Friday 19 February 2016

निर्दोष कन्हैया कुमार को बेवजह की सजा क्यों? ------ विजय राजबली माथुर


(This song has been written and composed by Sylvie, a JNU student from Germany, in support of the protest movement in JNU.

We are JNU)





*****Either way, views held, by any section or class of people, by itself, cannot be characterized as anti-national activities…


N.d. Pancholi

'Anti-national'? :Delhi High court searches the meaning of 'anti-national' in Priya Pillai's case (WP(C) 775/2015) and says
:“…15.2 The difficulty in accepting this argument (that Ms. Pillai could be categorized as an “anti-national element” in the larger national interest) is three-fold. First, reasonable restrictions spoken of in clause (2) of Article 19 do not advert to anti-national activities. Pertinently, the word anti-national does not find a place in most dictionaries; it is in effect a combination of two words. If one were to deconstruct the meaning of the word anti-national, one would perhaps have to look to the meaning of the word, “Nationalism”. The nearest equivalent to the word ‘Nationalism’ would be patriotism. Patriotism as a concept would be linked to nationhood. Nationhood has several attributes which are, inter alia, inextricably connected with symbols, such as : the National Flag; the National Anthem; the National Song; and perhaps, the common history, culture, tradition and heritage that people of an organized State share amongst themselves.
15.3 In respect of each of these attributes of nationhood, there may be disparate views amongst persons who form the nation. The diversity of WP(C)774/2015 Page 35 of 39 views may relate to, not only, the static symbols, such as, the National Flag and National anthem, etc. but may also pertain to the tradition and heritage of the Nation and the manner in which they are to be taken forward. Contrarian views held by a section of people on these aspects cannot be used to describe such section or class of people as anti-national. Belligerence of views on nationalism can often lead to jingoism. There is a fine but distinct line dividing the two. Either way, views held, by any section or class of people, by itself, cannot be characterized as anti-national activities….”







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'anti-national' in Priya Pillai's case (WP(C) 775/2015) के संदर्भ में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा पूर्व में दिये गए निर्णय के आधार पर भी जे एन यू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार निर्दोष ही सिद्ध होते हैं। फासिस्ट सरकार के हमदर्द  चेनलों  द्वारा वीडियो में गड़बड़ी करके बेगुनाह कन्हैया को फंसाया गया था। कानूनी फैसले में विलंब कराने के उद्देश्य से फासिस्ट अराजक तत्वों ने वकीलों की आड़ में कोर्ट परिसर में दो बार कन्हैया पर प्राण घातक हमले किए  पहली बार वह बच गए क्योंकि कामरेड अमीक पर  भाजपा विधायक द्वारा प्रहार हो गया। किन्तु दूसरी बार केंद्रीय गृहमंत्री के खासमखास लोगों द्वारा कन्हैया पर जो हमला किया गया उससे कोर्ट में ही हुये मेडिकल से खुलासा हुआ कि, उनके सिर व पैरों में चोट लगी है तब भी पुलिस कमीशनर ने कह दिया कि हमला ही नहीं हुआ है। कन्हैया को बेवजह गिरफ्तार रख कर देश में तनाव व विग्रह बढ़ाया जा रहा है जिसका लाभ फासिस्ट दल आसन्न चुनावों में उठाने का मंसूबा बांधे हुये है। 

साजिश के लिए कन्हैया  ही को क्यों फंसाया ? ::
साजिशकर्ताओं द्वारा कन्हैया को फँसाने से जे एन यू के विरुद्ध अपने पूर्वाग्रह के आधार पर विश्वविद्यालय को नाहक बदनाम करने का एक झूठा मुद्दा मिल गया। साथ ही साथ उनका छात्र संगठन जिस भाकपा से सम्बद्ध है उसके पूर्व सांसद कामरेड गुरुदास दासगुप्ता जी द्वारा रिलाईंस के विरुद्ध किए गए अदालती मुकदमे से खिन्न उसके मालिक और आम जनता की  समान तुलना करके कन्हैया व्यक्तिगत रूप से उनके कोपभाजक बन गए थे। कारपोरेट शक्तियाँ एक गरीब मजदूर के बेटे को उसकी हैसियत बताने को उसे प्रताड़ित करवा रही हैं। कन्हैया ने अपने भाषण में 'पूंजीवाद - ब्राह्मण वाद' गठजोड़ की भी कड़ी आलोचना की थी जो सामाजिक असमानता के लिए जिम्मेदार है। इससे न केवल फासिस्ट दलों के ब्राह्मण बल्कि वामपंथ पर हावी  अश्लीलता समर्थक बाजारवादी ब्राह्मण और ब्राह्मण वादी भी भीतर -भीतर कन्हैया से कुपित थे इन सबने मिल कर षड्यंत्र पूर्वक कन्हैया पर एक ऐसा झूठा आरोप गढ़ा जिससे जनता को उनके विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से भड़काया जा सके। जिसके परिणाम स्वरूप तथाकथित सन्यासी तक  भ्रष्ट चेनलों  के स्वर में स्वर मिला कर उनको फांसी देने का शोर मचाने लगे और अदालत में उन पर कातिलाना प्रहार किए गए। सांसद कामरेड डी राजा  ( जो गैर ब्राह्मण हैं )के अतिरिक्त  कामरेड सुधाकर रेड्डी को छोड़ कर किसी भी बड़े नेता ने कन्हैया के पक्ष में आवाज़ बुलंद नहीं की है। 

फिर भी पूरे देश में छात्रों, युवाओं और जनतंत्र समर्थकों ने कन्हैया के पक्ष में आवाज़ बुलंद की है। दूसरे दलों के बड़े नेताओं ने कन्हैया का पुरजोर समर्थन किया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल तो राष्ट्रपति महोदय तक कन्हैया पर हमले के मामले को लेकर गए हैं  भाजपा का विकल्प बनने को आतुर दिल्ली के मुख्यमंत्री भी इस दौड़ में शामिल हुये हैं। यदि भाकपा समेत सम्पूर्ण वामपंथ ने ब्राह्मण वाद के चंगुल से निकल कर कन्हैया के समर्थन में जन-सहयोग अपने पक्ष में नहीं खड़ा किया तो निश्चय ही उसका श्रेय व लाभ कांग्रेस समेत अन्य दलों  को ही मिल जाएगा। 

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