मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण का सच
किसानों की जमीन छीन कर पूंजीपतियों को सौंपने पर आमादा मोदी सरकार
14 मई को देशव्यापी विरोध
उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर रास्ता रोको
बहनों एवं भाईयों,
किसानों के निरन्तर आन्दोलनों और बलिदानों के कारण 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को 2013 में संसद में सर्वसम्मति से बदला गया था।
बदले कानून में सुनिश्चित किया गया था:
- जमीन के मालिक किसानों से उनकी रज़ामंदी के बिना जमीन नहीं ली जा सकेगी और जमीन लेने का क्या सामाजिक प्रभाव पड़ेगा, उसका भी पहले आकलन किया जायेगा।
- किसान को अपनी जमीन के बेहतर मुआवजे के लिए मोल-तोल का अधिकार मिले, उसकी कोई मजबूरी न हो तथा उसका मुआवजा एडवांस में दिया जाये।
- पूरे मुआवजे के भुगतान के बाद और पुनर्वास एवं पुनः व्यवस्थापन के पूरे इंतजाम के बाद ही जमीन पर कब्जा लिया जाये।
- किसानों और पंचायतों की रज़ामंदी के बिना जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू नहीं की जायेगी।
- बहुफसली और सिंचित जमीन का अधिग्रहण नहीं होगा।
- अधिग्रहण की प्रक्रिया के पहले किसानों, आजीविका के लिए निर्भर अन्य लोगों एवं समुदाय पर पड़ने वाले सामाजिक प्रभाव का आकलन किया जायेगा।
- सभी विस्थापित परिवारों को पहले से बेहतर जीवन स्तर सुनिश्चित किया जायेगा।
मोदी
सरकार किसानों के इन अधिकारों को छीन कर जमीन को पूंजीपतियों को देना
चाहती है। उसने लोकशाही की सारी परम्पराओं को त्याग कर 3 अप्रैल 2015 को
पुनः अध्यादेश जारी करके अपने किसान विरोधी इरादों का पुनः परिचय दिया है।
सरकार
का यह दावा झूठ और मिथ्यापूर्ण प्रचार है कि विकास कार्य क्योंकि रूके पड़े
हैं, इसलिए कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश लाना जरूरी है।
दरअसल
अध्यादेश का मतलब किसानों से रज़ामंदी के बिना और बिना सामाजिक प्रभाव का
आकलन किये जमीनों को किसानों से छीनना है जबकि 2013 का कानून सुनिश्चित
करता है कि जिन लोगों से जमीन ली जानी है, उनके 70 प्रतिशत लोग अपनी
रज़ामंदी दें और यदि जमीन किसी निजी कम्पनी के लिए ली जा रही है तो उसके लिए
80 प्रतिशत लोगों की रज़ामंदी होनी चाहिए।
सरकारी
दावा इससे और भी झूठा साबित हो जाता है कि वर्ष 2013 तक सरकार बड़े पैमाने
पर जमीन का अंधाधुंध अधिग्रहण करती रही है। हालत यह है कि बड़ी मात्रा में
अधिगृहीत जमीन का कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। बड़ी मात्रा में भूमि को
कारपोरेट भूमाफिया ने हड़प लिया है जो उसे विकास के लिए इस्तेमाल करने के
बजाय बढ़े दामों पर बेचकर पैसा कमा रहे हैं।
कैग
(नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट दिनांक 28 नवम्बर 2014 के
अनुसार विशेष आर्थिक परियोजनाओं के लिए ली गई 45,635.63 हेक्टेयर जमीन में
से केवल 28,488.49 हेक्टेयर जमीन का ही इस्तेमाल हुआ है। गुजरात में
स्वीकृत 50 विशेष आर्थिक क्षेत्रों में से केवल 15 ही आपरेशनल हैं। वहां
प्रधानमंत्री के चहेते अडानी को 2009 में 6,472.86 हेक्टेयर जमीन दी गई
जिसमें से 87.11 प्रतिशत जमीन का कोई इस्तेमाल नहीं किया गया है। कैग ने
रिलायंस, एस्सार, डीएलएफ, यूनीटेक्स आदि डेवलपरों को फटकार लगाते हुए कहा
है कि इन्होंने विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना के नाम पर बड़ी मात्रा
में जमीनें हथिया ली हैं परन्तु केवल एक मामूली हिस्से का ही इस्तेमाल किया
गया है। मुकेश अंबानी ने महाराष्ट्र के द्रोणगिरि में 1,250 हेक्टेयर जमीन
ली परन्तु वहां 2006 से अब तक एक भी कारखाना स्थापित नहीं किया गया है।
कैग ने स्पष्ट कहा है - ”सरकार द्वारा किसानों से जमीन का अधिग्रहण ग्रामीण
आबादी से कारपोरेट जगत को दौलत का हस्तांतरण साबित हो रहा है।“
वास्तविकता,
मोदी सरकार के तमाम दावों को खोखला और मिथ्या साबित करती है। वास्तव में
मोदी सरकार कारपोरेट घरानों, धन्नासेठों तथा पूंजीपतियों को जमीनें देने और
किसानों को बेसहारा करने के लिए ही यह झूठी और खोखली दलीलें देकर देश की
जनता की आंख में धूल झोकना चाहती है।
किसान भाईयों,
18 औद्योगिक गलियारों के लिए मोदी सरकार के प्रस्तावों के द्वारा खेती योग्य भूमि का 35 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा आ जायेगा जिससे
हजारों गांव लुप्त हो जायेंगे और करोड़ों लोगों को रोजी-रोटी छीनने का
रास्ता साफ हो जायेगा। उसके कारण बड़े पैमाने पर सामाजिक विघटन और सामाजिक
अराजकता पैदा हो जायेगी।
भारतीय
कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई किसानों, खेत मजदूरों, ट्रेड
यूनियनों, नागरिक समाज एवं आम जनता का आह्वान करती है कि मोदी सरकार के
घृणित मंसूबों को नाकाम करने के लिए बड़े पैमाने पर 14 मई 2015 को ”रास्ता
रोको“ कार्यक्रम को सफल बना कर किसान एवं देश विरोधी अध्यादेश का विरोध
करें।
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