मुजफ्फरनगर दंगे में 60 से अधिक लोग मारे गए सैंकड़ों लोग घायल हुये। दंगे
की भयावह तबाही और उस से व्याप्त भय के कारण 50 हजार से भी अधिक लोग अपना
घर,अपनी जमीन छोड़ कर विस्थापित होने के लिए मजबूर हो गए हैं। इन विस्थापित
हुये लोगों के लिए मुजफ्फरनगर और उसके आस-पास के इलाकों में 21 से अधिक
स्थानों पर 40 से भी अधिक राहत शिविर लगे हैं। लंबे समय से गंगा जमुनी
तहजीब की पहचान माने जाने वाले मुजफ्फरनगर का यूं दंगे की आग में झुलस जाना
निस्संदेह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सांप्रदायिक सौहार्द के लिए एक अनहोनी
घटना और अशुभ संकेत की तरह है परंतु इसे केवल सांप्रदायिक शक्तियों की
करतूत कह कर ही माफ नहीं किया जा सकता है। इस भयावह घटना के लिए जितना संघ
परिवार की सांप्रदायिक साजिशें जिम्मेदार हैं उतना ही दोष राज्य सरकार की
निष्क्रियता और राजनीतिक बदनीयती का भी है। इस कांड की तैयारी काफी लंबे
समय से जहां सांप्रदायिक संघ परिवार ने की थी तो वहीं राज्य की सपा सरकार
ने भी अपने चुनावी लाभ के लिए वैमनस्य के इस कारोबार को हवा देने में कोई
कोर कसर नहीं छोड़ी। इस पूरे सांप्रदायिक दंगे के बीच ऐसे कई सवाल हैं जो
जिसके जवाब राज्य सरकार और प्रशासन को देने होंगे। मसलन कि, क़व्वाल की घटना
के बाद जिलाधिकारी और एस एस पी का तबादला क्यों किया गया?
ज़िला प्रशासन को दंगे की आग के बीच बगैर डी एम और एस एस पी क्यों रखा गया?
किसी भी प्रकार की पंचायत और महा पंचायत की छूट किसी भी संम्प्रदाय को क्यों दी गई?
क़व्वाल की घटना के लिए गिरफ्तार दोषियों को किस लिए छोड़ दिया गया?
क्या सरकार को मुजफ्फरनगर में लगातार हो रही सांप्रदायिक शक्तियों की गतिविधियों का ज्ञान नहीं था और उन पर रोक क्यों नहीं लगाई गई?
उकसाने वाले भाषण देने वाले नेताओं को उसी दिन क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया?
इस पूरे दंगे को गौर से देखने पर साफ कहा जा सकता है कि सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा रचा गया यह ऐसा दंगा है जिसे राज्य सरकार की निष्क्रियता और बदनीयती ने कामयाब होने दिया।
यदि सरकार चाहती तो 84 कोसीय यात्रा की तरह इस दंगे को भी रोक सकती थी।
दंगे को लंबा समय बीत जाने के बावजूद सरकार की निष्क्रियता और लापरवाही अभी तक बनी हुई है।
तंजीमे इंसाफ का यह स्थापना सम्मेलन सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति का शिकार हुये मुजफ्फरनगर के साथ हमदर्दी व्यक्त करते हुये इस वीभत्स दंगे की सख्त शब्दों में निंदा करता है और मांग करता है कि तुरंत दंगे के सभी दोषी व्यक्तियों को बगैर किसी भेदभाव के फौरन गिरफ्तार किया जाना चाहिए और फास्ट ट्रेक कोर्ट का गठन करते हुये फौरन मामलों का निपटारा करना चाहिए,सभी पीड़ितों को तुरन्त मुआवजा दिया जाना चाहिए,राहत कार्यों में तेज़ी लाई जानी चाहिए,पीड़ित लोगों की संपत्ति का तुरन्त मूल्याकन किया जाये ताकि उन्हें मुआवजा मुहैया कराया जा सके,दंगों में अपनी साप्रदायिक भूमिका के लिए कुख्यात हुये फुगाना और दूसरे गावों के थानाध्यक्ष और पुलिस कर्मियों की जांच के लिए अलग से एक न्यायिक जांच करते हुये दोषियों को दंगों का भागीदार मानते हुये उन पर कार्यवाही की जानी चाहिए,पूरे सांप्रदायिक दंगे की उच्च स्तरीय एवं निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और इस क्रम में सबसे पहले दंगे में विस्थापित हुये लोगों को सुरक्षा की गारंटी देकर उन्हें उनके घरों में पुनर्रस्थापित करना चाहिए।
ज़िला प्रशासन को दंगे की आग के बीच बगैर डी एम और एस एस पी क्यों रखा गया?
किसी भी प्रकार की पंचायत और महा पंचायत की छूट किसी भी संम्प्रदाय को क्यों दी गई?
क़व्वाल की घटना के लिए गिरफ्तार दोषियों को किस लिए छोड़ दिया गया?
क्या सरकार को मुजफ्फरनगर में लगातार हो रही सांप्रदायिक शक्तियों की गतिविधियों का ज्ञान नहीं था और उन पर रोक क्यों नहीं लगाई गई?
उकसाने वाले भाषण देने वाले नेताओं को उसी दिन क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया?
इस पूरे दंगे को गौर से देखने पर साफ कहा जा सकता है कि सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा रचा गया यह ऐसा दंगा है जिसे राज्य सरकार की निष्क्रियता और बदनीयती ने कामयाब होने दिया।
यदि सरकार चाहती तो 84 कोसीय यात्रा की तरह इस दंगे को भी रोक सकती थी।
दंगे को लंबा समय बीत जाने के बावजूद सरकार की निष्क्रियता और लापरवाही अभी तक बनी हुई है।
तंजीमे इंसाफ का यह स्थापना सम्मेलन सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति का शिकार हुये मुजफ्फरनगर के साथ हमदर्दी व्यक्त करते हुये इस वीभत्स दंगे की सख्त शब्दों में निंदा करता है और मांग करता है कि तुरंत दंगे के सभी दोषी व्यक्तियों को बगैर किसी भेदभाव के फौरन गिरफ्तार किया जाना चाहिए और फास्ट ट्रेक कोर्ट का गठन करते हुये फौरन मामलों का निपटारा करना चाहिए,सभी पीड़ितों को तुरन्त मुआवजा दिया जाना चाहिए,राहत कार्यों में तेज़ी लाई जानी चाहिए,पीड़ित लोगों की संपत्ति का तुरन्त मूल्याकन किया जाये ताकि उन्हें मुआवजा मुहैया कराया जा सके,दंगों में अपनी साप्रदायिक भूमिका के लिए कुख्यात हुये फुगाना और दूसरे गावों के थानाध्यक्ष और पुलिस कर्मियों की जांच के लिए अलग से एक न्यायिक जांच करते हुये दोषियों को दंगों का भागीदार मानते हुये उन पर कार्यवाही की जानी चाहिए,पूरे सांप्रदायिक दंगे की उच्च स्तरीय एवं निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और इस क्रम में सबसे पहले दंगे में विस्थापित हुये लोगों को सुरक्षा की गारंटी देकर उन्हें उनके घरों में पुनर्रस्थापित करना चाहिए।
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