भारतीय वामदल और भाषा का प्रश्न:
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हिँदी को जब कुत्तोँ और सुवरोँ की -----------------------------------------भाषा कहने पर छात्रोँ ने काल्विन ------------------------------------------कालेज के प्रिँसिपल को जूतोँ से मारा..
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इसी मुद्दे पर वामदल से हुआ किनारा
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आज भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 22वेँ अधिवेशन की पोस्ट देखी तो एक बार फिर भारतीय वामदलोँ के सँदर्भ मेँ भाषा का सवाल जेहन मेँ आ गया...
1985 मेँ मैँ लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसँघ का महामँत्री चुना गया । उस समय मैँ भाकपा की छात्र शाखा आल इँडिया स्टूडेँट्स फेडरेशन का प्रदेश अध्यक्ष भी था और चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन सोवियत सँघ की राजधानी मास्को मेँ आयोजित अँतर्राष्ट्रीय युवा महोत्सव मेँ भाग लेकर लौटा था.....
भाषा को लेकर सोवियत सँघ मेँ मुझे जो देखने को मिला उससे मैँ बहुत प्रभावित था ( यहाँ लेनिन और भाषा के सवाल को लेकर कोई सैद्धातिक बात कर पोस्ट को बोझिल नहीँ बनाना चाहता )
सोवियत सँघ मेँ सिर्फ रूसी भाषा का इस्तेमाल किया जाता था अगर हमारे साथियोँ ने कभी रूसी मित्रोँ से अँग्रेजी बोलने की कोशिश भी की तो टोक दिया जाता था कि हिँदी आपके देश की भाषा और रूसी हमारे देश की तो या हिँदी बोलिए या रूसी..ये अँग्रेजी बीच मेँ कहाँ से आ गई....बहुत अच्छा लगता था..मैँ एक साल रशियन पढकर गया था इसलिए थोडी थोडी बोल समझ भी लेता था
बहरहाल वापस आते हैँ घटना पर..छात्रसँघ महामँत्री रहने के दौरान एक ऎसी घटना हो गई कि भाषा का बवाल सीधे सीधे सर पर आ पडा...
वि.वि. के कुछ छात्र किसी एडमीशन के सिलसिले मेँ बात करने वि.वि. के सामने काल्विन तालुक्केदार्स कालेज गए थे । रिटायर्ड मेजर जनरल ई. हबीबुल्ला उस समय काल्विन के प्रिँसिपल हुआ करते थे उनकी बेगम हामिदा हबीबुल्ला इँदिरा जी की करीबी रही थीँ....
वि.वि. के छात्रोँ ने हिँदी मैं बात शुरू की प्रिँसिपल साहब ने तुरँत टोका और अँग्रेजी मेँ बात करने को बोला..बात कुछ बढ गई..छात्रोँ ने कहा आप ही हिँदी मेँ बात क्योँ नहीँ कर लेते...गुस्से मेँ प्रिँसिपल के मुँह से अँग्रेजी मेँ ही निकल गया कि हिँदी कुत्तोँ और सुवरोँ की भाषा है....बस फिर क्या था प्रिँसिपल रूम युद्ध के मैदान मेँ बदल गया..वि.वि. के छात्रोँ ने जूते निकाल कर प्रिँसिपल महोदय पर जमकर चटकाए और वहाँ से निकल लिए...बडी घटना...बडे रसूख वाले प्रिँसिपल...तुरँत रिपोर्ट दर्ज हुई उन छात्रोँ की खोज शुरू हो गई....बात तुरँत ही छात्रसँघ भवन पहुची....मुझे लगा कि अब इन हिँदी के दीवानोँ को बचाने के लिए राजनीति के रँग की जरूरत है...आनन फानन मेँ छात्रसँघ भवन मेँ प्रेस काँफ्रेस बुलाई गई और मैने पूरी घटना की जानकारी प्रेस को देते हुए घोषणा कर दी का ये हिँदी पर हमले का त्वरित जवाब था और हिँदी पर इस तरह का कोई हमला बर्दाश्त नहीँ किया जाएगा....
हम लोगोँ ने प्राथमिकी तत्काल निरस्त ना करने की दशा मेँ अँग्रेजी स्कूलोँ पर ताला लगाने की घोषणा कर दी..अब दोनोँ तरफ से तलवारेँ खिँच चुकी थीँ ।
ऎसे मौके पर सबसे बडा साथ जल्दी ही दिल्ली से निकलना शुरू हुए राष्ट्रीय दैनिक " जनसत्ता " ने दिया जिसने अगले ही दिन फ्रँट पेज पर चार कालम मेँ बाक्स मेँ खबर छापी " हिँदी को कुत्तोँ और सुवरोँ की भाषा कहने पर प्रिँसिपल को जूतोँ से मारा " पूरे देश की हिँदी पट्टी मेँ खबर पहुँच गई..व्यापक समर्थन मिलना शुरू हुआ...अगले दिन हम लोग पाँच अलग अलग गाडियोँ मेँ निकल कर छापामार शैली मेँ अँग्रेजी स्कूलोँ मेँ पहुँच कर तालाबँदी कर वहाँ से निकलने लगे...दूसरे दिन ही आँदोलन को प्रदेशव्यापी बनाने का आवाहन किया गया....
अगले दिन तक प्रशासन भी गेयर मेँ आ चुका था...प्रशासन की मध्यस्थता मेँ बात हुई....प्रिँसिपल बेचारे वैसे ही हक्का बक्का थे उन्होने अपनी एफ.आई.आर. वापस लेकर क्षमायाचना की और हमने आँदोलन स्थगित करने की घोषणा की..उसे वापस नहीँ लिया क्योँकि हम पूरी तरह मुतमइन होना चाहते थे कि छात्रोँ के खिलाफ बाद मेँ कोई कार्यवाही ना हो जाए....
बहरहाल अगले दिन जब सीपीआई के 22 कैसरबाग स्थित कार्यालय गये तो पता चला कि मुँशी गुरु प्रसाद जी की तरफ से जिलोँ मेँ एक परिपत्र भेजा गया है कि यह हिँदी समर्थक आँदोलन छात्रसँघ का आँदोलन है पार्टी का इससे कोई लेना देना नहीँ है पार्टी से सँबद्ध सँगठन इससे दूर रहेँ...मुझे बहुत शर्मिँदगी हुई कि अगर यह परिपत्र वि.वि. के छात्रोँ सँज्ञान मेँ आ गया तो क्या सोचेँगे....पार्टी को आँध्र ,केरल , त्रिपुरा आदि राज्योँ के मतदाताओँ की चिँता थी यहाँ उनके लिए लेनिन और भाषा के प्रश्न की कोई अहमियत नहीँ थी..ना ही सोवियत सँघ के रूसी भाषा के प्रेम की.....
वहीँ से पार्टी से दूरी बढना शुरू हुई जो पार्टी से अलग ही ले गई....
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फेसबुक पर प्राप्त कमेन्ट :
1985 मेँ मैँ लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसँघ का महामँत्री चुना गया । उस समय मैँ भाकपा की छात्र शाखा आल इँडिया स्टूडेँट्स फेडरेशन का प्रदेश अध्यक्ष भी था और चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन सोवियत सँघ की राजधानी मास्को मेँ आयोजित अँतर्राष्ट्रीय युवा महोत्सव मेँ भाग लेकर लौटा था.....
भाषा को लेकर सोवियत सँघ मेँ मुझे जो देखने को मिला उससे मैँ बहुत प्रभावित था ( यहाँ लेनिन और भाषा के सवाल को लेकर कोई सैद्धातिक बात कर पोस्ट को बोझिल नहीँ बनाना चाहता )
सोवियत सँघ मेँ सिर्फ रूसी भाषा का इस्तेमाल किया जाता था अगर हमारे साथियोँ ने कभी रूसी मित्रोँ से अँग्रेजी बोलने की कोशिश भी की तो टोक दिया जाता था कि हिँदी आपके देश की भाषा और रूसी हमारे देश की तो या हिँदी बोलिए या रूसी..ये अँग्रेजी बीच मेँ कहाँ से आ गई....बहुत अच्छा लगता था..मैँ एक साल रशियन पढकर गया था इसलिए थोडी थोडी बोल समझ भी लेता था
बहरहाल वापस आते हैँ घटना पर..छात्रसँघ महामँत्री रहने के दौरान एक ऎसी घटना हो गई कि भाषा का बवाल सीधे सीधे सर पर आ पडा...
वि.वि. के कुछ छात्र किसी एडमीशन के सिलसिले मेँ बात करने वि.वि. के सामने काल्विन तालुक्केदार्स कालेज गए थे । रिटायर्ड मेजर जनरल ई. हबीबुल्ला उस समय काल्विन के प्रिँसिपल हुआ करते थे उनकी बेगम हामिदा हबीबुल्ला इँदिरा जी की करीबी रही थीँ....
वि.वि. के छात्रोँ ने हिँदी मैं बात शुरू की प्रिँसिपल साहब ने तुरँत टोका और अँग्रेजी मेँ बात करने को बोला..बात कुछ बढ गई..छात्रोँ ने कहा आप ही हिँदी मेँ बात क्योँ नहीँ कर लेते...गुस्से मेँ प्रिँसिपल के मुँह से अँग्रेजी मेँ ही निकल गया कि हिँदी कुत्तोँ और सुवरोँ की भाषा है....बस फिर क्या था प्रिँसिपल रूम युद्ध के मैदान मेँ बदल गया..वि.वि. के छात्रोँ ने जूते निकाल कर प्रिँसिपल महोदय पर जमकर चटकाए और वहाँ से निकल लिए...बडी घटना...बडे रसूख वाले प्रिँसिपल...तुरँत रिपोर्ट दर्ज हुई उन छात्रोँ की खोज शुरू हो गई....बात तुरँत ही छात्रसँघ भवन पहुची....मुझे लगा कि अब इन हिँदी के दीवानोँ को बचाने के लिए राजनीति के रँग की जरूरत है...आनन फानन मेँ छात्रसँघ भवन मेँ प्रेस काँफ्रेस बुलाई गई और मैने पूरी घटना की जानकारी प्रेस को देते हुए घोषणा कर दी का ये हिँदी पर हमले का त्वरित जवाब था और हिँदी पर इस तरह का कोई हमला बर्दाश्त नहीँ किया जाएगा....
हम लोगोँ ने प्राथमिकी तत्काल निरस्त ना करने की दशा मेँ अँग्रेजी स्कूलोँ पर ताला लगाने की घोषणा कर दी..अब दोनोँ तरफ से तलवारेँ खिँच चुकी थीँ ।
ऎसे मौके पर सबसे बडा साथ जल्दी ही दिल्ली से निकलना शुरू हुए राष्ट्रीय दैनिक " जनसत्ता " ने दिया जिसने अगले ही दिन फ्रँट पेज पर चार कालम मेँ बाक्स मेँ खबर छापी " हिँदी को कुत्तोँ और सुवरोँ की भाषा कहने पर प्रिँसिपल को जूतोँ से मारा " पूरे देश की हिँदी पट्टी मेँ खबर पहुँच गई..व्यापक समर्थन मिलना शुरू हुआ...अगले दिन हम लोग पाँच अलग अलग गाडियोँ मेँ निकल कर छापामार शैली मेँ अँग्रेजी स्कूलोँ मेँ पहुँच कर तालाबँदी कर वहाँ से निकलने लगे...दूसरे दिन ही आँदोलन को प्रदेशव्यापी बनाने का आवाहन किया गया....
अगले दिन तक प्रशासन भी गेयर मेँ आ चुका था...प्रशासन की मध्यस्थता मेँ बात हुई....प्रिँसिपल बेचारे वैसे ही हक्का बक्का थे उन्होने अपनी एफ.आई.आर. वापस लेकर क्षमायाचना की और हमने आँदोलन स्थगित करने की घोषणा की..उसे वापस नहीँ लिया क्योँकि हम पूरी तरह मुतमइन होना चाहते थे कि छात्रोँ के खिलाफ बाद मेँ कोई कार्यवाही ना हो जाए....
बहरहाल अगले दिन जब सीपीआई के 22 कैसरबाग स्थित कार्यालय गये तो पता चला कि मुँशी गुरु प्रसाद जी की तरफ से जिलोँ मेँ एक परिपत्र भेजा गया है कि यह हिँदी समर्थक आँदोलन छात्रसँघ का आँदोलन है पार्टी का इससे कोई लेना देना नहीँ है पार्टी से सँबद्ध सँगठन इससे दूर रहेँ...मुझे बहुत शर्मिँदगी हुई कि अगर यह परिपत्र वि.वि. के छात्रोँ सँज्ञान मेँ आ गया तो क्या सोचेँगे....पार्टी को आँध्र ,केरल , त्रिपुरा आदि राज्योँ के मतदाताओँ की चिँता थी यहाँ उनके लिए लेनिन और भाषा के प्रश्न की कोई अहमियत नहीँ थी..ना ही सोवियत सँघ के रूसी भाषा के प्रेम की.....
वहीँ से पार्टी से दूरी बढना शुरू हुई जो पार्टी से अलग ही ले गई....
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