22 hrs ·(26-04-2015 )
सुभाष आमूल-चूल सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर थे,वे संविधानवादी और सुधारवादी नजरिए से सामाजिक बदलाव की बहुत कम संभावनाएं देख रहेथे, इसलिए उन्होंने संविधानवाद और सुधारवाद से बचने की सलाह दी थी। कांग्रेस मेंये दोनों ही दृष्टियों के मानने वाले लोग बड़ी संख्या में थे।
सवाल यह है क्या संविधानवादी और पूंजीवादी सुधारवादी मार्गके सहारे हम समाज में आमूलचूल परिवर्तन कर पाए हैं ? सच यहहै कि ये दोनों ही नजरिए 65साल में अभीप्सित परिणाम पैदा करने में असमर्थ रहे हैं।यह तब हुआ है जबकि देश का शासन पांच दशकों तक कांग्रेस के पास रहा बाद में आएशासकों ने मूलतः कांग्रेस की बनायी नीतियों का ही पालन किया। मोदी भी कांग्रेस कीबनायी नीतियों पर चल रहे हैं।
सुभाष ने संविधानवाद औरजनसंघर्ष के बीच में अंतर्विरोध की तरफ 19अगस्त सन् 1939 में ध्यान खींचाथा, लेकिनइस अंतर्विरोध की अनदेखी की गयी। आज यही अंतर्विरोध अपने चरम पर है। एक तरह से सभीरंगत की गैर-वाम विचारधाराएं संविधानवाद की आड़ में एकजुट हैं और जनसंघर्षों काखुलकर विरोध कर रही हैं। पहले यही काम कांग्रेस ने किया अब यही काम मोदी सरकार कररही है। जब हमारे सामने जनसंघर्षों को कुचलने के लिए संविधानवाद का खतरा हो तोहमें गंभीरता से देखना होगा कि आखिरकार सुभाष चन्द्र बोस की हमारे लिए आज किस रुपमें प्रासंगिकता बची है।
देश के आजाद होने के बाद संविधानवाद पर जोर दियागया और तमाम किस्म के जनसंघर्षों और आंदोलनों पर संविधान के तहत ही हमले किए गए।यही वह संविधान है जो तमाम किस्म की पवित्र घोषणाओं की जनसंघर्षों के संदर्भ मेंघनघोर और नंगी अवहेलना करता है। संविधानके नाम पर आपातकाल आया और संविधान के नाम पर ही अब तक सेज के लिए दस लाख एकड़ जमीनले ली गयी और अब नग्नतम रुप में भूमि अधिग्रहण बिल पेश है, जिसे हर हालत में संसदसे पास कराकर परम पवित्र वाक्य में तब्दील कर दिया जाएगा।
कायदे से हमें सुभाष चन्द्रबोस को जनसंघर्षों के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करना चाहिए। लेकिन हो यह रहा हैहमारे इतिहासकार बंधु सुभाष को इतिहास की घटना विशेष के संदर्भ में रंग-बिरंगे रुपमें पेश कर रहे हैं इससे सुभाष के बारे में विकृत समझ बन रही है।
'जनसंघर्षबनाम संविधानवाद' के संदर्भ में यदिसुभाष को देखें तो पाएंगे कि सुभाष जनसंघर्षों के साथ खड़े हैं। सुभाष ने माना किउन्होंने 'संविधानवाद का विरोध करके 'अपराध' किया है और मैं उसकी कीमत अदा कररहा हूँ।' वह मानते थे 'संविधानवाद बनाम जनसंघर्ष' का अंतर्विरोध इस दौर का मूलअंतर्विरोध है और इसकी रोशनी में ही राजनीतिक प्रक्रिया का विकास होगा। सुभाष कीयह समझ इतिहास के अब तक के अनुभव से सही साबित हुई है।
साभार :
https://www.facebook.com/notes/jagadishwar-chaturvedi/%