Monday, 26 September 2016

ब्राह्मण वादी निंदनीय दुष्कृत्य ------ विजय राजबली माथुर

24 सितंबर 2016 


हमारे ब्लाग में पोस्ट देख कर मयंक द्वारा कापी करके अपने नाम से छ्पवाना  क्या कम्युनिस्ट नैतिकता के विरुद्ध नहीं है? दोनों के प्रकाशन समय देखें -ब्लाग में 08 :20 (20 : 20 )pm पर मैंने पब्लिश किया है और मयंक ने 10 :24 pm पर उसको अपने नाम से निकाल डाला है। यू पी में मोदीईस्ट बाजारवादी कामरेड्स इसी प्रकार की हरकतों से पार्टी को कमजोर कर रहे हैं।

यों तो छोटों की गलतियों को नज़रअंदाज़ कर देना मेरी  आदत का हिस्सा है। 18 सितंबर को छात्र नेता कन्हैया कुमार यहाँ लखनऊ सम्बोधन हेतु आए थे उनके सम्बोधन के अपने को खास लगे अंशों को अपने ब्लाग 'साम्यवाद COMMUNISM ' पर रात्रि 08 : 20 (20 : 20 ) pm पर प्रकाशित किया था। कानपुर के एक छात्र 'मयंक चकरोबरती ने उसे 10 :24 pm पर अपने नाम से कापी पेस्ट करके पब्लिश कर दिया। चूंकि यह छात्र हमारी पार्टी भाकपा का भी सदस्य है अतः कानपुर के ही एक बड़े प्रभावशाली कामरेड नेता के संज्ञान में सम्पूर्ण तथ्यों को डाला। ऊपरी दबाव में वह बड़े नेता भी इस छात्र के दुष्कृत्य को निंदनीय न ठहरा सके। वस्तुतः यू पी में भाकपा  अब एक ऐसे परिवार की पाकेट पार्टी है जिसमें पति,पत्नी,साली व दत्तक पुत्र की मर्ज़ी ही पार्टी नीति है और वैधानिक पदाधिकारी भी खुद को असहाय पाते हैं। अतः उनके प्रश्रय की प्रबल संभावना के मद्देनज़र उस छात्र को अपनी फेसबुक फ्रेंडशिप से हटाना पड़ा। यह पहला मौका है जब  उम्र में बेहद छोटे व्यक्ति पर बेमन से ही अनफ्रेंड करने की  कारवाई करनी पड़ी है।

जितने भी लोगों ने कन्हैया से संबन्धित अथवा किसी भी पोस्ट को जब भी शेयर किया है ब्लाग पोस्ट के रेफरेंस के साथ ही और इसी प्रकार मैं खुद भी दूसरों की अच्छी पोस्ट्स को शेयर करता रहता हूँ। स्वयं कामरेड अरविंद राज स्वरूप जी  ने भी रेफरेंस सहित ही शेयर किया है । 



विचारणीय  प्रश्न यह है कि, जबकि अतीत में मयंक भी रेफरेंस सहित ही पोस्ट्स शेयर करते रहे हैं तब कन्हैया से संबन्धित पोस्ट को ही अपने नाम से चुराने की क्या ज़रूरत थी ? वजह साफ है कि मयंक नौजवान छात्र हैं और आसानी से कन्हैया से प्रभावित हो सकते हैं। अतः मोदीईस्ट /बाजरवादी/ब्राह्मण वादी कामरेड्स जिनके केंद्रीय मंत्रियों से मधुर संबंध हैं नहीं चाहते थे कि कन्हैया की लखनऊ यात्रा के बाद यू पी में कन्हैया के समर्थक बढ़ें और फासिस्ट सरकार की चूलें हिलें । ऐसे लोगों को मयंक साफ्ट टार्गेट के रूप में मिल गए और उनसे गलत कदम उठवा कर उनको बदनाम कर दिया गया। तोड़- फोड़ और पार्टी संकुचन में संलग्न ब्राह्मण वादी कामरेड्स ने कन्हैया के प्रयासों पर पानी फेरने के लिए  जिस प्रकार मयंक के सिर बदनामी का ठीकरा फोड़ा है वह दुष्कृत्य निंदनीय है। 












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