Saturday 18 August 2018

सभी राजनीतिक दलों की दिशा और दशा ब्राह्मणवाद तय करता है ------ innbharat


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संपादकीय
वाजपेयी को महान बताना ब्राह्मणवाद की गुलामी, ब्राह्मणवाद की पालकी ढ़ोना है
Written by innbharat on August 17, 2018

ब्राह्मणावाद किस तरह से हमारे समाज और जीवन के मानक तय करता है लोकप्रिय मुहावरे गढ़ता है, यह वाजपेयी की मौत ने दिखा दिया है। अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन की देश के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पद पर पहुंचने से ज्यादा कोई उपब्धि नही है बल्कि उनके कर्मो की सूची तैयार की जाये तो राष्ट्र विरोधी करतूतों की पूरी किताब बन सकती है। परंतु फिर भी वाजपेयी की शान में जो कसीदे पढ़े जा रहे हैं वह बता रहे हैं कि अभी भी हमारा समाज ब्राहृमणवाद की गुलामी करने और ब्राह्मणवादियों की पालकी ढ़ोने के काम से आगे बढ़ नही पाया है।

1942 के भारत छोड़ों आंदोलन से लिखित में गद्दारी करने वाला व्यक्ति आज हमारे सार्वजनिक जीवन में महामानव बन बैठा है। केवल 1942 ही नही उससके बाद भी वाजपेयी की करतूते कम नही रही हैं। 1949 में अटल बिहारी वाजपेयी ‘‘पांचजन्य‘‘ के संपादक थे। उस समय देश में बाबासाहेब के तैयार किये गये संविधान की चर्चा जोरों पर थी और वाजपेयी के संपादकत्व में पांचजन्य भारत के भावी संविधान को ‘‘भानुमति का पिटारा‘‘ और अंग्रेजी बैण्ड़ पर डांस‘‘ की संज्ञा दे रहा था। वाजपेयी के संपादकत्व में पांचजन्य साफ घोषणा कर रहा था कि हमारा दण्ड़ विधान मनुस्मृति है। बाबासाहेब को अंग्रेजी पहनावे वाला ऐस व्यक्ति बताया जा रहा था जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं से नावाकिफ था। यही वाजपेयी थे जिनके सपंादकत्व में हिंदू महिलाओं को समानता के आधिकार देने वाले हिंदू कोड़ बिल के विरोध की कमान पांचजन्य संभाले हुए था। जिन्होंने हिंदू कोड बिल के खिलाफ संपादकीय लिखे और हिंदू कोड़ बिल को भारतीय परिवार संस्था को तोड़ने वाला बताया।

भारत के माथे पर लगे 2002 के कलंक पर खामोश रहने वाला और बाबरी मस्जिद ध्वंस से एक दिन पहले अपने भाषण में नुकीले पत्थर हटाकर यज्ञ करने का आह्वान करने वाला व्यक्ति सबके लिए सम्मानित हो गया है। और दोगलापन ऐसा कि जिस आदमी ने नुकीले पत्थर हटाने का आह्वान करके कारसेवकों को उकसाया उसी आदमी ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को संसंद में इतिहास का काला दिन बताया और उसके कुछ सालों बाद मौका देखकर संसद में फिर बाबरी मस्जिद विध्वंस को बहुसंख्यक भावनाओ ंका प्रकटीकरण कह डाला। जिस आदमी की जबान मौका देखकर पलटती थी वह आज महान हो गया। जिस मोदी को आज देश के लिए भस्मासुर कहा जा रहा है ध्यान रहे कि मोदी को दिल्ली से गुजरात मुुख्यमंत्री बनाकर भेजने वाला और कोई नही यही महान वाजपेयी ही थे। वाजपेयी की पलटी का सबसे गजब नमूना मैने पांचजन्य के 1947 के नवंबर दिसंबर के किसी अंक में देखा जिसमें वाजपेयी के साप्ताहिक ने एक कार्टून छापा जिसे नागपंचमी विशेषांक का नाम दिया गया। जिसमें दिखाया था कि नेहरू नाग को दुध पिला रहे हैं और गांधी उनके कंधे पर हाथ रखकर नाग को दुध पिलवाकर नाग को पाल रहे हैं और नाग को उस कार्टून में पाकिस्तान दिखाया गया था। उसके बाद 30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या के बाद जब संघ पर प्रतिबध लग गया और आर्गेनाइजर पर भी रोक लग गयी तो रोक से बचने के लिए वाजपेयी ने महात्मा गांधी को प्रातः स्मरणीय और प्रातः वंदनीय ना जाने क्या क्या कहकर गांधी की तारीफ में कसीदे पढ़ने शुरू किये। जो गांधी की चापलूसी में पलटने के ऐसे करतब आजाद भारत के इतिहास में शायद ही कोई दूसरा नेता दिखा सके। फिर भी ब्राह्मणवाद का वह नायक महान है।
वाजपेयी के कामों में से आधे भी यदि किसी दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक नेता ने किये होते तो शर्तिया ब्राह्मणवाद उसे देश के खलनायक की तरह से पेश करता। परंतु वाजपेयी एक ब्राह्मण और अफवाहों की प्रयोगशाला और झूठ के कारखाने ब्राह्मणवादी आरएसएस के नायक थे तो उन्हें देश का महानायक तो होना ही था।

विभिन्न दलों के नेताओं के द्वारा वाजपेयी की तारीफों ने एक तथ्य को सामने ला दिया है कि सभी राजनीतिक दलों की दिशा और दशा ब्राह्मणवाद तय करता है, उनका एजेंडा और उनकी भाषा और उनके मुहावरे ब्राह्मणवाद तय करता है, पूरे देश, पूरे समाज का विमर्श ब्राह्मणवाद तय करता है। कुकृत्यों की लंबी सूची रखने वाले व्यक्ति को, देश के संविधान का विरोध करने वाले, आजदी की लड़ाई से गद्दारी करने वाले व्यक्ति को महामानव और देश का प्रणेता बताये जाने का अर्थ है कि हम आज भी ब्राह्मणवाद की पालकी ढ़ो रहे हैं, ब्राह्मणवाद की गुलामी कर रहे हैं।
साभार : 


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