Saturday, 14 February 2015

आप पार्टी के विषय में यह सोचना कि वह वामपंथी जैसी है मूर्खतापूर्ण है ----- राम प्रताप त्रिपाठी



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केजरीवाल की राजनीति और भविष्‍य की सम्‍भावनाओं पर कुछ बातें

कात्‍यायनी  :
"ऐसे में, एन.जी.ओ.-सुधारवाद के सामाजिक आन्‍दोलनों के भीतर से पूँजीवादी व्‍यवस्‍था की एक नयी सुरक्षा पंक्ति 'आप पार्टी परिघटना' के रूप में लोकरंजक नारों और लुभावने वायदों के साथ सामने आयी है।

लेकिन सच्‍चाई यह है कि यह नयी दूसरी सुरक्षा पंक्ति पूँजीवादी ढॉंचागत संकट के इस दौर में बहुत कम समय तक ही विभ्रमों को बनाये रख सकेगी। मँहगाई, बेरोजगारी, बिजली-पानी, भ्रष्‍टाचार उन्‍मूलन, आवास, शिक्षा विषयक आप पार्टी के वायदों-आश्‍वासनों की कलई उतरते देर नहीं लगेगी। गौरतलब यह है कि मोदी के श्रम सुधारों पर केजरीवाल एण्‍ड क. कभी कुछ नहीं बोलती।‍ पिछली बार केजरीवाल ने दिल्‍ली से ठेका मजदूरी खत्‍म करने की बात की थी और इस वायदे को लेकर ठेका मजदूरों ने जब सचिवालय घेरा तो उनका श्रम मंत्री इस वायदे से ही मुकर गया और फिर भाग खड़ा हुआ। इसबार केजरीवाल ने सावधानी के साथ सिर्फ सरकारी विभागों से ठेका प्रथा खत्‍म करने की बात की है (हालॉंकि यह भी मुश्किल है)। दिल्‍ली में श्रम कानूनों को लागू करवाने के बारे में आप पार्टी पूरी तरह मौन है।.....................................................................
जैसा कि लेनिन ने कहा था, क्रान्तिकारी संकट क्रान्तियों को तभी जन्‍म देते हैं जब क्रान्ति की नेतृत्‍वकारी मनोगत शक्तियॉं तैयार हों। जाहिर है, भारत में अभी यह स्थिति नहीं है। अगले पॉंच-दस वर्षों में भी इसकी अपेक्षा आकाश कुसुम की अभिलाषा होगी। हॉं, एक बात जरूर है। विकासमान क्रान्तिकारी शक्तियॉं यदि 'लकीर की फकीरी' और कठमुल्‍लावाद से मुक्‍त होकर क्रान्तिकारी संकट के हालात का सही ढंग से लाभ उठायें, यदि वे सटीक आकलन के आधार पर, सीमित ही सही, लेकिन साहसिक हस्‍तक्षेप करें, तो अपनी ताकत और सामाजिक आधार का काफी तेजी से विस्‍तार कर सकती हैं, और जमीनी तौर पर, व्‍यावहारिक स्‍तर पर, जनता के एक बड़े हिस्‍से के सामने क्रान्तिकारी विकल्‍प का खाका पेश करने में तथा स्‍वयं को उसके वाहक के रूप में पेश करने में कामयाब हो सकती हैं। फिर आवर्ती चक्रीय क्रम में आने वाले क्रान्तिकारी संकट के विस्‍फोट के अगले दौर में वे देश स्‍तर पर निर्णायक ढंग से क्रान्तिकारी पहल लेने की स्थिति में आ सकती है।  ..........................................................................
आज मार्क्‍सवाद का ककहरा तक भूल चुके ऐसे पस्‍तहिम्‍मत, अकर्मण्‍य, सुविधाभोगी कथित वामपंथी बुद्धिबहादुरों की कमी नहीं जो विश्‍वव्‍यापी विपर्यय और भारतीय कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन की विफलताओं एवं विपथगमन के ऐतिहासिक कारणों का वस्‍तुपरक विश्‍लेषण करने के बजाय, खुद को किनारे करके सिर्फ कोसते-सरापते-विलापते रहते हैं। इनमें से अधिकांश एन.जी.ओ. सुधारवाद, आइडेण्टिटी पॉलिटिक्‍स, अम्‍बेडकरवाद आदि-आदि के साथ मार्क्‍सवाद की खिचड़ी, बिरयानी, पुलाव आदि पकाने की किसिम-किसिम की रेसिपी सुझाते रहते हैं। ऐसे ही लोगों में से कई हैं जो इनदिनों केजरीवाल पर लट्टू हैं। दरअसल ऐसे अपढ़ ''मार्क्‍सवादी'' विज्ञान के अभाव में कभी भी स्थितियों का आर्थिक-सामाजिक विश्‍लेषण नहीं करते, सतही पर्यवेक्षणों के नतीजों से कभी इतने निराश हो जाते हैं कि घर के किसी कोने में मरे चूहे की सूखी हुई लाश सरीखे दीखने लगते हैं और कभी लोकरंजकतावाद की किसी लहर पर डूबते-उतराते आशावाद से इतने लबरेज हो जाते हैं कि पूरा माहौल फेन और बुल‍बुलों से भर देते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिनकी सोच कुछ ऐसी है कि 'जब क्रान्ति की फिलहाल दूर-दूर तक संभावना नहीं, तो अभी के लिए केजरीवाल ही सही, कुछ तो कर रहा है।' सच यह है कि केजरीवाल कुछ नहीं कर सकता। कोई भी मार्क्‍सवादी यदि वस्‍तुगत स्थितियों और नीतियों के विश्‍लेषण से शुरू करे तो उसे यह समझते देर नहीं लगेगी। मगर सुविधाभोगी, निठल्‍ले निराशों से हम यह अपेक्षा करें ही क्‍यों?"
https://www.facebook.com/notes/katyayani-lko/ 
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अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए! :

अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई। ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है। उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है। ............यदि देश में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाए और वह कश्मीर में जनमत संग्रह कराते हुए उसे पाकिस्तान के पक्ष में बता दे तो फिर क्या होगा? 

http://www.aadhiabadi.com/.../867-who-is-arvind-kejriwal

मेरी समझ बुनियादी तौर पर गलत एक वरिष्ठ एवं सम्मानित तथा जिम्मेदार कामरेड द्वारा बताई गई है, ठीक है । लेकिन प्रकाश करात आदि वरिष्ठ कामरेड जिस प्रकार लामबंद हो रहे हैं  उस पर वरिष्ठ  एवं विदुषी लेखिका कात्‍यायनी  जी के विचार एवं एक अन्य विद्वान के विचार भी ऊपर प्रस्तुत किए गए हैं उनमें क्या कमी व गलती हो सकती है?--- विजय राजबली माथुर 
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क्या इस स्वाकारोक्ति के बाद भी केजरीवाल को RSS का सहयोगी नहीं माना जाना चाहिए ? 'क्या ऐसा कहना कि केजरीवाल RSS  व अमेरिकी इशारे पर जनता को दिग्भ्रमित कर रहे हैं'--- मार्क्सवाद-लेनिनवाद के बुनियादी सिद्धांतों के विरुद्ध है?   :

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