Sunday, 28 February 2016

कन्हैया कुमार को आखिर बिना सबूत किस आधार पर देशद्रोह के मुक़दमे में फंसाया गया? ------ I Support Kanhaiya (Sindhu Khantwal)


जेएनयू मामले में जाँच जिस दिशा में बढ़ रही है वो कहीं से भी जायज नहीं है। जिस तरह से 9 फरवरी की घटना के बाद घटनाक्रम लगातार बदलते रहे हैं वो शक की कई सुईआँ प्रतिरोधी समूह की तरह उठाती हैं जो इसे देशद्रोह का मुद्दा बनाने पर तुली हैं। इनमें से कुछ का ज़िक्र यहाँ किया जा रहा है।
1. 9 फरवरी के कार्यक्रम के लिए मीडिया को किसने आमंत्रित किया? यह जांच का विषय होना चाहिए। साधारणतः जेएनयू कैंपस में लगभग रेगुलर ही इससे बड़े आयोजन होते रहते हैं। मीडिया कभी झांकने भी नहीं आती। यह सर्वविदित है कि मीडिया को abvp के लोगों ने पहले ही फोन करके बुलाया था पर क्यूँ? कार्यक्रम की इजाजत उनकी शिकायत के बाद कैंसिल करने के बाद भी उन्हें कैसे पता था कि कुछ होने वाला है?
2. कार्यक्रम के तत्काल बाद हफीज सईद के नाम उसके समर्थन में ट्वीट करने वाले बीजेपी समर्थक पत्रकार की गिरफ़्तारी क्यूँ नहीं हुई?
3. उस फर्जी ट्वीट को आधार बनाकर देश का गृहमंत्री तत्काल ही विदेशी साजिश का बयान दे देता है जो उसी की पार्टी के किसी समर्थक पत्रकार का बनाया हुआ है। क्या भारतीय इंटेलिजेंस इतना बेकार हो चूका है या यह प्रायोजित था जिसमें सब शामिल थे?
4. पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे कैंपस में नहीं लगाए गए। जी टीवी छोड़ने वाले प्रोडूसर का बयान है कि उनके द्वारा बनाए गए विडियो में यह नारा नहीं था। फिर विडियो में छेड़छाड़ कर यह नारे किसने डाले? तो क्या ज़बरदस्ती घटना को एंटी-नेशनल रूप देने की कोशिश की गई? आखिर क्यूँ? और इससे किसका फायदा होता है?
5. 11 फरवरी के कन्हैया के विडियो में एडिट करके 9 फरवरी की घटना के नारे डालने वाले कौन लोग हैं? क्या इसकी जांच की दिशा में कोई कारवाई हुई है? जिस विडियो को सबूत मानकर कन्हैया कुमार की गिरफ़्तारी हुई। वो अगर फर्जी है तो ज़ाहिर है इस विडियो को बनाने में उन्हीं की भूमिका है जो फर्जी ट्वीट बना रहे थे या 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के फर्जी नारे विडियो में एडिट करके डाल रहे थे। क्या इस फर्जी काम को अन्जाम देने वालों की जांच और धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए?
6. मीडिया में फर्जी विडियो चलाकर देश में फर्जी राष्ट्रवाद का उभार फैलाने और jnu और उसके स्टूडेंट्स को बदनाम करने के लिए क्या मीडिया वालों के लाइसेंस रद्द नहीं होने चाहिए? कुछ मीडिया चैनेल और उनके एंकरों ने जिस तरह का माहौल बनाया क्या वह जान-बूझकर नहीं किया गया? फिर इसके पीछे कौन सी ताकतें हैं।
7. दिल्ली पुलिस ने जिस तरह हिटलरशाही का परिचय दिया वो और भी सवालों के घेरे में है। jnusu अध्यक्ष कन्हैया कुमार को आखिर बिना सबूत किस आधार पर देशद्रोह के मुक़दमे में फंसाया गया? फिर पटियाला कोर्ट में जिस तरह उसके साथ मार-पीट की गई उसमें पुलिस की भूमिका की जांच होनी चाहिए। जांच तो बीजेपी विधायक और वकीलों को घटना के बाद भी छूट देने के लिए होनी चाहिए
8. पटियाला कोर्ट में हमलावर वकील भी अंततः बीजेपी के कार्यकर्ता पाए गए। कानून हाथ में लेने के लिए उन्हें सजा क्यूँ नहीं दी गई।
9. सरकार, उसके मंत्री, कार्यकर्ता, आरएसएस और तंत्र जिस तरह jnu को फंसाता रहा क्या वो पूर्व नियोजित था?
10. क्या पीडीपी के दवाब में भारत विरोधी नारे लगाने वाले चंद लोगों की गिरफ़्तारी नहीं हो रही? विडियो से साफ़ ज़ाहिर है कि मात्र यही एक छोटा समूह यह नारे लगा रहा था।
11. या फिर असली दोषियों को गिरफ्तार करना कभी भी एजेंडे में नहीं था। उनकी आड़ में jnu स्टूडेंट लीडर्स को सत्ता की बूट का स्वाद चखाना ही इस घटना को पूर्व-नियोजित तरीके से करना असली मकसद था। जो ये कर रहे हैं।
12. याद कीजिए कि आरएसएस और उसके सेवक सुब्रमनियन स्वामी जैसे लोग सरकार में आने के बाद से ही jnu को anti-national कहते आ रहे हैं।
तो क्या पूरी बीजेपी सारे घटनाक्रमों के पीछे लगी हुई थी और उन्हें संचालित कर रही थी ताकि अपने एजेंडे को आगे बढाया जा सके और jnu को discredit किया जा सके। आखिर ऐसा किया गया तो क्यूँ? आखिर jnu उनकी निगाह में इतना गड़ता क्यूँ है? और अगर यह सब प्लांड तरीके से किया गया तो क्या इसके लिए बीजेपी के दोषी सदस्यों को सजा नहीं मिलनी चाहिए?

https://www.facebook.com/isupportkanhaiya/photos/a.2005793673045125.1073741828.2005716053052887/2010588422565650/?type=3

सौजन्य से ::
Sindhu Khantwal
Sindhu Khantwal



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comments on Facebook :
28-02-2016 

आरडीएक्स का इस्तेमाल जिस तरीके से आरएसएस ने किया है ------ एस.एम. मुशरिफ /Vijay Swami

Vijay Swami
27-02-2016  · 
महाराष्ट्र पुलिस के पूर्व आई.जी. ने कहा: “देश का नं 1 आतंकी संगठन है RSS”
February 26, 2016 Featured News.
Ban RSS, India’s no 1 terror organisation: Former Maharashtra cop SM Mushrif
“किसी भी आतंकवादी संगठन ने आरडीएक्स का इस्तेमाल इस तरीके से नहीं किया है जिस तरीके से आरएसएस ने किया है । आरएसएस और इसके सहयोगी दलों जैसे बजरंग दल और अभिनव भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाने के जुर्म में कम से कम १८ चार्जशीटें दाखिल की जा चुकी हैं” यह कहना है महाराष्ट्र पुलिस के पूर्व आई.जी. एस.एम. मुशरिफ का।
मुशरिफ जो अपनी किताब “आरएसएस- कंट्री’स ग्रेटेस्ट टेरर आर्गेनाईजेशन” [“RSS – Country’s Greatest Terror Organisation”] के बंगाली वर्शन को लांच करने के लिए रखे प्रोग्राम में पहुंचे थे ने देश में चल रहे जेएनयू मामले के पीछे भी आरएसएस की चाल होने की बात कही और कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ऐसी चालों के जरिये देश को हिन्दू राष्ट्र में तब्दील करना चाहता है।
इसके इलावा मुशरिफ ने कहा कि देश की सुरक्षा एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो भी आरएसएस के साथ मिलकर काम कर रहा है। इंटेलिजेंस ब्यूरो के ऐसी एजेंसी है जो अपने काम के लिए सरकार या किसी और को जवाबदेह नहीं है इसी बात का फायदा उठा कर इसका इस्तेमाल गलत तरीके से किया जा रहा है। सरकारें आती हैं और चली जाती हैं लेकिन आई.बी. अपने काम में जुटी रहती है और उसके हर बयान को सच माना जाता रहा है।
एस. एम. मुशरिफ की मशहूर पुस्तक करकरे के हत्यारे कौन ? [Who Killed Karkare?] भारत में “इस्लामी आतंकवाद” की फ़र्ज़ी धारणा को तोड़ती है। यह उन शक्‍तियों के बारे में पता लगाती है जिनका महाराष्ट्र ए टी एस के प्रमुख हेमंत करकरे ने पर्दाफ़ाश करने की हिम्मत की और आख़िरकार अपने साहस, और सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई। उनका कहना है कि ये “ब्राह्‌मणवादियों” का “ब्राह्‌मणवादी आतंकवाद” है, इस्लामवादियों का “इस्लामी आतंकवाद” नहीं…
उनकी दूसरी किताब 26/11 आतंकी हमले की जांच में न्यालय क्यों फेल हुआ भी काफी प्रसिद्द है.
Vijay Swami Diamond




Thursday, 25 February 2016

रोहित वेमुला के हत्यारों को सज़ा दो! कन्हैया को तत्काल रिहा करो !! --- लोकतन्त्र बचाओ मार्च




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लखनऊ, 25 फरवरी, 2016 आज दोपहर 22,कैसरबाग  स्थित  भाकपा कार्यालय से CPI, CPI(M ), CPI(ML ), SUCI(C), AIFB, एडवा, एपवा, महिला फेडरेशन,एस एफ आई, आइसा, ए आई एस फ , पी यू सी एल, डी आई एफ आई, जसम, जलेस, प्रलेस, इप्टा, कलम सांस्कृतिक मंच, रिहाई मंच, राहुल फाउंडेशन, अलग दुनिया, साझी दुनिया, वर्कर्स काउंसिल,सी आई टी यू, एटक, निर्माण मजदूर सभा, भवन निर्माण मजदूर सभा आदि संगठनों के तत्वावधान में एक जुलूस प्रारम्भ हुआ जो सफ़ेद बारादरी, कैसरबाग, लालबाग, हलवासिया, हजरतगंज होते हुये अंबेडकर प्रतिमा पर एक सभा में परिवर्तित हो गया। सभा की अध्यक्षता लखनऊ विश्व विद्यालय की पूर्व उपकुलपति डॉ रूप रेखा वर्मा ने की और संचालन कामरेड प्रदीप शर्मा ने। मार्ग में जुलूस के दौरान और सभा के मध्य में लगाए जाने वाले नारों में प्रमुख थे रोहित वेमुला के हत्यारों को गिरफ्तार करो , कामरेड कन्हैया को बिना शर्त  रिहा करो , डॉ अंबेडकर के संविधान की रक्षा करो, शिक्षण संस्थाओं का दमन बंद करो इत्यादि। 

सभा में बोलने वाले मुख्य वक्ता थे क्रमशः रमेश सिंह सेंगर, डॉ गिरीश, सुभाषिनी  अली, वंदना मिश्रा, विजय सिंह, वीरेंद्र यादव, इप्टा के राकेश, रमेश दीक्षित, राहुल फाउंडेशन के सत्येन्द्र। अध्यक्षीय भाषण व धन्यवाद ज्ञापन डॉ रूप रेखा वर्मा ने दिया। 

लगभग सभी वक्ता इस बात पर सहमत थे कि, शोद्ध छात्र रोहित वेमुला के उत्पीड़न और उसकी हत्या तुल्य आत्म-हत्या से उपजी समस्याओं का निराकरण करने में विफल रहने पर JNUSU अध्यक्ष कामरेड कन्हैया को षड्यंत्र पूर्वक  झूठा इल्जाम लगा कर गिरफ्तार किया गया है ।  वक्ताओं ने रोहित की हत्या के लिए जिम्मेदार केंद्रीय मंत्रियों को बर्खास्त किए जाने तथा उसे न्याय दिलाये जाने की पुरजोर मांग की तथा कन्हैया पर लगाए गए झूठे आरोपों को वापिस लेकर तुरंत बिना शर्त रिहाई की मांग की। वक्ताओं ने न्याय प्राप्त होने तक संघर्ष किए जाने का ऐलान किया और इसे और व्यापक रूप देकर जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया। 

सभा में आज इलाहाबाद में तथा कल लखनऊ में हुये संघी आतंकवाद व हिंसा की घोर निंदा की गई। कन्हैया पर अदालत में हुये कातिलाना हमले को केंद्र सरकार की कायराना हरकत बताया गया। 

प्रदर्शन - जुलूस  व सभा में अन्य  लोगों के अतिरिक्त कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़, अशोक मिश्रा, परमानंद दिवेदी, मोहम्मद अकरम, शरीफ, मास्टर सत्यनारायण, मधुकर मौर्या, प्रदीप घोष,विजय माथुर, डॉ सक्सेना, रिशी श्रीवास्तव,कौशल किशोर ,शकील अहमद सिद्दीकी,आनंद तिवारी,ओ पी अवस्थी, ओ पी सिन्हा, के के शुक्ल, महेश देवा, मधु गर्ग, ताहिरा हसन,लता राय,आशा मिश्रा,कान्ति मिश्रा, सुशीला पूरी, कल्पना पांडे तथा काफी संख्या में ई-रिक्शा चालक आदि भी शामिल थे।  

Wednesday, 24 February 2016

Baseless Charges should Immediately be WITHDRAWN ------ Atul Kumar Anjaan

देश अराजकता के हवाले.. कन्हैया को जमानत नहीं ----- Surendra Grover

***** प्रत्यक्षदर्शियों के बयान के आधार पर जमानत का विरोध होगा और ‪#‎न्यायालय‬ उसी आधार पर निर्णय लेगा जोकि पुलिस के पक्ष में होगा.. यानि कन्हैया को जमानत नहीं मिलेगी..
देश अराजकता के हवाले.. *****
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http://www.livehindustan.com/news/national/article1-jnu-issue-kanhaiya-bail-hearing-extend-upto-29-february-by-delhi-high-court-518219.html


https://www.facebook.com/grover.surendra/posts/782637625201887




Surendra Grover
New Delhi, India
वाब किसी के पास नहीं.. एक समझदार अफसर की तरह बस्सी सबसे पहले उस न्यूज़ चैनल से, जिसने वो वीडियो रिकॉर्ड किया था, उस वीडियो का फुटेज जब्त कर उसकी ‪#‎फोरेंसिक_जांच‬करवाते और उसकी फोरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही करते तो आज देश इस तरह आक्रोशित नहीं होता..
यदि #JNU में सच में भारत की बर्बादी जैसी बात प्रामाणिक तौर पर सामने रखी जाती तो पुलिस कार्यवाही का इतना विरोध नहीं होता और न ही उन्हें ‪#‎PMO‬ में तलब कर डाँट ही पिलाई गई होती.. यही नहीं सेवा निवृति के बाद ‪#‎सूचना_आयुक्त‬ पद के लिए उनका विरोध भी नहीं होता..
खैर, अब सरकार और पुलिस अपनी खाल बचाने के लिए आक्रामक हो गई है.. ध्यान दें, पुलिस प्रत्यक्षदर्शियों के crpc की धारा 161 में बयान ‪#‎कन्हैया‬ की जमानत के विरोध में पेश करेगी.. 😂😂 पुलिस ऐसे गवाह पैदा कैसे करती है यह किसी से छुपा नहीं है.. कोई वैज्ञानिक जांच नहीं आ रही उस वीडियो की कि साउंड ट्रैक असल है या एडिट कर इन्सर्ट किये गए.. प्रत्यक्षदर्शियों के बयान के आधार पर जमानत का विरोध होगा और ‪#‎न्यायालय‬ उसी आधार पर निर्णय लेगा जोकि पुलिस के पक्ष में होगा.. यानि कन्हैया को जमानत नहीं मिलेगी..
देश अराजकता के हवाले..

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https://www.facebook.com/grover.surendra/posts/782637625201887

देखिये कितना सटीक रहा सुरेन्द्र ग्रोवर जी का निष्कर्ष : 

http://www.livehindustan.com/news/national/article1-jnu-issue-kanhaiya-bail-hearing-extend-upto-29-february-by-delhi-high-court-518219.html

यह यों भी स्पष्ट था कि, आक्रांता वकीलों ने सुदृढ़ दावा किया था कि कन्हैया को जमानत नहीं मिलेगी। भले ही भाजपा प्रतिनिधि ने उनको सूरमा भोपाली व एंकर महोदया ने बड़बोला कहा हो और पुलिस कमीशनर साहब ने उनकी बातों पर ध्यान न देने को कहा हो लेकिन उनकी पहुँच तो केंद्र सरकार तक है ही। 

http://aajtak.intoday.in/story/sting-operation-patiala-house-accused-lawyers-exposed-how-they-planned-to-beat-kanhaiya-1-855926.html

:देश के दुश्मनों की साज़िश कामयाब हो जाएगी ? ------ विजय स्वामी

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https://www.facebook.com/photo.php?fbid=531116720381508&set=a.160565297436654.1073741825.100004495530231&type=3
Vijay Swami with Piyush Trivedi and 2 others.
दर्शन करने के चक्कर में कुछ भी किसी को भी बकने से बचे, घटनाक्रम यूं है जैसी खबर है कि खुद बीजेपी ने अफजल गुरु की बरसी का आयोजन प्रयोजित किया फिर उसमें अपने ही ABVP के छात्रों को घुसेड़ पाकिस्तान जिंदाबाद हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगवाये दुसरे दिन बीजेपी के छोरो ने JNU पर देशविरोधी होने के नारे लगाये जिसके विरोध में JNU के प्रेसिडेंट ने विरोध प्रदर्शन कर बीजेपी के खिलाफ स्पीच दी. बजाय जिन्होंने अफजल गुरु की बरसी का आयोजन किया नारे लगाये उनको अभी तक पकड़ने के, मजिस्ट्रियल जांच को मंजूरी देने के ,कन्हैया और उसके साथियों को देशद्रोह में गिरफ्तार कर लिया। ऊपर से दादागिरी ये की कोर्ट में मीडिया और स्टुडेंट्स के साथ मराकूटी करी वो भी एक विधायक नें ये कहकर अपना बचाव किया कि ऐसे छात्रों को मारना नहीं मार डालना मेरा अधिकार है।
देश की लगभग सभी शिक्षण संस्थाओं में हो रही इस तरह की तानाशाही, देश के भविष्य - छात्र-छात्राओं के साथ भयंकर खिलवाड़ है. हमारे देश को तोड़ने की खतरनाक साज़िश है और सबसे बड़ा देश-द्रोह का काम है. सभी जागरूक लोगों को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में षड़यंत्र पूर्वक कुछ मुट्ठी भर किराये के असामाजिक तत्वों द्वारा किये गए गलत नारे-बाज़ी की समुचित जाँच करके असली दोषियों को बेनकाब करने में प्रशाशन का सहयोग करना चाहिए. कुछ मुठी भर असामाजिक तत्वों द्वारा की गयी घटना के कारन बेवजह अपनी भावनाओं को भड़काने की ज़रुरत नहीं है. यदि ऐसे ही सभी लोग नासमझी करेंगे तो देश के दुश्मनों की साज़िश कामयाब हो जाएगी. इसलिए हम सभी को धैर्य और विवेक से काम लेकर भाईचारा बनाये रखने और किसी भी नकारात्मक राजनीती के शिकार न होकर सच्ची देश भक्ति का परिचय देना चाहिए. तभी हम देश के असली दुश्मनों को बेनकाब करके उनसे देश को बचने में कामयाब हो सकेंगे.
जय हिन्द. इंक़लाब ज़िंदाबाद. विजय स्वामी. 

Vijay Swami Diamond
साभार :

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=531116720381508&set=a.160565297436654.1073741825.100004495530231&type=3

Tuesday, 23 February 2016

Attack was clearly planned ------ Sonal Mehrotra


Open Letter To Police Chief Bassi From NDTV Reporter Sonal Mehrotra

Sonal Malhotra, Bassi

This man is Vikram Singh Chauhan, has a degree of a lawyer but works like a goon – a tweet to me shared some information about him.

New Delhi, Feb 18 : Dear Police Chief Bassi,
So much support has poured in since the attack on several journalists like me on Monday at a Delhi court where we were covering the hearing of arrested JNU student Kanhaiya Kumar.
The morning after ndtv.com ran my blog, and we released the pictures of the goons who attacked another reporter and my friend Amit Pandey and threatened to break my bones too, someone tweeted me the details, name, number and address of Vikram Chauhan. You, however, said the violence at court amounted to “incidents of a minor nature.” Perhaps your men felt the same way, because they certainly did not try to save those of us being threatened or hit.


So we have to carry out our own investigations – and presumably, take self-defense classes.
This man is Vikram Singh Chauhan, has a degree of a lawyer but works like a goon – a tweet to me shared some information about him.
We checked the details and a colleague of mine was sent to interview him.
I wasn’t expecting him to be apologetic about his conduct, but his brazenness was mind-numbing! Not only did he justify his act of thrashing people, he declared that if needed, he will do it again.
He also lied through his teeth stating he was provoked into violence. “The JNU guys started it first, they raised anti-India slogans”. These were blatant lies – as we waited for Kanhaiya Kumar to arrive in court on Monday, things were dead calm till this man had barged in saying “Leave this courtroom, this is no place for anti-nationals”. 20 journalists can vouch for this. Perhaps you could make the time to have a word with us.
After the attack on Monday, my family was worried. My mother threatened to book me on the next flight home and my father said he was convinced that this profession is unsuitable for young women like me. “It’s a dirty, filthy world out there, beta, and we don’t want you hurt” is what I heard several times on Monday.
I have to agree I was shaken after the Monday attack. Being in journalism, one is often in dangerous situations, but never before had I been targeted, threatened with my life for simply doing my job. Especially when the police is present.
So I got back to court yesterday to cover Kanhaiya Kumar’s second appearance in court this week.  Same lull at first, and then the same perpetrators. There in front of me was Vikram Singh Chauhan, who had two days ago warned to break my phone and my bones. This time, he had a national flag and an even larger crowd behind him. The group was shouting “Bharat mein rehna hoga toh Vande Matram kehna hoga (to stay in India, you have to say Vande Mataram”). Vikram Chauhan swaggered as if he owned the place.
The violence that followed has been reported widely.
A little later in the day, I went to the court canteen to grab a bottle of water. There I found myself facing Vikram Chauhan again. This time he saw me, the look in his eyes and a nasty smile showed he had placed me.
My camera-person quickly moved me out of the court compound.
If the cops were caught by surprise on Monday, yesterday’s attack was clearly planned, with Facebook and other calls made to lawyers asking more “patriots” to join in. Yet, the violence took place. You said later that “The situation is not out of hand”.
Perhaps you have a different way of assessing law and order than the rest of us.
It is just baffling – goons are walking free without any fear, and journalists and students were being beaten up. Supreme Court orders are being defied. How is it that over 2,000 cops in and around the Patiala House Court were simply incapable of maintaining law and order?
This is a grave, serious situation for the country, and as someone said, “if there is anytime for media to do its job, it’s now.”
Goons like Vikram Chauhan will NOT intimidate us, they will strengthen our resolve to expose the truth. So, Police Chief Bassi, while you may fail to ensure the safety of ordinary people in Delhi, I’ve told my mother I’m not taking that flight back home just yet.
(Sonal Mehrotra is chief correspondent with NDTV 24×7. She covers political, human interest and gender-sensitive stories.)
Disclaimer: The opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. The facts and opinions appearing in the article do not reflect the views of IndiaTrendingNow.Com and IndiaTrendingNow.Com does not assume any responsibility or liability for the same.

Sunday, 21 February 2016

देश के हर न्यूज़ रूम का सांप्रदायीकरण (Communalization) हुआ है ------ विश्वदीपक

मई 2014 के बाद से जब से श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कमोबेश देश के हर न्यूज़ रूम का सांप्रदायीकरण (Communalization) हुआ है लेकिन हमारे यहां स्थितियां और भी भयावह हैं. माफी चाहता हूं इस भारी भरकम शब्द के इस्तेमाल के लिए लेकिन इसके अलावा कोई और दूसरा शब्द नहीं है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि ख़बरों को मोदी एंगल से जोड़कर लिखवाया जाता है ? ये सोचकर खबरें लिखवाई जाती हैं कि इससे मोदी सरकार के एजेंडे को कितना गति मिलेगी ?

मेरा इस्तीफा इस देश के लाखों-करोड़ों कन्हैयाओं और जेएनयू के उन दोस्तों को समर्पित है जो अपनी आंखों में सुंदर सपने लिए संघर्ष करते रहे हैं, कुर्बानियां देते रहे हैं –विश्वदीपक (पूर्व प्रोड्यूसर ज़ी न्यूज़)
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प्रिय ज़ी न्यूज़,
एक साल 4 महीने और 4 दिन बाद अब वक्त आ गया है कि मैं अब आपसे अलग हो जाऊं. हालांकि ऐसा पहले करना चाहिए था लेकिन अब भी नहीं किया तो खुद को कभी माफ़ नहीं कर सकूंगा.
आगे जो मैं कहने जा रहा हूं वो किसी भावावेश, गुस्से या खीझ का नतीज़ा नहीं है, बल्कि एक सुचिंतित बयान है. मैं पत्रकार होने से साथ-साथ उसी देश का एक नागरिक भी हूं जिसके नाम अंध ‘राष्ट्रवाद’ का ज़हर फैलाया जा रहा है और इस देश को गृहयुद्ध की तरफ धकेला जा रहा है. मेरा नागरिक दायित्व और पेशेवर जिम्मेदारी कहती है कि मैं इस ज़हर को फैलने से रोकूं. मैं जानता हूं कि मेरी कोशिश नाव के सहारे समुद्र पार करने जैसी है लेकिन फिर भी मैं शुरुआत करना चहता हूं. इसी सोच के तहत JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बहाने शुरू किए गए अंध राष्ट्रवादी अभियान और उसे बढ़ाने में हमारी भूमिका के विरोध में मैं अपने पद से इस्तीफा देता हूं. मैं चाहता हूं इसे बिना किसी वैयक्तिक द्वेष के स्वीकार किया जाए.
असल में बात व्यक्तिगत है भी नहीं. बात पेशेवर जिम्मेदारी की है. सामाजिक दायित्वबोध की है और आखिर में देशप्रेम की भी है. मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इन तीनों पैमानों पर एक संस्थान के तौर पर तुम तुमसे जुड़े होने के नाते एक पत्रकार के तौर पर मैं पिछले एक साल में कई बार फेल हुए.
मई 2014 के बाद से जब से श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से कमोबेश देश के हर न्यूज़ रूम का सांप्रदायीकरण (Communalization) हुआ है लेकिन हमारे यहां स्थितियां और भी भयावह हैं. माफी चाहता हूं इस भारी भरकम शब्द के इस्तेमाल के लिए लेकिन इसके अलावा कोई और दूसरा शब्द नहीं है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि ख़बरों को मोदी एंगल से जोड़कर लिखवाया जाता है ? ये सोचकर खबरें लिखवाई जाती हैं कि इससे मोदी सरकार के एजेंडे को कितना गति मिलेगी ?
हमें गहराई से संदेह होने लगा है कि हम पत्रकार हैं. ऐसा लगता है जैसे हम सरकार के प्रवक्ता हैं या सुपारी किलर हैं? मोदी हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं, मेरे भी है; लेकिन एक पत्रकार के तौर इतनी मोदी भक्ति अब हजम नहीं हो रही है ? मेरा ज़मीर मेरे खिलाफ बग़ावत करने लगा है. ऐसा लगता है जैसे मैं बीमार पड़ गया हूं.
हर खबर के पीछे एजेंडा, हर न्यूज़ शो के पीछे मोदी सरकार को महान बताने की कोशिश, हर बहस के पीछे मोदी विरोधियों को शूट करने की का प्रयास ? अटैक, युद्ध से कमतर कोई शब्द हमें मंजूर नहीं. क्या है ये सब ? कभी ठहरकर सोचता हूं तो लगता है कि पागल हो गया हूं.
आखिर हमें इतना दीन हीन, अनैतिक और गिरा हुआ क्यों बना दिया गया ?देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान से पढ़ाई करने और आजतक से लेकर बीबीसी और डॉयचे वेले, जर्मनी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के बाद मेरी पत्रकारीय जमापूंजी यही है कि लोग मुझे ‘छी न्यूज़ पत्रकार’ कहने लगे हैं. हमारे ईमान (Integrity) की धज्जियां उड़ चुकी हैं. इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ?
कितनी बातें कहूं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ लगातार मुहिम चलाई गई और आज भी चलाई जा रही है . आखिर क्यों ? बिजली-पानी, शिक्षा और ऑड-इवेन जैसी जनता को राहत देने वाली बुनियादी नीतियों पर भी सवाल उठाए गए. केजरीवाल से असहमति का और उनकी आलोचना का पूरा हक है लेकिन केजरीवाल की सुपारी किलिंग का हक एक पत्रकार के तौर पर नहीं है. केजरीवाल के खिलाफ की गई निगेटिव स्टोरी की अगर लिस्ट बनाने लगूंगा तो कई पन्ने भर जाएंगे. मैं जानना चाहता हूं कि पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत ‘तटस्थता’ का और दर्शकों के प्रति ईमानदारी का कुछ तो मूल्य है, कि नहीं ?
दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या के मुद्दे पर ऐसा ही हुआ. पहले हमने उसे दलित स्कॉलर लिखा फिर दलित छात्र लिखने लगे. चलो ठीक है लेकिन कम से कम खबर तो ढंग से लिखते.रोहित वेमुला को आत्महत्या तक धकेलने के पीछे ABVP नेता और बीजेपी के बंडारू दत्तात्रेय की भूमिका गंभीरतम सवालों के घेरे में है (सब कुछ स्पष्ट है) लेकिन एक मीडिया हाउस के तौर हमारा काम मुद्दे को कमजोर (dilute) करने और उन्हें बचाने वाले की भूमिका का निर्वहन करना था.
मुझे याद है जब असहिष्णुता के मुद्दे पर उदय प्रकाश समेत देश के सभी भाषाओं के नामचीन लेखकों ने अकादमी पुरस्कार लौटाने शुरू किए तो हमने उन्हीं पर सवाल करने शुरू कर दिए. अगर सिर्फ उदय प्रकाश की ही बात करें तो लाखों लोग उन्हें पढ़ते हैं. हम जिस भाषा को बोलते हैं, जिसमें रोजगार करते हैं उसकी शान हैं वो. उनकी रचनाओं में हमारा जीवन, हमारे स्वप्न, संघर्ष झलकते हैं लेकिन हम ये सिद्ध करने में लगे रहे कि ये सब प्रायोजित था. तकलीफ हुई थी तब भी, लेकिन बर्दाश्त कर गया था.
लेकिन कब तक करूं और क्यों ??
मुझे ठीक से नींद नहीं आ रही है. बेचैन हूं मैं. शायद ये अपराध बोध का नतीजा है. किसी शख्स की जिंदगी में जो सबसे बड़ा कलंक लग सकता है वो है – देशद्रोह. लेकिन सवाल ये है कि एक पत्रकार के तौर पर हमें क्या हक है कि किसी को देशद्रोही की डिग्री बांटने का ? ये काम तो न्यायालय का है न ?
कन्हैया समेत जेएनयू के कई छात्रों को हमने ने लोगों की नजर में ‘देशद्रोही’ बना दिया. अगर कल को इनमें से किसी की हत्या हो जाती है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? हमने सिर्फ किसी की हत्या और कुछ परिवारों को बरबाद करने की स्थिति पैदा नहीं की है बल्कि दंगा फैलाने और गृहयुद्ध की नौबत तैयार कर दी है. कौन सा देशप्रेम है ये ? आखिर कौन सी पत्रकारिता है ये ?
क्या हम बीजेपी या आरएसएस के मुखपत्र हैं कि वो जो बोलेंगे वहीं कहेंगे ? जिस वीडियो में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा था ही नहीं उसे हमने बार-बार हमने उन्माद फैलाने के लिए चलाया. अंधेरे में आ रही कुछ आवाज़ों को हमने कैसे मान लिया की ये कन्हैया या उसके साथियों की ही है? ‘भारतीय कोर्ट ज़िंदाबाद’ को पूर्वाग्रहों के चलते ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ सुन लिया और सरकार की लाइन पर काम करते हुए कुछ लोगों का करियर, उनकी उम्मीदें और परिवार को तबाही की कगार तक पहुंचा दिया. अच्छा होता कि हम एजेंसीज को जांच करने देते और उनके नतीजों का इंतज़ार करते.
लोग उमर खालिद की बहन को रेप करने और उस पर एसिड अटैक की धमकी दे रहे हैं. उसे गद्दार की बहन कह रहे हैं. सोचिए ज़रा अगर ऐसा हुआ तो क्या इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी ? कन्हैया ने एक बार नहीं हज़ार बार कहा कि वो देश विरोधी नारों का समर्थन नहीं करता लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई, क्योंकि हमने जो उम्माद फैलाया था वो NDA सरकार की लाइन पर था. क्या हमने कन्हैया के घर को ध्यान से देखा है ? कन्हैया का घर, ‘घर’ नहीं इस देश के किसानों और आम आदमी की विवशता का दर्दनाक प्रतीक है. उन उम्मीदों का कब्रिस्तान है जो इस देश में हर पल दफ्न हो रही हैं. लेकिन हम अंधे हो चुके हैं !
मुझे तकलीफ हो रही है इस बारे में बात करते हुए लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि मेरे इलाके में भी बहुत से घर ऐसे हैं. भारत का ग्रामीण जीवन इतना ही बदरंग है.उन टूटी हुई दीवारों और पहले से ही कमजोर हो चुकी जिंदगियों में हमने राष्ट्रवादी ज़हर का इंजेक्शन लगाया है, बिना ये सोचे हुए कि इसका अंजाम क्या हो सकता है! अगर कन्हैया के लकवाग्रस्त पिता की मौत सदमें से हो जाए तो क्या हम जिम्मेदार नहीं होंगे ? ‘The Indian Express’ ने अगर स्टोरी नहीं की होती तो इस देश को पता नहीं चलता कि वंचितों के हक में कन्हैया को बोलने की प्रेरणा कहां से मिलती है !
रामा नागा और दूसरों का हाल भी ऐसा ही है. बहुत मामूली पृष्ठभूमि और गरीबी से संघर्ष करते हुए ये लड़के जेएनयू में मिल रही सब्सिडी की वजह से पढ़ लिख पाते हैं. आगे बढ़ने का हौसला देख पाते हैं. लेकिन टीआरपी की बाज़ारू अभीप्सा और हमारे बिके हुए विवेक ने इनके करियर को लगभग तबाह ही कर दिया है.
हो सकता है कि हम इनकी राजनीति से असहमत हों या इनके विचार उग्र हों लेकिन ये देशद्रोही कैसे हो गए ? कोर्ट का काम हम कैसे कर सकते हैं ? क्या ये महज इत्तफाक है कि दिल्ली पुलिस ने अपनी FIR में ज़ी न्यूज का संदर्भ दिया है ? ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली पुलिस से हमारी सांठगांठ है ? बताइए कि हम क्या जवाब दे लोगों को ?
आखिर जेएनयू से या जेएनयू के छात्रों से क्या दुश्मनी है हमारी ? मेरा मानना है कि आधुनिक जीवन मूल्यों, लोकतंत्र, विविधता और विरोधी विचारों के सह अस्तित्व का अगर कोई सबसे खूबसूरत बगीचा है देश में तो वो जेएनयू है लेकिन इसे गैरकानूनी और देशद्रोह का अड्डा बताया जा रहा है.
मैं ये जानना चाहता हूं कि जेएनयू गैर कानूनी है या बीजेपी का वो विधायक जो कोर्ट में घुसकर लेफ्ट कार्यकर्ता को पीट रहा था ? विधायक और उसके समर्थक सड़क पर गिरे हुए CPI के कार्यकर्ता अमीक जमेई को बूटों तले रौंद रहे थे लेकिन पास में खड़ी पुलिस तमाशा देख रही थी. स्क्रीन पर पिटाई की तस्वीरें चल रही थीं और हम लिख रहे थे – ओपी शर्मा पर पिटाई का आरोप. मैंने पूछा कि आरोप क्यों ? कहा गया ‘ऊपर’ से कहा गया है ? हमारा ‘ऊपर’ इतना नीचे कैसे हो सकता है ? मोदी तक तो फिर भी समझ में आता है लेकिन अब ओपी शर्मा जैसे बीजेपी के नेताओं और ABVP के कार्यकर्ताओं को भी स्टोरी लिखते समय अब हम बचाने लगे हैं.
घिन आने लगी है मुझे अपने अस्तित्व से. अपनी पत्रकरिता से और अपनी विवशता से. क्या मैंने इसलिए दूसरे सब कामों को छोड़कर पत्रकार बनने का फैसला बनने का फैसला किया था. शायद नहीं.
अब मेरे सामने दो ही रास्ते हैं या तो मैं पत्रकारिता छोड़ूं या फिर इन परिस्थितियों से खुद को अलग करूं. मैं दूसरा रास्ता चुन रहा हूं. मैंने कोई फैसला नहीं सुनाया है बस कुछ सवाल किए हैं जो मेरे पेशे से और मेरी पहचान से जुड़े हैं. छोटी ही सही लेकिन मेरी भी जवाबदेही है. दूसरों के लिए कम, खुद के लिए ज्यादा. मुझे पक्के तौर पर अहसास है कि अब दूसरी जगहों में भी नौकरी नहीं मिलेगी. मैं ये भी समझता हूं कि अगर मैं लगा रहूंगा तो दो साल के अंदर लाख के दायरे में पहुंच जाऊंगा. मेरी सैलरी अच्छी है लेकिन ये सुविधा बहुत सी दूसरी कुर्बानियां ले रही है, जो मैं नहीं देना चाहता. साधारण मध्यवर्गीय परिवार से आने की वजह से ये जानता हूं कि बिना तनख्वाह के दिक्कतें भी बहुत होंगी लेकिन फिर भी मैं अपनी आत्मा की आवाज (consciousness) को दबाना नहीं चाहता.
मैं एक बार फिर से कह रहा हूं कि मुझे किसी से कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है. ये सांस्थानिक और संपादकीय नीति से जुडे हुए मामलों की बात है. उम्मीद है इसे इसी तरह समझा जाएगा.
यह कहना भी जरूरी समझता हूं कि अगर एक मीडिया हाउस को अपने दक्षिणपंथी रुझान और रुचि को जाहिर करने का, बखान करने का हक है तो एक व्यक्ति के तौर पर हम जैसे लोगों को भी अपनी पॉलिटिकल लाइन के बारे में बात करने का पूरा अधिकार है. पत्रकार के तौर पर तटस्थता का पालन करना मेरी पेशेवर जिम्मेदारी है लेकिन एक व्यक्ति के तौर पर और एक जागरूक नागरिक के तौर पर मेरा रास्ता उस लेफ्ट का है जो पार्टी द्फ्तर से ज्यादा हमारी ज़िंदगी में पाया जाता है. यही मेरी पहचान है.
और अंत में एक साल तक चलने वाली खींचतान के लिए शुक्रिया. इस खींचतान की वजह से ज़ी न्यूज़ मेरे कुछ अच्छे दोस्त बन सके.
सादर-सप्रेम,
विश्वदीपक

 साभार:
http://mediavigil.com/2016/02/21/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9C%E0%A4%BC-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%98%E0%A4%BF%E0%A4%A8/#.VsmAVkO0K_w.facebook

Saturday, 20 February 2016

एक साजिश के तहत कन्हैया की गिरफ्तारी हुई ------ Rahul Anjaan


 "सब का खून है शामिल इसमें /किसी की जागीर नही है हिन्दुस्तान" ।लोकतंत्र अमर रहे का नारा लगाकर

इंग्लैंड के शासक एडवर्ड की क्रुरता पूर्वक हत्या कर दी गई थी ठीक वैसे ही जैसे किसी धार्मिक स्थल पे बकरे की बली दी जाती है। औधोगिक क्रांति के बाद उत्पन्न पूंजीवाद ने नारा दिया कि खल्क खुदा का हो सकता है लेकिन देश जनता का है न कि बादशाह का। ठीक इसी तरह के लोकलुभावन नारे भारतीय जनता पार्टी ने १६वीं लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान दिया था। उन्होनें राष्ट्रभक्ति का नारा दिया था , भारतीय जनतापार्टी ने ऐसे नारे दिए थें जिससे जनता प्रभावित हो गई, उन्होनें वतन की खिदमत की बात की थी ,गरीबो के हमदर्द की बात की थी लेकिन सत्ता हाथ में आते ही सब बदल गया और खुद को वतन समझ बैठने की हिमाकत कर बैठी सरकार ठीक उसी तरह जैसे फासिस्ट ताकते सत्ता में आने के लिए ढेर सारे बातें करती है गरीब और देश के सरोकार की बात करती है और बाद में जुमला करार दे दिया जता है और इस जुमले को हम फ़ासीवादी की लफ्फाजी कहते हैं। यहाँ पर फ़ासीवादी ताकत खुद को वतन समझ बैठी है जिसका परिणाम है कन्हैया की साजिशपूर्ण गिरफ़्तारी ,जिसका परिणाम है रोहित वेमुला की आत्महत्या , जिसका परिणाम है jnu को बंद करने की साजिश । जिसका परिणाम है किसानों की आत्महत्या को फैशन कहना ।आज भारतीय जनता पार्टी और उसकी तमाम ईकाईयाँ राष्ट्रभक्ति का प्रमाणपत्र बाँट रही है यदि कायदे से देखा जाय तो भारतीय जनता पार्टी जिसके द्वारा संचालित होती है RSS उसका इतिहास दुर्भाग्यपूर्ण रहा है स्वतंत्रतासंग्राम में उनका कोई विशेष योगदान नही है जो सराहनीय हो और भारतीय वामपंथ ने आजादी की लड़ाई में अपने साथीयों की शहादत देकर अपनी अमिट छाप छोड़ दिया है तथा कांग्रेस पार्टी ने जो आजादी की लड़ाई में जो अपना अभूतपूर्व योगदान दिया उसे भूलाना नामुमकिन सा है लेकिन आज rss राष्ट्रवाद का पाठ पढा रहे हैं तो ये हैरानी की बात है।आज सरकार छात्र आंदोलन को कुचलने पे आमादा है जिसमें एक साजिश के तहत कन्हैया की गिरफ्तारी हुई। कन्हैया के समर्थन में आज करीब 400 विश्वविद्यालय में छात्र तैयार हो गया है ये कहने को की ऐ नरेन्द्र मोदी आपकी सरकार फ़ासीवादी सरकार है । कन्हैया को तो इन्हें रिहा करना ही पड़ेगा लेकिन तब तक सरकार की नींव हिल चुकी होगी ।
काँमरेड कन्हैया को लाल सलाम
छात्र आंदोलन को लाल सलाम
student unity को लाल सलाम
काँमरेड कन्हैया को लाल सलाम
छात्र आंदोलन को लाल सलाम
student unity को लाल सलाम


साजिश ?




Friday, 19 February 2016

निर्दोष कन्हैया कुमार को बेवजह की सजा क्यों? ------ विजय राजबली माथुर


(This song has been written and composed by Sylvie, a JNU student from Germany, in support of the protest movement in JNU.

We are JNU)





*****Either way, views held, by any section or class of people, by itself, cannot be characterized as anti-national activities…


N.d. Pancholi

'Anti-national'? :Delhi High court searches the meaning of 'anti-national' in Priya Pillai's case (WP(C) 775/2015) and says
:“…15.2 The difficulty in accepting this argument (that Ms. Pillai could be categorized as an “anti-national element” in the larger national interest) is three-fold. First, reasonable restrictions spoken of in clause (2) of Article 19 do not advert to anti-national activities. Pertinently, the word anti-national does not find a place in most dictionaries; it is in effect a combination of two words. If one were to deconstruct the meaning of the word anti-national, one would perhaps have to look to the meaning of the word, “Nationalism”. The nearest equivalent to the word ‘Nationalism’ would be patriotism. Patriotism as a concept would be linked to nationhood. Nationhood has several attributes which are, inter alia, inextricably connected with symbols, such as : the National Flag; the National Anthem; the National Song; and perhaps, the common history, culture, tradition and heritage that people of an organized State share amongst themselves.
15.3 In respect of each of these attributes of nationhood, there may be disparate views amongst persons who form the nation. The diversity of WP(C)774/2015 Page 35 of 39 views may relate to, not only, the static symbols, such as, the National Flag and National anthem, etc. but may also pertain to the tradition and heritage of the Nation and the manner in which they are to be taken forward. Contrarian views held by a section of people on these aspects cannot be used to describe such section or class of people as anti-national. Belligerence of views on nationalism can often lead to jingoism. There is a fine but distinct line dividing the two. Either way, views held, by any section or class of people, by itself, cannot be characterized as anti-national activities….”







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https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1069083319823181&set=a.112008495530673.14864.100001645680180&type=3

'anti-national' in Priya Pillai's case (WP(C) 775/2015) के संदर्भ में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा पूर्व में दिये गए निर्णय के आधार पर भी जे एन यू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार निर्दोष ही सिद्ध होते हैं। फासिस्ट सरकार के हमदर्द  चेनलों  द्वारा वीडियो में गड़बड़ी करके बेगुनाह कन्हैया को फंसाया गया था। कानूनी फैसले में विलंब कराने के उद्देश्य से फासिस्ट अराजक तत्वों ने वकीलों की आड़ में कोर्ट परिसर में दो बार कन्हैया पर प्राण घातक हमले किए  पहली बार वह बच गए क्योंकि कामरेड अमीक पर  भाजपा विधायक द्वारा प्रहार हो गया। किन्तु दूसरी बार केंद्रीय गृहमंत्री के खासमखास लोगों द्वारा कन्हैया पर जो हमला किया गया उससे कोर्ट में ही हुये मेडिकल से खुलासा हुआ कि, उनके सिर व पैरों में चोट लगी है तब भी पुलिस कमीशनर ने कह दिया कि हमला ही नहीं हुआ है। कन्हैया को बेवजह गिरफ्तार रख कर देश में तनाव व विग्रह बढ़ाया जा रहा है जिसका लाभ फासिस्ट दल आसन्न चुनावों में उठाने का मंसूबा बांधे हुये है। 

साजिश के लिए कन्हैया  ही को क्यों फंसाया ? ::
साजिशकर्ताओं द्वारा कन्हैया को फँसाने से जे एन यू के विरुद्ध अपने पूर्वाग्रह के आधार पर विश्वविद्यालय को नाहक बदनाम करने का एक झूठा मुद्दा मिल गया। साथ ही साथ उनका छात्र संगठन जिस भाकपा से सम्बद्ध है उसके पूर्व सांसद कामरेड गुरुदास दासगुप्ता जी द्वारा रिलाईंस के विरुद्ध किए गए अदालती मुकदमे से खिन्न उसके मालिक और आम जनता की  समान तुलना करके कन्हैया व्यक्तिगत रूप से उनके कोपभाजक बन गए थे। कारपोरेट शक्तियाँ एक गरीब मजदूर के बेटे को उसकी हैसियत बताने को उसे प्रताड़ित करवा रही हैं। कन्हैया ने अपने भाषण में 'पूंजीवाद - ब्राह्मण वाद' गठजोड़ की भी कड़ी आलोचना की थी जो सामाजिक असमानता के लिए जिम्मेदार है। इससे न केवल फासिस्ट दलों के ब्राह्मण बल्कि वामपंथ पर हावी  अश्लीलता समर्थक बाजारवादी ब्राह्मण और ब्राह्मण वादी भी भीतर -भीतर कन्हैया से कुपित थे इन सबने मिल कर षड्यंत्र पूर्वक कन्हैया पर एक ऐसा झूठा आरोप गढ़ा जिससे जनता को उनके विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से भड़काया जा सके। जिसके परिणाम स्वरूप तथाकथित सन्यासी तक  भ्रष्ट चेनलों  के स्वर में स्वर मिला कर उनको फांसी देने का शोर मचाने लगे और अदालत में उन पर कातिलाना प्रहार किए गए। सांसद कामरेड डी राजा  ( जो गैर ब्राह्मण हैं )के अतिरिक्त  कामरेड सुधाकर रेड्डी को छोड़ कर किसी भी बड़े नेता ने कन्हैया के पक्ष में आवाज़ बुलंद नहीं की है। 

फिर भी पूरे देश में छात्रों, युवाओं और जनतंत्र समर्थकों ने कन्हैया के पक्ष में आवाज़ बुलंद की है। दूसरे दलों के बड़े नेताओं ने कन्हैया का पुरजोर समर्थन किया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल तो राष्ट्रपति महोदय तक कन्हैया पर हमले के मामले को लेकर गए हैं  भाजपा का विकल्प बनने को आतुर दिल्ली के मुख्यमंत्री भी इस दौड़ में शामिल हुये हैं। यदि भाकपा समेत सम्पूर्ण वामपंथ ने ब्राह्मण वाद के चंगुल से निकल कर कन्हैया के समर्थन में जन-सहयोग अपने पक्ष में नहीं खड़ा किया तो निश्चय ही उसका श्रेय व लाभ कांग्रेस समेत अन्य दलों  को ही मिल जाएगा।