Sunday 13 September 2015

जितेंद्र रघुवंशीजी का स्मरण जन्मदिवस 13 सिंतबर पर





IPTA के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव कामरेड जितेंद्र रघुवंशी जी का लिखा  यह नोट शायद फेसबुक पर उनका 
अंतिम नोट है उसे ज्यों का त्यों  ही उनके जन्मदिन पर उनकी स्मृति में यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ---
1-02-2015  ·
आगरा में भाकपा का जिला सम्मलेन:18 फ़रवरी ---
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का २२वां जिला सम्मलेन सदर तहसील के सिरौली ग्राम में संपन्न हुआ.इसे संबोधित करते हुए पार्टी के राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहा कि वर्तमान सरकारों से मोहभंग की शुरुआत हो चुकी है और आने वाले दिन जनता से जुड़े सवालों पर व्यापक संघर्ष के होंगे.आज खेती की ज़मीन छिनती जा रही है,रिश्वतखोरी खुले आम जारी है,महंगाई पर कोई अंकुश नहीं और विदेशियों द्वारा देश की लूट की खुली छूट दी जा रही है.भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन का अध्यादेश और श्रम-कानूनों में कटौती किसानों-मजदूरों पर हमला है.उन्होंने दुःख प्रकट किया कि प्रदेश में किसानों का बकाया नहीं मिला और कहीं भी कोई सुनवाई नहीं है. ऊपर से सांप्रदायिक विद्वेष फैलाया जा रहा है.डा.गिरीश ने धर्म-जाति से ऊपर उठ कर जनता से एकजुट होने का आह्वान किया.
सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए आर.बी.एस.कालेज के पूर्व प्राचार्य डा.जवाहर सिंह ढाकरे ने कहा कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सवालों पर जागरूकता के साथ स्थानीय समस्याओं पर आन्दोलन चलाने की ज़रुरत है.इस दौर में नए ढंग से काम करना होगा,तभी हम जनहितों के लिए असरदार ढंग से लड़ सकेंगे.पार्टी की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य और पर्यवेक्षक का. गफ्फार अब्बास ने अपने संबोधन में जन-चेतना और जागरूकता के लिए निरंतर सक्रियता पर जोर दिया.संस्कृतिकर्मी डा.जितेन्द्र रघुवंशी ने अंधविश्वास और बाबागीरी से बचने और तर्कसम्मत नजरिया बनाने की बात कही.
सम्मलेन की अध्यक्षता तेजसिंह वर्मा,जगदीश प्रसाद और ओमप्रकाश नौहवार ने संयुक्त रूप से व सञ्चालन वरिष्ठ नेता रमेश मिश्रा ने किया.ताराचंद और हरविलास दीक्षित ने गत तीन वर्षों की राजनीतिक और सांगठनिक रिपोर्ट पेश की.इन्हें स्वीकार करते हुए प्रतिनिधियों ने अपनी सीमाओं को पहचानने,कमियां दूर करने और शिद्दत से काम करने का संकल्प व्यक्त किया.पार्टी का 22 वां राज्य सम्मलेन 28 फ़रवरी से 2 मार्च तक इलाहाबाद में होगा.इसके लिए आगरा से तेजसिंह वर्मा और ओमप्रकाश प्रधान प्रतिनिधि चुने गये.22 वीं राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस 25 से 29 मार्च को पुडुचेरी में आहूत की गयी है.
जिला सम्मेलन में ताराचंद सचिव और एस.के.खोसला कोषाद्यक्ष चुने गये.इनके अलावा जिला काउन्सिल सदस्यों के रूप में रमेश मिश्रा,हरविलास दीक्षित,रमेश गुप्ता,भानुप्रताप सिंह,पी.एस.विप्लवी,ओमप्रकाश प्रधान,तेजसिंह वर्मा,निरोतीलाल कुशवाहा,भीकम सिंह,जगदीश शर्मा,आर.एस.पाल,मोतीराम कुशवाहा,पूरनसिंह यादव,सुधीर कुमार,तारासिंह,जितेन्द्र रघुवंशी,श्रीमती सरला जैन चुनी गयीं.रामस्वरूप दीक्षित,सुमन चौहान,नेमीचंद,जगदीश प्रसाद,भगवत सिंह आमंत्रित सदस्य होंगे.
सम्मलेन की स्थानीय व्यवस्थाएं रामकिशन,तारासिंह,चंद्रपाल,श्रीकिशन,चन्द्रराम ने संभालीं.


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आगरा में रहने के दौरान जब मैं भाकपा में शामिल हुआ तब से लखनऊ आने तक (1986 से 2009) तक आदरणीय कामरेड जितेंद्र रघुवंशी जी का सानिध्य प्राप्त रहा। इनके माता जी- पिताजी को भी सुनने व उनसे शिक्षा ग्रहण करने के कई अवसर मिले हैं। जितेंद्र जी को सदैव प्रसन्न मुद्रा में मुस्कराते हुये ही पाया है। उनको कोई कार्य कभी कठिन नहीं महसूस होता था। मेरे ज़िला काउंसिल में आने से पूर्व वही मिनट्स लिखते थे परंतु बाद में वह कार्य मुझको दिलवा दिया;जब-जब मैं काउंसिल में हुआ मिनट्स लिखने का कार्य मुझे मिला। पार्टी के बाहर भी जितेंद्र जी को श्रद्धा -सम्मान प्राप्त था। 2008 में एक बार जब मैं अकेले ही (ज़्यादातर जिलामंत्री रमेश मिश्रा जी के साथ गया था ) उनके घर गया तब इत्तिफ़ाक से वह भी अकेले ही एक पुस्तक का अध्ययन कर रहे थे। मेरे लेखन के संबंध में उनका कहना था कि मैं उनको कुछ लेख दूँ तो वह 'प्रगतिशील वसुधा' में प्रकाशित करा देंगे। परंतु मैं वहाँ से लखनऊ शिफ्ट करने की तैयारी में था इसलिए उनको कोई लेख दे न सका। ज्योतिष के संबंध में भी वह व्यक्तिगत रूप से मेरे दृष्टिकोण से सहमत थे किन्तु पार्टीगत दृष्टिकोण से कुछ कहने में उन्होने असमर्थता व्यक्त की थी। विस्तृत चर्चा के लिए उन्होने यूनिवर्सिटी में क्लास टाईम के बाद कक्षा में अकेले बैठ कर बात करने के लिए बुलाया था और जाने पर मुझसे खुल कर बातें की थीं। बाद में स्टाफ रूम में अपने साथी शिक्षकों (जर्मन व फ्रेंच भाषा के ) से परिचय भी कराया था। उन तीनों ने यह माना था कि पंडित चन्दन लाल पाराशर जो ज्योतिष शिक्षा दे रहे थे वह पोंगापंथ को बढ़ाने वाली थी । जबकि मैं उसके विरुद्ध था और जितेंद्र जी सहित उनके दोनों अन्य शिक्षक साथियों को मेरे तर्क उचित लगे थे जबकि जन-साधारण पोंगापंथ में ही उलझ कर अपना बिगाड़ कर लेता है। वह यह तो चाहते थे कि मैं अपने तर्कों का प्रचार करूँ परंतु कैसे इस संबंध में वह कुछ  सलाह नहीं दे सके। आगरा से लखनऊ आने के बाद से उनसे व्यक्तिगत भेंट न हो सकी किन्तु फोन व फेसबुक के माध्यम से उनसे सतत संपर्क बना रहा था। कुछ फोटो चित्र प्रस्तुत हैं :
(विजय राजबली माथुर )


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