Thursday, 12 September 2013

Danger is grave... put up an undaunted fight against the RSS move---Gurudas Dasgupta

It seems RSS has finally taken over the BJP. Earlier they were acting from behind the scene. Now it is in the open. They are cynically dictating who will be leader of the BJP. If RSS succeeds in its political manipulation to foster Modi as the next prime ministerial candidate, then BJP will be more aggressive, more turned to the riots and shall pose a grave danger to the Indian political environment.

It is needless to say that communal riots have become a weapon to consolidate the vote bank and win elections as Modi has succeeded in Gujarat after burning of a train and the riots that followed. It seems supporters of Modi are playing the same trick on the Indian nation. Danger is grave and it is urgently needed to collectively put up an undaunted fight against the RSS move.

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 भाकपा संसदीय दल के नेता कामरेड गुरुदास दासगुप्ता जी की चिंता और आह्वान वाजिब है । इस संदर्भ में 1991 में एक लेख लिखा था जिसे दो वर्ष पूर्व 'क्रांतिस्वर' ब्लाग में भी दिया था उसे पुनः उद्धृत कर रहा हूँ। हम अभी भी वास्तविकता को स्वीकार करके RSS आदि सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त कर सकते हैं किन्तु खतरा प्रदीप तिवारी सरीखे छद्म साम्यवादियों से ज़्यादा है जो अपनी नीतियों से सांप्रदायिक शक्तियों को बल प्रदान करते रहते हैं। :

रविवार, 18 सितम्बर 2011

बामपंथी कैसे सांप्रदायिकता का संहार करेंगे?

लगभग 12 (अब  32)  वर्ष पूर्व सहारनपुर के 'नया जमाना'के संपादक स्व. कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर'ने अपने एक तार्किक लेख मे 1952 मे सम्पन्न संघ के एक नेता स्व .लिंमये के साथ अपनी वार्ता के हवाले से लिखा था कि,कम्यूनिस्टों और संघियों के बीच सत्ता की निर्णायक लड़ाई  दिल्ली की सड़कों पर लड़ी जाएगी।

आज संघ और उसके सहायक संगठनों ने सड़कों पर लड़ाई का बिगुल बजा दिया है,बामपंथी अभी तक कागजी तोपें दाग कर सांप्रदायिकता का मुक़ाबला कर रहे हैं;व्यापक जन-समर्थन और प्रचार के बगैर क्या वे संघियों के सांप्रदायिक राक्षस का संहार कर सकेंगे?

भारत विविधता मे एकता वाला एक अनुपम राष्ट्र है। विभिन्न भाषाओं,पोशाकों,आचार-व्यवहार आदि के उपरांत भी भारत अनादी  काल से एक ऐसा राष्ट्र रहा है जहां आने के बाद अनेक आक्रांता यहीं के होकर रह गए और भारत ने उन्हें आत्मसात कर लिया। यहाँ का प्राचीन आर्ष धर्म हमें "अहिंसा परमों धर्मा : "और "वसुधेव कुटुम्बकम" का पाठ पढ़ाता रहा है। नौवीं सदी के आते-आते भारत के व्यापक और सहिष्णू स्वरूप को आघात लग चुका था। यह वह समय था जब इस देश की धरती पर बनियों और ब्राह्मणों के दंगे हो रहे थे। ब्राह्मणों ने धर्म को संकुचित कर घोंघावादी बना दिया था । सिंधु-प्रदेश के ब्राह्मण आजीविका निर्वहन के लिए समुद्री डाकुओं के रूप मे बनियों के जहाजों को लूटते थे। ऐसे मे धोखे से अरब व्यापारियों को लूट लेने के कारण सिंधु प्रदेश पर गजनी के शासक महमूद गजनवी ने बदले की  लूट के उद्देश्य से अनेकों आक्रमण किए और सोमनाथ को सत्रह बार लूटा। महमूद अपने व्यापारियों की लूट का बदला जम कर लेना चाहता था और भारत मे उस समय बैंकों के आभाव मे मंदिरों मे जवाहरात के रूप मे धन जमा किया जाता था। प्रो नूरुल हसन ने महमूद को कोरा लुटेरा बताते हुये लिखा है कि,"महमूद वाज ए डेविल इन कार्नेट फार दी इंडियन प्यूपिल बट एन एंजिल फार हिज गजनी सबजेक्ट्स"। महमूद गजनवी न तो इस्लाम का प्रचारक था और न ही भारत को अपना उपनिवेश बनाना चाहता था ,उसने ब्राह्मण लुटेरों से बदला लेने के लिए सीमावर्ती क्षेत्र मे व्यापक लूट-पाट की । परंतु जब अपनी फूट परस्ती के चलते यहीं के शासकों ने गोर के शासक मोहम्मद गोरी को आमंत्रित किया तो वह यहीं जम गया और उसी के साथ भारत मे इस्लाम का आगमन हुआ।

भारत मे इस्लाम एक शासक के धर्म के रूप मे आया जबकि भारतीय धर्म आत्मसात करने की क्षमता त्याग कर संकीर्ण घोंघावादी हो चुका था। अतः इस्लाम और अनेक मत-मतांतरों मे विभक्त और अपने प्राचीन गौरव से भटके हुये यहाँ प्रचलित धर्म मे मेल-मिलाप न हो सका। शासकों ने भारतीय जनता का समर्थन प्राप्त कर अपनी सत्ता को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए इस्लाम का ठीक वैसे ही प्रचार किया जिस प्रकार अमीन सायानी सेरोडान की टिकिया का प्रचार करते रहे हैं। जनता के भोलेपन का लाभ उठाते हुये भारत मे इस्लाम के शासकीय प्रचारकों ने कहानियाँ फैलाईं कि,हमारे पैगंबर मोहम्मद साहब इतने शक्तिशाली थे कि,उन्होने चाँद के दो टुकड़े कर दिये थे। तत्कालीन धर्म और  समाज मे तिरस्कृत और उपेक्षित क्षुद्र व पिछड़े वर्ग के लोग धड़ाधड़ इस्लाम ग्रहण करते गए और सवर्णों के प्रति राजकीय संरक्षण मे बदले की कारवाइया करने लगे। अब यहाँ प्रचलित कुधर्म मे भी हरीश भीमानी जैसे तत्कालीन प्रचारकों ने कहानियाँ गढ़नी शुरू कीं और कहा गया कि,मोहम्मद साहब ने चाँद  के दो टुकड़े करके क्या कमाल किया?देखो तो हमारे हनुमान लला पाँच वर्ष की उम्र मे सम्पूर्ण सूर्य को रसगुल्ला समझ कर निगल गए थे---

"बाल समय रवि भक्षि लियौ तब तींन्हू लोक भयो अंधियारों।
............................ तब छाणि दियो रवि कष्ट निवारों। "
(सेरीडान  की तर्ज पर डाबर की सरबाइना जैसा सायानी को भीमानी जैसा जवाब था यह कथन)

इस्लामी प्रचारकों ने एक और अफवाह फैलाई कि,मोहम्मद साहब ने आधी रोटी मे छह भूखों का पेट भर दिया था। जवाबी अफवाह मे यहाँ के धर्म के ठेकेदारों ने कहा तो क्या हुआ?हमारे श्री कृष्ण ने डेढ़ चावल मे दुर्वासा ऋषि और उनके साठ हजार शिष्यों को तृप्त कर दिया था। 'तर्क' कहीं नहीं था कुतर्क के जवाब मे कुतर्क चल रहे थे।

अभिप्राय यह कि,शासक और शासित के अंतर्विरोधों से ग्रसित इस्लाम और यहाँ के धर्म को जिसे इस्लाम वालों ने 'हिन्दू' धर्म नाम दिया के परस्पर उखाड़-पछाड़ भारत -भू पर करते रहे और ब्रिटेन के व्यापारियों की गुलामी मे भारत-राष्ट्र को सहजता से जकड़ जाने दिया। यूरोपीय व्यापारियों की गुलामी मे भारत के इस्लाम और हिन्दू दोनों के अनुयायी समान रूप से ही उत्पीड़ित हुये बल्कि मुसलमानों से राजसत्ता छीनने के कारण शुरू मे अंग्रेजों ने मुसलमानों को ही ज्यादा कुचला और कंगाल बना दिया।

ब्रिटिश दासता

साम्राज्यवादी अंग्रेजों ने भारत की धरती और जन-शक्ति का भरपूर शोषण और उत्पीड़न किया। भारत के कुटीर उदद्योग -धंधे को चौपट कर यहाँ का कच्चा माल विदेश भेजा जाने लगा और तैयार माल लाकर भारत मे खपाया  जाने लगा। ढाका की मलमल का स्थान लंकाशायर और मेंनचेस्टर की मिलों ने ले लिया और बंगाल (अब बांग्ला देश)के मुसलमान कारीगर बेकार हो गए। इसी प्रकार दक्षिण भारत का वस्त्र उदद्योग तहस-नहस हो गया।

आरकाट जिले के कलेक्टर ने लार्ड विलियम बेंटिक को लिखा था-"विश्व के आर्थिक इतिहास मे ऐसी गरीबी मुश्किल से ढूँढे मिलेगी,बुनकरों की हड्डियों से भारत के मैदान सफ़ेद हो रहे हैं। "

सन सत्तावन की क्रान्ति

लगभग सौ सालों की ब्रिटिश गुलामी ने भारत के इस्लाम और हिन्दू धर्म के अनुयायीओ को एक कर दिया और आजादी के लिए बाबर के वंशज बहादुर शाह जफर के नेतृत्व मे हरा झण्डा लेकर समस्त भारतीयों ने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति कर दी। परंतु दुर्भाग्य से भोपाल की बेगम ,ग्वालियर के सिंधिया,नेपाल के राणा और पंजाब के सिक्खों ने क्रान्ति को कुचलने मे साम्राज्यवादी अंग्रेजों का साथ दिया।

अंग्रेजों द्वारा अवध की बेगमों पर निर्मम अत्याचार किए गए जिनकी गूंज हाउस आफ लार्ड्स मे भी हुयी। बहादुर शाह जफर कैद कर लिया गया और मांडले मे उसका निर्वासित के रूप मे निधन हुआ। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई वीर गति को प्राप्त हुयी। सिंधिया को अंग्रेजों से इनाम मिला। असंख्य भारतीयों की कुर्बानी बेकार गई।

वर्तमान सांप्रदायिकता का उदय

सन 1857 की क्रान्ति ने अंग्रेजों को बता दिया कि भारत के मुसलमानों और हिंदुओं को लड़ा कर ही ब्रिटिश साम्राज्य को सुरक्षित  रखा जा सकता है। लार्ड डफरिन के आशीर्वाद से स्थापित ब्रिटिश साम्राज्य का सेफ़्टी वाल्व कांग्रेस राष्ट्र वादियों  के कब्जे मे जाने लगी थी। बाल गंगाधर 'तिलक'का प्रभाव बढ़ रहा था और लाला लाजपत राय और विपिन चंद्र पाल के सहयोग से वह ब्रिटिश शासकों को लोहे के चने चबवाने लगे थे। अतः 1905 ई मे हिन्दू और मुसलमान के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया गया । हालांकि बंग-भंग आंदोलन के दबाव मे 1911 ई मे पुनः बंगाल को एक करना पड़ा परंतु इसी दौरान 1906 ई मे ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन को फुसला कर मुस्लिम लीग नामक सांप्रदायिक संगठन की स्थापना करा दी गई और इसी की प्रतिकृया स्वरूप 1920 ई मे हिन्दू महा सभा नामक दूसरा सांप्रदायिक संगठन भी सामने आ गया। 1932 ई मे मैक्डोनल्ड एवार्ड के तहत हिंदुओं,मुसलमानों,हरिजन और सिक्खों के लिए प्रथक निर्वाचन की घोषणा की गई। महात्मा गांधी के प्रयास से सिक्ख और हरिजन हिन्दू वर्ग मे ही रहे और 1935 ई मे सम्पन्न चुनावों मे बंगाल,पंजाब आदि कई प्रान्तों मे लीगी सरकारें बनी और व्यापक हिन्दू-मुस्लिम दंगे फैलते चले गए।


बामपंथ का आगमन

1917 ई मे हुयी रूस मे लेनिन की क्रान्ति से प्रेरित होकर भारत के राष्ट्र वादी कांग्रेसियों ने 25 दिसंबर 1925 ई को कानपुर मे 'भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी'की स्थापना करके पूर्ण स्व-राज्य के लिए क्रांतिकारी आंदोलन शुरू कर दिया और सांप्रदायिकता को देश की एकता के लिए घातक बता कर उसका विरोध किया। कम्यूनिस्टों से राष्ट्रवादिता मे पिछड्ता पा कर 1929 मे लाहौर अधिवेन्शन मे जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस का लक्ष्य भी पूर्ण स्वाधीनता घोषित करा दिया। अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग,हिन्दू महासभा के सैन्य संगठन आर एस एस (जो कम्यूनिस्टों का मुकाबिला करने के लिए 1925 मे ही अस्तित्व मे आया) और कांग्रेस के नेहरू गुट को प्रोत्साहित किया एवं कम्यूनिस्ट पार्टी को प्रतिबंधित कर दिया । सरदार भगत सिंह जो कम्यूनिस्टों के युवा संगठन 'भारत नौजवान सभा'के संस्थापकों मे थे भारत मे समता पर आधारित एक वर्ग विहीन और शोषण विहीन समाज की स्थापना को लेकर अशफाक़ उल्ला खाँ व राम प्रसाद 'बिस्मिल'सरीखे साथियों केसाथ साम्राज्यवादियों से संघर्ष करते हुये शहीद हुये सदैव सांप्रदायिक अलगाव वादियों की भर्तस्ना करते रहे।

वर्तमान  सांप्रदायिकता

1980 मे संघ के सहयोग से सत्तासीन होने के बाद इंदिरा गांधी ने सांप्रदायिकता को बड़ी बेशर्मी से उभाड़ा। 1980 मे ही जरनैल सिंह भिंडरावाला के नेतृत्व मे बब्बर खालसा नामक घोर सांप्रदायिक संगठन खड़ा हुआ जिसे इंदिरा जी का आशीर्वाद पहुंचाने खुद संजय गांधी और ज्ञानी जैल सिंह पहुंचे थे। 1980 मे ही संघ ने नारा दिया-भारत मे रहना होगा तो वंदे मातरम कहना होगा जिसके जवाब मे काश्मीर मे प्रति-सांप्रदायिकता उभरी कि,काश्मीर मे रहना होगा तो अल्लाह -अल्लाह कहना होगा। और तभी से असम मे विदेशियों को निकालने की मांग लेकर हिंसक आंदोलन उभरा।

पंजाब मे खालिस्तान की मांग उठी तो काश्मीर को अलग करने के लिए धारा 370 को हटाने की मांग उठी और सारे देश मे एकात्मकता यज्ञ के नाम पर यात्राएं आयोजित करके सांप्रदायिक दंगे भड़काए। माँ की गद्दी पर बैठे राजीव गांधी ने अपने शासन की विफलताओं और भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने हेतु संघ की प्रेरणा से अयोध्या मे विवादित रामजन्म भूमि/बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा कर हिन्दू सांप्रदायिकता एवं मुस्लिम वृध्दा शाहबानों को न्याय से वंचित करने के लिए संविधान मे संशोधन करके मुस्लिम सांप्रदायिकता को नया बल प्रदान किया।

बामपंथी कोशिश

भारतीय कम्यूनिस्ट,मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट,क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी और फारवर्ड ब्लाक के 'बामपंथी मोर्चा'ने सांप्रदायिकता के विरुद्ध व्यापक जन-अभियान चलाया । बुद्धिजीवी और विवेकशील  राष्ट्र वादी  सांप्रदायिक सौहार्द के प्रबल पक्षधर हैं,परंतु ये सब संख्या की दृष्टि से अल्पमत मे हैं,साधनों की दृष्टि से विप्पन  हैं और प्रचार की दृष्टि से बहौत पिछड़े हुये हैं। पूंजीवादी प्रेस बामपंथी सौहार्द के अभियान को वरीयता दे भी कैसे सकता है?उसका ध्येय तो व्यापारिक हितों की पूर्ती के लिए सांप्रदायिक शक्तियों को सबल बनाना है। अपने आदर्शों और सिद्धांतों के बावजूद बामपंथी अभियान अभी तक बहुमत का समर्थन नहीं प्राप्त कर सका है जबकि,सांप्रदायिक शक्तियाँ ,धन और साधनों की संपन्नता के कारण अलगाव वादी प्रवृतियों को फैलाने मे सफल रही हैं।

सड़कों पर दंगे

अब सांप्रदायिक शक्तियाँ खुल कर सड़कों पर वैमनस्य फैला कर संघर्ष कराने मे कामयाब हो रही हैं। इससे सम्पूर्ण विकास कार्य ठप्प हो गया है,देश के सामने भीषण आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है । मंहगाई सुरसा की तरह बढ़ कर सांप्रदायिकता के पोषक पूंजीपति वर्ग का हित-साधन कर रही है। जमाखोरों,सटोरियों और कालाबाजारियों की पांचों उँगलियाँ घी मे हैं। अभी तक बामपंथी अभियान नक्कार खाने मे तूती की आवाज की तरह चल रहा है। बामपंथियों ने सड़कों पर निपटने के लिए कोई 'सांप्रदायिकता विरोधी दस्ता' गठित नहीं किया है। अधिकांश जनता अशिक्षित और पिछड़ी होने के कारण बामपंथियों के आदर्शवाद के मर्म को समझने मे असमर्थ है और उसे सांप्रदायिक शक्तियाँ उल्टे उस्तरे से मूंढ रही हैं।

दक्षिण पंथी तानाशाही का भय

वर्तमान (1991 ) सांप्रदायिक दंगों मे जिस प्रकार सरकारी मशीनरी ने एक सांप्रदायिकता का पक्ष लिया है उससे अब संघ की दक्षिण पंथी असैनिक तानाशाही स्थापित होने का भय व्याप्त हो गया है। 1977 के सूचना व प्रसारण मंत्री एल के आडवाणी ने आकाशवाणी व दूर दर्शन मे संघ की कैसी घुसपैठ की है उसका हृदय विदारक उल्लेख सांसद पत्रकार संतोष भारतीय ने वी पी सरकार के पतन के संदर्भ मे किया है। आगरा पूर्वी विधान सभा क्षेत्र मे 1985 के परिणामों मे संघ से संबन्धित क्लर्क कालरा ने किस प्रकार भाजपा प्रत्याशी को जिताया ताज़ी घटना है।

पुलिस और ज़िला प्रशासन मजदूर के रोजी-रोटी के हक को कुचलने के लिए जिस प्रकार पूंजीपति वर्ग का दास बन गया है उससे संघी तानाशाही आने की ही बू मिलती है।

बामपंथी असमर्थ

वर्तमान परिस्थितियों का मुक़ाबला करने मे सम्पूर्ण बामपंथ पूरी तरह असमर्थ है। धन-शक्ति और जन-शक्ति दोनों ही का उसके पास आभाव है। यदि अविलंब सघन प्रचार और संपर्क के माध्यम से बामपंथ जन-शक्ति को अपने पीछे न खड़ा कर सका तो दिल्ली की सड़कों पर होने वाले निर्णायक युद्ध मे संघ से हार जाएगा जो देश और जनता के लिए दुखद होगा।

परंतु बक़ौल स्वामी विवेकानंद -'संख्या बल प्रभावी नहीं होता ,यदि मुट्ठी भर लोग मनसा- वाचा-कर्मणा संगठित हों तो सारे संसार को उखाड़ फेंक सकते हैं। 'आदर्शों को कर्म मे उतार कर बामपंथी संघ का मुक़ाबला कर सकते हैं यदि चाहें तो!वक्त अभी निकला नहीं है।

1 comment:

  1. फेसबुक 'जनहित'ग्रुप में प्राप्त टिप्पणी ---
    Narendra Parihar: yes agree

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