,,,सेमीनार में मुख्य तौर पर प्रबंधन के दबाव को बहुत ही बेवाकी से मीडियाकर्मियों ने अपनी बात रखी ,,,,,कैसे पत्रकारों को किसी खास एंगल से खबर लिखने और दिखाने के लिए मजबूर किया जा रहा है और ऐसा नही करने पर कैसे रातो रात नौकरी से हटाया गया इस पर पत्रकारों ने खुल कर अपनी बात रखी,,,, ..................
मीडिया कर्मियों को सहयोग करिए जिम्मेवारी आप जैसे लोगो के कंधे पर हैं आरोपित मत करिए उनके बीच जाइए बहुत बुरी स्थिति है ,,,,,
Santosh Singh
May 9 at 8:09pm ·
जनशक्ति भवन में ,कन्हैया का बिहार दौरा और मीडिया की भूमिका ,विषय पर सेमीनार का आयोजन किया गया था। आयोजन कन्हैया के बिहार दौरे कि तैयारी में परोक्ष या अपरोक्ष से जुड़े लोगों के द्वारा बुलाया गया था ।।।
हलाकि मैं थोड़ा विलम्भ से पहुंचा लेकिन थोड़ी देर में ही सेमीनार किस उद्देश्य से बुलाया गया था समझ में आने लगा,,,,,रिपोर्टिंग को लेकर पहली बार किसी राजनैतिक दल की और से इस तरह का पहल देखने को मिला,,,,कन्हैया के बिहार दौरे पर मीडिया की नकारात्मक भूमिका की क्या वजह रही और फिर बेहतर कवरेज के लिए और क्या क्या किये जा सकते हैं,,,,,
जहां तक मुझे जानकारी दी गयी थी लगभग सभी मीडिया हाउस के लोगों के साथ साथ कई पुराने पत्रकार को भी आमंत्रित किया गया था ,,,एक दर्जन से अधिक मुख्यधारा के पत्रकार सेमीनार में भाग लेने आये भी हुए थे ,,,सेमीनार में मुख्य तौर पर प्रबंधन के दबाव को बहुत ही बेवाकी से मीडियाकर्मियों ने अपनी बात रखी ,,,,,कैसे पत्रकारों को किसी खास एंगल से खबर लिखने और दिखाने के लिए मजबूर किया जा रहा है और ऐसा नही करने पर कैसे रातो रात नौकरी से हटाया गया इस पर पत्रकारों ने खुल कर अपनी बात रखी,,,,
लेकिन एक सवाल जो एक घंटे से अधिक समय से चल रहे सेमीनार के दौरान बार बार मेरे मन में उठ रहा था वह बिहार जो परिवर्तन की धरती रही है और परिवर्तन के साथ चलने के लिए अभी भी जाना जाता है उस बिहार को आखिर हो क्या गया,,,,,,
आधुनिक काल कि ही बात करे तो गांधी का चम्पारण सत्याग्रह हो, जेपी का 1974 का आन्दोलन हो या फिर बोफोर्स और वीपी सिंह का राजीव गांधी के खिलाफ संखनाद हो या फिर अन्ना का आन्दोलन बिहार की मीडिया और बिहार की जनता पूरी ताकत के साथ इस परिवर्तन के जंग में एक साथ खड़ा था ,,,,लेकिन कन्हैया के मामले में ऐसा क्या हुआ कि हमारे मीडिया के बंधु कन्हैया के पटना पहुंचने के साथ ही नकारात्मक रिपोर्टिंग शुरु कर दिये,,,
इस विषय पर सोच ही रहे थे कि आयोजक ने मुझे बोलने के लिए आमंत्रित कर दिया,,, मैं क्या बोलू ,,,कहां से शुरु करु किसके बारे में बोलू,,सच कहे तो पहली बार महाभारत के उस युद्द मैंदान में जब अर्जून कह रहा था वो तो मेरे काका है वो तो मेरे दादू हैं किस पर वाण चलाउ,,, मेरी स्थिति भी महाभारत के उसी अर्जून की तरह ही था सामने उस संस्थान पर एक से एक हमला हो रहा था जिस संस्थान की पवित्रा की कसमे रोज खाते हैं,,, लेकिन आज मेरे साथ कृष्ण मौंजूद नही थे मैंने शुरुआत ही इसी से किया मित्रों आज के दौर में मीडिया से हमलोग जैसे जो लोग जुड़े हैं प्लीज उनसे सहानुभूति रखिए,,,, हमलोग किसी आन्दोलन कि उपज नही है कही कोई ट्रेनिंग नही लिया है पढाई कि बात करे तो इससे कोई वास्ता नही रहा है ,,,लेकिन पत्रकार है संस्थान ने किसी को कलम दिया है तो किसी को लोगो ,,,,खबर लिखनी ही है और खबर दिखानी ही है मजबूरी है सवाल नौकरी का भी है ऐसे में अगर हमलोगो का आचरण बंदर के हाथ में अंतूरा जैसा भी हो तो प्लीज माफ कर दीजिए।।।
मेरा आग्रह है इसी तरह का सेमीनार ,,आप जो नाटक करते हैं या फिर मौंर्यालोक में जो ज्ञाण बांटते हैं प्लीज हम लोगो को किसी तरह से जोड़िए पता नही कब किसे पत्रकार होने कि वजह समझ में आ जाये।।
मित्रों आपको बता दे हम लोगो में ये भी क्षमता नही है कि प्रबंधन जो चाह रहा है उस पर भी खरे उतर जाये ,,, आज किसी को कोई काम नही मिल रहा है तो वो मीडिया में आ रहे हैं वही वकील और नेता वाली स्थिति है।।इसलिए चलते चलते मेरी यही सलाह है इस हालात से बाहर निकालने में मीडिया कर्मियों को सहयोग करिए जिम्मेवारी आप जैसे लोगो के कंधे पर हैं आरोपित मत करिए उनके बीच जाइए बहुत बुरी स्थिति है ,,,,,
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