वर्ग-संघर्ष की सैद्धांतिकी का ब्राह्मणवाद के कवच के रूप में इस्तेमाल ------ वीरेंद्र यादव
**कम्युनिस्टो के उस पारम्परिक बौद्धिक मानस को कैसे बदला जा सकता है जो वर्ग-शोषण की सैद्धांतिकी का तर्क देकर जाति-भेद और शोषण के प्रश्न को दृश्य-ओझल करता रहा है. मैंने साहित्य का सन्दर्भ देते हुए डॉ. रामविलास शर्मा और उनके अंध-अनुयायियों का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह कुछ लोग जाने -अनजाने पहले भी और आज भी वर्ग-संघर्ष की सैद्धांतिकी को ब्राह्मणवाद के कवच के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं.**
कल की शाम हम लखनऊ वालों के लिए यादगार शाम थी .मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नए महासचिव सीताराम येचुरी , शंकरदयाल तिवारी जन्मदिन समारोह के अवसर पर व्याख्यान और संवाद के लिए शहर में मौजूद थे. वर्तमान चुनौतियों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में वर्ग संघर्ष दो पैरों पर टिका है एक पैर सामाजिक शोषण और जाति-भेद पर तो दूसरा आर्थिक शोषण पर . जरूरत है कि गाँव के हर उस कुंवे पर लाल झंडा लहराने की जहाँ से दलितों को पानी लेने पर आज भी रोक है. आयोजन के बाद हम कुछ मित्रों को देर रात तक उनसे अन्तरंग संगत का जब दुर्लभ अवसर मिला तब इस मुद्दे पर उनसे खुलकर जो अनौपचारिक बात हुयी उससे मुद्दे और साफ़ हुए. मैंने उनसे कहा कि मार्क्सवादी पार्टी के नेतृत्व द्वारा जाति- आधारित भेद और शोषण को प्रभावी ढंग से संबोधित किये जाने की शुरुआत तो स्वागत योग्य है ,लेकिन कम्युनिस्टो के उस पारम्परिक बौद्धिक मानस को कैसे बदला जा सकता है जो वर्ग-शोषण की सैद्धांतिकी का तर्क देकर जाति-भेद और शोषण के प्रश्न को दृश्य-ओझल करता रहा है. मैंने साहित्य का सन्दर्भ देते हुए डॉ. रामविलास शर्मा और उनके अंध-अनुयायियों का जिक्र करते हुए बताया कि किस तरह कुछ लोग जाने -अनजाने पहले भी और आज भी वर्ग-संघर्ष की सैद्धांतिकी को ब्राह्मणवाद के कवच के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं. मैंने उन्हें यह भी बताया कि अब मार्क्सवादियों के एक तबके के बीच से यह सैद्धांतिकी गढ़ी जा रही है कि अब मुख्य संघर्ष दलितों और पिछड़ों के अस्मितावाद के बीच है अम्बेडकरवाद और ब्राह्मणवाद के बीच नहीं. आरएसएस तो पहले से ही हिंदुत्व की रक्षा के लिए दलितों और पिछड़ों के बीच खाई को गहरी करने की व्यूहरचना पर काम करही रहा है. सीताराम येचुरी ने इस पर आश्चर्य और अनभिज्ञता प्रकट करते हुए कहा कि यह कैसे हो सकता है कि ब्राह्मणवाद को प्रश्नांकित किये बिना दलित मुद्दे को संबोधित किया जा सके. पिछड़ों का दलित-विरोध या दलितों का भाजपा द्वारा अधिग्रहण ब्राह्मणवाद की जकडबंदी का ही परिणाम है. मैंने येचुरी जी से कहा कि इस समूचे विषय पर पार्टी को अपनी स्पष्ट वैचारिकी एक दस्तावेज़ के माध्यम से लानी चाहिए . उन्होंने इसकी जरूरत को स्वीकार करते हुए इसे करने का आश्वासन दिया. और भी बहुत सी चर्चाएँ हुईं जिनसे यह जरूर लगा कि येचुरी जी एक नई शुरुआत करना तो चाहते हैं . देखना है क्या, कुछ ,कितना हो पाता है !
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