जब गांधी जी का 'भारत छोड़ो' आंदोलन हिंसक हो गया , नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान पर कब्जा कर लिया तथा नेवी व एयर फोर्स में विद्रोह हो गया तब स्पष्ट हो गया था कि अब ब्रिटिश साम्राज्य को ज्यों का त्यों कायम नहीं रखा जा सकता है। अतः भारत -विभाजन का अमेरिकी प्रस्ताव अमल में लाया गया और पाकिस्तान सीधे-सीधे अमेरिकी प्रभाव में शुरू से ही चला गया जबकि भारत को प्रभावित करने की कोशिशें जारी रहीं और 1980 में RSS के समर्थन से इन्दिरा जी की सत्ता वापिसी से यह कार्य सुगम हो गया। 1991 में मनमोहन सिंह जी के वित्तमंत्री बनने के साथ-साथ भारत में अमेरिकी प्रभाव बढ़ता चला गया और आज केंद्र में RSS नियंत्रित अमेरिका समर्थक सरकार सत्तासीन है जिसका प्रमाण गणतन्त्र दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति को आमंत्रित्त करके सार्वजनिक रूप से दे भी दिया गया था। अब इसका विकल्प भी अमेरिका समर्थक ही हो इसकी तैयारियां ज़ोर-शोर से चल रही हैं जिसके अंतर्गत केजरीवाल को रोपा और सींचा जा रहा है। केंद्र सरकार ने एक पूर्व 'रा' अधिकारी से केजरीवाल को 'नक्सलवादी' होने का प्रमाणपत्र दिला दिया है जिससे अभिभूत होकर विभिन्न कम्युनिस्ट गुटों ने केजरीवाल को सिर-माथे पर बैठा लिया है और और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं। जागरूक कम्युनिस्ट नेता व कार्यकर्ता इस ओर इंगित कर रहे हैं। किन्तु जिम्मेदार कम्युनिस्ट पदाधिकारी गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करके केजरीवाल की जीत का जश्न मना कर कम्यूनिज़्म को भारत में दफन करने की कोशिशों को बल प्रदान कर रहे हैं। :
पूर्व 'रा' अधिकारी ने केजरीवाल की देशद्रोही गतिविधियों पर प्रकाश तो डाला है किन्तु उनको नक्सली बता कर कम्युनिस्टों को गुमराह करके केंद्र सरकार द्वारा कम्युनिस्टों के सफाये का पूरा-पूरा प्रबंध कर दिया है। जबकि केजरीवाल का संबंध अमेरिकी संस्थानों से है इस तथ्य को यह अधिकारी महोदय चतुराई से छिपा गए हैं। फिर भी विभिन्न कम्युनिस्ट पदाधिकारी केजरीवाल के गुण गान में बेसुरे गीत गा-गा कर प्रसन्न हो रहे हैं जिसे 'आत्म-हत्या के प्रयास का जश्न' ही मानना चाहिए।
Why BJP may want to lose Delhi
http://gulfnews.com/opinions/columnists/why-bjp-may-want-to-lose-delhi-1.1443516
Why BJP may want to lose Delhi
The party’s top brass is aware that even if it
wins, the state will remain a headache due to intra-party bickerings and
because of impatient voters
"BJP is a very well-organised outfit with
sympathisers in every layer of government, judiciary, media, commerce
and industry. It is unlikely all this is happening due to poor
management. Then is all this ‘bad management’ part of a deliberate plan
to lose Delhi? Or to let Arvind Kejriwal win? But what will BJP gain
from losing Delhi? A lot actually. If Kejriwal wins Delhi, it will be
projected as a victory of a mass movement, media will eulogise Kejriwal,
hail him as a hero and will dissect AAP’s campaign for days. Prime time
on television will be reserved for one man only — Kejriwal. More
importantly, Kejriwal’s victory will divert attention of the people who
are getting restless from Modi’s inability to deliver on his election
promises.
Once a government led by
Kejriwal is sworn in, the focus of national media and by extension
national discourse will shift to his government and ministers. Kejriwal
will have no honeymoon period, both media and voters will demand
immediate results, at least on corruption, power tariffs, VAT (value
added tax), health hotline and WiFi. A hostile government at the Centre
will not help him either. This spotlight on Kejriwal will come as a huge
relief for Modi. It will shift the focus from his government at the
Centre. Finance Minister Arun Jaitley is planning a radical budget and
several unpleasant decisions are expected this March. The media
spotlight on Kejriwal government will allow Jaitley to quietly to push
through unpopular reforms — disinvestment of PSUs (public sector
undertakings), budget cuts in health, education — in his attempt to cut
budget deficit.
Secondly, away from media
spotlight, the right-wing Sangh Parivar machinery can then unleash its
foot soldiers to polarise voters with low-intensity disturbances ahead
of the two big battles — Uttar Pradesh (UP) and Bihar. These two states
are absolutely essential for BJP’s growth. Victory in Bihar and UP will
complete the Parivar’s dominance in the cow belt. Moreover, UP and Bihar
will shore up BJP’s strength in Rajya Sabha, an absolute necessity for
pushing far more radical and unpopular reforms. Last but not the least,
these two states will make Modi, Shah and Jaitley the most powerful
political coterie in the history of democratic India.
BJP’s top brass is aware that
even if the party wins Delhi, the state will remain a headache — partly
due to intra-party bickerings and partly because of impatient voters
who expect immediate results and good governance, something the BJP is
unsure of delivering. BJP has controlled the city-state’s civic bodies
for years but has failed miserably. Losing Delhi won’t be such a bad
idea!"
Bobby Naqvi is the Editor of XPRESS, a sister paper of Gulf News.
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अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए! :
अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई। ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है। उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है। ............यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा?
http://communistvijai.blogspot.in/2013/12/blog-post_30.html
साभार:
http://www.aadhiabadi.com/.../867-who-is-arvind-kejriwal
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अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए! :
अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई। ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है। उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है। ............यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा?
http://communistvijai.blogspot.in/2013/12/blog-post_30.html
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