लखनऊ, 26 दिसंबर 2015 :
आज 22 कैसरबाग, भाकपा कार्यालय पर पार्टी की स्थापाना के 90 वर्ष पूर्ण होने पर एक समारोह व विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसके अध्यक्ष मण्डल में आशा मिश्रा,अशोक बाजपेयी,रामनाथ यादव शामिल रहे, संचालन ओ पी अवस्थी ने किया।
झंडारोहण व उदघाटन भाषण अशोक मिश्रा ने किया। उन्होने अपने उद्बोधन में पार्टी के गौरवशाली इतिहास का विस्तृत वर्णन किया। उनके अनुसार देश में आज लगभग एक करोड़ लोग विभिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों के अनुयाई हैं। उन्होने उम्मीद जताई कि, जब दस वर्ष बाद हम पार्टी की शताब्दी मनाएंगे तब उसका देश की संसद पर भी प्रभाव होगा।
सदरुद्दीन राणा साहब ने नौजवानों को जोड़ने व चुनाव में सक्रिय भागीदारी की बात की।
साहित्यकार व आलोचक वीरेन्द्र यादव साहब ने कहा कि हमें अपने देश में हुई बौद्ध क्रान्ति, 1789 की फ्रांसीसी क्रांति, 1917 की रूसी क्रांति व 1950 में भारतीय संविधान लागू किए जाने की घटनाओं को याद रखना चाहिए। आज आत्मावलोकन, आत्मालोचना व पुनर्मूल्यांकन की महती आवश्यकता है। हमें यह देखना होगा कि चूक कहाँ हुई है जो आज भाकपा के एक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता पर भी संकट मंडरा रहा है। आज IMF और वर्ल्ड बैंक के प्रभाव में 'पूंजीवाद' नरम रुख लेकर और मजबूत हो रहा है। मार्क्स की 'कैपिटल ' से भी पूंजीवाद लाभान्वित होने के प्रयासों में सफल हो रहा है। लेकिन हम अपने सभी पूर्वानुमानों में विफल रहने के बाद भी आज भी उन्ही पुरातन व्याख्याओं से बंधे हुये हैं जबकि समय के परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होना चाहिए था। लेकिन उन्होने ज़ोर देकर कहा कि भले ही सांगठनिक रूप से साम्यवादी विचार धारा कमजोर हुई हो लेकिन वैचारिक रूप से साम्यवादी विचार धारा भारत समेत सम्पूर्ण विश्व में मजबूत हुई है और सबकी आशा भरी निगाहें इसी विचार धारा पर टिकी हुई हैं। यही कारण है कि नागपूर खेमा इसी विचारधारा पर आक्रमण कर रहा है और हमारे तीन विद्वानों को हाल ही में अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है।
वीरेंद्र यादव जी ने यह भी याद दिलाया कि 1925 में ही SELF RESPECT MOVEMENT भी प्रारम्भ हुआ था । दक्षिण में पेरियार के नेतृत्व में जो आंदोलन चला था उसके अवशेष आज भी DMK, AIADMK आदि अनेक दलों के साये में मौजूद हैं और मजबूत भी हैं। हमें अपनी नीतियाँ बनाते समय इस 'स्वाभिमान आंदोलन' पर भी ध्यान देना होगा। समता और समानता के मार्क्सवादी आदर्श औद्योगीकरण के मद्देनजर थे । मार्क्स के खुद के अनुभवों के आधार पर इनको भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से अपनाया जाना था लेकिन वैसा हुआ नहीं । रूस में भी साम्यवाद के पतन को देखते हुये भारत में 'वर्ण' और 'वर्ग' के अंतर्द्वंद को ध्यान में रखना होगा। अंबेडकर से भी हमको प्रेरणा प्राप्त करनी होगी।हमारे देश में 80 प्रतिशत सर्वहारा वर्ग दलित व पिछड़ों में से आता है। हमें नीतियाँ बनाते समय इस वर्ग के सामाजिक उत्पीड़न व आर्थिक शोषण को भी ध्यान में रखना होगा।
हमारे देश में एक विचारधारा 25 दिसंबर 1927 को 'मनु स्मृति' दहन की जो शुरू हुई थी आज भी प्रबल है। दूसरी विचारधारा इस संविधान को हटा कर मनु स्मृति के विधान को लागू करने की है। हमें इस अंतर्द्वंद को भी समझना होगा। देश में उठने वाली हर आंदोलनकारी परिस्थितियों में कम्युनिस्टों को हस्तक्षेप करना चाहिए। उनके अनुसार 'यूनाइटेड फ्रंट' की आज वास्तव में बहुत आवश्यकता है। 'आत्म मुग्ध' होने की अपेक्षा पुनरावलोकन करने की यथार्थ आवश्यकता है। उन्होने बल देकर कहा कि लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा करने व नए सोपान तक पहुंचाने की आज बेहद ज़रूरत है।
कामरेड ओ पी सिन्हा ने कहा कि आने वाले वर्ष 2016 में रूसी क्रांति की शताब्दी के समारोह शुरू होने वाले हैं हमें उस अवसर का सदुपयोग करते हुये अपनी शक्ति को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। हमें आज के नौजवानों की अपेक्षाओं व आदर्शों को समझ कर उनको अपनी ओर आकर्षित करना होगा। 1925 में स्थापित जो परम्पराओं की कड़ी टूट गई थी उसे फिर से जोड़ कर आगे बढ़ना होगा।
शकील सिद्दीकी साहब ने बताया कि 'क्रांतिकारी आंदोलन' और 'भाकपा' का आंदोलन एक साथ प्रारम्भ हुआ था। अतः हमारे इस आंदोलन को थामने व रोकने के लिए ही जातिवादी व धार्मिक उन्माद को बढ़ाया जा रहा है। उन्होने उदाहरण देते हुये कहा कि जब पंजाब में कम्युनिस्ट आंदोलन प्रखरता के साथ अपने उभार पर था तभी अकाली आंदोलन खालिस्तान की मांग को लेकर खड़ा कर दिया गया जिस कारण कम्युनिस्ट आंदोलन बिखर गया। हमें इन चालों से सावधान रहना होगा।
अपने अध्यक्षीय ऊदबोधन में आशा मिश्रा जी ने दोहराया कि हमारी पार्टी का गौरवशाली इतिहास हमारे लिए आज भी प्रेरक है। विभिन्न सुविधाओं को दिलाने में पार्टी द्वारा किए गए संघर्षों का योगदान महत्वपूर्ण है और हमें आज समाप्त की जा रही उन सुविधाओं को पाने के प्रयास फिर से करने होंगे।
युवा वर्ग के कामरेड नरेश को विशेष रूप से अपने विचार रखने का अवसर अध्यक्ष मण्डल ने प्रदान कर दिया जिनका ज़ोर था कि मार्क्स ने 1880 से 1883 के मध्य जो स्पष्टीकरण अपने पत्रों द्वारा दिये थे उनका प्रकाशन 1984 में हो गया है उन विचारों पर आज गहन विचार कर नई नीतियाँ बनाए जाने की ज़रूरत है।
अध्यक्ष मण्डल के सदस्य रामनाथ यादव जी ने एक काव्य-पाठ किया और कामरेड नरेश के उठाए प्रश्नों को आज की गोष्ठी के लिए अप्रासांगिक बताया। उनके अनुसार अलग किसी सेमिनार में उस विषय को रखा जाना चाहिए।
जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने उपस्थित कामरेड्स व वक्ताओं का समारोह को सफल बनाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन किया और पार्टी के भविष्य को उज्ज्वल बताया। उन्होने सभी जनों से नाटक का अवलोकन करने के बाद भोजन ग्रहण करने का अनुरोध किया।
प्रदीप घोष साहब के निर्देशन में IPTA के कलाकारों द्वारा नाटक 'अच्छे दिन' का प्रदर्शन किया गया। जिसके द्वारा मोदी सरकार के छल से गठन और बाद की परिस्थितियों का सूक्ष्म किन्तु प्रेरक व रोचक प्रस्तुतीकरण हुआ जिसे दर्शकों ने सराहा व खूब प्रशंसा की तथा कुछ क्षेत्रों से उनके यहाँ इसके प्रदर्शन की मांग भी की गई।
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आज 22 कैसरबाग, भाकपा कार्यालय पर पार्टी की स्थापाना के 90 वर्ष पूर्ण होने पर एक समारोह व विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसके अध्यक्ष मण्डल में आशा मिश्रा,अशोक बाजपेयी,रामनाथ यादव शामिल रहे, संचालन ओ पी अवस्थी ने किया।
झंडारोहण व उदघाटन भाषण अशोक मिश्रा ने किया। उन्होने अपने उद्बोधन में पार्टी के गौरवशाली इतिहास का विस्तृत वर्णन किया। उनके अनुसार देश में आज लगभग एक करोड़ लोग विभिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों के अनुयाई हैं। उन्होने उम्मीद जताई कि, जब दस वर्ष बाद हम पार्टी की शताब्दी मनाएंगे तब उसका देश की संसद पर भी प्रभाव होगा।
सदरुद्दीन राणा साहब ने नौजवानों को जोड़ने व चुनाव में सक्रिय भागीदारी की बात की।
साहित्यकार व आलोचक वीरेन्द्र यादव साहब ने कहा कि हमें अपने देश में हुई बौद्ध क्रान्ति, 1789 की फ्रांसीसी क्रांति, 1917 की रूसी क्रांति व 1950 में भारतीय संविधान लागू किए जाने की घटनाओं को याद रखना चाहिए। आज आत्मावलोकन, आत्मालोचना व पुनर्मूल्यांकन की महती आवश्यकता है। हमें यह देखना होगा कि चूक कहाँ हुई है जो आज भाकपा के एक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता पर भी संकट मंडरा रहा है। आज IMF और वर्ल्ड बैंक के प्रभाव में 'पूंजीवाद' नरम रुख लेकर और मजबूत हो रहा है। मार्क्स की 'कैपिटल ' से भी पूंजीवाद लाभान्वित होने के प्रयासों में सफल हो रहा है। लेकिन हम अपने सभी पूर्वानुमानों में विफल रहने के बाद भी आज भी उन्ही पुरातन व्याख्याओं से बंधे हुये हैं जबकि समय के परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होना चाहिए था। लेकिन उन्होने ज़ोर देकर कहा कि भले ही सांगठनिक रूप से साम्यवादी विचार धारा कमजोर हुई हो लेकिन वैचारिक रूप से साम्यवादी विचार धारा भारत समेत सम्पूर्ण विश्व में मजबूत हुई है और सबकी आशा भरी निगाहें इसी विचार धारा पर टिकी हुई हैं। यही कारण है कि नागपूर खेमा इसी विचारधारा पर आक्रमण कर रहा है और हमारे तीन विद्वानों को हाल ही में अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है।
वीरेंद्र यादव जी ने यह भी याद दिलाया कि 1925 में ही SELF RESPECT MOVEMENT भी प्रारम्भ हुआ था । दक्षिण में पेरियार के नेतृत्व में जो आंदोलन चला था उसके अवशेष आज भी DMK, AIADMK आदि अनेक दलों के साये में मौजूद हैं और मजबूत भी हैं। हमें अपनी नीतियाँ बनाते समय इस 'स्वाभिमान आंदोलन' पर भी ध्यान देना होगा। समता और समानता के मार्क्सवादी आदर्श औद्योगीकरण के मद्देनजर थे । मार्क्स के खुद के अनुभवों के आधार पर इनको भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से अपनाया जाना था लेकिन वैसा हुआ नहीं । रूस में भी साम्यवाद के पतन को देखते हुये भारत में 'वर्ण' और 'वर्ग' के अंतर्द्वंद को ध्यान में रखना होगा। अंबेडकर से भी हमको प्रेरणा प्राप्त करनी होगी।हमारे देश में 80 प्रतिशत सर्वहारा वर्ग दलित व पिछड़ों में से आता है। हमें नीतियाँ बनाते समय इस वर्ग के सामाजिक उत्पीड़न व आर्थिक शोषण को भी ध्यान में रखना होगा।
हमारे देश में एक विचारधारा 25 दिसंबर 1927 को 'मनु स्मृति' दहन की जो शुरू हुई थी आज भी प्रबल है। दूसरी विचारधारा इस संविधान को हटा कर मनु स्मृति के विधान को लागू करने की है। हमें इस अंतर्द्वंद को भी समझना होगा। देश में उठने वाली हर आंदोलनकारी परिस्थितियों में कम्युनिस्टों को हस्तक्षेप करना चाहिए। उनके अनुसार 'यूनाइटेड फ्रंट' की आज वास्तव में बहुत आवश्यकता है। 'आत्म मुग्ध' होने की अपेक्षा पुनरावलोकन करने की यथार्थ आवश्यकता है। उन्होने बल देकर कहा कि लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा करने व नए सोपान तक पहुंचाने की आज बेहद ज़रूरत है।
कामरेड ओ पी सिन्हा ने कहा कि आने वाले वर्ष 2016 में रूसी क्रांति की शताब्दी के समारोह शुरू होने वाले हैं हमें उस अवसर का सदुपयोग करते हुये अपनी शक्ति को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। हमें आज के नौजवानों की अपेक्षाओं व आदर्शों को समझ कर उनको अपनी ओर आकर्षित करना होगा। 1925 में स्थापित जो परम्पराओं की कड़ी टूट गई थी उसे फिर से जोड़ कर आगे बढ़ना होगा।
शकील सिद्दीकी साहब ने बताया कि 'क्रांतिकारी आंदोलन' और 'भाकपा' का आंदोलन एक साथ प्रारम्भ हुआ था। अतः हमारे इस आंदोलन को थामने व रोकने के लिए ही जातिवादी व धार्मिक उन्माद को बढ़ाया जा रहा है। उन्होने उदाहरण देते हुये कहा कि जब पंजाब में कम्युनिस्ट आंदोलन प्रखरता के साथ अपने उभार पर था तभी अकाली आंदोलन खालिस्तान की मांग को लेकर खड़ा कर दिया गया जिस कारण कम्युनिस्ट आंदोलन बिखर गया। हमें इन चालों से सावधान रहना होगा।
अपने अध्यक्षीय ऊदबोधन में आशा मिश्रा जी ने दोहराया कि हमारी पार्टी का गौरवशाली इतिहास हमारे लिए आज भी प्रेरक है। विभिन्न सुविधाओं को दिलाने में पार्टी द्वारा किए गए संघर्षों का योगदान महत्वपूर्ण है और हमें आज समाप्त की जा रही उन सुविधाओं को पाने के प्रयास फिर से करने होंगे।
युवा वर्ग के कामरेड नरेश को विशेष रूप से अपने विचार रखने का अवसर अध्यक्ष मण्डल ने प्रदान कर दिया जिनका ज़ोर था कि मार्क्स ने 1880 से 1883 के मध्य जो स्पष्टीकरण अपने पत्रों द्वारा दिये थे उनका प्रकाशन 1984 में हो गया है उन विचारों पर आज गहन विचार कर नई नीतियाँ बनाए जाने की ज़रूरत है।
अध्यक्ष मण्डल के सदस्य रामनाथ यादव जी ने एक काव्य-पाठ किया और कामरेड नरेश के उठाए प्रश्नों को आज की गोष्ठी के लिए अप्रासांगिक बताया। उनके अनुसार अलग किसी सेमिनार में उस विषय को रखा जाना चाहिए।
जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने उपस्थित कामरेड्स व वक्ताओं का समारोह को सफल बनाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन किया और पार्टी के भविष्य को उज्ज्वल बताया। उन्होने सभी जनों से नाटक का अवलोकन करने के बाद भोजन ग्रहण करने का अनुरोध किया।
प्रदीप घोष साहब के निर्देशन में IPTA के कलाकारों द्वारा नाटक 'अच्छे दिन' का प्रदर्शन किया गया। जिसके द्वारा मोदी सरकार के छल से गठन और बाद की परिस्थितियों का सूक्ष्म किन्तु प्रेरक व रोचक प्रस्तुतीकरण हुआ जिसे दर्शकों ने सराहा व खूब प्रशंसा की तथा कुछ क्षेत्रों से उनके यहाँ इसके प्रदर्शन की मांग भी की गई।
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