Wednesday, 27 November 2013

क्या ऐसे ही मजबूत होगा बाम आंदोलन?---विजय राजबली माथुर

 25-11-2013
I have been with AISF and CPI in Begusarai( Bihar), JNU ( New Delhi) and since then I have been observing that CPI and other left parties support Congress, Lalu, AIDMK and others to corner out communal and saffron party, loosing their own revolutionary and militant communist image. Left Parties are running to this or that party. Recent mammoth rally of CPI in Patna has given signal to entire left parties to go against the corny feudo-capitalist parties like Congress Party, BJP and regional casteist parties.CPI( ML)'s grand rally in Patna just after Modi's blast infested rally had given another call to all left parties to unite. I am not in now any party but i am still comfortable with CPI and its all mass organization.I am afraid of infantile revolution of ultra communist party that fascinates the young only but I have felt them in my student life that they trigger the words as bullet that will bring about radical change in country but i have seen , it is a straw-lit-effect. One can observe the decline of ultra and maoist communist party in Nepal. Therefore, LEFT PARTY MUST CREATE THEIR REVOLUTIONARY AND COMMUNIST IMAGE, MUST EDUCATE THE MASS AND MUST LEAVE THE HABIT OF BECOMING THE ROLE OF KING MAKER AT CENTRE.


Election result in Nepal is an eye-opener. The Communist Party (Marxist-Leninist) has done very well. They are only 13 seats short than the Nepali Congress. Maoists have been roundly defeated. Even in India too we need a strong Left to bring about a radical change. Both the principal political parties are following the same anti-people economic policies. Not only in Nepal, in many other parts of the world, Communists are reappearing as an important political force.


  •  But left party is going with SP for formation of non-congress and non-bjp government . This is ironical thing happening in left politics.CPI must clear its stand on it. CPI MUST CRITICIZE SP AKHILESH SINGH YADAV for awarding a fanatic muslim..
Kya hamara shirsh netritwa wakyee aisa chahatahai ? Yadi yeah such hai to aapsi talmel ka abhaw kyo ?
Poorwanchal ke 3 nayak .com .sarzoo pande ki prateema Ghazipur me lagi hai. Com.zharkhande Rai aur com JungBahadur singh kind prateema banker 7 sal se in tzar kar rahi hai .Fagoo chauhan ka isme vishesh yogdan raha.
30 Nov.ko murti anawaran ki taiyari hai.Mulayam singh yadav as rahe hai .com.AB Bardhan aur Atul ko bhi shamil hona hai, lekin ab tak sang than ya sarkar star par loyi soochana nahi hai.
Kya aise hi mazboot hoga Bam aandolan ?
Neeche se uper tak talmel ka nitant a haw hai. Doosre netao ka dumchhalla banane ki prabritti party ko rasatal tak pahucha di hai .waqt aagaya hai side logo ko chinheet kar darkinar kar diya jay .
Left Unity Zindabad

क्या हमारा शीर्ष नेतृत्व वाकई  ऐसा चाहताहै ? यदि यह  सच है तो आपसी तालमेल का अभाव क्यो ?
पूर्वांचल के 3 नायक -कॉम .सरज़ू पांडे की प्रतिमा गाज़ीपुर मे लगी है। कॉम.झारखंडे राय  और कॉम ज़न्ग बहादुर सिंह  की  प्रतिमा बन कर 7 साल से इन्त्ज़ार कर रही है । फागू चौहान का इसमे विशेष योगदान रहा। 30 नव.को मूर्ति अनावरण की तैयारी है। मुलायम सिंह यादव आ रहे है । कॉम.ए बी  बर्धन और अतुल को भी शामिल होना है, लेकिन अब तक संगठन या सरकार स्तर पर कोई सूचना नही है। क्या ऐसे ही मज़बूत होगा बाम  आंदोलन ?
नीचे से ऊपर तक तालमेल का नितांत आभाव है।  दूसरे नेताओ का दुमच्छल्ला बनाने की प्रवृत्ति पार्टी को रसातल तक पहुचा दी है । वक़्त आ गया है ऐसे  लोगो को चिन्हित कर दरकिनार कर दिया जाय। लेफ्ट यूनिटी ज़िंदाबाद!
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 आज जब जनता सत्तारूढ़ दल और मुख्य विपक्षी दल से हताश व निराश है और ऐसे मे सभी प्रकार के साम्यवादी गुटों को एकजुट होकर शोषकों/उतपीडकों का पर्दाफाश करने की आवश्यकता है कुछ साम्यवाद के स्वमभू विद्वानों ने 'साम्यवाद को दूर की कौड़ी'बनाने का उपक्रम शुरू कर दिया है। 1885 मे स्थापित कांग्रेस के 1977 मे जनता पार्टी मे विलय के बाद 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' ही सबसे पुराना राजनीतिक दल है।सत्तारूढ़ पार्टी तो  1969 मे स्थापित इन्दिरा कांग्रेस है जो मात्र 44 वर्ष ही पुरानी है और जिसका देश के स्वाधीनता आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है। भाकपा ने भारत के स्वाधीनता आंदोलन मे 'सत्याग्रह' व 'क्रांतिकारी' दोनों प्रकार की भूमिकाओं मे भाग लिया है। किन्तु देश की जनता से खुद को काटे रखने के कारण आज जनता भी इन जांनकारियों से महरूम है और सभी कम्युनिस्ट तमाम सद्भावनाओं के बावजूद जनता को वास्तविकता से अवगत कराने मे विफल रहे हैं।

1857 की 'क्रान्ति'की विफलता के बाद जिसमें स्वम्य भाग ले चुके  महर्षि स्वामी दयानन्द 'सरस्वती'ने 1875 की चैत्र प्रतिपदा को 'आर्यसमाज' की स्थापना देश को आज़ादी दिलाने के ध्येय से की थी और उनकी ही अवधारणा 'स्व राज्य'की कल्पना है न कि,बाल गंगाधर तिलक की जिनको इसका श्रेय दिया जाता है। प्रारम्भ में आर्यसमाज शाखाओं की स्थापना ब्रिटिश छावनी वाले नगरों में ही की गई थी और एक अंग्रेज़ कलेक्टर ने उनको 'REVOLUTIONARY SAINT'-'क्रांतिकारी सन्यासी' की संज्ञा दी थी। आर्यसमाज  आंदोलन के ज़ोर पकड़ने पर इसे कमजोर करने हेतु वोमेश चंद्र(W.C) बनर्जी की अध्यक्षता में एक अवकाश प्राप्त IAS एलेन आकटावियन (A.O.)हयूम ने वाईस राय लार्ड डफरिन के सहयोग से 'इंडियन नेशनल कांग्रेस'की स्थापना करवाई थी जो औपनिवेशिक स्वराज्य की समर्थक थी ;दादा भाई नैरोजी ने कहा था-"हम नस-नस में राजभक्त हैं"। 
दयानंद जी के निर्देश पर आर्यसमाजी इस कांग्रेस में प्रविष्ट हो गए और इसे 'स्व -राज्य' की अवधारणा अपनाने पर बाध्य कर दिया। खुद 'कांग्रेस का इतिहास'के लेखक डॉ पट्टाभि सीता रमईय्या ने लिखा है कि स्वाधीनता आंदोलन में जेल जाने वाले 'सत्याग्रहियों'में 85 प्रतिशत कांग्रेसी आर्यसमाजी थे। 
स्वाधीनता आंदोलन को क्षीण करने हेतु पहले मुस्लिम लीग फिर हिंदूमहासभा ब्रिटिश सरकार की प्रेरणा से गठित हुई। लेकिन क्रांतिकारी आर्यसमाजियों ने स्वाधीनता आंदोलन की आग को तीव्र करने हेतु 1925 में कानपुर में 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी'-CPI की स्थापना की। 1925 में ही ब्रिटिश सरकार की कृपा से RSS का गठन हुआ जिसका उद्देश्य 'सांप्रदायिक'आधार पर जनता में फूट डाल कर आज़ादी के आंदोलन को कमजोर करना और कम्युनिस्ट आंदोलन को कुचलने में ब्रिटिश सरकार की मदद करना था।   

1930 में डॉ राम मनोहर लोहिया की प्रेरणा पर 'कांग्रेस समाजवादी दल'(Congres Sociolist party) की स्थापना का विचार मूल रूप से 'साम्यवादी दल' के प्रभाव को क्षीण करने हेतु आया जिसे 1934 में 'नासिक जेल' में अमल में लाया गया। डॉ लोहिया ने 'लोकतान्त्रिक समाजवाद' एवं 'सर्वाधिकारवादी साम्यवाद' के अंतर पर विशेष ज़ोर दिया। उन्होने 'पूंजीवाद'एवं 'साम्यवाद' दोनों का विरोध किया था। उनकी उत्तराधिकारी कहलाने वाली 'समाजवादी पार्टी' आज भी 'साम्यवाद' की प्रबल विरोधी है और उत्तर प्रदेश तथा बिहार में कम्युनिस्ट पार्टी को क्षीण करने में अग्रणी रही है। उसके साथ CPI नेताओं का खड़ा होना न केवल आश्चर्य जनक बल्कि 'आत्मघाती' कदम भी है।
कामरेड आनंद प्रकाश तिवारी व सत्यप्रकाश गुप्ता जी की चिन्ता यही है जिस ओर शीर्ष नेतृत्व को शीघ्रातिशीघ्र ध्यान देना ही चाहिए।
इसी के साथ-साथ यह भी ध्यान देने की बात है कि सरकारी कर्मचारी जो सभी सुविधाओं से सम्पन्न हैं और उनकी मानसिकता सामंती है किस प्रकार कम्युनिस्ट पार्टी के लिए लाभदायक हो सकते हैं?ऐसे लोग त्याग का उदाहरण  तो पेश करते हैं लेकिन वस्तुतः वह उनका 'इनवेस्टमेंट'होता है जिसकी भरपाई वे तिकड़म की कमाई से करते हैं और आंतरिक रूप से पार्टी को क्षति पहुंचाते हैं। 

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