Saturday 16 November 2013

क्या दिल्ली की सत्ता के लिए सड़कों पर संघियों-कम्यूनिस्टों के मध्य संघर्ष होगा?


शुक्रवार, 8 जुलाई 2011को  यह पोस्ट लिख कर बताया था :


विकास या विनाश http://krantiswar.blogspot.in/2011/07/blog-post_08.html

१९४७ में जब हमारा देश औपनिवेशिक गुलामी से आजाद हुआ था तो हमारे यहाँ सुई तक नहीं बंनती थी और आज हमारे देश में राकेट ,मिसाईलें तक बनने लगी हैं.विकास तो हुआ है जो दीख रहा है उसे झुठलाया नहीं जा सकता.लेकिन यह सारा विकास ,सारी प्रगति,सम्पूर्ण समृद्धि कुछ खास लोगों के लिए है शेष जनता तो आज भी भुखमरी,बेरोजगारी,कुपोषण आदि का शिकार है.गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर हुआ है.आजादी का अर्थ यह नहीं था.इसके लिए सरदार भगत सिंह,चंद्रशेखर आजाद,रामप्रसाद बिस्मिल,अश्फाक उल्लाह खां,रोशन लाल लाहिरी आदि अनेकों क्रांतिकारियों ने कुर्बानी नहीं दी थी.यह मार्ग विकास का नहीं ,विनाश का है.

विकास का लाभ आम जन को मिले इस उद्देश्य से प्रेरित नौजवानों नें नक्सलवाद का मार्ग अपना लिया और छत्तीस गढ की भाजपा सरकार ने इन्हें कुचलने हेतु 'सलवा-जुडूम' तथा एस पी ओ का गठन स्थानीय युवकों को लेकर कर लिया था जिसे भंग करने का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि,"इस सशस्त्र विद्रोह के लिए सामजिक,आर्थिक विषमता,भ्रष्ट शासन तंत्र और 'विकास के आतंकवाद'  हैं".

जस्टिस बी.सुदर्शन रेड्डी का मत है-"मिडिल क्लास की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए हो रहे औद्योगिकीकरण व् अंधाधुंध माइनिंग के कारण किसान जमीन-जंगल से लगातार बेदखल हो रहे हैं.नक्सल आंदोलन के पैदल सिपाही यही किसान और आदिवासी हैं"-----------------------


'नया जमाना',सहारनपुर के संस्थापक संपादक स्व.कन्हैया लाल मिश्र'प्रभाकर' ने आर.एस.एस.नेता लिमये जी से एक बार कहा था कि शीघ्र ही दिल्ली की सत्ता के लिए सड़कों पर संघियों-कम्यूनिस्टों के मध्य संघर्ष होगा.दिल्ली नहीं तो छत्तीस गढ़ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पूर्व यह हो ही रहा था.१९२५ में आजादी के आंदोलन को गति प्रदान करने हेतु जब 'भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी' का गठन किया गया तो ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने अपने पृष्ठपोषक बुद्धिजीवियों को बटोर कर आर.एस.एस.का गठन करवा दिया जिसने साम्राज्यवाद की सहोदरी 'साम्प्रदायिकता' को पाला-पोसा और अंततः देश का विभाजन करा दिया.१९४७ में हुआ विभाजन १९७१ में एक और विभाजन लेकर आया जिसने दो राष्ट्रों की थ्योरी को ध्वस्त कर दिया.भारत के ये तीनों हिस्से भीषण असमानता के शिकार हैं.तीनों जगह सत्ताधीशों ने अवैध्य कमाई के जरिये जनता का खून चूसा है.तीनों जगह आम जनता का जीवन यापन करना बेहद मुश्किल हो रहा है.सरकारें साम्राज्यवाद के आधुनिक मसीहा अमेरिका के इशारे पर काम कर रही हैं न कि अपने-अपने देश की जनता के हित में.
तीनों देशों में फिरकापरस्त लोग अफरा-तफरी फैला कर जीवन की मूलभूत समस्याओं से ध्यान हटा रहे हैं.लोक-लुभावन नारे लगा कर पूंजीपतियों के पिट्ठू ही साधारण जन को ठग कर सत्ता में पहुँच जाते हैं.जाती,धर्म.सम्प्रदाय,गोत्र ,क्षेत्रवाद की आंधी चला कर सर्व-साधारण को गुमराह कर दिया जाता है.जो लोग गरीबों के रहनुमा हैं किसानों और मजदूरों के हक के लड़ाका हैं वे अपने अनुयाइयों के वोट हासिल नहीं कर पते हैं और सत्ता से वंचित रह जाते हैं.नतीजा साफ़ है जो प्रतिनिधि चुने जाते हैं वे अपने आकाओं को खुश करने की नीतियाँ और क़ानून बनाते हैं ,आम जन तो उनकी वरीयता में होता ही नहीं है.
क्या आम जनता इसके लिए उत्तरदायी है?कुछ हद तक तो है ही क्योंकि वही तो जाती,धर्म ,सप्रदाय के बहकावे में गलत लोगों को वोट देकर भेजती है.लेकिन इसके लिए जिम्मेदार मुख्य रूप से समाज में प्रचलित अवैज्ञानिक मान्यताएं और धर्म के नाम पर फैले अंध-विशवास एवं पाखण्ड ही हैं.विज्ञान के अनुयायी और साम्यवाद के पक्षधर सिरे से ही धर्म को नकार कर अधार्मिकों के लिए मैदान खुला छोड़ देते हैं जिससे उनकी लूट बदस्तूर जारी रहती है और कुल नुक्सान साम्यवादी-विचार धारा तथा वैज्ञानिक सोच को ही होता है.
धर्म=जो धारण करता है वही धर्म है -यह धारणा कैसे अवैज्ञानिक और मजदूर-किसान विरोधी हो गयी.लेकिन किसान-मजदूर विरोधी लोग जम कर धर्म की गलत व्याख्या प्रस्तुत करके किसान और मजदूर को उलटे उस्तरे से लूट ले जाते हैं क्योंकि हम सच्चाई बताते ही नहीं तो लोग झूठे भ्रम जाल में फंसते चले जाते हैं.
भगवान=भूमि का 'भ'+गगन का 'ग'+वायु का 'व्'+अनल(अग्नि)का अ ='I'+नीर(जल)का' न ' मिलकर ही भगवान शब्द बना है यह कैसे अवैज्ञानिक धारणा हुयी,किन्तु हम परिभाषित नहीं करते तो ठग तो भगवान के नाम पर ही जनता को लूटते जाते हैं.------------------------------------------
 कहीं भी किसी भी उपासना स्थल से प्राप्त होने वाला खजाना राष्ट्रीय धरोहर घोषित होना चाहिए न कि किसी विशेष हित -साधना का माध्यम बनना चाहिए.चाहे संत कबीर हों ,चाहे स्वामी दयानंद अथवा स्वामी विवेकानंद और चाहे संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन डाक्टर अम्बेडकर सभी ने आम जन के हित पर बल दिया है न कि वर्ग विशेष के हित पर.अतः यदि समय रहते आम जन का समाज ने ख्याल नहीं किया तो आम जन बल प्रयोग द्वारा समाज से अपना हक हासिल कर ही लेगा.




वाशिंगटन। राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभा मंडल के बीच अभिनेता से नेता बने भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने एक अजीबोगरीब बयान दे दिया है। वह चाहते हैं कि अगले आम चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस को न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर गठबंधन सरकार बनाने के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए। बकौल बिहारी बाबू, 'राष्ट्र हित में ऐसा करना वक्त की मांग है।'
पढ़ें: मोदी पीएम बन गए तो अमेरिका को देना ही होगा वीजा
अमेरिका दौरे पर आए सिन्हा का कहना है, 'दोनों दलों की साझा सरकार का उनका दृष्टिकोण भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के 'इंडिया फ‌र्स्ट' की अवधारणा से मेल खाता है।' उन्होंने कहा कि भाजपा और कांग्रेस के नेता अगर इस दिशा में कोई निर्णय लेते हैं तो इससे देश में एक मजूबत और स्थायी राष्ट्रीय सरकार का गठन हो सकेगा।
सिन्हा की दलील है कि दोनों दलों के बीच साझा सरकार बनाने को लेकर बात बन जाती है तो इससे अगले आम चुनाव में खंडित जनादेश मिलने की स्थिति में क्षेत्रीय और छोटे दलों की ब्लैकमेलिंग से बचा जा सकेगा। 67 वर्षीय भाजपा नेता ने कहा कि देश को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए वह इस प्रकार की बात कर रहे हैं।
सिन्हा ने कहा, 'यह निश्चित रूप से मेरी पार्टी की राय नहीं है। लेकिन मुझे उम्मीद है कि एक दिन यह मेरी पार्टी का दृष्टिकोण भी हो सकता है। उम्मीद है भविष्य में कांग्रेस भी मेरी बात से सहमत हो सकती है।' बिहारी बाबू का कहना था, 'यह इंडिया फ‌र्स्ट का समय है, न कि पार्टी फ‌र्स्ट का।
त्रिशंकु संसद की स्थिति में दानों दलों को गठबंधन सरकार बनाने के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए।http://shar.es/84UyU





"सिन्हा ने कहा, 'यह निश्चित रूप से मेरी पार्टी की राय नहीं है। लेकिन मुझे उम्मीद है कि एक दिन यह मेरी पार्टी का दृष्टिकोण भी हो सकता है। उम्मीद है भविष्य में कांग्रेस भी मेरी बात से सहमत हो सकती है।' बिहारी बाबू का कहना था, 'यह इंडिया फ‌र्स्ट का समय है, न कि पार्टी फ‌र्स्ट का।
त्रिशंकु संसद की स्थिति में दानों दलों को गठबंधन सरकार बनाने के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए।"
भाजपा संसद शत्रुघन सिन्हा का यह कथन यों ही अनायास नहीं है । 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता वापिसी  RSS के समर्थन से ही हुई थी। आपात काल के दौरान जेल में बंद मधुकर दत्तात्रेय 'देवरस' और इन्दिरा जी के मध्य हुये 'गुप्त समझौते' की यह परिणति थी ।वह यद्यपि इंदिरा कांग्रेस की सरकार थी किन्तु RSS की नीतियों पर चली थी जिसके परिणाम स्वरूप 'समाजवाद' की अवधारणा का परित्याग कर दिया गया था। 1980 से ही 'श्रम न्यायालयों'द्वारा श्रमिकों के विरुद्ध मालिकों के पक्ष में निर्णय घोषित करने की शुरुआत इसी RSS/कांग्रेस गठबंधन का नतीजा थी। वह गठबंधन दिनों दिन मजबूत होता रहा है और 1984 में भाजपा को मिली सिर्फ दो सीटें के बावजूद RSS के एजेंडा पर जम कर अमल हुआ था जिसके परिणामस्वरूप बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा कर पूजा शुरू की गई थी और 1991 में पूर्व RSS कार्यकर्ता पी वी नरसिंघा राव जी के  कांग्रेसी पी एम रहते बाबरी मस्जिद का ध्वंस भी हुआ था। यह गठबंधन नीति का ही खुलासा था कि RSS के नेता ने राहुल गांधी के मुजफ्फरनगर पीड़ितों के संबंध में दिये गए बयान का पुरजोर समर्थन किया था। शत्रुघन जी का भाजपा/कांग्रेस गठबंधन सरकार का आव्हान भी इसी कड़ी में दिया गया बयान है। और 'आप' द्वारा जनलोकपाल के माध्यम से 'सत्ता' को और सशक्त करने का जो प्रयास किया जा रहा है वह भी RSS की योजना को ही आगे बढ़ाने की प्रक्रिया है। हज़ारे/केजरीवाल आंदोलन ने युवाओं के असंतोष को बटोर कर RSS के समीप लाने का जो प्रयास किया था उसी को 'कैश' करने के लिए 'आप' का गठन किया गया है। भाजपा/कांग्रेस/आप तीनों ही पार्टियां RSS की धुरी से संचालित हो रही हैं। यदि समय रहते हमारे आज के कम्युनिस्ट नेता न चेते(अर्थात भाजपा के सहयोगी सपा को समर्थन देते रहे ) तो भविष्य में दिल्ली की सड़कों पर कम्युनिस्टों व संघियों के मध्य रक्त-रंजित संघर्ष अनिवार्य व अपरिहार्य हो जाएगा।  

1 comment:

  1. फेसबुक पर प्राप्त कमेन्ट---
    Amalendu Upadhyaya :लेकिन दिल्ली की हवाई राजनीति करने वाले कामरेडों ने तो वामदलों को मुलायम सिंह के हाथों बेचने की कसम खा रखी हैष
    a few seconds ago · Unlike · 1

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