मैंने गत वर्ष 30 सितंबर 2013 की सफल रैली के बाद डॉ साहब को आगाह करने का प्रयास किया था। :
"जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा? "
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/3-30.html
मेरे इस आंकलन का कारण प्रदीप तेवारी द्वारा डॉ साहब पर रैली के संबंध में किया गया यह व्यंग्य है कि वह ग्लैमर में लगे रहते हैं : रैली निकालना उनके बूते की बात नहीं है। जबकि रैली के मंच से राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान साहब ने इस रैली को 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली रैली' की संज्ञा दी थी। किन्तु तेवारी साहब अपने दबदबे से 'अंजान' साहब के विरुद्ध घृणित प्रचार अभियान चलाते रहते हैं उनकी एक पोस्ट लगाने के कारण ही मुझे पार्टी ब्लाग के एडमिन व आथरशिप से उन्होने मुझे हटा दिया था जिस कारण मुझे 'साम्यवाद (COMMUNISM)' ब्लाग निकालना पड़ा।
यह है पिछली पोस्ट का एक अंश। कहने की आवश्यकता नहीं है कि उस सफल रैली के बाद मैंने जो आंकलन किया था वह शतशः सही निकला है। डॉ साहब रमेश कटारा के नए अवतार प्रदीप तेवारी के पूर्ण प्रभाव में उसी प्रकार हैं जिस प्रकार 1992 में आगरा के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी रमेश कटारा के प्रभाव में थे। आगरा में सम्पन्न हुई राज्य काउंसिल के लिए रमेश कटारा हेतु पार्टी का समर्थन हासिल न कर पाने पर मिश्रा जी ने केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमेन कामरेड काली शंकर शुक्ला जी से जातिवाद का प्रभाव डाल कर रमेश कटारा को राज्य कंट्रोल कमीशन में नामित करा दिया था। और इसकी कीमत मिश्रा जी को जिलमंत्री पद से नौ वर्ष लगातार वंचित रह कर चुकानी पड़ी थी। 'बोध' होने पर उन्होने रमेश कटारा को पार्टी से निष्कासित करा दिया था एवं पुनः नौ वर्ष आगरा के जिलामंत्री पद पर आसीन रहे ,आज भी वहाँ सर्वमान्य हैं लेकिन इस स्वीकृति हेतु उनको अपनी भूल को सुधारना पड़ा था।
आज अभी तक द्वितीय रमेश कटारा:प्रदीप तेवारी का नशा डॉ साहब के सिर चढ़ कर बोल रहा है। जब पिछली पोस्ट मैंने उनको टैग करना चाहा तो ज्ञात हुआ कि सुबह बर्द्धन जी के जन्मदिन वाली पोस्ट मेरे लगाने के बाद उन्होने खिन्न होकर वह पोस्ट हटा कर मुझे फेसबुक पर ब्लाक कर दिया है। एक तरफ 16 सितंबर 2014 को उन्होने यह स्टेटस दिया था।:
http://vijaimathur.blogspot.in/2014/09/blog-post_28.html
कहाँ तो डॉ साहब ' वामपंथियों को जल्द से जल्द ' वास्तविक तथ्य को समझ लेने का आव्हान कर रहे हैं और एकता के पक्ष में सहमति दे रहे हैं लेकिन खुद ही वास्तविकता से आँखें मूँद कर मात्र प्रदीप के मोह में वैसे ही जनता से सिकुड़ी हुई पार्टी को जनोन्मुखी बनाने की बजाए कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न में प्रदीप की पक्षधरता कर रहे हैं। फेसबुक पर मुझे ब्लाक करना उसी कड़ी का पहला कदम है और प्रदीप द्वारा मुझे पार्टी ब्लाग की एडमिनशिप से हटाने के कृत्य पर सार्वजनिक रूप से मोहर भी (प्रदीप ने ब्लाग चलाने के छह वर्ष तक न तो शास्त्री जी को न ही डॉ साहब को ब्लाग एडमिन बनाया था बल्कि मैंने न केवल डॉ साहब वरन अरविंद राज जी को भी निवेदन करके ब्लाग एडमिन बनवा दिया था जो कि प्रदीप को खूब अखरा भी था )।प्रदीप उनके फेसबुक पर आने का भी विरोधी था मैंने ही उनको फेसबुक पर आने व सक्रिय होने में सक्रिय सहयोग दिया था। उनको तमाम ग्रुप्स में शामिल किया व अपनी मित्र सूची से उनको फ्रेंड्स सजेस्ट किए थे। जब चल गए तो प्रदीप की गोद में बैठ कर उसके इशारों पर चलने लगे न अपने पद की गरिमा का ख्याल किया न ही व्यक्तिगत कोई ज़रा सा भी लिहाज। हो सकता है ज़िला सम्मेलन से पूर्व वह मुझे पार्टी से निष्कासित करवाने का कदम उठा कर प्रदीप को और भी खुश करें। पुरानी कहावत है :'काजर की कोठरी में कैसे हु सयानों जाये एक लीक काजर की लागिहे पे लागिहे । ' यही बात डॉ साहब पर अब बखूबी चस्पा हो रही है। जब वह हाथरस से रामवीर उपाध्याय के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे थे तब ब्राह्मण बहुल क्षेत्र में 'डॉ गिरीश' नाम से किन्तु पोंगापंथी प्रदीप से प्रभावित होकर अब :
13 जूलाई 2013 की ज़िला काउंसिल बैठक के तुरंत बाद डॉ साहब ने प्रदीप की उपस्थिती में ही अंजान साहब को बताया था कि एक दिन पूर्व जब वह बांदा जा रहे थे उनकी जीप का विंड मिरर धमाके के साथ ब्लास्ट कर गया था और उसके काँच के घाव उनके शरीर पर भी थे जिन्हे उन्होने अंजान साहब को दिखाया भी था। संभवतः यह प्रदीप की कोई 'तांत्रिक करामात' ही होगी जिसने डॉ साहब के दिमाग को उसी प्रकार अपने कब्जे में कर रखा है जिस प्रकार तब रमेश कटारा ने रमेश मिश्रा जी के साथ कर रखा था।डॉ साहब ने स्वतः ही अंजान साहब को अपनी यह खूबी भी बताई थी कि उन्होने फारवर्ड ब्लाक के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम किशोर जी को उनकी पार्टी से निकलवा दिया है । उन्होने उनको अपने सेक्रेटरी से सफलता पूर्वक भिड़ा दिया था। बड़े ही गर्व के साथ डॉ साहब ने यह भी बताया था कि फारवर्ड ब्लाक के नए प्रदेश अध्यक्ष और सेक्रेटरी को उन्होने अलग-अलग अपने कब्जे में कर रखा है।
जी पी ओ पार्क,लखनऊ स्थित गांधी प्रतिमा पर महिला फेडरेशन के एक धरने के दौरान डॉ साहब ने प्रदीप व मेरे मध्य साँप-नेवले के संबंध की बात कही थी। कहाँ तो प्रदीप प्रदेश कोषाध्यक्ष और कहाँ मैं ज़िला काउंसिल का सदस्य दोनों के मध्य प्रतिद्वंदिता अथवा समानता की बात ही कहाँ थी? परंतु डॉ साहब ऐसी तुलना कर रहे थे क्यों?
मई 2012 में डॉ साहब ने खुद अपनी जन्मपत्री का व 06-11-12 को अपनी पत्नी की जन्मपत्री का तथा प्रदीप ने 12-11-12 को अपनी पुत्री की जन्मपत्री का विश्लेषण मुझसे निशुल्क प्राप्त किया था । किन्तु ये दोनों उसी प्रकार मेरा अनर्गल विरोध कर रहे हैं जिस प्रकार प्रदीप की भाभी की मित्र पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट ब्लागर ने चार जन्मपत्रियों का निशुल्क विश्लेषण प्राप्त करके ब्लाग जगत में किया था। क्या एक निकृष्ट ब्लागर और इन बड़े राजनेताओं में कोई फर्क नहीं होना चाहिए था?
परंतु गलत व्यक्ति को लाभ पहुंचा कर न तो पार्टी को मजबूत बनाया जा सकता है न ही जनता के मध्य लोकप्रिय।
http://communistvijai.blogspot.in/2013/12/blog-post_24.html
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