अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर गोष्ठियाँ करने वाले खुद अभिव्यक्ति को कैसे प्रतिबंधित करते हैं उसका प्रमाण ---(सनातन संस्थान और इन बाजारवादी कामरेड्स में क्या अंतर है?) :
http://communistvijai.blogspot.in/2015/09/blog-post_20.html
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/946500785411898 |
बाजरवादियों के इस प्रतिनिधि के उपरोक्त व निम्न कथन एब्यूसिव नहीं हैं। क्यों?
वाम बाजरवादियों की बौखलाहट का एहसास उपरोक्त फोटो स्कैन से हो जाता है। 'स्पष्ट सामयिक निर्णय' लिए जाते तो केले के तने की तरह परत-दर-परत कैसे खुलती जाती? वस्तुतः उत्तर प्रदेश में पार्टी को कई-कई बार तोड़ने वाला अपनी तिकड़मों के जरिये इतना ऊपर उठ गया है कि बड़े से बड़े दिग्गज को अपनी उंगली पर नचाता है। उच्चस्थ पदाधिकारियों को वही कहने को मजबूर करता है जो उसके व उसके परिवार के हित में होता है। उत्तर प्रदेश से उस परिवार के तीन लोग (कुल सात में) नेशनल काउंसिल में विराजमान हैं। लखनऊ के ज़िला सम्मेलन में उसने पार्टी को संकुचित करने का खुला ऐलान किया था । अतः अर्चना उपाध्याय जी का कथन व सुमित का उसको समर्थन वास्तविकता को ही प्रकट करते हैं। :
यदि केंद्रीय नेतृत्व ने अश्लीलता समर्थक बाजारवादियों पर लगाम नहीं लगाई तो वे पार्टी को फासिस्टों का पिछलग्गू ही बना डालेंगे।
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