Friday 20 March 2015

मजदूर के पास विकल्प नहीं है, लेकिन रचनाकार -कलाकार के पास विकल्प होते हैं --- जगदीश्वर चतुर्वेदी

 https://www.facebook.com/jagadishwar9/posts/1030196967009010
Jagadishwar Chaturvedi :
 भारतीय समाज रेफ्रीजरेटर समुदाय होता जा रहा है। 
 Sudhendu Gupta and 17 others like this.
 डाॅ. राजरानी शर्मा : 
बासी परोसनेवाला !!! 5  Like · 1
 Arvind Raj Swarup Cpi : 
वामपंथियों पर आपकी टिप्प्णी का भावार्थ क्या है।बड़ा जनरल स्टेटमेंट है।ज़रा प्रकाश डाले।  Like · 2 
 Pawan Pandit : 
सर जरा स्पष्टीकरण देंगे तो सुविधा होगी तथ्य को समझने में •••••  Like · 1 
Sushil Chaturvedy : 
Dimagh ka bhee yahee haal hai!  Like · 1
 Jagadishwar Chaturvedi: 
 अरविंदजी, क्रांतिकारी लेखक को अपने संचार के गैर-बुर्जुआ उपकरण निर्मित करने होंगे, हमारे अनेक वामलेखकों ने बुर्जुआ माध्यमों में जाकर वस्तुतःबुर्जुआजी की सेवा की, इससे क्रांतिकारी आंदोलन को लाभ कम हुआ। मैं यहां नाम लिखना नहीं चाहता । लेखन में साध्य और साधन के बीच में साम्य जरुरी है। Like · 2 
Arvind Raj Swarup Cpi : 
 जगदीश जी धन्यवाद।आम जनता के विभिन्न वर्गों को पूंजीवादी समाज में ही तो काम करना पड़ता है।उनकी अपनी सीमा होती है। फैक्ट्री का मज़दूर पूंजीपति के कारखाने में काम करता है तो क्या हम कहे गए उस कम्युनिस्ट मज़दूर को कि वह गलत काम करता है। उसी तरह मध्यम वर्ग से निकला बुद्धिजीवी है। उसके पास भी संपत्ति नहीं है। संपत्ति के वर्गीय रिशतो में वह भी मज़दूर है। जीवन चलाने के लिये नौकरी या काम करना पड़ेगा और अपनी अपनी परिस्थितयो के अनुकूल समाज को पूँजीवाद से मुक्ति दिलाने के लिए काम करना पड़ेगा। कौन कितना करता है कर पाता है ये उस व्यक्ति की क्षमताओ पर निर्भर करता है। ज़रूरी नहीं सब वामपंथी लेखक पार्टी के होल टाइमर हो। मेरे सरीखे जो लेखक नहीं हैं और पार्टी के होल टाइमर हैं उनका जीवन अलग है। गैर बुर्जुआ उपकरण समाजवाद ही पैदा करेगा  
 Jagadishwar Chaturvedi : 
मजदूर के पास विकल्प नहीं है, लेकिन रचनाकार -कलाकार के पास विकल्प होते हैं । विकल्प की कम्युनिकेशन प्रणाली चुनने में कोई असुविधा नहीं है, मसलन् कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो किसी बड़े प्रकाशक ने नहीं छापा था ।  Like · 1 
Asha Upadhyaya : 
क्या बात कही है आपने।एक नितान्त नवीन प्रयोग

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