Friday, 27 February 2015

वामपंथी आंदोलन लगातार टूटता-बिखरता क्यों जा रहा है .....???---भावेश भारद्वाज

17 Feb.2015
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बेगूसराय भाकपा से सम्बद्ध युवा कामरेड भावेश भारद्वाज साहब द्वारा व्यक्त उपरोक्त विचार वर्तमान परिस्थितियों में नितांत प्रासांगिक हैं। उनका यह कथन कितना सटीक है-" नेक व ईमानदार बने रहने की कोशिश, आज के हालात में ऐसी जीवनशैली कई संकट खड़ा कर देती है। अपने जीवन मूल्यों के साथ ज़िंदा रहने की कोशिश में अक्सर अपने भी बेगाने हो जाते हैं, गलत दोषारोपण, अपमान या असम्मान भी झेलने की नौबत आ जाती है। "

वाकई भावेश जी ने सही आंकलन किया है अभी हाल ही में मैंने कम्युनिस्टों व वामपंथियों द्वारा दिल्ली में केजरीवाल के सत्तासीन होने पर जो खुशी मनाई उसके प्रति आगाह किया था। परंतु बजाए इसे सकारात्मक लिए जाने के नकारात्मक लिया गया और मुझे ही लांछित कर दिया गया जैसा कि प्रस्तुत फोटो टिप्पणी से स्पष्ट है :  

भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध वामपंथ के किसान-आंदोलन को RSS की तिकड़म का शिकार होकर हज़ारे के चरणों में रख दिया गया और अब किसी भी सफलता का श्रेय कम्युनिस्टों व वामपंथियों के बजाए हज़ारे/केजरीवाल को मिलेगा । कालांतर में कम्युनिस्टों की जड़ों में मट्ठा डालने वाला ही कदम यह सिद्ध होगा। 

मार्क्स वाद/लेनिनवाद से लैस और यहाँ तक कि 'मास्को रिटर्न' वरिष्ठ कामरेड तक अपने कनिष्ठ साथियों का उत्पीड़न व शोषण करके खुद ही अपनी पीठ ठोंकते रहते हैं। तीन-तिकड़म के सहारे से अपने चहेते-चापलूस लोगों को आगे बढ़ाते व कर्मठ लोगों को पीछे धकेलते हैं। ऐसे में भावेश जी का यह विचार कि -" वामपंथी बौद्धिकों की यह फौज जनता से जुड़े, उनकी भावनाओं को समझे ..." साम्यवाद व वामपंथ को जन-प्रिय बनाने में सहायक हो सकता है। 
---(विजय राजबली माथुर )

Thursday, 26 February 2015

पूंजीवादी व्यवस्था की गहरी साज़िश --- Aquil Ahmed

https://www.facebook.com/aquil.ahmed.7927/posts/458395827647852


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अकील अहमद साहब की उपरोक्त पोस्ट व उस पर आई टिप्पणियों का संदर्भ हैं मेरे ये ताज़ातरीन पोस्ट्स :
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 ठीक ऐसा ही निष्कर्ष है अभिषेक श्रीवास्तव साहब का :



http://www.hastakshep.com/hindi-news/nation/2015/02/25/

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ऐसा नहीं है कि मैंने अचानक इस प्रकार की राय दी हो जिस पर अकील अहमद साहब को यह पोस्ट लिखनी पड़ी। 2011 में जबसे कारपोरेट भ्रष्टाचार के संरक्षण में RSS प्रेरित और मनमोहन सिंह जी के आशीर्वादयुक्त हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव आंदोलन चला था मैं लगातार अपने ब्लाग के माध्यम से व फेसबुक पर भी उसके विरुद्ध राय देता आ रहा हूँ---http://krantiswar.blogspot.in/
एक लेख का यह फोटो और उसी से एक अनुच्छेद नीचे दिया जा रहा है जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि 1990 में मेरा जो आंकलन था वह आज भी उतना ही सटीक है बल्कि उस पर जिस प्रकार अमल हो रहा है अपनी गफलत के कारण वामपंथ आज भी उसका मुक़ाबला करने में न केवल असमर्थ है वरन हज़ारे/केजरीवाल के RSS प्रेरित उस षड्यंत्र में फँसता नज़र आ रहा है जो कि देश के लिए सुखद स्थिति नहीं है।

http://krantiswar.blogspot.in/2011/09/blog-post_25.html

"संघ की तानाशाही:

डा सुब्रह्मण्यम स्वामी,चंद्रास्वामी और चंद्रशेखर जिस दिशा मे योजनाबद्ध ढंग से आगे बढ़ रहे हैं वह निकट भविष्य मे भारत मे संघ की तानाशाही स्थापित किए जाने का संकेत देते हैं। 'संघ विरोधी शक्तियाँ' अभी तक कागजी पुलाव ही पका रही हैं। शायद तानाशाही आने के बाद उनमे चेतना जाग्रत हो तब तक तो डा स्वामी अपना गुल खिलाते ही रहेंगे।"
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जिस प्रकार सम्पूर्ण वामपंथ हज़ारे/केजरीवाल से सम्मोहित है उसके मद्दे नज़र वह दिन दूर नहीं जब यह कहा जाएगा-'पाछे पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत '। 
(विजय राजबली माथुर )
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फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणियाँ :
 

Tuesday, 24 February 2015

शिवाजी महाराज को गलत ढंग से पेश करने का प्रयत्न किया जाता है---Ameeque Jamei

पाकिस्तान की पाठ्यपुस्तक में
"आदर्श राजा ऐसा होना चाहिए"
ये छत्रपति शिवाजी महाराज पर आधारित एक पाठ सिखाया जाता है।
आदर्श राजाओं शिवाजी महाराज का इतिहास अनेक देशों में गर्व से सिखाया जाता है ।
लेकिन हमारी बदनसीबी...
हमारे देश में इतिहास से शिवाजी महाराज को गलत ढंग से पेश करने का प्रयत्न किया जाता है।
शिवाजी महाराज के चारों और मुस्लिम राजाओं की संख्या अधिकांश थी.. इसलिए उन्हें मुस्लिम विरोधी दिखने का प्रयास किया जा रहा है..
और मुस्लिम राजाओं के पास भी हिंदू और अन्य धर्मों के अधिकारी थे.. क्योंकि पद योग्यता के आधार पे दिए जाते थे.. धर्म के नहीं..
शिवाजी महाराज की भूमि में जन्म लेने पर आपको अगर गर्व हो, तोह इसे ज़रूर शेयर करें ..
शिवाजी महाराज मुसलमानों अगर विरोधी होते तो.. क्या सेना नें मुस्लिमो की इतनी संख्या मुमकिन हो पाती..???
शिवाजी महाराज का तोपखाना प्रमुख- "इब्राहिम खान" ...!
नौसेना प्रमुख -"दौलत खान" ....!
घुडसवार सेना प्रमुख- "सिद्दी हिलाल" ......!
कमांडर-सर- "नूर खान" .... !
शिवाजी महाराज के साथ आगरा कैद में कौन गया था ... मदारी मेहतर" ....
शिवाजी महाराज के वकील थे "काजी हैदर" ....
शिवाजी महाराज जो अकेला चित्र उपलब्ध है उसका चित्रकार ... "मीर मोहम्मद" ......
शिवाजी महाराज को अफजालखान वध के लिए बाघ नख भेजने वाला.. "रूस्तमे जमाल"
एक मुस्लिम था ....
अगर शिवाजी महाराज की सेना के इतने प्रमुख अधिकारी मुस्लिम थे तो फिर उन्हें मुस्लिम विरोधी कैसे हो सकता है???
शिवाजी महाराज, 31 अंगरक्षक.. उनमें से .10 मुसलमान थे
(अंगरक्षक क्या कर सकता है इसका बेहतरीन उदाहरण ""इंदिरा गाँधी"" है)
शिवाजी महाराज कोई मस्जिद
नहीं गिराई । कोई कुरान नहीं जलाया.....
इस बात पर गंभीरता से इस देश में विचार होना चाहिए ....
रायगढ़ किला राजधानी बनाने के बाद किला बनाने पर उन्होंने किला परिसर मैं हिंदू सैनिकों के लिए मंदिर और मुस्लिम सैनिकों के लिए मस्जिद दोंनों का निर्माण करवाया..
कहने के लिए बहोत सी बातें है.. मगर सारांश इतना सा है की शिवाजी महाराज का स्वराज्य का सपना एक ऐसे राष्ट्र का था जहाँ सभी धर्म के लोगों को समान नीति के साथ न्याय दिया जा सके...
अफजाल खान के वध के बाद उसकी बेसहारा लाश को इज्ज़त से दफ़नाकर उन्होंने शौर्य के साथ इंसानियत की मिसाल जो मिसाल कायम की. उसी पर आज हमारे यहाँ राजनीति गरमाई हुई है..
हमें मिलकर इस सच को आगे लाना होगा जिससे हम शिवाजी महाराज के शांति, समानता एवं न्याय के राष्ट्र का सपना पूरा कर पाएंगे.. जय हिंद दानिश शेख़

वर्तमान सरकार की स्थापना में तत्कालीन पी एम-मनमोहन सिंह/हज़ारे/केजरीवाल/RSS का संयुक्त हाथ है। अब यही गुट अपना विपक्ष मजबूत करके पक्ष -विपक्ष दोनों पर कब्जा कर लेगा जो एक खुला खेल है। बाकी के दोगले दल व वामपंथी परिदृश्य से गायब कर दिये जाएँगे और तब दिल्ली की सड़कों पर RSS व कम्युनिस्टों के मध्य निर्णायक रक्त-रंजित संघर्ष होगा। इस तथ्य का उल्लेख 1951 में ही 'नया ज़माना', सहारनपुर के संस्थापक संपादक कन्हैया लाल मिश्र'प्रभाकर' ने कर दिया था। अब भी लोग नहीं चेते तो इस अनहोनी को टाला नहीं जा सकेगा क्योंकि तब देश विभाजित होने का भी खतरा रहेगा और यही तो अमेरिका चाहता ही है। --- 

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(विजय राजबली माथुर )

Monday, 23 February 2015

कामरेड गोविंद पानसरे को लखनऊ में दी गई क्रांतिकारी श्रद्धांजली

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 लखनऊ, 23 फरवरी 2015 : आज साँय साढ़े चार बजे 22, क़ैसर बाग, लखनऊ स्थित भाकपा कार्यालय में कामरेड गोविंद पानसरे को श्रद्धांजली देने हेतु एक सभा का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता की महिला नेत्री कामरेड आशा मिश्रा ने उनके साथ मंचासीन थे-राज्य सहसचिव कॉम अरविन्द राज स्वरुप सभा संचालक,कॉम रमेश सैंगर सीपीआई ऍम एल,कॉम राम किशोर फॉरवर्ड ब्लाक,कॉम राम कृष्ण ट्रेड यूनियन काउंसिल जबकि भाकपा के प्रदेश सचिव डॉ गिरीश प्रारम्भिक वक्तव्य द्वारा कामरेड गोविंद पानसरे का परिचय देते दिखाई दे रहे हैं। 

इनके अतिरिक्त श्रद्धांजली देने वाले अन्य प्रमुख लोगों में पूर्व सांसद कामरेड विश्वनाथ शास्त्री, रिटायर्ड़ PCS एसोसिएशन के अध्यक्ष पी सी तिवारी, कवियत्री कात्यायिनी , डी के यादव, बजरंग बली यादव , शकील सिद्दीकी, जागरूक नागरिक मंच के सत्यम, रिहाई मंच के शाहनवाज़ , कामरेड अशोक मिश्रा के नाम उल्लेखनीय हैं । अध्यक्षीय भाषण में कामरेड आशा मिश्रा ने इस मांग का समर्थन किया कि समस्त वामपंथ को एकजुट होकर सांप्रदायिक शक्तियों का मुक़ाबला करना चाहिए। अध्यक्षीय भाषण के बाद सब ने खड़े होकर दो मिनट का मौन धारण करके कामरेड गोविंद पानसरे को श्रद्धांजली दी। जबकि प्रारम्भ में सभी ने कामरेड गोविंद पानसरे के चित्र पर पुष्प चढ़ा कर श्रद्धा नमन किया था।

भाकपा लखनऊ की ओर से जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ के अतिरिक्त सर्व कामरेड ए के सेठ, कल्पना पांडे'दीपा', पी एन दिवेदी, ओ पी अवस्थी, मोहम्मद अकरम, सत्यनारायन, रामचन्द्र, रामगोपाल शर्मा, विजय माथुर आदि सभा में उपस्थित रहे।

कामरेड गोविन्द पानसरे की हत्या संवैधानिक अधिकारों पर तीखा कुठाराघात ---Abhinav Sabyasachi

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26 नवम्बर 1933 को जन्मे कामरेड गोविन्द पानसरे 1952 से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य रहे . अख़बार बेचने ,नगर निगम में चौकीदारी .प्रायमरी स्कूल में शिक्षक जैसे काम करते हुए वे लगातार वंचित शोषित मजदूर वर्ग के अधिकारों के लिए लड़ते रहे ,लेबर लॉ प्रक्टिसनर एसोसिएशन के अध्यक्ष तथा शिवाजी विश्वविद्यालय में पत्रकरिता व संवाद विभाग में सहयोगी व्याख्याता के रूप में उन्होंने काम किया .एक लेखक के रूप में उन्होंने शिवाजी का काल ,मंडल आयोग, मजदूर क़ानून ,पंचायत राज्य,धारा ३७०, मुस्लिम और पिछड़ापन, धर्म,जाति ,वर्ग संघर्ष,वैश्वीकरण और किसान मजदूर आन्दोलन , मजदूर विरोधी शासन की नीति ,अंधश्रद्धा निर्मूलन ,डंकल और आर्थिक नीतियां,समाचार पत्र और कानून जैसे विषयों पर मराठी में अनेक पुस्तकें लिखीं .शिवाजी पर उनकी लिखी पुस्तक की डेढ़ लाख से अधिक प्रतियाँ बिकीं और अनेक भाषाओं में उसका अनुवाद भी हुआ . वे एक निर्भीक वामपंथी कार्यकर्त्ता थे.मजदूरों के लिए लड़ते हुए वे सामाजिक प्रश्नों और शासन की नीतियों पर लगातार टिपण्णी करते रहे .विगत दिनों शाहू ग्रन्थ महोत्सव में गोडसे पर अपने विचार रखने के बाद से ही उन्हें लगातार धमकियाँ मिल रही थीं .महापुरुषों पर निंदनीय बयानों के दौर में कोल्हापुर के भारतीय लोक आन्दोलन के लोग उनके साथ थे और शहर में लगातार शांति का वातावरण बनाने के प्रयास में थे किन्तु इसकी परिणति कामरेड गोविन्द पानसरे की हत्या के रूप में हुई.
देश भर में जिस तरह भय और आतंक का माहौल बना है उसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी पहला शिकार हुई है. एक वरिष्ठ लेखक पर हुआ यह हमला लोकतंत्र के चेहरे पर बदनुमा दाग़ है. यह हमारे संवैधानिक अधिकारों पर तीखा कुठाराघात है.यह गाँधी के देश में गोडसे के उभार का प्रतीक है और काले दिनों की आहट देने वाली घटना है.
16 फरवरी को जब पानसरे जी पर हमला हुआ और यह समाचार तेज़ी से फैला तो उनकी पुस्तक 'शिवाजी कोण होता? (शिवाजी कौन था) की अगले ही दिन तीन हजार प्रतियाँ बिकी और पाँच हजार प्रतियों की प्री-बुकिंग हुई है...इसकी जानकारी इस पुस्तक के प्रकाशक ने दी है
‪#‎हिंसा_के_ख़िलाफ़_कला‬" मंच कामरेड पानसरे के ऊपर हुए हमले के लिए जिम्मेदार लोगों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग करता है और अपने इस बुज़ुर्ग साथी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10204996373167095&set=a.1457698880522.2057822.1174862086&type=1

Saturday, 21 February 2015

कामरेड पानसरे:आखरी सलाम-------Atul Anjaan





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https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10200274052969826&set=a.1327523484003.36705.1708438255&type=1&theater


Atul Anjaan :· 

 किसानों, ग़रीबों, गन्ना किसानों, सामाजिक और आर्थिक पिछड़ों के लिए 60 वर्षों से अधिक लड़ने वाला बहादुर निर्भीक, अन्धविश्वास के खिलाफ लड़ते हुए सच का झंडा लहराते हुए हमारे पिर्य कामरेड जो साम्प्रदाइकता, आतंक और नफरत के शिकार हुए. कामरेड गोविन्द पानसरे २० फरवरी को मुंबई के अस्पताल में रात साढ़े आठ बजे हम सब को अपना आखरी सलाम कह कर चले गए, कामरेड पानसरे आपकी स्मिृती में नमन और लाल सलाम। 21 फरवरी को दोपहर 12 बजे अंतिम संस्कार कोल्हापुर महाराष्ट्र में होगा। आइये हम सब मिल कर कामरेड पानसरे की स्मिृति में सभा करें उन्हें याद करें और साज़िशों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करें।







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Thursday, 19 February 2015

कामरेड गोविंद पंसारे व उनकी पत्नी पर कातिलाना हमला : लोकतन्त्र का काला अध्याय ---लखनऊ में तीखा विरोध






*महाराष्ट्र के कोल्हापुर में प्रातः भ्रमण पर निकले पंसारे दंपति पर कायरतापूर्ण कातिलाना हमला किया जाना भारतीय लोकतन्त्र के लिए एक काला अध्याय है। आज दिनांक 19 फरवरी 2015  को गांधी प्रतिमा, जी पी ओ पार्क, हजरतगंज, लखनऊ में इस हमले के विरोध व हमलावरों की गिरफ्तारी तथा पंसारे दंपति को सरकारी खर्चे पर इलाज की सुविधा दिये जाने की मांग को लेकर भाकपा व माकपा के संयुक्त तत्वावधान में एक विशाल धरना -प्रदर्शन का आयोजन किया गया। सभा की अध्यक्षता महिला फेडरेशन की नेत्री कामरेड आशा मिश्रा व संचालन माकपा के जिलामंत्री कामरेड प्रदीप शर्मा ने किया। 

*प्रारम्भ में भाकपा के जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने इस प्रकरण पर व्यापक प्रकाश डाला। अन्य वक्ताओं में एडवा नेत्री कामरेड मधु गर्ग, प्रवीण सिंह, परमानंद दिवेदी, राधेश्याम, कान्ति मिश्रा आदि थे। 
धरने  में शामिल होने वाले कामरेड्स में कामरेड कल्पना पांडे'दीपा', प्रो . ए के सेठ, मो . अकरम, शिक्षक नेता  सत्यनारायण, विजय माथुर आदि थे। 

*वस्तुतः लखनऊ में इस विरोध-प्रदर्शन को आयोजित कराने में कामरेड कल्पना पांडे'दीपा' जी का विशेष योगदान उल्लेखनीय है जिन्होने 17 फरवरी को यह sms भेज कर कामरेड्स को उत्प्रेरित किया:
" Hamare Pritishthit Neta Govind Pansare wa unki patni par Kolhaapur me hatyaayi hamle ke virodh me LKO CPI ko AWASHYA KADI Pratikriya deni CHAHIYE,  ------Kalpana Deepa ,17-02-2015 

*ज़िलामन्त्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने त्वरित कारवाई करते हुये CPM के साथ तालमेल करके आज इस विशाल धरने को सफलतापूर्वक आयोजित किया और उन्होने चेतावनी भी दी कि यदि पंसारे दंपति को शीघ्र न्याय न मिला तो उग्र प्रदर्शन भी आयोजित किए जाएँगे।
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Monday, 16 February 2015

CPI Strongly Decries Murderous Attempts on Govind Pansare, Uma Pansare---The Central Secretariat of the CPI

COMMUNIST PARTY OF INDIA
Central Office
Ajoy Bhavan, 15, Com. Indrajit Gupta Marg, New Delhi-110002
Telephone: 23232801, 23235058, Fax: 23235543,
Email: cpiofindia@gmail.com
General Secretary: S.Sudhakar Reddy
New Delhi
Press Statement: February 16, 2015
CPI Strongly Decries Murderous Attempts on Govind Pansare, Uma Pansare
The Central Secretariat of the Communist Party of India (CPI) has issued the following statement today condemning the cruel and wanton attempts to kill Comrades Govind Pansare and his wife Uma Pansare.
The Central Secretariat of the Communist Party of India strongly condemns the murderous moves of the communal forces helped by other vested interests against Comrade Govind Pansare, Secretary of the CPI Central Control Commission and former secretary of the Maharashtra State Council of CPI and his wife Uma Pansare, a leader of women’s movement, hoping to stifle the democratic, progressive and saner voices. The party warns these forces to desist from such murderous attacks or face the consequences. They were shot at when both were on their usual morning stroll in their home town of Kolhapur. The 83-year old Govind Pansare hit by bullets in his chest and neck is still not out of danger and is struggling for his life in a Kolhapur hospital.
Comrade Govind Pansare was under threat from the communal divisive forces over his latest move to organize a discussion meeting of a book on the slain chief of Mahrashtra state anti-terror squad Hemant Karkare: ‘Who killed Hemant Karkare?’ It may be recalled here that in late October 2008, the ATS arrested eleven suspects, all alleged Hindu terrorists, including a VHP leader Sadhvi Pragya Singh Thakur, Swami Amritananda alias Dayanand Pandey, a retired Major Ramesh Upadhyay and a serving Army officer Lt Col Prasad Shrikant Purohit. The anti Karkare forces had warned Com Pansare of dire consequences if he would hold the widely publicised function for the discussion of the book and now it is clear that these forces had stooped down to such level of inhuman act when the function turned out to be a grand function.
Com Govind Pansare in his six decades of active political life has led the struggles of farmers, sugar cane growers and for the trade union rights of workers. He is a prolific writer on contemporary issues and has fought for the cause of dalits, backward and marginalized sections of society. He has also authored more than two dozen popular books. Also Com Pansare a prominent highly acclaimed figure in the state had been leading an agitation against Toll tax. A prominent advocate himself, he had also carved out a special place among the members of the legal fraternity with his commitment and deep grasp of the Indian situation. The interests of profit along with communal forces are out to wipe out pro-people saner elements from Indian soil. Rationalism, scientific temper, inclusive growth and the exploited masses at larges will finally win and no force on earth will be able to stifle them.
(S.S.BHUSARI)
Office Secretary

Sunday, 15 February 2015

उदारीकरण और निजीकरण की तेज होती नीतियों में क्रिकेट प्रमुख व्यवसाय बन गया ---आयुष ढाका



***साभार : Aayush Dhaka ·  :

https://www.facebook.com/aayush.db.9/posts/1567383253507860


क्रिकेट को दीवानगी की तरह, जूनून की तरह और उत्तेजक राष्टवाद के क्रत्रिम भावो की तरह प्रस्तुत करना पूंजीवादी सत्ता और मिडिया का चरित्र हैं। वरन अपने पूर्ववर्त्ती औपनिवेशिक देशों में इंग्लेंड इस खेल को बिना निजी स्वार्थ के आगे नही बढ़ाता । इसमे तड़का तो खंडित आजादी के बाद देशी पूंजीपति वर्ग ने अपने हितो की आकंठ पूर्ति हेतु लगाया और बड़े मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग और निम्न वर्ग में क्रिकेट को रेडियो, टीवी और अख़बार के प्रथम पन्नो पर और मुख्य खबरों में शामिल कर जनमानस में चस्पा कर दिया। दूसरी और भारत में इसी दौर में पनप रही हिन्दू फासिस्ट ताकतों ने इसे कथित राष्ट्रप्रेम की भावनाओ से जोड़कर अल्पसंख्यक विरोधी अवधारणा को युवाओ के बीच मजबूत किया । ताकि साझा एकता की दरार और चौड़ी हो। इन सबके बीच मूल रूप से क्रिकेट खेल रहे खिलाड़ी को अपनी बढ़ती सेलिब्रिटी साख से इस कदर मोह हो जाता है कि उसे जिन्दगी में कभी भी आमजन की किसी भी पीड़ा से, तकलीफों से, बेरोजगारी से कोई सरोकार नही रहता हैं ( ये वो ही जनता होती हैं जो इनका नाम रात दिन लेती रहती है) दरअसल मे देशीे विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रोडक्ट को विज्ञापनों में मार्केटिंग कर ये खिलाड़ी सच्चे मायने में इन धनी पूंजीपतियों के गुलाम मोहरे के रूप में काम करते है एवम जिन्दगी भर जूते, कपड़े,पेप्सी कोला और न जाने क्या क्या बेचते रहते हैं और कम्पनियों की कमाई अपनी जन साख से बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते है । और रिटायर होने पर ( अपने पैसे को ऐसी जगह निवेश करते है जहाँ टैक्स पर छुट हो) कोच, मैनेजर, अम्पायर, कमेन्टटेटर बनकर या क्रिकेट अकादमी खोलकर अपनी निजी पूंजी को आगे बढ़ाते रहते है या फिर पूंजीवादी पार्टियों की धूर्त राजनीती में शामिल होकर दुमछ्ले राजनीतिग्य बनकर अपना पूर्व इल्म और शोखी बघारते रहते है। उदारीकरण और निजीकरण की तेज होती नीतियों में क्रिकेट प्रमुख व्यवसाय बन गया और क्रिकेटर नीलामी लगे बिके हुए घोड़े ( इसमे इनको कोई दिक्कत नही) बनकर मनोरंजन के नाम पर युवाओ के दिलो दिमाग में वैचारिक दिवालियापन भरते गये। आलम तो ये हुआ कि जो पूंजीवादी राज्य सत्ता महिला आजादी और बराबरी की बाते करता है इसी पूंजीवादी समाज ने ,पिछड़ी मध्यकालिन सामन्ती संस्क्रति की तरह महिलाओ को क्रिकेट के खुले मैदानी कोठे में चीयर लीडर्स के रूप में फूहड़ता से नचाना शुरू कर दिया । इन सबका नतीजा क्या हुआ , हम अधूरी आजादी के दौर में भी अपनी असली समस्या को भूल क्रिकेटी नशे से चिपके रहे लेकिन इस अंध जूनून से असली समस्या का निवारण नही होता है । और पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा रोपित कि गई हमारी अज्ञानता का प्रदर्शन और भौंडा होता जा रहा है । जिसमे इसी व्यवस्था की सहूलियत हैं । -आयुष ढाका

Saturday, 14 February 2015

आप पार्टी के विषय में यह सोचना कि वह वामपंथी जैसी है मूर्खतापूर्ण है ----- राम प्रताप त्रिपाठी



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केजरीवाल की राजनीति और भविष्‍य की सम्‍भावनाओं पर कुछ बातें

कात्‍यायनी  :
"ऐसे में, एन.जी.ओ.-सुधारवाद के सामाजिक आन्‍दोलनों के भीतर से पूँजीवादी व्‍यवस्‍था की एक नयी सुरक्षा पंक्ति 'आप पार्टी परिघटना' के रूप में लोकरंजक नारों और लुभावने वायदों के साथ सामने आयी है।

लेकिन सच्‍चाई यह है कि यह नयी दूसरी सुरक्षा पंक्ति पूँजीवादी ढॉंचागत संकट के इस दौर में बहुत कम समय तक ही विभ्रमों को बनाये रख सकेगी। मँहगाई, बेरोजगारी, बिजली-पानी, भ्रष्‍टाचार उन्‍मूलन, आवास, शिक्षा विषयक आप पार्टी के वायदों-आश्‍वासनों की कलई उतरते देर नहीं लगेगी। गौरतलब यह है कि मोदी के श्रम सुधारों पर केजरीवाल एण्‍ड क. कभी कुछ नहीं बोलती।‍ पिछली बार केजरीवाल ने दिल्‍ली से ठेका मजदूरी खत्‍म करने की बात की थी और इस वायदे को लेकर ठेका मजदूरों ने जब सचिवालय घेरा तो उनका श्रम मंत्री इस वायदे से ही मुकर गया और फिर भाग खड़ा हुआ। इसबार केजरीवाल ने सावधानी के साथ सिर्फ सरकारी विभागों से ठेका प्रथा खत्‍म करने की बात की है (हालॉंकि यह भी मुश्किल है)। दिल्‍ली में श्रम कानूनों को लागू करवाने के बारे में आप पार्टी पूरी तरह मौन है।.....................................................................
जैसा कि लेनिन ने कहा था, क्रान्तिकारी संकट क्रान्तियों को तभी जन्‍म देते हैं जब क्रान्ति की नेतृत्‍वकारी मनोगत शक्तियॉं तैयार हों। जाहिर है, भारत में अभी यह स्थिति नहीं है। अगले पॉंच-दस वर्षों में भी इसकी अपेक्षा आकाश कुसुम की अभिलाषा होगी। हॉं, एक बात जरूर है। विकासमान क्रान्तिकारी शक्तियॉं यदि 'लकीर की फकीरी' और कठमुल्‍लावाद से मुक्‍त होकर क्रान्तिकारी संकट के हालात का सही ढंग से लाभ उठायें, यदि वे सटीक आकलन के आधार पर, सीमित ही सही, लेकिन साहसिक हस्‍तक्षेप करें, तो अपनी ताकत और सामाजिक आधार का काफी तेजी से विस्‍तार कर सकती हैं, और जमीनी तौर पर, व्‍यावहारिक स्‍तर पर, जनता के एक बड़े हिस्‍से के सामने क्रान्तिकारी विकल्‍प का खाका पेश करने में तथा स्‍वयं को उसके वाहक के रूप में पेश करने में कामयाब हो सकती हैं। फिर आवर्ती चक्रीय क्रम में आने वाले क्रान्तिकारी संकट के विस्‍फोट के अगले दौर में वे देश स्‍तर पर निर्णायक ढंग से क्रान्तिकारी पहल लेने की स्थिति में आ सकती है।  ..........................................................................
आज मार्क्‍सवाद का ककहरा तक भूल चुके ऐसे पस्‍तहिम्‍मत, अकर्मण्‍य, सुविधाभोगी कथित वामपंथी बुद्धिबहादुरों की कमी नहीं जो विश्‍वव्‍यापी विपर्यय और भारतीय कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन की विफलताओं एवं विपथगमन के ऐतिहासिक कारणों का वस्‍तुपरक विश्‍लेषण करने के बजाय, खुद को किनारे करके सिर्फ कोसते-सरापते-विलापते रहते हैं। इनमें से अधिकांश एन.जी.ओ. सुधारवाद, आइडेण्टिटी पॉलिटिक्‍स, अम्‍बेडकरवाद आदि-आदि के साथ मार्क्‍सवाद की खिचड़ी, बिरयानी, पुलाव आदि पकाने की किसिम-किसिम की रेसिपी सुझाते रहते हैं। ऐसे ही लोगों में से कई हैं जो इनदिनों केजरीवाल पर लट्टू हैं। दरअसल ऐसे अपढ़ ''मार्क्‍सवादी'' विज्ञान के अभाव में कभी भी स्थितियों का आर्थिक-सामाजिक विश्‍लेषण नहीं करते, सतही पर्यवेक्षणों के नतीजों से कभी इतने निराश हो जाते हैं कि घर के किसी कोने में मरे चूहे की सूखी हुई लाश सरीखे दीखने लगते हैं और कभी लोकरंजकतावाद की किसी लहर पर डूबते-उतराते आशावाद से इतने लबरेज हो जाते हैं कि पूरा माहौल फेन और बुल‍बुलों से भर देते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिनकी सोच कुछ ऐसी है कि 'जब क्रान्ति की फिलहाल दूर-दूर तक संभावना नहीं, तो अभी के लिए केजरीवाल ही सही, कुछ तो कर रहा है।' सच यह है कि केजरीवाल कुछ नहीं कर सकता। कोई भी मार्क्‍सवादी यदि वस्‍तुगत स्थितियों और नीतियों के विश्‍लेषण से शुरू करे तो उसे यह समझते देर नहीं लगेगी। मगर सुविधाभोगी, निठल्‍ले निराशों से हम यह अपेक्षा करें ही क्‍यों?"
https://www.facebook.com/notes/katyayani-lko/ 
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अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए! :

अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई। ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है। उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है। ............यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा? 

http://www.aadhiabadi.com/.../867-who-is-arvind-kejriwal

मेरी समझ बुनियादी तौर पर गलत एक वरिष्ठ एवं सम्मानित तथा जिम्मेदार कामरेड द्वारा बताई गई है, ठीक है । लेकिन प्रकाश करात आदि वरिष्ठ कामरेड जिस प्रकार लामबंद हो रहे हैं  उस पर वरिष्ठ  एवं विदुषी लेखिका कात्‍यायनी  जी के विचार एवं एक अन्य विद्वान के विचार भी ऊपर प्रस्तुत किए गए हैं उनमें क्या कमी व गलती हो सकती है?--- विजय राजबली माथुर 
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क्या इस स्वाकारोक्ति के बाद भी केजरीवाल को RSS का सहयोगी नहीं माना जाना चाहिए ? 'क्या ऐसा कहना कि केजरीवाल RSS  व अमेरिकी इशारे पर जनता को दिग्भ्रमित कर रहे हैं'--- मार्क्सवाद-लेनिनवाद के बुनियादी सिद्धांतों के विरुद्ध है?   :

Thursday, 12 February 2015

एक साजिश के तहत केजरीवाल को 'नक्सली' कह कर कम्युनिस्टों को गुमराह किया गया --- विजय राजबली माथुर


जब गांधी जी का 'भारत छोड़ो' आंदोलन हिंसक हो गया , नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान पर कब्जा कर लिया तथा नेवी व एयर फोर्स में विद्रोह हो गया तब स्पष्ट हो गया था कि अब ब्रिटिश साम्राज्य को ज्यों का त्यों कायम नहीं रखा जा सकता है। अतः भारत -विभाजन का अमेरिकी प्रस्ताव अमल में लाया गया और पाकिस्तान सीधे-सीधे अमेरिकी प्रभाव में शुरू से ही चला गया जबकि भारत को प्रभावित करने की कोशिशें जारी रहीं और 1980 में RSS के समर्थन से इन्दिरा जी की सत्ता वापिसी से यह कार्य सुगम हो गया। 1991 में मनमोहन सिंह जी के वित्तमंत्री बनने के साथ-साथ भारत में अमेरिकी प्रभाव बढ़ता चला गया और आज केंद्र में RSS नियंत्रित अमेरिका समर्थक सरकार सत्तासीन है जिसका प्रमाण गणतन्त्र दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति को आमंत्रित्त करके सार्वजनिक रूप से दे भी दिया गया था। अब इसका विकल्प भी अमेरिका समर्थक ही हो इसकी तैयारियां ज़ोर-शोर से चल रही हैं जिसके अंतर्गत केजरीवाल को रोपा और सींचा जा रहा है। केंद्र सरकार ने एक पूर्व 'रा' अधिकारी से केजरीवाल को 'नक्सलवादी' होने का प्रमाणपत्र दिला दिया है जिससे अभिभूत होकर विभिन्न कम्युनिस्ट गुटों ने केजरीवाल को सिर-माथे पर बैठा लिया है और और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं। जागरूक कम्युनिस्ट नेता व कार्यकर्ता इस ओर इंगित कर रहे हैं। किन्तु जिम्मेदार कम्युनिस्ट पदाधिकारी गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करके केजरीवाल की जीत का जश्न मना कर कम्यूनिज़्म को भारत में दफन करने की कोशिशों को बल प्रदान कर रहे हैं। :

पूर्व 'रा' अधिकारी ने केजरीवाल की देशद्रोही गतिविधियों पर प्रकाश तो डाला है किन्तु उनको नक्सली बता कर कम्युनिस्टों को गुमराह करके केंद्र सरकार द्वारा कम्युनिस्टों के सफाये का पूरा-पूरा प्रबंध कर दिया है। जबकि केजरीवाल का संबंध अमेरिकी संस्थानों से है इस तथ्य को यह अधिकारी महोदय चतुराई से छिपा गए हैं। फिर भी विभिन्न कम्युनिस्ट पदाधिकारी केजरीवाल के गुण गान में बेसुरे गीत गा-गा कर प्रसन्न हो रहे हैं जिसे 'आत्म-हत्या के प्रयास का जश्न' ही मानना चाहिए।

देखिये प्रस्तुत लेख द्वारा नक़वी साहब ने 19 जनवरी 2015 को ही स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा दिल्ली चुनाव में केजरीवाल को सत्ता सोने की तश्तरी में रख कर परोसने जा रही है तब भी  जिम्मेदार कम्युनिस्ट पदाधिकारी केजरीवाल की जीत में खुश होकर कम्यूनिज़्म की कब्र खोदने में ही व्यस्त हैं। इस ब्लाग तथा अपने दूसरे ब्लाग्स के माध्यम से लगातार सचेत करने के प्रयास करता रहता हूँ बतौर प्रमाण नीचे पूर्व प्रकाशित लेख के अंश व उसका लिंक दिया जा रहा है  :

Why BJP may want to lose Delhi

http://gulfnews.com/opinions/columnists/why-bjp-may-want-to-lose-delhi-1.1443516 

Why BJP may want to lose Delhi

The party’s top brass is aware that even if it wins, the state will remain a headache due to intra-party bickerings and because of impatient voters
  • By Bobby Naqvi | Special to Gulf News
  • Published: 16:17 January 19, 2015
  • Gulf News

"BJP is a very well-organised outfit with sympathisers in every layer of government, judiciary, media, commerce and industry. It is unlikely all this is happening due to poor management. Then is all this ‘bad management’ part of a deliberate plan to lose Delhi? Or to let Arvind Kejriwal win? But what will BJP gain from losing Delhi? A lot actually. If Kejriwal wins Delhi, it will be projected as a victory of a mass movement, media will eulogise Kejriwal, hail him as a hero and will dissect AAP’s campaign for days. Prime time on television will be reserved for one man only — Kejriwal. More importantly, Kejriwal’s victory will divert attention of the people who are getting restless from Modi’s inability to deliver on his election promises.
Once a government led by Kejriwal is sworn in, the focus of national media and by extension national discourse will shift to his government and ministers. Kejriwal will have no honeymoon period, both media and voters will demand immediate results, at least on corruption, power tariffs, VAT (value added tax), health hotline and WiFi. A hostile government at the Centre will not help him either. This spotlight on Kejriwal will come as a huge relief for Modi. It will shift the focus from his government at the Centre. Finance Minister Arun Jaitley is planning a radical budget and several unpleasant decisions are expected this March. The media spotlight on Kejriwal government will allow Jaitley to quietly to push through unpopular reforms — disinvestment of PSUs (public sector undertakings), budget cuts in health, education — in his attempt to cut budget deficit.
Secondly, away from media spotlight, the right-wing Sangh Parivar machinery can then unleash its foot soldiers to polarise voters with low-intensity disturbances ahead of the two big battles — Uttar Pradesh (UP) and Bihar. These two states are absolutely essential for BJP’s growth. Victory in Bihar and UP will complete the Parivar’s dominance in the cow belt. Moreover, UP and Bihar will shore up BJP’s strength in Rajya Sabha, an absolute necessity for pushing far more radical and unpopular reforms. Last but not the least, these two states will make Modi, Shah and Jaitley the most powerful political coterie in the history of democratic India.
BJP’s top brass is aware that even if the party wins Delhi, the state will remain a headache — partly due to intra-party bickerings and partly because of impatient voters who expect immediate results and good governance, something the BJP is unsure of delivering. BJP has controlled the city-state’s civic bodies for years but has failed miserably. Losing Delhi won’t be such a bad idea!"
Bobby Naqvi is the Editor of XPRESS, a sister paper of Gulf News.
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अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए! :

अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई। ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है। उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है। ............यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा? 
http://communistvijai.blogspot.in/2013/12/blog-post_30.html 
साभार:
http://www.aadhiabadi.com/.../867-who-is-arvind-kejriwal
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