पिछले
तीन दिनों में छत्तीसगढ़ के बस्तर में हुए तीन माओवादी हमलों में' दर्ज़न
भर गरीब सिपाही मारे गए। क्रांतिकारी कामरेडों की नज़र में ज़रूर वो सामंतवाद
और पूंजीवाद के बड़े पोषक रहे होंगे। माओवादियों के विवेक पर संदेह करने
वाले लोग बुर्जुआ या पेटी बुर्जुआ घोषित किए जा सकते हैं। अपने जन्मकाल से
ही 'सर्वहारा की सत्ता' की स्थापना के नाम पर देश के बड़े सामंतों,
पूंजीपतियों, ठेकेदारों और भ्रष्ट राजनेताओं के
तलवे चाटने वाले, पेट के लिए सत्ता की बंदूक ढोने वाले हजारों सिपाहियों,
निर्माण-कार्य में लगे मजदूरों और छोटे किसानों की निर्मम हत्या करने वाले
देश के सभी माओवादियों और उनके टुकड़ों पर पलने वाले दलाल बुद्धिजीवियों को
क्रान्ति की दिशा में एक और 'बड़ा कदम' मुबारक ! 'जर, जंगल और ज़मीन' की
लड़ाई में पूंजीपतियों, सामंतों और निर्माण कार्य में लगे ठेकेदारों से लेवी
की बड़ी रकम वसूलने के लिए गरीबों को मारकर दहशत फैलाना भी तो ज़रूरी होता
है ! बधाई की पात्र हमारी राज्य सरकारें भी हैं जिन्होंने नक्सल समस्या के
नाम पर केंद्र से मिलने वाली बहुत बड़ी धनराशि के लिए जानबूझकर इस समस्या से
आंखें फेर रखी हैं। उनकी चिंता यह नहीं कि माओवादी हत्यारों को आतंकी
मानकर उनके साथ वैसा ही सलूक किया जाय, बल्कि यह है कि उन्हें आर्थिक
मुआवज़े का इतना बड़ा प्रलोभन दिया जाय कि वे खुद-ब-खुद अपने को क़ानून के
हवाले कर दें, यह जानते हुए भी कि रंगदारी की बहुत बड़ी कमाई करने वाले
किसी भी सक्रिय नक्सली ने आजतक कभी आत्मसमर्पण नहीं किया। आत्मसमर्पण या तो
वो मासूम लोग करते हैं जिन्हें पुलिस ने नक्सली के नाम पर झूठे मुक़दमों
में फंसा रखा है या जो माओवादी अपनी बढ़ती उम्र या अन्य वज़हों से संगठन से
बाहर कर दिए जाते हैं !
खेल अभी बाकी है, दोस्तों। तब तक अगले किसी नरसंहार का इंतज़ार करिए !
खेल अभी बाकी है, दोस्तों। तब तक अगले किसी नरसंहार का इंतज़ार करिए !
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(वस्तुतः 'साम्यवाद' को जो कि भारतीय वाङ्ग्मय की देंन है को विदेशी दृष्टिकोण से लागू करवाने की असफल कोशिशें ही इसकी विफलता का हेतु हैं। समय-समय पर इस ओर ध्यानाकर्षण करने का प्रयास करता रहा हूँ परंतु मेरी हैसियत ही क्या है जो उस पर गौर किया जाये?)
विजय राजबली माथुर
http://communistvijai.blogspot.in/2013/09/blog-post.htmlविजय राजबली माथुर
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दंतेवाडा त्रासदी - समाधान क्या है?
17-06-2010
http://krantiswar.blogspot.in/2010/06/blog-post_17.html
समय करे नर क्या करे,समय बड़ा बलवान.
असर गृह सब पर करे ,परिंदा पशु इनसान
मंगल वार ६ अप्रैल के भोर में छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा में ०३:३० प्रात पर केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल पर नक्सलियों का जो हमला हुआ उसमें ७६ सुरक्षाबल कर्मी और ८ नक्सलियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.यह त्रासदी समय कि देन है.हमले के समय वहां मकर लग्न उदित थी और सेना का प्रतीक मंगल-गृह सप्तम भाव में नीच राशिस्थ था.द्वितीय भाव में गुरु कुम्भ राशिस्थ व नवं भाव में शनि कन्या राशिस्थ था.वक्री शनि और गुरु के मध्य तथा गुरु और नीचस्थ मंगल के मध्य षडाष्टक योग था.द्वादश भाव में चन्द्र-रहू का ग्रहण योग था.समय के यह संकेत रक्त-पात,विस्फोट और विध्वंस को इंगित कर रहे थे जो यथार्थ में हो कर रहा.विज्ञानं का यह नियम है कि,हर क्रिया की प्रति क्रिया होती है.यदि आकाश मंडल में ग्रहों की इस क्रिया पर शासन अथवा जनता के स्तर से प्रतिक्रिया ग्रहों के अरिष्ट शमन की हुई होती तो इतनी जिन्दगियों को आहुति न देनी पड़ती।
असर गृह सब पर करे ,परिंदा पशु इनसान
मंगल वार ६ अप्रैल के भोर में छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा में ०३:३० प्रात पर केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल पर नक्सलियों का जो हमला हुआ उसमें ७६ सुरक्षाबल कर्मी और ८ नक्सलियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.यह त्रासदी समय कि देन है.हमले के समय वहां मकर लग्न उदित थी और सेना का प्रतीक मंगल-गृह सप्तम भाव में नीच राशिस्थ था.द्वितीय भाव में गुरु कुम्भ राशिस्थ व नवं भाव में शनि कन्या राशिस्थ था.वक्री शनि और गुरु के मध्य तथा गुरु और नीचस्थ मंगल के मध्य षडाष्टक योग था.द्वादश भाव में चन्द्र-रहू का ग्रहण योग था.समय के यह संकेत रक्त-पात,विस्फोट और विध्वंस को इंगित कर रहे थे जो यथार्थ में हो कर रहा.विज्ञानं का यह नियम है कि,हर क्रिया की प्रति क्रिया होती है.यदि आकाश मंडल में ग्रहों की इस क्रिया पर शासन अथवा जनता के स्तर से प्रतिक्रिया ग्रहों के अरिष्ट शमन की हुई होती तो इतनी जिन्दगियों को आहुति न देनी पड़ती।
जबहम
जानते हैंकि तेज धुप या बारिश होने वाली है तो बचाव में छाते का प्रयोग
करते हैं.शीत प्रकोप में ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते हैं तब जानबूझकर भी
अरिष्ट ग्रहों का शमन क्यों नहीं करते? नहीं करते हैं तभी तो दिनों दिन
हमें अनेकों त्रासदियों का सामना करना पड़ता है.जाँच-पड़ताल,लीपा – पोती
,खेद –व्यक्ति ,आरोप प्रत्यारोप के बाद फिर वाही बेढंगी चल ही चलती
रहेगी.सरकारी दमन और नक्सलियों का प्रतिशोध और फिर उसका दमन यह सब
क्रिया-प्रतिक्रिया सदा चलती ही रहेगी.तब प्रश्न यह है कि समाधान क्या
है?महात्मा बुद्द के नियम –दुःख है! दुःख दूर हो सकता है!! दुःख दूर करने
के उपाय हैं!!! दंतेवाडा आदि नक्सली आन्दोलनों का समाधान हो सकता है
सर्वप्रथम दोनों और की हिंसा को विराम देना होगा फिर वास्तविक धर्म अथार्त
सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रहाम्चार्य का वस्तुतः पालन करना होगा.
सत्य-सत्य यह है कि गरीब मजदूर-किसान का शोषण व्यापारी,उद्योगपति,साम्राज्यवादी सब मिलकर कर रहे हैं.यह शोषण अविलम्ब समाप्त किया जाये.
अहिंसा-अहिंसा मनसा,वाचा,कर्मना होनी चाहिए.शक्तिशाली व सम्रद्द वर्ग तत्काल प्रभाव से गरीब किसान-मजदूर का शोषण और उत्पीडन बंद करें.
अस्तेय-अस्तेय अथार्त चोरी न करना,गरीबों के हकों पर डाका डालना व उन के निमित्त सहयोग –निधियों को चुराया जाना ताकल प्रभाव से बंद किया जाये.कर-अप्बंचना समाप्त की जाये.
अपरिग्रह-जमाखोरों,सटोरियों,जुअरियों,हवाला व्यापारियों,पर तत्काल प्रभाव से लगाम कासी जाये और बाज़ार में मूल्यों को उचित स्तर पर आने दिया जाये.कहीं नोटों को बोरों में भर कर रखने कि भी जगह नहीं है तो अधिकांश गरीब जनता भूख से त्राहि त्राहि कर रही है इस विषमता को तत्काल दूर किया जाये.
ब्रह्मचर्य -धन का असमान और अन्यायी वितरण ब्रहाम्चार्य व्यवस्था को खोखला कर रहा हैऔर इंदिरा नगर लखनऊ के कल्याण अपार्टमेन्ट जैसे अनैतिक व्यवहारों को प्रचलित कर रहा है.अतः आर्थिक विषमता को अविलम्ब दूर किया जाये.
चूँकि हम देखते हैं कि व्यवहार में धर्मं का कहीं भी पालन नहीं किया जा रहा है इसीलिए तो आन्दोलनों का बोल बाला हो रहा है. दंतेवाडा त्रासदी खेदजनक है किन्तु इसकी प्रेरणा स्त्रोत वह सामाजिक दुर्व्यवस्था है जिसके तहत गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होता जा रहा है.कहाँ हैं धर्मं का पालन कराने वाले?पाखंड और ढोंग तो धर्मं नहीं है,बल्कि यह ढोंग और पाखण्ड का ही दुष्परिनाम है कि शोषण और उत्पीडन की घटनाएँ बदती जा रही हैं.जब क्रिया होगी तो प्रतिक्रिया होगी ही.
शुद्द रहे व्यवहार नहीं,अच्छे आचार नहीं.
इसीलिए तो आज ,सुखी कोई परिवार नहीं.
समय का तकाजा है कि हम देश,समाज ,परिवार और विश्व को खुशहाल बनाने हेतु संयम पूर्वक धर्म का पालन करें.झूठ ,ढोंग-पाखंड की प्रवृत्ति को त्यागें और सब के भले में अपने भले को खोजें.
यदि करम खोटें हैं तो प्रभु के गुण गाने से क्या होगा?
किया न परहेज़ तो दवा खाने से क्या होगा?
आईये मिलकर संकल्प करें कि कोई किसी का शोषण न करे,किसी का उत्पीडन न हो,सब खुशहाल हों.फिर कोई दंतेवाडा सरीखी त्रासदी भी नहीं दोहराएगी.
अहिंसा-अहिंसा मनसा,वाचा,कर्मना होनी चाहिए.शक्तिशाली व सम्रद्द वर्ग तत्काल प्रभाव से गरीब किसान-मजदूर का शोषण और उत्पीडन बंद करें.
अस्तेय-अस्तेय अथार्त चोरी न करना,गरीबों के हकों पर डाका डालना व उन के निमित्त सहयोग –निधियों को चुराया जाना ताकल प्रभाव से बंद किया जाये.कर-अप्बंचना समाप्त की जाये.
अपरिग्रह-जमाखोरों,सटोरियों,जुअरियों,हवाला व्यापारियों,पर तत्काल प्रभाव से लगाम कासी जाये और बाज़ार में मूल्यों को उचित स्तर पर आने दिया जाये.कहीं नोटों को बोरों में भर कर रखने कि भी जगह नहीं है तो अधिकांश गरीब जनता भूख से त्राहि त्राहि कर रही है इस विषमता को तत्काल दूर किया जाये.
ब्रह्मचर्य -धन का असमान और अन्यायी वितरण ब्रहाम्चार्य व्यवस्था को खोखला कर रहा हैऔर इंदिरा नगर लखनऊ के कल्याण अपार्टमेन्ट जैसे अनैतिक व्यवहारों को प्रचलित कर रहा है.अतः आर्थिक विषमता को अविलम्ब दूर किया जाये.
चूँकि हम देखते हैं कि व्यवहार में धर्मं का कहीं भी पालन नहीं किया जा रहा है इसीलिए तो आन्दोलनों का बोल बाला हो रहा है. दंतेवाडा त्रासदी खेदजनक है किन्तु इसकी प्रेरणा स्त्रोत वह सामाजिक दुर्व्यवस्था है जिसके तहत गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होता जा रहा है.कहाँ हैं धर्मं का पालन कराने वाले?पाखंड और ढोंग तो धर्मं नहीं है,बल्कि यह ढोंग और पाखण्ड का ही दुष्परिनाम है कि शोषण और उत्पीडन की घटनाएँ बदती जा रही हैं.जब क्रिया होगी तो प्रतिक्रिया होगी ही.
शुद्द रहे व्यवहार नहीं,अच्छे आचार नहीं.
इसीलिए तो आज ,सुखी कोई परिवार नहीं.
समय का तकाजा है कि हम देश,समाज ,परिवार और विश्व को खुशहाल बनाने हेतु संयम पूर्वक धर्म का पालन करें.झूठ ,ढोंग-पाखंड की प्रवृत्ति को त्यागें और सब के भले में अपने भले को खोजें.
यदि करम खोटें हैं तो प्रभु के गुण गाने से क्या होगा?
किया न परहेज़ तो दवा खाने से क्या होगा?
आईये मिलकर संकल्प करें कि कोई किसी का शोषण न करे,किसी का उत्पीडन न हो,सब खुशहाल हों.फिर कोई दंतेवाडा सरीखी त्रासदी भी नहीं दोहराएगी.
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