***** पर कन्हैया के परिवारजनों, शुभचिंतकों, मित्रों के अंदर यह सवाल तो उठ ही रहा है(जो बिल्कुल जायज भी है) कि राष्ट्रपिता के हत्यारे की जयजयकार संसद परिसर में खुलेआम करने वाले देशद्रोही नहीं होते पर देश सेवा के लिए अपने जीवन की परवाह नहीं करने वाला उनका कन्हैया, भगत सिंह को अपना आदर्श बताने वाला कन्हैया देशद्रोही है! *****
देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद कन्हैया कुमार के लकवाग्रस्त 60 वर्षीय पिता जयशंकर सिंह एवं आंगनबाड़ी सेविका के रूप में महज साढ़े तीन हजार रुपये के मानदेय पर काम करने वाली मां मीना देवी ने यह समझाने की पूरी कोशिश की थी कि देश सेवा और समाज सेवा के साथ करियर भी जरूरी चीज है। इतना पढ़-लिख गए हो तो कोई नौकरी पकड़ लो ताकि दूसरे परिवार की तरह हमारे परिवार की स्थिति भी सुधरे। पर कन्हैया ने कहा कि करियर बने न बने, मुझे देश के लिए काम करना है। गरीबों, मजलूमों व असहायों के लिए जीना है। उसे मैं नहीं छोड़ सकता। जयशंकर सिंह ने भी ज्यादा दबाव नहीं दिया क्योंकि ये संस्कार तो उन्होंने ही अपने बेटे को दिए थे। पर देश के लिए काम करने का जज्बा अपने मन में पालने वाले जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया का आज देशद्रोह के आरोप में जेल जाना जयशंकर सिंह के लिए किसी सदमेे से कम नहीं है। सदमा इस बात के लिए नहीं कि बेटा जेल चला गया। सदमा इस बात के लिए कि उनके देशभक्त बेटे को देशद्रोही कहा जा रहा है। सचमुच यह बहुत सारे लोगों के लिए विस्मय का विषय ही है कि जिस कन्हैया को उन्होंने कबीरा खड़ा बाजार में, कुमति नगर का किस्सा जैसे नाटकों में रंगमंच पर अभिनय करते हुए देखा। जिस कन्हैया को बचपन से ही गरीबों, मजलूमों के पक्ष में खड़ा होते हुए देखा वह आज देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद है। बेगूसराय बीहट के मसनदपुर टोले में बेहद साधारण परिवार में कन्हैया का जन्म हुआ। पिता जीप चालक के रूप में किसी तरह रोजी-रोटी की व्यवस्था करते थे। सरकारी विद्यालय से शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर जेएनयू पहुंचना कन्हैया जैसे छात्रों के लिए आश्चर्य की बात थी पर अदम्य इच्छा शक्ति, जज्बा एवं प्रतिभा ने ही यह मुमकिन किया कि वह जेएनयू का छात्र बन पाया। कन्हैया के मित्रों एवं परिजनों के लिए भी यह विश्वास करना मुश्किल है कि जो कन्हैया हमेशा अपने सहकर्मियों को भगत सिंह की विचारधारा से रू-ब-रू करवाते रहता था। पत्र-पत्रिकाओं समेत विभिन्न तरह की किताबों से दोस्ती करने के लिए प्रेरित करते रहता था वह आखिर देशद्रोही कैसे हो सकता है!
विगत विधानसभा चुनाव में कन्हैया बेगूसराय आया था और अपने पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में सैकड़ों सभाएं की थी। जिन लोगों ने भी उसे बोलते हुए सुना वे सब उसके प्रशंसक बन गए। आज उनसबके लिए भी यह अकल्पनीय ही है कि कैसे वह ऐसा हो सकता है? निश्चित रूप से कोई गहरी साजिश है, यह भी कुछ लोग मान रहे हैं। पर जो भी हो फिलहाल वह सींखचो के अंदर है और बाहर घमासान मचा है। पर कन्हैया के परिवारजनों, शुभचिंतकों, मित्रों के अंदर यह सवाल तो उठ ही रहा है(जो बिल्कुल जायज भी है) कि राष्ट्रपिता के हत्यारे की जयजयकार संसद परिसर में खुलेआम करने वाले देशद्रोही नहीं होते पर देश सेवा के लिए अपने जीवन की परवाह नहीं करने वाला उनका कन्हैया, भगत सिंह को अपना आदर्श बताने वाला कन्हैया देशद्रोही है!
सूरज में लगे धब्बे फितरत के करिश्मे हैं।
मुचकुंद कुमार (लेखक शिक्षाविद् हैं)।
http://www.begusaraimedia.com/?p=5759
February 23
12:29201
देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद कन्हैया कुमार के लकवाग्रस्त 60 वर्षीय पिता जयशंकर सिंह एवं आंगनबाड़ी सेविका के रूप में महज साढ़े तीन हजार रुपये के मानदेय पर काम करने वाली मां मीना देवी ने यह समझाने की पूरी कोशिश की थी कि देश सेवा और समाज सेवा के साथ करियर भी जरूरी चीज है। इतना पढ़-लिख गए हो तो कोई नौकरी पकड़ लो ताकि दूसरे परिवार की तरह हमारे परिवार की स्थिति भी सुधरे। पर कन्हैया ने कहा कि करियर बने न बने, मुझे देश के लिए काम करना है। गरीबों, मजलूमों व असहायों के लिए जीना है। उसे मैं नहीं छोड़ सकता। जयशंकर सिंह ने भी ज्यादा दबाव नहीं दिया क्योंकि ये संस्कार तो उन्होंने ही अपने बेटे को दिए थे। पर देश के लिए काम करने का जज्बा अपने मन में पालने वाले जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया का आज देशद्रोह के आरोप में जेल जाना जयशंकर सिंह के लिए किसी सदमेे से कम नहीं है। सदमा इस बात के लिए नहीं कि बेटा जेल चला गया। सदमा इस बात के लिए कि उनके देशभक्त बेटे को देशद्रोही कहा जा रहा है। सचमुच यह बहुत सारे लोगों के लिए विस्मय का विषय ही है कि जिस कन्हैया को उन्होंने कबीरा खड़ा बाजार में, कुमति नगर का किस्सा जैसे नाटकों में रंगमंच पर अभिनय करते हुए देखा। जिस कन्हैया को बचपन से ही गरीबों, मजलूमों के पक्ष में खड़ा होते हुए देखा वह आज देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद है। बेगूसराय बीहट के मसनदपुर टोले में बेहद साधारण परिवार में कन्हैया का जन्म हुआ। पिता जीप चालक के रूप में किसी तरह रोजी-रोटी की व्यवस्था करते थे। सरकारी विद्यालय से शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर जेएनयू पहुंचना कन्हैया जैसे छात्रों के लिए आश्चर्य की बात थी पर अदम्य इच्छा शक्ति, जज्बा एवं प्रतिभा ने ही यह मुमकिन किया कि वह जेएनयू का छात्र बन पाया। कन्हैया के मित्रों एवं परिजनों के लिए भी यह विश्वास करना मुश्किल है कि जो कन्हैया हमेशा अपने सहकर्मियों को भगत सिंह की विचारधारा से रू-ब-रू करवाते रहता था। पत्र-पत्रिकाओं समेत विभिन्न तरह की किताबों से दोस्ती करने के लिए प्रेरित करते रहता था वह आखिर देशद्रोही कैसे हो सकता है!
विगत विधानसभा चुनाव में कन्हैया बेगूसराय आया था और अपने पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में सैकड़ों सभाएं की थी। जिन लोगों ने भी उसे बोलते हुए सुना वे सब उसके प्रशंसक बन गए। आज उनसबके लिए भी यह अकल्पनीय ही है कि कैसे वह ऐसा हो सकता है? निश्चित रूप से कोई गहरी साजिश है, यह भी कुछ लोग मान रहे हैं। पर जो भी हो फिलहाल वह सींखचो के अंदर है और बाहर घमासान मचा है। पर कन्हैया के परिवारजनों, शुभचिंतकों, मित्रों के अंदर यह सवाल तो उठ ही रहा है(जो बिल्कुल जायज भी है) कि राष्ट्रपिता के हत्यारे की जयजयकार संसद परिसर में खुलेआम करने वाले देशद्रोही नहीं होते पर देश सेवा के लिए अपने जीवन की परवाह नहीं करने वाला उनका कन्हैया, भगत सिंह को अपना आदर्श बताने वाला कन्हैया देशद्रोही है!
सूरज में लगे धब्बे फितरत के करिश्मे हैं।
मुचकुंद कुमार (लेखक शिक्षाविद् हैं)।
http://www.begusaraimedia.com/?p=5759
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