प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी और पर्यावरणविद व् संस्कृति कर्मी अमिताभ पांडे |
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"जब
जब वैज्ञानिक चेतना मनुष्य के अस्तित्व को उसकी सीमाओं का अहसास कराएगी तब
तब विज्ञान दर्शन और सामाजिक चेतना के लिए काम आएगा, ये दुनिया भौतिक
कारणों से बनी और उन्ही से संचालित होती
है और उसी तार्किक परिणति से अपने चरम पर पहुंचेगी इसमें न तो कोई परम
सत्ता और ना हीं किसी दैवीय अस्तित्व की गुंजायश है. विज्ञान मनुष्यता के
विकास में समाज के लिए तर्कपूर्ण नज़रिए का निर्माण करता है और यही नजरिया
हमें सामाजिक सरोकारों से जोड़ता है " ये विचार प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी और
पर्यावरणविद व् संस्कृति कर्मी अमिताभ पांडे ने आज 6 अप्रैल को कामरेड
महादेव नारायण टंडन स्मृति व्याख्यान माला की बारहवीं कड़ी में माथुर वैश्य
सभागार आगरा में व्यक्त किया, ये व्याखानमाला प्रसिद्ध वाम चिन्तक और नेता
एम् एन टंडन और डॉ. जितेन्द्र रघुवंशी जी को को समर्पित थी आज सभागार में
डॉ रघुवंशी जी की कमी खली. सभी ने उनको याद करते हुए दो मिनट की मौन
श्रधांजलि अर्पित की, कामरेड टंडन के सुपुत्र व शहर के प्रसिद्ध बाल रोग
विशेषज्ञ डॉ जे एन टंडन ने उनको याद करते हुए कहा कि उनकी ऊर्जापूर्ण वाणी
हम सभी को बहुत प्रेरणा देती थी अपने मौलिक व्यक्तिव्य के लिए उनको हमेशा
याद किया जायेगा ये व्याख्यान उन्ही को समर्पित है! आज उनकी पत्नी श्रीमती
भावना जितेन्द्र रघुवंशी भी मंच पर उपस्थित रहीं और उन्होंने बुद्धि और
तर्क के सामाजिक उपयोग को एक कहानी द्वरा उद्दृत किया विभिन्न सवालों के
उत्तर देते हुए डॉ अमिताभ पाण्डेय ने धर्म और सामाजिकता में उत्पन्न होती
अवैज्ञानिक सोच पर चिंता जताई और उन शक्तियों से सावधान रहने को कहा जो
धर्म और जातिवाद के नाम पर सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न करने में लगी
हुयी है इस अवसरपर :
(कामरेड रमेश मिश्र ) |
कामरेड रमेश मिश्र ,स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार, गाँधीवादी सर्वोदयी नेता श्री शशि शिरोमणि , नगर के कवि श्री सोम ठाकुर , इप्टा आगरा के निर्देशक दिलीप रघुवंशी के साथ मानस रघुवंशी, स्वर्णिमा रघुवंशी, स्वीटी अग्निहोत्री, विशाल रियाज़ अरुण सोलंकी, हरीश चिमटी, मनीष ,अर्पित ,रिषभ सहित शहर के सभी गणमान्य लोग मौजूद थे डॉ जे एन टंडन ने डॉ पाण्डेय का स्मृति चिन्ह कर सम्मान किया आभार रमेश मिश्र और संचालन डॉ. विजय शर्मा ने किया.
https://www.facebook.com/vijay.agra/posts/1070536759627179?pnref=story
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*:"ये दुनिया भौतिक कारणों से बनी और उन्ही से संचालित होती है और उसी तार्किक परिणति से अपने चरम पर पहुंचेगी इसमें न तो कोई परम सत्ता और ना हीं किसी दैवीय अस्तित्व की गुंजायश है"
पांडे जी के इस कथन सरीखे वक्तव्य इस अवधारणा पर अवलंबित हैं कि शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह ने भी महर्षि कार्ल मार्क्स की भांति ही धर्म की आलोचना की है। भगत सिंह जी को 24 वर्ष की अवस्था में फांसी दे दी गई थी फिर भी उनका अध्यन गहन था और मार्क्स द्वारा उपलब्ध ज्ञान पर आधारित था। मार्क्स ने अपने समय के 'रोमन केथोलिक' व 'प्रोटेस्टेंट' के झगड़ों के आधार 'रिलीजन' को अफीम कहा था । भारत में रिलीजन=मजहब=संप्रदाय को धर्म संज्ञा दे दी गई है जो कि नितांत गलत है क्योंकि धर्म का यह अर्थ नहीं है।
धर्म शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की 'धृत' धातु से हुई है जिसका अर्थ है 'धारण करना'अर्थात जो मानव शरीर व समाज को धारण करने हेतु आवश्यक है वही धर्म है और इसके विपरीत जो है वह अधर्म है।
धर्म= सत्य, अहिंसा(मनसा-वाचा-कर्मणा ), अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य ।
भगवान= भ (भूमि-पृथ्वी ) + ग (गगन-आकाश ) + व (वायु-हवा ) +I (अनल-अग्नि ) + न (नीर-जल ) ।
खुदा= चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इनको किसी ने बनाया नहीं है अतः ये ही खुदा हैं।
GOD == और चूंकि इन तत्वों का कार्य : G(जेनरेट- उतपति) + O(आपरेट- पालन) + D(डेसट्राय- संहार) है अतः ये ही गाड हैं।
देवता= जो देता है और लेता नहीं है;जैसेअग्नि,वायु,आकाश,नदी,वृक्ष,समुद्र,तालाब आदि।
लेकिन पांडे जी जैसे भौतिक विज्ञानी जब खुद ही जनता को विभ्रमित करने की अगुवाई करें तब तो पोंगा-पंडितों की पौ बारह होना ही है। 'एथीस्टवाद' के नाम पर वास्तविक धर्म की उपेक्षा करके अधर्म=ढोंग-पाखंड-आडंबर को धर्म कहते रहना पोंगापंडितवाद को प्रोत्साहन देना ही है। सोवियत रूस में साम्यवाद का पतन होने का कारण (जैसा कि कामरेड रमेश मिश्रा जी ने 2008 में ज़िला काउंसिल,आगरा की रिपोर्ट सम्मेलन हेतु बनाने के दौरान व्यक्तिगत तौर पर बताया था ) यह था कि वहाँ कम्युनिस्ट पार्टी के पदाधिकारी व सरकारी अधिकारी जनता व कार्यकर्ताओं का शोषण करके अवैध रूप से धन संग्रह में तल्लीन थे तथा जनता त्रस्त थी। ये पदाधिकारी व अधिकारी ही आज के रूस के पूंजीपति हैं। यदि वास्तविक धर्म का पालन किया जाता तो अस्तेय= अवैध धन संग्रह का प्रश्न ही नहीं उठता परंतु भारत में अभी भी कम्युनिस्ट पदाधिकारी कोई सबक सीखने को तैयार नहीं हैं और उसी ज़िद्द का नतीजा है मोदी नेतृत्व की फासिस्ट सरकार का सत्तारूढ़ होना। यदि अब भी जनता को जागरूक न किया गया तो विनाश का खतरा सिर पर ही नहीं मँडराता रहेगा बल्कि भारत के कई टुकड़े होते देर नहीं लगेगी जैसे की USSR को बिखरते देर नहीं लगी थी।
कुछ चेतनशील बुद्धिजीवी प्रयास तो कर रहे हैं लेकिन वे भी धर्म और नास्तिकता की उलट बानसियों में ही जकड़े होने के कारण जनता को प्रभावित करने में असमर्थ हैं।
http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/issue/2015/04/07/
" बशर्ते कि विपरीत परिस्थितियों और बिखरी हुई कमजोर ताकत का रोना रोते हुये हम पहले ही हथियार न डाल दें" --- कात्यायनी जी का कथन तो सटीक है परंतु यदि हथियार उठाने या डालने के बजाए ऐसी शक्तियों के खेवनहार आपसी मनोरंजन में ही फंसे रहें तो? :
जब जिम्मेदार पदाधिकारी गण जन-सरोकारों और कार्यकर्ताओं की समस्याओं की ओर ध्यान न देकर आपसी रिश्ते निभाते रहें और इस ओर ध्यान ही न दें कि जिसके नेतृत्व में सांप्रदायिकता विरोधी मोर्चा बनाते रहे हैं वह खुद कितना बड़ा सांप्रदायिक है एवं मोदी सरकार के गठन के लिए उत्तरदाई है ? :
वैसे अभी भी समय हाथ से निकला नहीं है अब भी संभल जाएँ और वास्तविक धर्म के मर्म को समझ कर जनता को जागरूक करने निकल पड़ें तो जनता लुटेरे अधार्मिकों के चंगुल से निकल सकती है।
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