Thursday, 19 May 2016

Hats off to newly-elected MLA, Muhammed Muhsin and JNUSU President, Kanhaiya Kumar! ------ Ghizal Mahdi

L-R Kanhaiya and newly-elected M.L.A Muhammad Muhsin

Roshan Suchan with Kanhaiya Kumar.

AISF के JNU नेता मोहसिन बने विधायक , मुबारक ...
सोमालिया (केरल) के पत्तम्बी विधानसभा क्षेत्र से जेएनयू AISF के नेता कामरेड मुहसिन जिनके चुनाव प्रचार में कन्हैया गए थे वहां से कामरेड मुहसिन CPI विधायक बन गए हैं ..ख़ास बात ये है कि ये सीट कांग्रेस के पास 15 सालों से थी
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1130754440322735&set=a.112008495530673.14864.100001645680180&type=3



Congratulations...
LEGISLATIVE ASSEMBLY ELECTION KERALA
GREAT VICTORY FOR LDF IN KERALA
TOTAL SEATS - 140
LDF - 91
UDF - 47
NDA - 01
OTH - 01
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1677908352462395&set=a.1497683687151530.1073741827.100007297397861&type=3


Ghizal Mahdi 

Hats off to newly-elected MLA, Muhammed Muhsin and JNUSU President, Kanhaiya Kumar!
Heartiest congratulations to the voters of Pattambi Constituency of Palakkad District of Kerala for electing a 30-year young dynamic student leader, Muhammad Muhsin as their MLA on the ticket of Communist Party of India.
He defeated the two-term senior Congress Party MLA, C.P. Mohammed.
Muhsin is currently the Vice President of the JNU (Jawaharlal Nehru University) unit of All India Students Federation. He has been in student politics since the days at Calicut University from where he did his graduation. He is in the final leg of his Ph.D. in Adult Education at JNU.
The renowned student leader, Kanhaiya Kumar and Muhammed Muhsin are comrade-in-arms in JNU and hostel mates. Muhsin was the prominent JNU student leader who led the agitation for Kanhaiya’s release from the prison.
Kanahaiya too intensively campaigned for Muhsin in Pittambi constituency and addressed many election rallies and meetings. He also brought with him a strong group of IPTA (Indian People’s Theater Association) to stage plays and Nukkad Natak in support of Muhsin’s candidature. Addressing the election meetings at Pattambi, Kanhaiya targeted Prime Minister Narendra Modi for comparing Kerala with Somalia, and HRD Minister Smriti Irani for her anti-student anti-Dalit policies.
Following the victory Muhsin said, “the JNU incident had an impact on the young voters in his constituency where he focused his election campaign on communal fascism, curtailment of freedom of speech besides the rampant corruption in the state, deteriorating law and order and other day-to-day issues”.
We congratulate Muhammad Muhsin on his victory and believe he will contribute to strengthening the progressive student movement in the country and consolidate the AISF slogan – Study & Struggle.
Ghizal Mahdi
Ex-President, Jamia Millia Islamia Alumni Association
Riyadh



https://www.facebook.com/ghizal.mahdi/posts/10208314992085288

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Comments on Facebook : 
19-05-2016 
19-5-16 

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए ‘महागठबंधन’ के पक्ष में भाकपा - सुधाकर रेड्डी

भाकपा ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह ‘ना सिर्फ कॉरपोरेट के हितों में आर्थिक नीतियां बना रही है बल्कि धार्मिक आधार पर देश को बांटने का प्रयास कर रही है, लोगों के बीच तनाव पैदा कर रही है और उनपर पुराने विचार थोप रही है।’

(भाषा
हैदराबाद | May 17, 2016 05:56 am )

भाकपा ने सोमवार (16 मई) को कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राजग के घटक दलों को सत्ता में आने से रोकने के लिए गैर-भाजपाई दलों का साथ आना ‘ऐतिहासिक अनिवार्यता’ बन गया है। भाकपा के महासचिव सुरावरम सुधाकर रेड्डी ने कहा कि भाजपा-विरोधी दलों का महागठबंधन बनाना संभव है, जैसा कि जदयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बनाया था। उन्होंने कहा कि समय-समय पर ऐसे मोर्चे के गठन की जरूरत है। साथ ही उन्होंने कहा कि विश्वनाथ प्रताप सिंह और एच. डी. देवगौड़ा के तहत बनी तत्कालीन सरकारें सफल’ थीं ‘असफल’ नहीं। रेड्डी ने कहा, ‘हां, कुछ ही समय के लिए (वे गठबंधन सफल थे)। आप कह सकते हैं कि वे स्थाई नहीं थे। उन्हें स्थाई रहना भी नहीं था। वह भाजपा और साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकने के लिए था। अब फिर से ऐसे स्थिति आ गयी है। इसलिए, यह ऐतिहासिक अनिवार्यता है कि विभिन्न दलों के बीच ऐसी समझ विकसित हो।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि नीतीश कुमार के विचार क्या हैं, लेकिन यह एक मंच बन सकता है, एक सामान्य परिसंघ, लेकिन गैर-भाजपाई या भाजपा विरोधी दलों को साथ आना चाहिए, चुनाव से पहले या फिर चुनाव के बाद। भाजपा को करारी हार देने के लिए उन्हें साथ आना चाहिए।’’ रेड्डी ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह ‘ना सिर्फ कॉरपोरेट के हितों में आर्थिक नीतियां बना रही है बल्कि धार्मिक आधार पर देश को बांटने का प्रयास कर रही है, लोगों के बीच तनाव पैदा कर रही है और उनपर पुराने विचार थोप रही है।’ उन्होंने कहा, ‘बहु-धर्म, बहु-संस्कृति और बहु-भाषी देश में वे हिन्दी, हिन्दुत्व जैसी चीजें थोपना चाहते हैं। भारत में ऐसी चीजें संभव नहीं हैं।’
http://www.jansatta.com/national/cpi-favour-grand-alliance-defeat-bjp-in-2019-lok-sabha-poll/95887/

Wednesday, 18 May 2016

जनवाद का सिमटना ही फासीवाद के आने की आहट ------ महेश राठी


Mahesh Rathi
12 May 2016  
जहां से जनवाद खत्म होता है वहीं से फासीवाद शुरू होता है। जनवाद का सिमटना ही फासीवाद के आने की आहट होता है। 
वर्तमान दौर में फासीवाद बुशवाद की शक्ल में जनवाद का चोला ओढ़कर हामरे सामने है। जार्ज बुश ने अफगानिस्तान पर हमला करते हुए क्रुसेड अर्थात धर्मयुद्ध का आहवान किया था तो कहा था कि या आप हमारे साथ हैं या आतंकवाद के साथ। और यह घोषणा उस अमेरिका के मुखिया ने की थी जो आतंकवाद का जनक रहा है। ठीक यही भाषा भारत के पहले साम्राज्यवादी हमलावर ब्राहमणवादी बोलते हैं कि या तो आप हमारे साथ हैं या आप हमारे शत्रुओं के साथ हैं। ऐसे प्रगतिशील जो बुशवादी भाषा बोलते हैं जाहिर है अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए जनवाद को सीमित करना चाहते हैं और जाहिर है यह फासीवाद की दस्तक ही है। 
अभी समाजिक न्याय की लड़ाई नये दौर में प्रवेश कर रही है और यह उदारवादी सामंतों की दया का इंतजार नही करेगी कि वो उदारवादी ब्राहमणवादी आयें और समाजिक न्याय के न्यायाधीश बने। उन प्रगतिशीलों का न्याय दलितों और अति पिछड़ों अथवा महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश तक ही सीमित है और क्या ही आश्चर्य है कि संघी ब्राहमणवाद भी जब उदार होता है तो यही करता है। सबको हिंदू बनाकर मंदिरों में प्रवेश दिलाकर वह समानता की लड़ाई नही ब्राहमणवाद को जिंदा रखने की साजिश को आगे बढ़ाना है। 
भाजपा ने लोकसभा चुनावों के दौरान सामाजिक न्याय और सामाजिक समरसता का नारा दिया था परंतु जब भी बहुजनों की हिस्सेदारी की बात होती है तो संघी सामाजिक समरसता खामोश हो जाती है। आज प्रगतिशील सामाजिक न्यायवादी भी सामाजिक न्याय का नारा बुलंद तो करते हैं परंतु जब बहुजन तबकों को प्रतिनिधित्व देने की बारी आती है तो सामाजिक न्याय की लड़ाई को जातिवादी प्रतिक्रियावाद और दक्षिणपंथी कहकर छोटा करने की कोशिश की जाती है। परंतु यह सही समय है कि देश का वामपंथ आज अपने सिमटते जानाधार का ईमानदार आंकलन और विश्लेषण करे। जो तबके कभी उसका बड़ा जानाधार बनाते थे वो उससे छिटक क्यों गये हैं। मगर ध्यान रहे केवल नकारात्मक टिप्पणी करना प्रतिक्रिया की राजनीति होता है। अपने दूर जाते स्वाभाविक तबकों की गति का ईमानदार विश्लेषण नही। हालांकि पिछले तीन दशक से वामपंथ इसी राह पर है राम मंदिर से लेकर मंडल कमण्ड़ल और नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के विश्लेषण तक। हम केवल प्रतिक्रिया की राजनीति कर रहे हैं (प्रतिक्रिया की राजनीति, प्रतिक्रियावादी राजनीति नही)। 
सामाजिक न्याय की लड़ाई का यह चरण इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि पुरानी सामाजिक न्याय की लड़ाई के सामने जहां समाजिक समानता से आगे आर्थिक समानता की लड़ाई की तरफ बढ़ने की आवश्यकता खड़ी है तो वहीं परंपरागत वामपंथी वर्गहीन समाज का विचार कुछ रूककर सामाजिक समानता के सवाल पर बोलने की आवश्यकता समझ रहा है। परंतु यदि लड़ाई केवल बोलने तक सीमित रहेगी तो देश का बहुजन समाज अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आगे बढ़ेगा और नये वामपंथ का निर्माण करेगा। ऐसे वामपंथ का जो अधिक जनवादी होगा, सामाजिक समानता के सवालों के साथ राजनीतिक बाराबरी और आर्थिक विकास में हिस्सेदारी के संघर्षों के साथ। और अंतिम बात यह सर्टिफिकेट देने और हमेशा जजमेंटल रहने का कारोबार ब्राहमणवादी कारोबार है और इसे जो भी आगे बढ़ायेगा वह पकड़ा जायेगा। फर्क सिर्फ इतना होगा संघी कट्टरवादी ब्राहमणवादी कहलायेंगे और आप उदारवादी ब्राहमणवादी। जैसे जालिम सामंत और उदार सामंत
Mahesh Rathi

https://www.facebook.com/mahesh.rathi.33/posts/10204573790183076

Friday, 13 May 2016

भारत की झुलसी हुई आत्मा के लिए बारिश की फुहारें ------ शेहला राशिद शोरा





v d o
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Ten Emeritus Professors write to the JNU VC
May 9, 2016.

Dear Vice-Chancellor,

As Emeritus Professors of the JNU we are disturbed by the turn of events at the JNU. The University has always been a space where we allowed free discussion of issues raised by students and faculty. In the course of such discussion whether in seminars or at other informal gatherings, speakers from both within the University and from outside were invited to participate.

The current administration has clamped down on free discussion by imposing severe punishments of fines and rustication on those who organised a meeting on 9th February 2016. This despite the fact that they were arrested and sent to jail. Now an order has been issued prohibiting the entry of outsiders to the University premises.

We are writing to protest against both these measures. We request that the University administration reconsider both these decisions neither of which is required, and act according to the accepted norms of the JNU.

Yours Sincerely,

Romila Thapar (School of Social Sciences)

Namwar Singh (School of Languages)

Amit Bhaduri (School of Social Sciences)

Sheila Bhalla (School of Social Sciences)

Anil Bhatti (School of Languages)

Utsa Patnaik (School of Social sciences)

Deepak Nayyar (School of Social Sciences)

S.D. Muni (School of International Studies)

Zoya Hasan (School of Social Sciences)

Prabhat Patnaik (School of Social Sciences)

http://www.standwithjnu.org/solidarity/letter-to-jnu-vc-from-ten-emeritus-professors/


https://www.facebook.com/jagadishwar9/posts/1278429545519083


Walkout VC gets shirty

- JNU students dismiss rough-up allegation
Pheroze L. Vincent
http://www.telegraphindia.com/1160511/jsp/frontpage/story_84951.jsp#.VzK1ftIa78



New Delhi, May 10: JNU vice-chancellor M. Jagadesh Kumar's today "abruptly" ended an academic council meeting after being forced to allow a discussion on the 13-day-old hunger strike, with the administration accusing students of pulling his shirt as he was walking out.

Students' union president Kanhaiya Kumar has denied the charge.




"When the vice-chancellor proceeded towards his office from the venue, some students attempted to surround him by forming a human chain and prevent him from moving forward," a statement from university PRO Poonam Kudaisya alleged.

"Some students literally pulled his shirt and tried to pin him down. However, the vice-chancellor, with the help of security staff, managed to reach his office. We appeal to the JNU community to use peaceful means to resolve the issue rather than resorting to violent methods."

As the meeting began at 2.30pm, students including the eight still on hunger strike chanted slogans outside.

Three of the council's four student members - Kanhaiya, students' union vice-president Shehla Rashid and general secretary Rama Naga - insisted the strike be discussed urgently. Several deans and chairpersons of the university's academic centres backed the students' stand.

The VC allowed the discussion, which went on for around an hour, but gave no commitments, a dean who was present told The Telegraph. Kumar, he said, then abruptly adjourned the meeting and strode off around 4.15pm.

Shehla followed him out saying: "Sir, you cannot leave. The blood of anyone who may die in the strike is on your hands."

Escorted by about a dozen guards, Kumar left with chairperson Amita Singh of the Centre for the Study of Law and Governance and the controller of examinations, Colonel Hanuman Sharma. But they walked into a protest by over 200 students outside.

Kumar broke out into a jog, heading for the administrative block 250 metres away, across a garden flanked by students holding hands and shouting: " Bhagoda VC waapas aao (Absconding VC come back)."

After the VC and the guards reached the administrative block, the students continued sloganeering outside the glass doors, covering them with gamchhas or scarves when the guards began video-recording them from behind the doors.

Kanhaiya denied that Kumar had been manhandled or had his shirt pulled. "The VC has been video-graphed being escorted by a dozen security officers while students were peacefully singing songs and raising slogans," he said.

"He should be thankful that JNU-ites are democratic people, else they would have pulled his neck."

The students have been demanding revocation of the punishments awarded to 19 students over a February 9 event commemorating Parliament attack convict Afzal Guru on the campus.

Shehla and Rama had initially been stopped from entering today's meeting as they were carrying fruits they meant to offer the VC on behalf of the strikers.

Shehla cut her foot on a glass shard during a scuffle with security guards. The students were eventually allowed to enter with the fruits, which Rama presented to Kumar.

The dean who spoke to this newspaper said the fourth student member, students' union joint secretary Saurabh Sharma of the ABVP, "called us teachers Pakistani agents for supporting the strikers".

Saurabh said: "I told the professors they had supported anti-national activities like 'Pakistan zindabad' slogans."

Thursday, 12 May 2016

वह वी सी चाहिए जो कैंपस के हित-अहित का मतलब जानता हो ------ कन्हैया कुमार

 जब रामा नागा ने अपनी भूख हड़ताल के तेरहवें दिन आपको कुछ फल भेंट में दिए तो आपके मन में एक पल के लिए भी आत्मग्लानि का भाव जगा? जब सौरभ शर्मा ने आपके सामने जेएनयू के शिक्षकों को 'पाकिस्तानी एजेंट' कहा तो आपके दिमाग में अनुशासन जैसा कोई शब्द आया? क्या आप सौरभ शर्मा को डाँटने से डर रहे थे? जब आपको जेएनयू से इतनी नफ़रत है तो आप यहाँ वीसी क्यों बन गए?




"जे एन यू  एस यू  अध्यक्ष कन्हैया कुमार के सेडीशन वाले निर्णय में  'उपकार ' फिल्म  के  एक गीत का वर्णन है। 'बुलंदी' फिल्म का यह डायलाग  भी छात्रों  व विद्यालयों  के सम्बन्धों  पर महत्वूर्ण  प्रकाश डालता है। एक अध्यापक छात्रों के विरुद्ध अपने प्राचार्य को पुलिस एक्शन लेने से रोक देता है जबकि जे एन यू  वी सी ने अपने तीन-तीन निर्दोष छात्रों को झूठे वीडियों के आधार पर जेल भिजवा दिया था। इनके बारे में  कन्हैया कुमार का प्रेस रिलीज़  व स्टेटस ध्यान देने योग्य हैं  । "( विजय राजबली माथुर )

Press Release
The Academic Council meeting of JNU was held today at 2.30 pm at SSS 1 Committee Room. JNUSU demanded that the first agendum to be discussed in the meeting should be HLEC Report as it is a matter of utmost urgency since students have been on Indefinite Hunger Strike for the last 13 days against the unjust enquiry and punishments stated in this report. The VC initially did not agree to this demand, but later on after requests by both the teacher and the student representatives he had to concede to our demand and discuss the HLEC report as the first agendum.
Most of the AC members said that the HLEC Report is a farce and all the punishments meted out are unjustified. However, the VC insisted that this matter could be discussed later.
AC members refused to accept this attempt to postpone the discussion on HLEC any further. The VC in the capacity of the Chairperson of the Council hurriedly adjourned the meeting and ran away from the Committee Room. It is to be noticed that in his very first Academic Council meeting as the VC of the University, he failed even to address, what to speak of resolving any of the concerns of the students’ and teachers’ community.
The members of the AC passed a resolution after the VC left, condemning the adjournment of the meeting and stating that “the whole range of punishments meted out to students is excessive and that the harsher punishments such as rustication, suspension, banishment from campus, and exorbitant fines should be immediately revoked”.
Addressing the student community after the adjournment of the meeting JNUSU President Kanhaiya Kumar stated, “This is very unprecedented that the JNU VC ran away from the Academic Council. There can be no healthy academic functioning without addressing the concerns of the students. Because of his hasty adjournment of the meeting, none of the other important issues such as OBC reservation, deprivation points, marks of viva voce, hostel crisis, etc. could even be raised. The VC,instead of addressing these issues, is claims that he was mistreated and manhandled by the students. This is a baseless allegation as the VC has been videographed being escorted by a dozen security guards while students peacefully sang songs and raised slogans. Not a hair on his head has been harmed. In line with the highest traditions of JNU, students were peacefully raising their demands in front of him since he has not spoken to the students publicly even once after joining his office. This is a matter of high insensitivity that even after 13 days of our indefinite Hunger Strike, the VC remains deaf and dumb to our demand to withdraw the biased HLEC Report.”
- Kanhaiya Kumar
JNUSU President
10.05.16

https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/1745551308996333




Kanhaiya Kumar
11 May 2016  at 2:45pm · 
जेएनयू में आरएसएस के कैंपस प्रबंधक यानी हमारे वीसी महोदय,

कल आपने दिखा ही दिया कि झूठ किस तरह नंगे पाँव (हालाँकि आपने जूते पहन रखे थे) भागता है। जिस कमेटी को दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ए.पी. शाह ने अवैध कहा है, उसके फ़ैसलों पर आप एकेडेमिक काउंसिल की मीटिंग में असहमति का एक शब्द तक नहीं सुनना चाहते हैं। कल हमारे साथियों की भूख हड़ताल का तेरहवाँ दिन था। आपने उनसे बात क्यों नहीं की, यह आपके आकाओं के बयान सुनकर समझ में आता है। यह भी समझ में आता है कि आप उनके स्वास्थ्य की पूरी तरह अनदेखी करके एकेडेमिक काउंसिल की मीटिंग में उनके मसले पर बहस तक नहीं करना चाहते। लेकिन यह समझ में नहीं आता कि आप शिक्षकों और विद्यार्थियों का भरोसा खोकर अपने पद पर क्यों बने रहना चाहते हैं। शिक्षकों ने हमारे साथ जो एकजुटता दिखाई है उसे प्रगतिशील आंदोलन में हमेशा याद रखा जाएगा। वीसी के पद पर ऐसे व्यक्ति को बैठने दीजिए जो कैंपस के हित-अहित का मतलब जानता हो।
आपके लिए कुछ सवाल हैं: 
 जब रामा नागा ने अपनी भूख हड़ताल के तेरहवें दिन आपको कुछ फल भेंट में दिए तो आपके मन में एक पल के लिए भी आत्मग्लानि का भाव जगा? जब सौरभ शर्मा ने आपके सामने जेएनयू के शिक्षकों को 'पाकिस्तानी एजेंट' कहा तो आपके दिमाग में अनुशासन जैसा कोई शब्द आया? क्या आप सौरभ शर्मा को डाँटने से डर रहे थे? जब आपको जेएनयू से इतनी नफ़रत है तो आप यहाँ वीसी क्यों बन गए?

ये तो कुछ सवाल थे। अब मैं आपको जेएनयू की परंपरा के बारे में कुछ बताना चाहूँगा। यह जेएनयू की परंपरा ही है जो थीसिस जमा करने वाले साथियों को सब कुछ दाँव पर लगाकर अपने साथियों के लिए भूख हड़ताल पर बैठने की प्रेरणा देती है। यह जेएनयू की परंपरा ही है जो एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण को लागू कराने के लिए कभी प्रशासन तो कभी शिक्षकों से कड़े सवाल करने की ताकत देती है। यह जेएनयू की परंपरा ही है जो पढ़ाई को क्लासरूम के बाहर ले जाकर आदिवासियों, दलितों, किसानों, स्त्रियों आदि के संघर्ष से जोड़ती है। यह जेएनयू की परंपरा ही है जो आपकी तमाम छात्र विरोधी हरकतों के बावजूद आपके सामने केवल तेज़ आवाज़ में सवाल करने वाले विद्यार्थियों को खड़ा करती है न कि ढेला-पत्थर लेकर निशाना साधने वाले विद्यार्थियों को। अगर आप इस परंपरा का सम्मान नहीं करते हैं तो आप हमारे लिए सबसे बड़े आउटसाइडर बने रहेंगे, जो न केवल आपके लिए बल्कि हमारे लिए भी बहुत निराशाजनक बात होगी।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1115219741834024&set=a.302359729786700.69345.100000380251310&type=3

v d o 

Wednesday, 11 May 2016

कन्हैया के बिहार दौरे पर मीडिया की नकारात्मक भूमिका की वजह ------ संतोष सिंह





 ,,,सेमीनार में मुख्य तौर पर प्रबंधन के दबाव को बहुत ही बेवाकी से मीडियाकर्मियों ने अपनी बात रखी ,,,,,कैसे पत्रकारों को किसी खास एंगल से खबर लिखने और दिखाने के लिए मजबूर किया जा रहा है और ऐसा नही करने पर कैसे रातो रात नौकरी से हटाया गया इस पर पत्रकारों ने खुल कर अपनी बात रखी,,,, ..................
मीडिया कर्मियों  को सहयोग  करिए जिम्मेवारी आप जैसे लोगो के कंधे पर हैं आरोपित मत करिए उनके बीच जाइए बहुत बुरी स्थिति है ,,,,,


Santosh Singh
May 9 at 8:09pm ·
जनशक्ति भवन में ,कन्हैया का बिहार दौरा और मीडिया की भूमिका ,विषय पर सेमीनार का आयोजन किया गया था। आयोजन कन्हैया के बिहार दौरे कि तैयारी में परोक्ष या अपरोक्ष से जुड़े लोगों के द्वारा बुलाया गया था ।।।
हलाकि मैं थोड़ा विलम्भ से पहुंचा लेकिन थोड़ी देर में ही सेमीनार किस उद्देश्य से बुलाया गया था समझ में आने लगा,,,,,रिपोर्टिंग को लेकर पहली बार किसी राजनैतिक दल की  और से इस तरह का पहल देखने को मिला,,,,कन्हैया के बिहार दौरे पर मीडिया की नकारात्मक भूमिका  की क्या वजह रही और फिर बेहतर कवरेज के लिए और क्या क्या किये जा सकते हैं,,,,,
जहां तक मुझे जानकारी दी गयी थी लगभग सभी मीडिया हाउस के लोगों के साथ साथ कई पुराने पत्रकार को भी आमंत्रित किया गया था ,,,एक दर्जन से अधिक मुख्यधारा के पत्रकार सेमीनार में भाग लेने आये भी हुए थे ,,,सेमीनार में मुख्य तौर पर प्रबंधन के दबाव को बहुत ही बेवाकी से मीडियाकर्मियों ने अपनी बात रखी ,,,,,कैसे पत्रकारों को किसी खास एंगल से खबर लिखने और दिखाने के लिए मजबूर किया जा रहा है और ऐसा नही करने पर कैसे रातो रात नौकरी से हटाया गया इस पर पत्रकारों ने खुल कर अपनी बात रखी,,,, 
लेकिन एक सवाल जो एक घंटे से अधिक समय से चल रहे सेमीनार के दौरान बार बार मेरे मन में उठ रहा था वह बिहार जो परिवर्तन की धरती रही है और परिवर्तन के साथ चलने के लिए अभी भी जाना जाता है उस बिहार को आखिर हो क्या गया,,,,,,
आधुनिक काल कि ही बात करे तो गांधी का चम्पारण सत्याग्रह हो, जेपी का 1974 का आन्दोलन हो या फिर बोफोर्स और वीपी सिंह का राजीव गांधी के खिलाफ संखनाद हो या फिर अन्ना का आन्दोलन बिहार की मीडिया और बिहार की जनता पूरी ताकत के साथ इस परिवर्तन के जंग में एक साथ खड़ा था ,,,,लेकिन कन्हैया के मामले में ऐसा क्या हुआ कि हमारे मीडिया के बंधु कन्हैया के पटना पहुंचने के साथ ही नकारात्मक रिपोर्टिंग शुरु कर दिये,,,
इस विषय पर सोच ही रहे थे कि आयोजक ने मुझे बोलने के लिए आमंत्रित कर दिया,,, मैं क्या बोलू ,,,कहां से शुरु करु किसके बारे में बोलू,,सच कहे तो पहली बार महाभारत के उस युद्द मैंदान में जब अर्जून कह रहा था वो तो मेरे काका है वो तो मेरे दादू हैं किस पर वाण चलाउ,,, मेरी स्थिति भी महाभारत के उसी अर्जून की तरह ही था सामने उस संस्थान पर एक से एक हमला हो रहा था जिस संस्थान की पवित्रा की कसमे रोज खाते हैं,,, लेकिन आज मेरे साथ कृष्ण मौंजूद नही थे मैंने शुरुआत ही इसी से किया मित्रों आज के दौर में मीडिया से हमलोग जैसे जो लोग जुड़े हैं प्लीज उनसे सहानुभूति रखिए,,,, हमलोग किसी आन्दोलन कि उपज नही है कही कोई ट्रेनिंग नही लिया है पढाई कि बात करे तो इससे कोई वास्ता नही रहा है ,,,लेकिन पत्रकार है संस्थान ने किसी को कलम दिया है तो किसी को लोगो ,,,,खबर लिखनी ही है और खबर दिखानी ही है मजबूरी है सवाल नौकरी का भी है ऐसे में अगर हमलोगो का आचरण बंदर के हाथ में अंतूरा जैसा भी हो तो प्लीज माफ कर दीजिए।।।
मेरा आग्रह है इसी तरह का सेमीनार ,,आप जो नाटक करते हैं या फिर मौंर्यालोक में जो ज्ञाण बांटते हैं प्लीज हम लोगो को किसी तरह से जोड़िए पता नही कब किसे पत्रकार होने कि वजह समझ में आ जाये।।
मित्रों आपको बता दे हम लोगो में ये भी क्षमता नही है कि प्रबंधन जो चाह रहा है उस पर भी खरे  उतर जाये ,,, आज किसी को कोई काम नही मिल रहा है तो वो मीडिया में आ रहे हैं वही वकील और नेता वाली स्थिति है।।इसलिए चलते चलते मेरी यही सलाह है इस हालात से बाहर निकालने में मीडिया कर्मियों  को सहयोग  करिए जिम्मेवारी आप जैसे लोगो के कंधे पर हैं आरोपित मत करिए उनके बीच जाइए बहुत बुरी स्थिति है ,,,,,

https://www.facebook.com/santoshsingh.etv/posts/1068875636484893

Monday, 9 May 2016

नए कदम उठायेँ : भूख हड़ताल समाप्त करें ------ जगदीश्वर चतुर्वेदी




Jagadishwar Chaturvedi
09 May 2016 ·
कल 10 तारीख को JNU एकेडमिक कौंसिल की मीटिंग है।यह वीसी की परीक्षा का एक और दिन है।यह छात्रों-शिक्षकों की एकता के प्रदर्शन का दिन भी है।हमें देखना होगा कि किस तरह अकादमिक परिषद के मेम्बर छात्रों के पक्ष में खड़े होते हैं।आज यदि कन्हैया कुमार थोड़ा सा भी स्वस्थ है तो उसे इस मीटिंग में जरूर रहना चाहिए।वरना उपाध्यक्ष,महासचिव और संयुक्त सचिव रहेंगे।ऐसी स्थिति में छात्रों की राय के विभाजित होने के चांस हैं। 
विद्यार्थी परिषद के लोग वीसी से और कड़े दण्ड की मांग कर रहे हैं,जबकि छात्रसंघ की मांग है उच्चस्तरीयजांच समिति की इकतरफा जांच के आधार पर 9फरवरी के घटनाक्रम को लेकर जेएनयूएसयू के पदाधिकारियों और अन्य छात्रों के खिलाफ जो सजा सुनाई गयी है उसे वापस लिया जाय और कैंपस में सामान्य स्थिति बहाल की जाय।
हम वीसी से मांग करते हैं कि 9फरवरी की घटना को वे अपनी और आरएसएस की नाक का सवाल न बनाएं।जेएनयू प्रशासन को इस मामले में पक्षधरता त्याग करके छात्रों के हितों के संरक्षक की भूमिका निभानी चाहिए।यदि आज प्रशासन ने फैसला वापस नहीं लिया तो जेएनयू स्थायी तौर एक गहरे संकट में फंस जाएगा और वीसी को सामान्यतौर पर काम करने में अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।9फरवरी की घटना को लेकर जेएनयू प्रशासन का रूख बेहद खराब ,राजनीतिकदृष्टि से पक्षपातपूर्ण और छात्रविरोधी रहा है। यदि वीसी आज अपने फैसले को वापस नहीं लेते तो शिक्षकों को और सख्त कदम उठाने के बारे में सोचना चाहिए और छात्रों को अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल समाप्त करके नए कदम उठाने के बारे में विश्वविद्यालय की आमसभा बुलानी चाहिए और छात्रों की राय लेनी चाहिए।
https://www.facebook.com/jagadishwar9/posts/1277369412291763






इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ  की  अनशन रत संमाँजवादी अध्यक्ष ऋचा सिंह को समर्थन देते उ प्र भाकपा के नेतागण 

वस्तुतः क्रूर-कपटी,निर्मम,निष्ठुर और निर्लज सरकार के विरुद्ध 'अनशन' एक कारगर हथियार नहीं है। जे एन यू और इलाहाबाद के छात्रों को गुमराह करके अनशन करवाया गया है जो गलत निर्णय था।------
(विजय राजबली माथुर )

Saturday, 7 May 2016

जे एन यू बचाओ - लोकतन्त्र बचाओ







लखनऊ, 07 मई 2016 :

आज साँय  4 बजे गांधी प्रतिमा, हजरतगंज पर  'जे एन यू बचाओ संघर्ष समिति ' के तत्वावधान में  एक धरने का आयोजन जे एन यू के छात्रों  के संघर्ष का समर्थन करने व उनके साथ एकजुटता का बोध कराने व सरकार को आगाह करने हेतु किया गया। धरना -सभा का संचालन रमेश दीक्षित व अध्यक्षता वंदना मिश्रा ने किया। 
सभा को संबोधित करने वाले अन्य लोगों में प्रमुख थे - भाकपा , उत्तर प्रदेश के राज्यसचिव डॉ गिरीश,एटक के संरक्षक अरविंद राज  स्वरूप, सीटू के प्रदेश अध्यक्ष रमाशंकर बाजपेयी ,प्रेमनाथ राय, राही मासूम रज़ा साहित्य एकेडमी के महामंत्री राम किशोर,जसम के कौशल किशोर,इप्टा के राकेश,प्रलेस के वीरेंद्र यादव और शकील सिद्दीकी , वर्कर्स काउंसिल के ओ पी सिन्हा व के के शुक्ल आदि थे। 
वक्ता गण एकमत से कन्हैया और उनके साथियों के साथ उनके संघर्ष में अपना समर्थन और आशीर्वाद व्यक्त कर रहे थे। उन्होने साधारण जनता से आह्वान किया कि इस संघर्ष को कन्हैया व कुछ छात्रों का व्यक्तिगत मामला न समझें बल्कि यह जनतंत्र पर हमला है और शिक्षा संस्थाओं को नष्ट करने के बाद जनता के अन्य अधिकारों को कुचलने का क्रम शुरू होने वाला है। अंततः संविधान को नष्ट करके फासिस्ट कारपोरेटी तानाशाही स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है जिसकी प्रथम चोट हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्रों पर पड़ी और उनके होनहार छात्र रोहित वेमुला को अपनी ज़िंदगी से भी हाथ धोना पड़ा। जे एन यू पर तो इतना तीखा हमला किया गया कि पूरी यूनिवर्सिटी को देशद्रोही कह कर बदनाम किया गया और तीन छात्रों पर अभी भी मुकदमे चल रहे हैं और वे जमानत पर हैं। 
सभा के अंत में 'आज़ादी' गीत का सामूहिक गायन भी उपस्थित लोगों ने करके जे एन यू के संघर्ष को नैतिक बल प्रदान किया। 
अल्प सूचना पर भी लखनऊ के प्रबुद्ध लोगों ने एकत्र होकर जे एन यू छात्रों की हौसला अफजाई पूरे तौर पर की। सभा में उपस्थित अन्य लोगों में प्रमुख नाम हैं --- डॉ  डंडा लखनवी,जनसंदेश टाईम्स के प्रधान संपादक सुभाष राय,भाकपा लखनऊ के जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़,सर्व कामरेड पी एन दिवेदी,मोहम्मद अकरम खान,फूल चंद यादव,आनंद रमन,विजय माथुर ,दिनकर कपूर एवं  महिला फेडरेशन व एडवा की महिलाएं आदि। 


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Ramashanker Bajpai :
20:30 hrs ·
बराबरी और हक़ के लिए लड़ता छात्र जब 
तक सुरक्षित है और जिन्दा है.....तभी तक
यह लोकतंत्र भी सुरक्षित है...
आज लखनऊ मे गांधी प्रतिमा, जी पी ओ
पार्क में सभी लोकतान्त्रिक ताकतों द्वारा
आयोजित धरना जो कि jnu,amu, hcu,
bbu सहित देश के विश्वविद्यालयो को
निशाना बनाने के खिलाफ था, जिसमे
शहर के शिक्षक, पत्रकार, साहित्यकार
लेखक,आलोचक, कलाकार, विद्याथी,
महिला सगंठन, ट्रेड्यूनियंस एवं
बुद्दिजीवियों ने भारी संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज करी ।
धरने को प्रो० रमेश दीक्षित, डॉ० गिरीश
प्रेमनाथ राय, अंशु केडिया, सी एस वर्मा
अतहर हुसैन,आशा मिश्रा, प्रशांत त्रिवेदी
रमेश सिंह सेंगर, अमित मिश्रा और
वंदना मिश्रा,नितीश,रविकांत,जहीर सिद्दीकी
दीपा चौधुरी,खालिद भाई, आशीष अवस्थी,
राकेश, वीरेंद्र जी,प्रवीण पाण्डेय तथा अरविन्द राज स्वरुप आदि ने संबोधित किया ।
इस संघर्ष में अपनी बुलंद आवाज से
jnu के पूर्व छात्र साथी शन्ने भाई ने
एक नज़्म के जरिये इस आंदोलन को तेजी
से बढ़ाने का आवाहन किया ।।
‪#‎sandwichJNU‬.
https://www.facebook.com/ramashanker.bajpai/posts/1143028769062570

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जनसंदेश टाईम्स,लखनऊ,पृष्ठ-5 ,08 मई 2016 



Friday, 6 May 2016

कन्हैया नाम को सार्थक करें साथियों सहित 'अनशन ' छोड़ें ------ विजय राजबली माथुर




सुयश सुप्रभ
05-05-2016  
संघियों, अब तो आप ख़ुश हो गए होंगे। Kanhaiya एम्स पहुँच गए, वह भी बेहोशी की हालत में। आपको उनका हवाई जहाज से घूूमना बर्दाश्त नहीं हो रहा था। आपके प्रभु मोदी जब अडानी के हवाई जहाज से घूमते हैं तब वह नेक काम कर रहे होते हैं। हमारे कन्हैया जब किसी आयोजक या संगठन के पैसे से हवाई जहाज में बैठते हैं तो आपका खाना नहीं पचता है। यह अपच असल में आपके वैचारिक ज़हर का नतीजा है।

कन्हैया उन तमाम युवाओं के प्रतिनिधि हैं जो शिक्षा को बाज़ार का माल बनाने से रोकना चाहते हैं। वे जब लड़ाकू विमानों पर 59,000 करोड़ रुपये खर्च करने पर सवाल उठाते हैं तो मीडिया को यह मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं लगता। वे जब नीतीश कुमार से समान स्कूली शिक्षा की बात करते हैं तो इस बात को सुर्खियों में जगह नहीं मिलती। मीडियाकर्मियों के बच्चे भी तो स्कूल जाते हैं। कल कॉलेज जाएँगे। क्या वे 15-20 लाख रुपये की सालाना फ़ीस देकर अपने बच्चों को पढ़ा पाएँगे? कन्हैया उनके बच्चों के सुरक्षित भविष्य की ही तो लड़ाई रह रहे हैं। इस तस्वीर को अपने अख़बारों, वेबसाइटों आदि में जगह दीजिए। कन्हैया आपकी ही लड़ाई लड़ रहे हैं। कमेटी का फ़ैसला देशद्रोहियों के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि शिक्षा को बाज़ार का माल बनाने का विरोध कर रहे एक्टिविस्टों के ख़िलाफ़ है।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10154181021289696&set=a.128015264695.103352.832064695&type=3

क्रूर फासिस्ट कैसा सोचते हैं 'आरती मिश्रा ' की टिप्पणी में देखें :

लेकिन बाजारवादी कारपोरेट समर्थक वामपंथी भी कन्हैया के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहे हैं उनको बेबाक जवाब यू पी के पूर्व गृह राज्य मंत्री की पुत्री साहिबा ने दिया है , वह सराहनीय व ध्यान देने योग्य है :
निर्मम ,निष्ठुर , निर्लज्ज फासिस्ट सरकार से लड़ने के लिए 'अनशन ' कारगर हथियार नहीं है अतः कन्हैया व उनके साथियों को तत्काल अनशन समाप्त कर 'शठे शाठ्यम ' मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
06-05-2016 

Wednesday, 4 May 2016

Red Salute to both A K Hangal and Vijay Hangal. – Shameem Faizee





Janardanan R Kunnathoor
03 May,2016  
Hangals Donate Rs. One lakh to CPI
Wellknown film artist Com. A K Hangal was with the party from his student life in Peshawar, now in Pakistan. He was basically a tailor, but after migration to Mumbai, he started taking interest in theatre activities and later joined Indian People’s Theatre Association (IPTA) and was its national president at the time of his death.
A K Hangal and his son Vijay Hangal both joined the film industry, the later was a cameraman. Both were dedicated to people’s cause, hence never ever bothered about money. They lived in rented house of one room each.
In the last days of A K Hangal, he was financially helped by friends and admirers including number of party cadres. When he died, some money was left which he gave to his son Vijay.
Vijay also died soon, but left a will. A few days back, his lawyer Kamal Deep Singh Sethi telephoned to me to say that Vijay has willed that one lakh rupees be given to the CPI headquarters. He wanted the bank account details which I sent him.
Last week Kamal Deep Singh Sethi transferred Rs. One Lakh to the CPI account.
We thank Kamal and Red Salute to both A K Hangal and Vijay Hangal.
– Shameem Faizee
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=988812751200306&set=a.212435088838080.51376.100002147701680&type=3

Tuesday, 3 May 2016

देश में RSS के ‘जय श्रीराम’ को नहीं आने देंगे : राहिला परवीन AIFS की JNU अध्यक्ष








अलीगढ। ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एआईएसएफ) की जेएनयू अध्यक्ष राहिला परवीन सहित इस संगठन के कई नेताओं ने रविवार को एएमयू में आयोजित एक कार्यक्रम में मंच से अपनी बात कही। राहिला परवीन नेे कहा कि यह देश गांधी के ‘राम’ का है।
आरएसएस के ‘जय श्रीराम’ का नहीं। हम आरएसएस के ‘जय श्रीराम’ को नहीं आने देंगे। एआईएसएफ नेताओं ने कहा कि देशवासियों को ‘राम’ एवं ‘जय श्रीराम’ के अंतर को समझना होगा।
एआईएसएफ एवं अन्य वामपंथी नेताओं ने एएमयू इंपलाइज यूनियन कार्यालय में आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए जेएनयू के कन्हैया को आजादी की दूसरी लड़ाई का योद्धा बताया। वक्ताओं ने आरोप लगाया कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के रोहित वेमुला मामले को दबाने के लिए फांसीवादी ताकतों ने जेएनयू प्रकरण को उछाल दिया। इसमें एबीवीपी के साथ तथाकथित राष्ट्रवादी टीवी न्यूज चैनल शामिल थे।
सुश्री परवीन ने रोहित वेमुला की तरफा इशारा करते हुए कहा कि वह उस मां की जय बोलेंगे जिसने जन्म देकर अपने लाल को अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए भेजा। शेर पर सवार हाथ में त्रिशूल एवं भगवा झंडा वाली आरएसएस की मां की जय नहीं बोलेंगे। उन्हाेंने कहा कि सीमा पर लड़ने वाले फौजी के किसान पिता आत्महत्या कर रहे हैं। इसकी चिंता सरकार को नही।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सेनानी 'भारत माता की जय’ नहीं ‘वंदे मातरम्’ एवं ‘जय हिंद’ बोलते थे। जबकि फांसीवादी ताकतें हर चीज को मजहब में बांटकर अपनी कुर्सी बचाने में लगी  हैं। उन्हाेंने हिंदूवादी संगठनों पर व्यंग करते हुए कहा कि घर वापसी की बात करने वाले मुख्तार अब्बास नकवी की घर वापसी क्यों नहीं कराते? केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की सोच ब्राह्मणवादी है। ये सामंतवादी सोच से ग्रसित हैं।
विरोध में उठ रहे आवाज को दबा देना चाहते हैं, पर भूल गए हैं कि गांधी को मार जरूर दिया गया, पर वे आज भी जिंदा हैं। कार्यक्रम को प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब, एआईएसएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वलीउल्लाह खादरी, भाकपा के राज्य सचिव डॉ. गिरीश, डॉ. एम रहमान, डॉ. शमीम अख्तर आदि ने संबोधित किया। अध्यक्षता फनस एवं संचालन वीणा मरियम भार्गवी ने किया।
साभार ::
http://teesrijungnews.com/state/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4-%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%A6%E0%A4%AC%E0%A4%BE/

Monday, 2 May 2016

विविधता में एकता वाले देश में एकल विचारधारा नहीं थोपी जा सकती ------ कन्हैया कुमार






पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हाल में मजदूर दिवस : पहली मई को ए आई एस एफ तथा ए आई वाई एफ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित 'आज़ादी कार्यक्रम ' में जे एन यू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने शिक्षा को धर्म निरपेक्षता एवं वैज्ञानिक आधार पर समान रूप से सबको उपलब्ध कराने की मांग उठाई। नौजवानों, छात्रों तथा प्रबुद्ध जनों से खचाखच भरे हाल में कन्हैया को सुनने के लिए लोगों में तीव्र जिज्ञासा व उत्सुकता पाई गई। 

कन्हैया ने बेबाक कहा कि, जो लोग आज़ादी के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों की चापलूसी करते थे आज संविधान प्रदत्त जन अधिकारों को छीनने का कुचक्र रच रहे है और इसके लिए वे जातिगत व सांप्रदायिक आधार पर जनता को बांटने तथा आपस में लड़ाने का ताना बाना बुन रहे हैं। उन्होने देश की जनता से अपील की कि, हमें न्यूनतम सहमति के आधार पर अधिकतम एकता की बात करनी चाहिए और अपने देश की 'विविधता में एकता ' वाली संस्कृति की रक्षा के लिए खड़े होना चाहिए। एक रंग और एक  राग अलापने वालों से सावधान रह कर रंग- बिरंगी छटा बिखेरते हुये भारत को लोकतान्त्रिक समाजवादी व्यवस्था पर चलाने के लिए भेदभाव मूलक ब्राह्मण वाद एवं शोषण पर आधारित पूंजीवाद का विरोध करने का उन्होने जनता से आह्वान किया। 





Sunday, 1 May 2016

लखनऊ में मई दिवस रैली व सभा

आज मई दिवस के शुभावसर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के रस्ट्रीय सचिव कॉम. अतुल कुमार अंजान नगर निगम, लखनऊ , मज़दूरों को सम्बोधित करते हुए














लखनऊ, 01 मई 2016 :
आज साँय चार बजे से लखनऊ नगर निगम कार्यालय पर एटक,सीटू,एकटू, बैंक, बिजली, राज्य कर्मचारियों, प्राइवेट आटो चालक यूनियन, ई- रिक्शा यूनियन आदि के संयुक्त तत्वावधान में  एकत्र मजदूर साथियों  का मई जुलूस  प्रारम्भ हुआ जो जी पी ओ, हजरतगंज बाज़ार, लालबाग, होता हुआ वापस  नगरनिगम कार्यालय पर आकर सभा में परिवर्तित हो गया। 

जुलूस में शामिल अन्य लोगों के अतिरिक्त  अरविंद राज स्वरूप, आर एस बाजपेयी, चंद्रशेखर, रामेश्वर प्रसाद यादव,के के शुक्ल, ओ पी सिन्हा, रामचन्द्र, कल्पना पांडे, राम इकबाल उपाध्याय,  अकरम खान,शरीफ और  विजय माथुर भी रहे। 

सभा की अध्यक्षता सदरुद्दीन राणा ने की उनके साथ मंचासीन थे डॉ वी के सिंह,  सीपीआई एवं किसान सभा नेता कॉम अतुल कुमार अन्जान , अरविंद राज स्वरूप, आर एस बाजपेयी आदि। 

एटक संरक्षक एवं भाकपा, उ प्र के राज्य सह-सचिव कामरेड अरविंद राज स्वरूप ने अपने उद्बोद्धन द्वारा सभा का प्रारम्भ किया और 01 मई 1886 की  शिकागो की घटना का उल्लेख करते हुये मजदूरों की वर्तमान समस्याओं पर प्रकाश डालते हुये व्यापक मजदूर एकता की मांग उठाई। सीटू के प्रदेश अध्यक्ष आर एस बाजपेयी ने भी मज़दूर एकता का समर्थन करते हुये इसे आज की एक अनिवार्य आवश्यकता बताया। अन्य वक्ताओं ने भी इसी दिशा में अपनी बातें प्रस्तुत कीं। 
भाकपा के राष्ट्रीय सचिव व किसानसभा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड अतुल कुमार अंजान ने 1886 के शहीदों को श्रद्धा नमन करते हुये मजदूर साथियों को मई दिवस की शुभकामनायें दीं। साथ ही साथ उन्होने चेतावनी भी दी कि, यदि अब भी संगठित क्षेत्र के मजदूरों ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए संघर्ष नहीं किया तो धीरे-धीरे संगठित क्षेत्र समाप्त होता जाएगा और संविदा मजदूर उनका स्थान लेते जाएँगे और संगठित क्षेत्र का मजदूर भी जाति - धर्म के खेमों में बंट कर अपना अस्तित्व खोता  जाएगा। 2003 में बाजपेयी सरकार ने कर्मचारी पेंशन को समाप्त कर दिया था अब उसके बाद नियुक्त कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा समाप्त हो चुकी है। उनका कहना था कि न केवल मजदूरों वरन किसानों तथा खेत मजदूरों को भी एकजुट करना होगा और उनको वैज्ञानिक समाजवाद की ओर मोड़ने के लिए जाति वादी व सांप्रदायिक शक्तियों से संघर्ष करना होगा। विभिन्न मजदूर यूनियनों से शुरुआत करके सभी वैज्ञानिक समाजवाद समर्थक शक्तियों की एकता के बगैर जनता का जीवन निरंतर कष्टप्रद होता जाएगा। 

कामरेड अंजान के उद्बोधन के बाद इप्टा कलाकारों ने कामरेड उदयवीर सिंह के निर्देशन में नाटक 'अच्छे दिन' की सराहनीय प्रस्तुति की। नाटक के बाद सदरुद्दीन राणा साहब ने सभा समापन की घोषणा की। 



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