Thursday, 24 March 2016

शहीदी दिवस पर भगत सिंह और उनके साथियों का लखनऊ में स्मरण ------ विजय राजबली माथुर


लखनऊ, 24 मार्च, 2016 :
कल शहीद दिवस 23 मार्च को लखनऊ में होली मनाए  जाने के कारण आज 24 मार्च को अपरान्ह भाकपा कार्यालय , 22-कैसर बाग पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता कामरेड परमानंद दिवेदी ने की व संचालन किया जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने।
जिलामंत्री द्वारा गोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डालने के बाद  सर्वप्रथम  सभी कामरेड्स द्वारा शहीदों के चित्रों पर पुष्पांजली अर्पित की गई तदुपरान्त कामरेड कल्पना पांडे ने एक कविता के माध्यम से श्रद्धांजली दी।
बैंक कर्मचारी नेता कामरेड परमानंद ने शहीदों के बलिदान को स्मरण करते हुये उनके सपनों को साकार करने के लिए चुनावों में जीत हासिल करने को लक्ष्य बनाने की चाहत रखी।कामरेड आनंद तिवारी ने युवाओं को शहीदों के प्रति समर्पण और उनके कृत्यों के अनुसार सड़कों पर संघर्ष करने पर बल दिया। कामरेड रमेश सिंह ने जहां जातिवाद को समाज का कोढ़ बताते हुये इसका निर्मूलन किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया वहीं कामरेड अकरम ने बढ़ती सांप्रदायिकता का ज़िक्र करते हुये इसके विरुद्ध भगत सिंह जी के विचारों को अपनाए जाने पर बल दिया।
वयोवृद्ध इप्टा कलाकार कामरेड मुख्तार अहमद ने आज भगत सिंह जी के विचारों को तोड़ने-मरोड़ने पर चिंता व्यक्त करते हुये सही बात जनता को समझाये जाने पर बल दिया।
 विजय माथुर ने शहीदे-आजम भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव का स्मरण करते हुये याद दिलाया कि,  सिक्ख होते हुये भी भगत सिंह जी का परिवार आर्यसमाजी था और 'सत्यार्थ प्रकाश' पढ़ने के उपरांत वह क्रांतिकारी बने थे। स्वामी दयानंद ने 1857 की क्रान्ति में भाग लिया था उनको अंग्रेज़ सरकार 'क्रांतिकारी सन्यासी' -REVOLUTIONARY SAINT कहती थी। ऐसे ही स्वामी दयानन्द के अनुयायी और 1917 की रूसी क्रांति से प्रभावित भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त को नेशनल असेंबली में बम फेंकने के  कारण  'राजद्रोह'  के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और 23 मार्च 1931 को राजगुरु व सुखदेव के साथ फांसी दी गई थी। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास का दंड दिया गया था। अपने मुकदमे के दौरान भगत सिंह ने अदालत को बताया था कि उनका उद्देश्य सोई हुई सरकार को जगाना तथा 'ट्रेड  डिसप्यूट एक्ट 'का विरोध करना था जो मालिकों को श्रमिकों का उत्पीड़न करने की छूट देने के लिए लाया गया था। उनका कथन था कि वह भारत ही नहीं वरन सारी दुनिया से पूंजीवादी शोषण को समाप्त करना चाहते हैं। उन्होने अदालत से कहा था बम फेंकने का उद्देश्य किसी को हताहत करना नहीं था। वस्तुतः वह बम आगरा के 'नूरी गेट' क्षेत्र में जो अब 'शहीद भगत सिंह द्वार' कहलाता है में भगत सिंह व उनके साथियों द्वारा धमाका करने के लिए ही बनाया  गया था जिसमें विस्फोटक पदार्थ नहीं रखे थे। वर्तमान केंद्र सरकार भगत सिंह के सपनों को साकार करने की मांग करने वालों को उसी 'राजद्रोह' के आरोप में गिरफ्तार कर रही है। उसका मुक़ाबला करने के लिए जनता को समझाना होगा कि वास्तव में यह सरकार अधार्मिक है  और हम कम्युनिस्ट ही सच्चे धार्मिक हैं जो सम्पूर्ण मानवता की रक्षा के लिए संघर्ष करते हैं। धर्म का अर्थ मानव शरीर व समाज को धारण करने वाले तत्वों से है ढोंग व पाखंड से नही। यह संस्कृत की 'धृति' धातु से निकला  है जिसका अर्थ ही है धारण करना। खुद को  'नास्तिक' कह के सांप्रदायिक शक्तियों को बल देने की अपेक्षा हमें अपनी प्रचार शैली बदल कर जनता के बीच जाना होगा तभी लक्ष्य हासिल कर सकेंगे और सत्ता पर पकड़ बना कर व्यवस्था परिवर्तन कर सकेंगे।

जिलामंत्री   कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने कहा कि, तमाम शहीदों के बीच केवल भगत सिंह को ही शहीद-ए - आजम कहा जाता है क्योंकि वह 23 वर्ष की अल्पायु में ही  अध्यन द्वारा इतना ज्ञान अर्जित कर चुके थे जो आज भी हमारा मार्ग-दर्शन करता है। आज उनके सपने चकनाचूर हो रहे हैं  , जनता के मंदिर विधानसभा व संसद  जनता से दूर किए जा रहे हैं। जनता को अपनी समस्या लेकर वहाँ तक पहुँचने से बल पूर्वक रोका जाता है। धरना- प्रदर्शन करने के लिए सरकार की अनुमति लेना धार्मिक उत्सव मनाने के लिए सरकारी बन्दिशों को मानना ज़रूरी है नहीं तो राजद्रोह-देशद्रोह का आरोप थोप दिया जाता है। उन्होने शहीदों के सपने साकार करने के लिए लोकतन्त्र को बचाने व सत्ता को अपने हाथ में लेने के लिए जनता से जीवंत संपर्क बनाए रखने पर बल दिया। 
अंत में अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कामरेड परमानंद दिवेदी ने उपस्थित कामरेड्स का आभार व्यक्त किया कि वे त्यौहारों  के बावजूद शहीदों के बलिदान दिवस पर उनको याद करने के लिए आए और उनके सपनों को पूरा करने की दिशा में अपने संकल्प की अभिव्यक्ति की।  

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