Saturday 11 May 2019

ऐसा ' वामपंथी ' आंदोलन बरबाद न होता तो क्या होता ? ------ मुकेश असीम





नागपूर का भी समर्थन पूर्व राष्ट्रपति को पी एम पद के लिए मिल सकता है इस आधार पर उनका नाम भी विचाराधीन है कह कर CPM महासचिव ने अपनी पुरानी नीति का ही पुष्टीकरण किया है। पूर्व में केरल व बंगाल में CPM से BJP एवं BJP से CPM में कार्यकर्ताओं का आवागमन हो चुका है। 
यदि 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में  डॉ मनमोहन सिंह  पी एम पद पर अड़े रहने की ज़िद्द न करके  राष्ट्रपति बन गए होते तब  तभी  प्रणब  मुखर्जी  पी एम बन जाते  जिनको रिलायंस का समर्थन प्राप्त था। इसी ज़िद्द का परिणाम था  कि  हज़ारे , रामदेव , RSSने 2014 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़  फेंका और मोदी सत्तासीन हो सके। जैसाकि , 11 मई 2019 को शाजापुर , मध्य प्रदेश में NDTV के रवीश कुमार को साक्षात्कार देते हुये राहुल गांधी ने स्वीकार किया कि 1991 से चल रही नीतियाँ जो 2004 और 2009 के चुनावों में भी सफल रही थीं 2012  में ही विफल सिद्ध हो चुकी थीं। (संदर्भ: https://www.youtube.com/watch?v=B_bC7rN5Pm4  )
2014 के चुनावों में  आने वाली मोदी सरकार ने  उन विफल नीतियों को ही जारी रखा जिस कारण  आलोकप्रिय  होते देर न लगी। 
चुनाव परिणामों  के बाद ममता बनर्जी , मायावती , यशवंत सिन्हा सरीखे अनुभवी प्रशासक पी एम न बन सकें इसीलिए  रिलायंस  का समर्थन प्राप्त  पूर्व राष्ट्रपति का नाम उछाला गया है जिनको RSS का भी समर्थन संभावित बताया जा रहा है। 
CPI , Cpm आदि वामपंथी पार्टियां जब जनता की नब्ज न पकड़ कर पूँजीपतियों के हितैषियों का समर्थन करने लग जाएँ   'वामपंथी ' आंदोलन  को तो बरबाद होना ही है। 
(------ विजय राजबली माथुर ) 

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