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Saturday, 26 December 2015

गोष्ठी : 'आज के परिप्रेक्ष्य में साम्यवाद की संभावना' ------ विजय राजबली माथुर

लखनऊ, 26 दिसंबर 2015 :
आज 22 कैसरबाग, भाकपा कार्यालय पर पार्टी की स्थापाना  के 90 वर्ष पूर्ण होने पर  एक समारोह व विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसके अध्यक्ष मण्डल में आशा मिश्रा,अशोक बाजपेयी,रामनाथ यादव शामिल रहे, संचालन ओ पी अवस्थी ने किया। 
झंडारोहण व उदघाटन भाषण अशोक मिश्रा ने किया। उन्होने अपने उद्बोधन में पार्टी के गौरवशाली इतिहास का विस्तृत वर्णन किया। उनके अनुसार देश में आज लगभग एक करोड़ लोग विभिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों के अनुयाई हैं। उन्होने उम्मीद जताई कि, जब दस वर्ष बाद हम पार्टी की शताब्दी मनाएंगे तब उसका देश की संसद पर भी प्रभाव होगा। 

सदरुद्दीन राणा साहब ने नौजवानों को जोड़ने व चुनाव में सक्रिय भागीदारी की बात की। 

साहित्यकार व आलोचक वीरेन्द्र यादव साहब ने कहा कि हमें अपने देश में हुई बौद्ध क्रान्ति, 1789 की फ्रांसीसी क्रांति, 1917 की रूसी क्रांति व 1950 में भारतीय संविधान लागू किए जाने की घटनाओं को याद रखना चाहिए। आज आत्मावलोकन, आत्मालोचना व पुनर्मूल्यांकन की महती आवश्यकता है। हमें यह देखना होगा कि चूक कहाँ हुई है जो आज भाकपा के एक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता पर भी संकट मंडरा रहा है। आज IMF और वर्ल्ड बैंक के प्रभाव में 'पूंजीवाद' नरम रुख लेकर और मजबूत हो रहा है। मार्क्स की 'कैपिटल ' से भी पूंजीवाद लाभान्वित होने के प्रयासों में सफल हो रहा है। लेकिन हम अपने सभी पूर्वानुमानों में विफल रहने के बाद भी आज भी उन्ही पुरातन व्याख्याओं से बंधे हुये हैं जबकि समय के परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होना चाहिए था। लेकिन उन्होने ज़ोर देकर कहा कि भले ही सांगठनिक रूप से साम्यवादी विचार धारा कमजोर हुई हो लेकिन वैचारिक रूप से साम्यवादी विचार धारा भारत समेत सम्पूर्ण विश्व में मजबूत हुई है और सबकी  आशा भरी निगाहें इसी विचार धारा पर टिकी हुई हैं। यही कारण है कि नागपूर खेमा इसी विचारधारा पर आक्रमण कर रहा है और हमारे तीन विद्वानों को हाल ही में अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है। 

वीरेंद्र यादव जी ने यह भी याद दिलाया कि 1925 में ही SELF RESPECT MOVEMENT भी प्रारम्भ हुआ था । दक्षिण में पेरियार के नेतृत्व में जो आंदोलन चला था उसके अवशेष आज भी DMK, AIADMK आदि अनेक दलों के साये में मौजूद हैं और मजबूत भी हैं। हमें अपनी नीतियाँ बनाते समय इस 'स्वाभिमान आंदोलन' पर भी ध्यान देना होगा। समता और समानता के मार्क्सवादी आदर्श औद्योगीकरण के मद्देनजर थे । मार्क्स के खुद के अनुभवों के आधार पर इनको भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों  से अपनाया जाना था लेकिन वैसा हुआ नहीं । रूस में भी साम्यवाद के पतन को देखते हुये भारत में 'वर्ण' और 'वर्ग' के अंतर्द्वंद को ध्यान में रखना होगा। अंबेडकर से भी हमको प्रेरणा प्राप्त करनी होगी।हमारे देश में 80 प्रतिशत सर्वहारा वर्ग दलित व पिछड़ों में से आता है। हमें नीतियाँ बनाते समय इस वर्ग के सामाजिक उत्पीड़न व आर्थिक शोषण को भी ध्यान में रखना होगा। 
 हमारे देश में एक विचारधारा 25 दिसंबर 1927 को 'मनु स्मृति' दहन की जो शुरू हुई थी आज भी प्रबल है। दूसरी विचारधारा इस संविधान को हटा कर मनु स्मृति के विधान को लागू करने की है। हमें इस अंतर्द्वंद को भी समझना होगा। देश में उठने वाली हर आंदोलनकारी परिस्थितियों में कम्युनिस्टों को हस्तक्षेप करना चाहिए। उनके अनुसार 'यूनाइटेड फ्रंट' की  आज वास्तव में बहुत आवश्यकता है। 'आत्म मुग्ध' होने की अपेक्षा पुनरावलोकन करने की यथार्थ आवश्यकता है। उन्होने बल देकर कहा कि लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा करने व नए सोपान तक पहुंचाने की आज बेहद ज़रूरत है। 

कामरेड ओ पी सिन्हा ने कहा कि आने वाले वर्ष 2016 में रूसी क्रांति की शताब्दी के समारोह शुरू होने वाले हैं हमें उस अवसर का सदुपयोग करते हुये अपनी शक्ति को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। हमें आज के नौजवानों की अपेक्षाओं व आदर्शों को समझ कर उनको अपनी ओर आकर्षित करना होगा। 1925 में स्थापित जो परम्पराओं की कड़ी टूट गई थी उसे फिर से जोड़ कर आगे बढ़ना होगा। 

शकील सिद्दीकी साहब ने बताया कि 'क्रांतिकारी आंदोलन' और 'भाकपा' का आंदोलन एक साथ प्रारम्भ हुआ था। अतः हमारे इस आंदोलन को थामने व रोकने के लिए ही जातिवादी व धार्मिक उन्माद को बढ़ाया जा रहा है। उन्होने उदाहरण देते हुये कहा कि जब पंजाब में कम्युनिस्ट आंदोलन प्रखरता के साथ अपने उभार पर था तभी अकाली आंदोलन खालिस्तान की मांग को लेकर खड़ा कर दिया गया जिस कारण कम्युनिस्ट आंदोलन बिखर गया। हमें इन चालों से सावधान रहना होगा। 

अपने अध्यक्षीय ऊदबोधन में आशा मिश्रा जी ने दोहराया कि हमारी पार्टी का गौरवशाली इतिहास हमारे लिए आज भी प्रेरक है। विभिन्न सुविधाओं को दिलाने में पार्टी द्वारा किए गए संघर्षों का योगदान महत्वपूर्ण है और हमें आज समाप्त की जा रही उन सुविधाओं को पाने के प्रयास फिर से करने होंगे। 

युवा वर्ग के कामरेड नरेश को विशेष रूप से अपने विचार रखने का अवसर अध्यक्ष मण्डल ने प्रदान कर दिया जिनका ज़ोर था कि मार्क्स ने 1880 से 1883 के मध्य जो स्पष्टीकरण अपने पत्रों द्वारा दिये थे उनका प्रकाशन 1984 में हो गया है उन विचारों पर आज गहन विचार कर नई नीतियाँ बनाए जाने की ज़रूरत है। 

अध्यक्ष मण्डल के सदस्य रामनाथ यादव जी ने एक काव्य-पाठ किया और कामरेड नरेश के उठाए प्रश्नों को आज की गोष्ठी के लिए अप्रासांगिक बताया। उनके अनुसार अलग किसी सेमिनार में उस विषय को रखा जाना चाहिए। 

जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने उपस्थित कामरेड्स व वक्ताओं का समारोह को सफल बनाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन किया और पार्टी के भविष्य को उज्ज्वल बताया। उन्होने सभी जनों से नाटक का अवलोकन करने के बाद भोजन ग्रहण करने का अनुरोध किया। 

प्रदीप घोष साहब के निर्देशन में IPTA के कलाकारों द्वारा नाटक 'अच्छे दिन' का प्रदर्शन किया गया। जिसके द्वारा मोदी सरकार के छल से गठन और बाद की परिस्थितियों का सूक्ष्म किन्तु प्रेरक व रोचक प्रस्तुतीकरण हुआ जिसे दर्शकों ने सराहा व खूब प्रशंसा की तथा कुछ क्षेत्रों से उनके यहाँ इसके प्रदर्शन की मांग भी की गई। 
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Friday, 25 December 2015

निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए प्रयत्नशील सांसद कामरेड डी राजा

*************************भाकपा की स्थापना के 90 वर्ष पूर्ण होने पर ***************


राज्यसभा सदस्य डी राजा साहब ने 10 नवंबर 2015 को यह बयान जारी किया था और अब शीतकालीन सत्र गुज़र चुका है। दिल्ली मे पार्टी कार्यालय पर भव्य सजावट हो चुकी है और पार्टी स्थापना के 90 वर्ष पूर्ण होने व 91वीं वर्षगांठ पर कानपुर  में भव्य आयोजन होने जा रहा है, परंतु कहीं पर भी राजा साहब के विचारों पर चिंता नहीं व्यक्त की जा रही है। कानपुर के  महत्वपूर्ण आयोजन का पर्चा/पोस्टर डी राजा साहब की उपस्थिती नहीं दर्शा रहा है। और तो और उत्तर-प्रदेश के ही वासी तथा शमीम फैजी साहब के साथ उत्तर-प्रदेश भाकपा के राज्य सम्मेलन में केंद्रीय पर्यवेक्षक रहे अतुल अंजान साहब भी इन पर्चों/पोस्टरों से अनुपस्थित है जबकि एक ही परिवार के लोगों के नाम प्रमुखता के साथ शामिल किए गए हैं। 





पार्टी कर्णधारों की एक झलक का आभास इस वक्तव्य से भी होता है :



और IPTA जिसके संचालक भी पार्टी के ही वरिष्ठ नेतृत्व के साथी हैं किस प्रकार रामलीला का ब्राह्मणवादी प्रचार-प्रसार करके फासिस्ट/सांप्रदायिक मनोवृति को मजबूत करने में जाने या अनजाने सहयोग कर रहा है :



और देखिये कि, किस प्रकार भाकपा को उन मायावती जी से गठबंधन की सलाह दी जा रही है जो तीन बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनी हैं तथा गुजरात दंगों की दोषी पार्टी का उनके मंच से चुनाव करने गुजरात  बड़े गर्व से जा चुकी हैं।
लेकिन अपनी ही पार्टी के सम्मानित व विद्वान सांसद कामरेड डी राजा साहब की सर्वथा उपेक्षा करके बसपा नेत्री के भरोसे पार्टी की नैया खेने की तैयारी चल रही है। जब तक पार्टी नेतृत्व ब्रहमनवाद से ग्रस्त है तब तक पार्टी को जनप्रियता हासिल नहीं हो सकती है। राम का आदर्श था साम्राज्यवादी -विसतारवादी रावण का दर्प चूर्ण करना और आज पार्टी द्वारा नियंत्रित संगठन पोंगापंथी पाखंड को प्रचारित कर रहे हैं बजाए उस आदर्श को जनता के सामने प्रस्तुत करने के। इन सब कार्यों से फासिस्ट/सांप्रदायिक शक्तियाँ दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही हैं। 

निजीकरण को बढ़ावा ही इसलिए दिया गया था कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण के प्राविधान से पिंड छुड़ाया जा सके। अतः डी राजा साहब द्वारा निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्राविधान करवाने की पहल अच्छी है और पार्टी को इस पर सक्रिय होना चाहिए। लेकिन क्या पार्टी का ब्राह्मणवादी नेतृत्व ऐसा होने देगा? 
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Sunday, 6 December 2015

साझा संघर्ष साझी विरासत मार्च ------ विजय राजबली माथुर

फोटो सौजन्य से -प्रदीप शर्मा जी 


दोनों फोटो सौजन्य से - ताहिरा हसन जी



लखनऊ, 06 दिसंबर 2015
आज दोपहर एक बजे रवींद्रालय, चारबाग से भाकपा, माकपा, भाकपा (माले ), एस यू सी आई (सी ), फारवर्ड ब्लाक, प्रलेस, जलेस, जसम, इप्टा, कलम, एपवा, एडवा, आइसा, एस एफ आई, डी वाई एफ आई, महिला फेडरेशन, निर्माण मजदूर यूनियन, भवन निर्माण मज़दूए सभा, सीटू, एटक, एकटू, दलित शोषण मुक्ति मंच के संयुक्त तत्वावधान में ' सद्भावना मार्च ' गांधी प्रतिमा, जी पी ओ पार्क तक निकाला गया जिसमें ई-रिक्शा यूनियन भी एक अलग मार्च द्वारा आकर संयुक्त हो गई।

सांप्रदायिक सौहाद्र, वाम  एकता से संबन्धित विभिन्न जोशीले नारों के साथ यह जुलूस चलता आया, मार्ग में एक स्थान पर जनता द्वारा पुष्प-वर्षा करके जुलूस का अभिनंदन भी किया गया। जी पी ओ पार्क पहुँचने पर यह जुलूस एक सभा में परिणत हो गया जिसकी अध्यक्षता कामरेड मधु गर्ग, कामरेड आशा, कामरेड रमेश सेंगर, कामरेड जय प्रकाश के अध्यक्ष - मण्डल द्वारा की गई। प्रारम्भ में इस अध्यक्ष -मण्डल के सदस्यों ने डॉ अंबेडकर की प्रतिमा पर जाकर माल्यार्पण कर उनको परिनिर्वाण दिवस की श्रद्धांजली अर्पित की। सभा का संचालन माकपा के जिलामंत्री डॉ प्रदीप शर्मा द्वारा किया गया जिनहोने आज के इस आयोजन का परिचय दिया व प्रथम वक्ता के रूप में भाकपा की ओर से कामरेड राकेश को उनके बाद भाकपा ( माले ) के कामरेड कौशल किशोर, माकपा की कामरेड मधु गर्ग एवं SUCIC के कामरेड जय प्रकाश को विचार व्यक्त करने हेतु आमंत्रित किया। सभी वक्ताओं ने एक स्वर से मोदी सरकार की फासिस्ट व सांप्रदायिक नीतियों की कड़ी आलोचना की व वाम एकता को बनाए रखने तथा भविष्य में  भी संयुक्त संघर्ष जारी रखने की घोषणा की।

ई-रिक्शा यूनियन की ओर से भाकपा के कामरेड मोहम्मद अकरम को अपने विचार रखने का अवसर मिला। उन्होने अपनी यूनियन की ओर से सद्भाव कार्यक्रमों में योगदान देते रहने की घोषणा की व इस मंच के माध्यम से ई-रिक्शा चालकों के हो रहे शोषण को समाप्त कराये जाने की मांग रखी।

सभा का मुख्य आकर्षण था इप्टा, लखनऊ द्वारा प्रस्तुत नाटक 'अच्छे दिन' ।' अच्छे दिन- अच्छे दिन '  से प्रारम्भ करके ' अब तो आपको सच्चाई समझ आ गई' पर नाटक का समापन हुआ जिसमें मोदी सरकार के झूठे व खोखले वादों का पर्दाफाश किया गया।

रवींद्रालय से ही जुलूस के साथ -साथ चलने वाले प्रमुख लोगों में सर्व कामरेड के के शुक्ला, ताहिरा हसन, मधु गर्ग, प्रदीप शर्मा, रमेश सेंगर, शकील अहमद सिद्दीकी, प्रदीप घोष शामिल थे। जी पी ओ पर जो प्रमुख लोग शामिल हुये उनमें डॉ चंद्रेश्वर, डॉ वीरेंद्र यादव, सुभाष राय ( प्रधान संपादक जन-संदेश टाईम्स ), भगवान स्वरूप कटियार, किरण सिंह, ऊषा राय, नलिन रंजन सिंह व फूल चंद यादव आदि थे।