1. 9 फरवरी के कार्यक्रम के लिए मीडिया को किसने आमंत्रित किया? यह जांच का विषय होना चाहिए। साधारणतः जेएनयू कैंपस में लगभग रेगुलर ही इससे बड़े आयोजन होते रहते हैं। मीडिया कभी झांकने भी नहीं आती। यह सर्वविदित है कि मीडिया को abvp के लोगों ने पहले ही फोन करके बुलाया था पर क्यूँ? कार्यक्रम की इजाजत उनकी शिकायत के बाद कैंसिल करने के बाद भी उन्हें कैसे पता था कि कुछ होने वाला है?
2. कार्यक्रम के तत्काल बाद हफीज सईद के नाम उसके समर्थन में ट्वीट करने वाले बीजेपी समर्थक पत्रकार की गिरफ़्तारी क्यूँ नहीं हुई?
3. उस फर्जी ट्वीट को आधार बनाकर देश का गृहमंत्री तत्काल ही विदेशी साजिश का बयान दे देता है जो उसी की पार्टी के किसी समर्थक पत्रकार का बनाया हुआ है। क्या भारतीय इंटेलिजेंस इतना बेकार हो चूका है या यह प्रायोजित था जिसमें सब शामिल थे?
4. पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे कैंपस में नहीं लगाए गए। जी टीवी छोड़ने वाले प्रोडूसर का बयान है कि उनके द्वारा बनाए गए विडियो में यह नारा नहीं था। फिर विडियो में छेड़छाड़ कर यह नारे किसने डाले? तो क्या ज़बरदस्ती घटना को एंटी-नेशनल रूप देने की कोशिश की गई? आखिर क्यूँ? और इससे किसका फायदा होता है?
5. 11 फरवरी के कन्हैया के विडियो में एडिट करके 9 फरवरी की घटना के नारे डालने वाले कौन लोग हैं? क्या इसकी जांच की दिशा में कोई कारवाई हुई है? जिस विडियो को सबूत मानकर कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी हुई। वो अगर फर्जी है तो ज़ाहिर है इस विडियो को बनाने में उन्हीं की भूमिका है जो फर्जी ट्वीट बना रहे थे या 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के फर्जी नारे विडियो में एडिट करके डाल रहे थे। क्या इस फर्जी काम को अन्जाम देने वालों की जांच और धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए?
6. मीडिया में फर्जी विडियो चलाकर देश में फर्जी राष्ट्रवाद का उभार फैलाने और jnu और उसके स्टूडेंट्स को बदनाम करने के लिए क्या मीडिया वालों के लाइसेंस रद्द नहीं होने चाहिए? कुछ मीडिया चैनेल और उनके एंकरों ने जिस तरह का माहौल बनाया क्या वह जान-बूझकर नहीं किया गया? फिर इसके पीछे कौन सी ताकतें हैं।
7. दिल्ली पुलिस ने जिस तरह हिटलरशाही का परिचय दिया वो और भी सवालों के घेरे में है। jnusu अध्यक्ष कन्हैया कुमार को आखिर बिना सबूत किस आधार पर देशद्रोह के मुक़दमे में फंसाया गया? फिर पटियाला कोर्ट में जिस तरह उसके साथ मार-पीट की गई उसमें पुलिस की भूमिका की जांच होनी चाहिए। जांच तो बीजेपी विधायक और वकीलों को घटना के बाद भी छूट देने के लिए होनी चाहिए
8. पटियाला कोर्ट में हमलावर वकील भी अंततः बीजेपी के कार्यकर्ता पाए गए। कानून हाथ में लेने के लिए उन्हें सजा क्यूँ नहीं दी गई।
9. सरकार, उसके मंत्री, कार्यकर्ता, आरएसएस और तंत्र जिस तरह jnu को फंसाता रहा क्या वो पूर्व नियोजित था?
10. क्या पीडीपी के दवाब में भारत विरोधी नारे लगाने वाले चंद लोगों की गिरफ़्तारी नहीं हो रही? विडियो से साफ़ ज़ाहिर है कि मात्र यही एक छोटा समूह यह नारे लगा रहा था।
11. या फिर असली दोषियों को गिरफ्तार करना कभी भी एजेंडे में नहीं था। उनकी आड़ में jnu स्टूडेंट लीडर्स को सत्ता की बूट का स्वाद चखाना ही इस घटना को पूर्व-नियोजित तरीके से करना असली मकसद था। जो ये कर रहे हैं।
12. याद कीजिए कि आरएसएस और उसके सेवक सुब्रमनियन स्वामी जैसे लोग सरकार में आने के बाद से ही jnu को anti-national कहते आ रहे हैं।
तो क्या पूरी बीजेपी सारे घटनाक्रमों के पीछे लगी हुई थी और उन्हें संचालित कर रही थी ताकि अपने एजेंडे को आगे बढाया जा सके और jnu को discredit किया जा सके। आखिर ऐसा किया गया तो क्यूँ? आखिर jnu उनकी निगाह में इतना गड़ता क्यूँ है? और अगर यह सब प्लांड तरीके से किया गया तो क्या इसके लिए बीजेपी के दोषी सदस्यों को सजा नहीं मिलनी चाहिए?
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सौजन्य से ::
Sindhu Khantwal
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28-02-2016 |