Kashi Nath Kewat
January 2 via mobile
करवटें बदल नहीं ,तु अब तो आँखें खोल दे !
तु निकल तो एक बार , इन्कलाब बोल दे !
गाँव -गाँव भय अशांति उठ रहा तूफ़ान है !
क्रांति के सपूत जाग हो रहा बिहान हैं।
तु निकल तो एक बार , इन्कलाब बोल दे !
गाँव -गाँव भय अशांति उठ रहा तूफ़ान है !
क्रांति के सपूत जाग हो रहा बिहान हैं।
Kashi Nath Kewat
20 hours ago via mobile
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राजनीति तो इसी का नाम है !
क्या सचमुच केजरीवाल महान है ?
ब्यवस्था बदलो यह तो महज नारा था !
असली मकसद तो सत्ता सुख हथियाना था !
देखा अन्ना जी का बड़ा नाम है !
इसे भूनाना ही तो केजरीवाल का काम है !
क्या सचमुच केजरीवाल महान है ?
झुठे कसमें-वायदे इनका तकिया कलाम है !
45 करोड़ के बंगले हथियाना इनकी शान है !
क्या सचमुच केजरीवाल महान है ?
पानी दिया ,बिजली दिया फिर देंगे दुनिया -जहान !
पहले पूरा करने दो हमें अपना अरमान !
राजनीति तो इसी का नाम है !
क्या सचमुच केजरीवाल महान है ?
कारपोरेट भ्रष्टाचार के संरक्षक की कारपोरेट दलाल सी पी आई नेता द्वारा खुली पैरवी :
"भारत नमोमय बने या न बने, केजरीवाल या
नंदन निलेकणि प्रधानमंत्री बने या नहीं बने, अब कॉरपोरेट राज से मुक्ति
असम्भव है और इस भय, आतंक, गृहयुद्ध और युद्ध से भी रिहाई असम्भव है।
मूक भारत है बहुत लेकिन शोर है।
जनादेश जो कॉरपोरेट बनने की इजाजत हम देते रहे हैं, उसकी तार्किक परिणति यही है।
जनादेश का नतीजा जो भी हो, हमेशा
अल्पसंख्यकों और शरणार्थियों की गरदने या हलात होती रहेगी या जिबह। अखिलेश
का समाजवादी राज और उत्तर प्रेदेश के बहुप्रचारित सामाजिक बदलाव के चुनावी
समीकरण का नतीजा मुजफ्फरनगर है तो नमोमय भारत के बदले केजरीवाल भारत बनाकर
भी हम लोग क्या इस हालात को बदल पायेंगे, बुनियादी मसला यही है। इस
सिलसिले को तोड़ने के लिये हम शायद कुछ भी नहीं कर रहे हैं। गर्जना,
हुंकार और शंखनाद के गगनभेदी महानाद में हमारी इंद्रियों ने काम करना बन्द
कर दिया है।"
पलाश विश्वास |
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( जिस प्रकार कारपोरेट वर्ग का एक खेमा और वर्तमान पी एम मनमोहन सिंह जी केजरीवाल की पीठ पर खड़े हैं और पर्दे के पीछे से RSS का जो समर्थन उनको प्राप्त है उससे तो यही लगता है की यदि इस बार भी जनता को छल कर यदि केजरीवाल को केंद्र की सत्ता सौंप दी गई तो दक्षिन पंथी असैनिक तानाशाही स्थापित करने का पहला चरण पूर्ण हो जाएगा और तब लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से उसे अपदस्थ करना दुष्कर हो जाएगा क्योंकि 'सलवा जुडूम' जैसे कृत्य करके उसका बचाव RSS तब खुल कर करेगा। उन परिस्थितियों में किसान-मजदूर के हिमायती हिंसक नक्सली गुट ही उसका मुक़ाबला करने को सामने रहेंगे। शोषित-उत्पीड़ित जनता तब उन हिंसक नक्सलियों का ही साथ देगी न कि साम्यवाद का चोला ओढ़े कारपोरेट दलालों का। वह समय शीघ्र भी आ सकता है यदि समय रहते समस्त कम्युनिस्ट लोकतान्त्रिक शक्तियाँ एकजुट होकर 'आ आ पा =आप',भाजपा/इन्दिरा कांग्रेस के विरोध में न आकर बंट कर परस्पर संघर्ष करती रहीं तो। ---विजय राजबली माथुर)
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