17 Feb.2015 |
बेगूसराय भाकपा से सम्बद्ध युवा कामरेड भावेश भारद्वाज साहब द्वारा व्यक्त उपरोक्त विचार वर्तमान परिस्थितियों में नितांत प्रासांगिक हैं। उनका यह कथन कितना सटीक है-" नेक व ईमानदार बने रहने की कोशिश, आज के हालात में ऐसी जीवनशैली कई संकट खड़ा कर देती है। अपने जीवन मूल्यों के साथ ज़िंदा रहने की कोशिश में अक्सर अपने भी बेगाने हो जाते हैं, गलत दोषारोपण, अपमान या असम्मान भी झेलने की नौबत आ जाती है। "
वाकई भावेश जी ने सही आंकलन किया है अभी हाल ही में मैंने कम्युनिस्टों व वामपंथियों द्वारा दिल्ली में केजरीवाल के सत्तासीन होने पर जो खुशी मनाई उसके प्रति आगाह किया था। परंतु बजाए इसे सकारात्मक लिए जाने के नकारात्मक लिया गया और मुझे ही लांछित कर दिया गया जैसा कि प्रस्तुत फोटो टिप्पणी से स्पष्ट है :
भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध वामपंथ के किसान-आंदोलन को RSS की तिकड़म का शिकार होकर हज़ारे के चरणों में रख दिया गया और अब किसी भी सफलता का श्रेय कम्युनिस्टों व वामपंथियों के बजाए हज़ारे/केजरीवाल को मिलेगा । कालांतर में कम्युनिस्टों की जड़ों में मट्ठा डालने वाला ही कदम यह सिद्ध होगा।
मार्क्स वाद/लेनिनवाद से लैस और यहाँ तक कि 'मास्को रिटर्न' वरिष्ठ कामरेड तक अपने कनिष्ठ साथियों का उत्पीड़न व शोषण करके खुद ही अपनी पीठ ठोंकते रहते हैं। तीन-तिकड़म के सहारे से अपने चहेते-चापलूस लोगों को आगे बढ़ाते व कर्मठ लोगों को पीछे धकेलते हैं। ऐसे में भावेश जी का यह विचार कि -" वामपंथी बौद्धिकों की यह फौज जनता से जुड़े, उनकी भावनाओं को समझे ..." साम्यवाद व वामपंथ को जन-प्रिय बनाने में सहायक हो सकता है।
---(विजय राजबली माथुर )
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