*************************भाकपा की स्थापना के 90 वर्ष पूर्ण होने पर ***************
राज्यसभा सदस्य डी राजा साहब ने 10 नवंबर 2015 को यह बयान जारी किया था और अब शीतकालीन सत्र गुज़र चुका है। दिल्ली मे पार्टी कार्यालय पर भव्य सजावट हो चुकी है और पार्टी स्थापना के 90 वर्ष पूर्ण होने व 91वीं वर्षगांठ पर कानपुर में भव्य आयोजन होने जा रहा है, परंतु कहीं पर भी राजा साहब के विचारों पर चिंता नहीं व्यक्त की जा रही है। कानपुर के महत्वपूर्ण आयोजन का पर्चा/पोस्टर डी राजा साहब की उपस्थिती नहीं दर्शा रहा है। और तो और उत्तर-प्रदेश के ही वासी तथा शमीम फैजी साहब के साथ उत्तर-प्रदेश भाकपा के राज्य सम्मेलन में केंद्रीय पर्यवेक्षक रहे अतुल अंजान साहब भी इन पर्चों/पोस्टरों से अनुपस्थित है जबकि एक ही परिवार के लोगों के नाम प्रमुखता के साथ शामिल किए गए हैं।
पार्टी कर्णधारों की एक झलक का आभास इस वक्तव्य से भी होता है :
और IPTA जिसके संचालक भी पार्टी के ही वरिष्ठ नेतृत्व के साथी हैं किस प्रकार रामलीला का ब्राह्मणवादी प्रचार-प्रसार करके फासिस्ट/सांप्रदायिक मनोवृति को मजबूत करने में जाने या अनजाने सहयोग कर रहा है :
और देखिये कि, किस प्रकार भाकपा को उन मायावती जी से गठबंधन की सलाह दी जा रही है जो तीन बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनी हैं तथा गुजरात दंगों की दोषी पार्टी का उनके मंच से चुनाव करने गुजरात बड़े गर्व से जा चुकी हैं।
लेकिन अपनी ही पार्टी के सम्मानित व विद्वान सांसद कामरेड डी राजा साहब की सर्वथा उपेक्षा करके बसपा नेत्री के भरोसे पार्टी की नैया खेने की तैयारी चल रही है। जब तक पार्टी नेतृत्व ब्रहमनवाद से ग्रस्त है तब तक पार्टी को जनप्रियता हासिल नहीं हो सकती है। राम का आदर्श था साम्राज्यवादी -विसतारवादी रावण का दर्प चूर्ण करना और आज पार्टी द्वारा नियंत्रित संगठन पोंगापंथी पाखंड को प्रचारित कर रहे हैं बजाए उस आदर्श को जनता के सामने प्रस्तुत करने के। इन सब कार्यों से फासिस्ट/सांप्रदायिक शक्तियाँ दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही हैं।
निजीकरण को बढ़ावा ही इसलिए दिया गया था कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण के प्राविधान से पिंड छुड़ाया जा सके। अतः डी राजा साहब द्वारा निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्राविधान करवाने की पहल अच्छी है और पार्टी को इस पर सक्रिय होना चाहिए। लेकिन क्या पार्टी का ब्राह्मणवादी नेतृत्व ऐसा होने देगा?
*********************************************
राज्यसभा सदस्य डी राजा साहब ने 10 नवंबर 2015 को यह बयान जारी किया था और अब शीतकालीन सत्र गुज़र चुका है। दिल्ली मे पार्टी कार्यालय पर भव्य सजावट हो चुकी है और पार्टी स्थापना के 90 वर्ष पूर्ण होने व 91वीं वर्षगांठ पर कानपुर में भव्य आयोजन होने जा रहा है, परंतु कहीं पर भी राजा साहब के विचारों पर चिंता नहीं व्यक्त की जा रही है। कानपुर के महत्वपूर्ण आयोजन का पर्चा/पोस्टर डी राजा साहब की उपस्थिती नहीं दर्शा रहा है। और तो और उत्तर-प्रदेश के ही वासी तथा शमीम फैजी साहब के साथ उत्तर-प्रदेश भाकपा के राज्य सम्मेलन में केंद्रीय पर्यवेक्षक रहे अतुल अंजान साहब भी इन पर्चों/पोस्टरों से अनुपस्थित है जबकि एक ही परिवार के लोगों के नाम प्रमुखता के साथ शामिल किए गए हैं।
पार्टी कर्णधारों की एक झलक का आभास इस वक्तव्य से भी होता है :
और IPTA जिसके संचालक भी पार्टी के ही वरिष्ठ नेतृत्व के साथी हैं किस प्रकार रामलीला का ब्राह्मणवादी प्रचार-प्रसार करके फासिस्ट/सांप्रदायिक मनोवृति को मजबूत करने में जाने या अनजाने सहयोग कर रहा है :
और देखिये कि, किस प्रकार भाकपा को उन मायावती जी से गठबंधन की सलाह दी जा रही है जो तीन बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनी हैं तथा गुजरात दंगों की दोषी पार्टी का उनके मंच से चुनाव करने गुजरात बड़े गर्व से जा चुकी हैं।
लेकिन अपनी ही पार्टी के सम्मानित व विद्वान सांसद कामरेड डी राजा साहब की सर्वथा उपेक्षा करके बसपा नेत्री के भरोसे पार्टी की नैया खेने की तैयारी चल रही है। जब तक पार्टी नेतृत्व ब्रहमनवाद से ग्रस्त है तब तक पार्टी को जनप्रियता हासिल नहीं हो सकती है। राम का आदर्श था साम्राज्यवादी -विसतारवादी रावण का दर्प चूर्ण करना और आज पार्टी द्वारा नियंत्रित संगठन पोंगापंथी पाखंड को प्रचारित कर रहे हैं बजाए उस आदर्श को जनता के सामने प्रस्तुत करने के। इन सब कार्यों से फासिस्ट/सांप्रदायिक शक्तियाँ दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही हैं।
निजीकरण को बढ़ावा ही इसलिए दिया गया था कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण के प्राविधान से पिंड छुड़ाया जा सके। अतः डी राजा साहब द्वारा निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्राविधान करवाने की पहल अच्छी है और पार्टी को इस पर सक्रिय होना चाहिए। लेकिन क्या पार्टी का ब्राह्मणवादी नेतृत्व ऐसा होने देगा?
*********************************************
No comments:
Post a Comment