Thursday, 31 December 2015

स्वतन्त्रता आंदोलन की सबसे पुरानी पार्टी (भाकपा ) : जनता से दूर क्यों? ------ विजय राजबली माथुर

 ***** प्रस्तुत फोटो भाकपा के 90 वर्ष पूर्ण होने पर स्थापना  दिवस समारोहों की झलकी दिखाते हैं *****
बिहार में स्थापना दिवस कार्यक्रम 


उत्तर-प्रदेश (कानपुर ) स्थापना दिवस कार्यक्रम 

http://communistvijai.blogspot.in/2015/12/blog-post_26.html

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एक और गुमराह करती खबर। ये समाचार सोनिया कांग्रेस को 131 वर्ष पुराना और आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाला बता रहे हैं। सच्चाई इस प्रकार है ------
1)--- 1857 की क्रांति में भाग लेने व उसके विफल होने पर 1875 में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 'आर्यसमाज' बना कर और इसकी शाखाएँ ब्रिटिश छावनियों में खोल कर देश की जनता को आज़ादी के संघर्ष के लिए तैयार करना शुरू किया था। ब्रिटिश सरकार उनको REVOLUTIONARY SAINT कहती थी। अतः
2) --- दयानन्द सरस्वती की मुहिम को धक्का पहुंचाने के लिए वाईस राय लार्ड डफरिन ने अपने विश्वस्त रिटायर्ड़ ICS एलेन आकटावियन (AO ) हयूम के जरिये WC (वोमेश चंद ) बेनर्जी की अध्यक्षता में1885 में  08 दिसंबर को जिस इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना करवाई थी वह ब्रिटिश साम्राज्यवाद का SAFTY VALVE थी। दादा भाई नेरोजी और गोपाल कृष्ण गोखले ऐलान करते थे कि वे नस-नस में राज-भक्त हैं।
3 ) --- स्वामी दयानन्द सरस्वती के निर्देश पर आर्यसमाजी कांग्रेस में घुस गए और उसको आज़ादी के संघर्ष में मोड दिया था। 'कांग्रेस का इतिहास ' के लेखक डॉ पट्टाभि सीता रमाइय्या ने कबूला है कि, गांधी जी के सत्याग्रह में जेल जाने वाले कांग्रेसियों में 85 प्रतिशत कांग्रेसी आर्यसमाजी थे।
4 ) --- आज़ादी के संघर्ष पर मुड़ चुकी कांग्रेस को पछाड़ने के लिए ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन के जरिये 'मुस्लिम लीग' 30 दिसंबर 1906 में, लाला लाजपत राय व मदन मोहन मालवीय के जरिये 'हिन्दू महासभा' 1920 में गठित करवाई गईं जिनमें हिंदूमहासभा के असफल रहने पर 1925 में पूर्व क्रांतिकारी सावरकार व पूर्व कांग्रेसी हेडगेवार के जरिये आर एस एस का गठन करवाया गया था।
5 ) क्रांतिकारी आर्यसमाजियों ने कांग्रेस को क्रांति की ओर मोड़ने के उद्देश्य से भारत में भी 1925 में 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' की स्थापना  26 दिसंबर को की थी । इनके ही सदस्य भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल,बटुकेश्वर दत्त आदि-आदि क्रांतिकारी थे।
6 ) --- आज़ादी के बाद कांग्रेस में संघ समर्थकों के सिंडीकेट से भिड़ने के लिए इंदिरा गांधी ने जिस कांग्रेस (आर ) का गठन किया था वही आज की सोनिया कांग्रेस है जो मात्र 46 वर्ष ही पुरानी है और उसका आज़ादी के संघर्ष से कोई वास्ता नहीं रहा है।
7 ) --- आज़ादी वाली पुरानी कांग्रेस तो समाप्त हो गई और संघ से ग्रस्त कांग्रेसियों को तो कांग्रेस (ओ ) के नाम से जाना गया जो 1977 में जनता पार्टी में विलीन होकर समाप्त हो चुकी है।
आज की सोनिया कांग्रेस को 1885 वाली आज़ादी के संघर्ष की कांग्रेस मानना व कहना ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वथा गलत है।
8 ) --- आज आज़ादी के संघर्ष वाली सबसे पुरानी पार्टी सिर्फ 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ' ही है जो ब्राह्मण वाद से ग्रस्त होने के कारण ऐसा दावा प्रस्तुत नहीं कर रही है परंतु सच्चाई तो यही है।



Comments
Prakash Sinha
Prakash Sinha तथ्यपूर्ण जानकारी दी है, विजय जी आपने ।

 https://www.facebook.com/photo.php?fbid=990365184358791&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=3&theater


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 'ऐतिहासिक सत्य ' तो यही है कि, आज स्वतन्त्रता आंदोलन की संघर्षरत पार्टियों में एकमात्र 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' ही सबसे पुरानी पार्टी है और गलत ढंग से प्रचारित सोनिया कांग्रेस नही। किन्तु पार्टी को नियंत्रित करने वाला ब्राह्मण नेतृत्व भी स्वतन्त्रता संघर्ष का श्रेय सोनिया कांग्रेस को ही देता है अपनी पार्टी को नहीं। अपने अस्तित्व को नकारने के कारण ही 1952 व 1957 के संसदीय  मुख्य विपक्षी दल को आज एक राजनीतिक दल के रूप में अपनी मान्यता समाप्त होने के खतरे से भी झूझना पड़ रहा है। 'इंडिया दैट इज़ भारत दैट इज़ उत्तर-प्रदेश' की नीति पर चल कर ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा हेतु गठित आर एस एस की समर्थक पार्टी स्वतन्त्रता आंदोलन से कोसों दूर रहने के बावजूद आज देश की सत्ता को चला रही है। जबकि शुरुआती मुख्य विपक्षी पार्टी अब भी अस्तित्व रक्षा की बजाए छिन्न-भिन्न होने की दिशा में चल रही है जैसा की उत्तर-प्रदेश में पार्टी के स्थापना समारोहों के फ़ोटोज़ से सिद्ध होता है। 

कानपुर में सम्पन्न मुख्य समारोह अथवा प्रदेश कार्यालय प्रांगण में सम्पन्न समारोह किसी में भी प्रदेश के ही वासी और राष्ट्रीय सचिव जन-प्रिय नेता कामरेड अतुल अंजान साहब को शामिल करना मुनासिब नहीं समझा गया। जबकि बिहार में सम्पन्न समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उनको शामिल किया गया। अकेले अंजान साहब में वह क्षमता है कि उत्तर-प्रदेश व बिहार दोनों प्रदेशों की जनता को वह पार्टी के साथ जोड़ सकते हैं। किन्तु सत्ता-गलियारों में पकड़ जमाये जनाधार-विहीन नेतृत्व को यह गंवारा नहीं है। प्रदेश पार्टी को दो-दो बार तोड़ चुकने वाले लोग वीरेंद्र यादव जी द्वारा वर्णित 80 प्रतिशत पिछड़े व दलित -सर्वहारा वर्ग के लोगों से सिर्फ काम लेना चाहते हैं उनको पद व अधिकार  देना नहीं। जबकि अंजान साहब सबको साथ लेकर चलने वाले है इसलिए इन लोगों के निशाने पर हैं। बार-बार उनके विरुद्ध प्रेस के संपर्कों से अभियान चलाया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप जनता के बीच पार्टी की छवी ठहर ही नहीं पाती। 

एथीस्टवाद की आड़ में पोंगा-पंथ को मजबूत किया जा रहा है और इस वर्ग के प्रदेश पार्टी के सीताराम केसरी को अगला प्रदेश सचिव बनाने कि गुप-चुप मुहिम चल रही है जिसके लिए अंजान साहब को प्रदेश से दूर रखना ज़रूरी है। और इस प्रकार एक स्वर्णिम अवसर को निजी स्वार्थों की बलिवेदी पर चढ़ाया जा रहा है। यदि अब भी पार्टी हितों को सर्वोपरि रखा जाये और अंजान साहब के संरक्षण में प्रदेश पार्टी को चलने को प्रेरित किया जाये तथा साथ ही साथ थोथे एथीज़्म का परित्याग करके वास्तविक 'धर्म' के 'मर्म' को जनता को समझाया जाये तो उत्तर-प्रदेश से फासिस्ट शक्तियों को उखाड़ने में भाकपा को सफलता मिल सकती है। 
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Saturday, 26 December 2015

गोष्ठी : 'आज के परिप्रेक्ष्य में साम्यवाद की संभावना' ------ विजय राजबली माथुर

लखनऊ, 26 दिसंबर 2015 :
आज 22 कैसरबाग, भाकपा कार्यालय पर पार्टी की स्थापाना  के 90 वर्ष पूर्ण होने पर  एक समारोह व विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसके अध्यक्ष मण्डल में आशा मिश्रा,अशोक बाजपेयी,रामनाथ यादव शामिल रहे, संचालन ओ पी अवस्थी ने किया। 
झंडारोहण व उदघाटन भाषण अशोक मिश्रा ने किया। उन्होने अपने उद्बोधन में पार्टी के गौरवशाली इतिहास का विस्तृत वर्णन किया। उनके अनुसार देश में आज लगभग एक करोड़ लोग विभिन्न कम्युनिस्ट पार्टियों के अनुयाई हैं। उन्होने उम्मीद जताई कि, जब दस वर्ष बाद हम पार्टी की शताब्दी मनाएंगे तब उसका देश की संसद पर भी प्रभाव होगा। 

सदरुद्दीन राणा साहब ने नौजवानों को जोड़ने व चुनाव में सक्रिय भागीदारी की बात की। 

साहित्यकार व आलोचक वीरेन्द्र यादव साहब ने कहा कि हमें अपने देश में हुई बौद्ध क्रान्ति, 1789 की फ्रांसीसी क्रांति, 1917 की रूसी क्रांति व 1950 में भारतीय संविधान लागू किए जाने की घटनाओं को याद रखना चाहिए। आज आत्मावलोकन, आत्मालोचना व पुनर्मूल्यांकन की महती आवश्यकता है। हमें यह देखना होगा कि चूक कहाँ हुई है जो आज भाकपा के एक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता पर भी संकट मंडरा रहा है। आज IMF और वर्ल्ड बैंक के प्रभाव में 'पूंजीवाद' नरम रुख लेकर और मजबूत हो रहा है। मार्क्स की 'कैपिटल ' से भी पूंजीवाद लाभान्वित होने के प्रयासों में सफल हो रहा है। लेकिन हम अपने सभी पूर्वानुमानों में विफल रहने के बाद भी आज भी उन्ही पुरातन व्याख्याओं से बंधे हुये हैं जबकि समय के परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होना चाहिए था। लेकिन उन्होने ज़ोर देकर कहा कि भले ही सांगठनिक रूप से साम्यवादी विचार धारा कमजोर हुई हो लेकिन वैचारिक रूप से साम्यवादी विचार धारा भारत समेत सम्पूर्ण विश्व में मजबूत हुई है और सबकी  आशा भरी निगाहें इसी विचार धारा पर टिकी हुई हैं। यही कारण है कि नागपूर खेमा इसी विचारधारा पर आक्रमण कर रहा है और हमारे तीन विद्वानों को हाल ही में अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है। 

वीरेंद्र यादव जी ने यह भी याद दिलाया कि 1925 में ही SELF RESPECT MOVEMENT भी प्रारम्भ हुआ था । दक्षिण में पेरियार के नेतृत्व में जो आंदोलन चला था उसके अवशेष आज भी DMK, AIADMK आदि अनेक दलों के साये में मौजूद हैं और मजबूत भी हैं। हमें अपनी नीतियाँ बनाते समय इस 'स्वाभिमान आंदोलन' पर भी ध्यान देना होगा। समता और समानता के मार्क्सवादी आदर्श औद्योगीकरण के मद्देनजर थे । मार्क्स के खुद के अनुभवों के आधार पर इनको भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों  से अपनाया जाना था लेकिन वैसा हुआ नहीं । रूस में भी साम्यवाद के पतन को देखते हुये भारत में 'वर्ण' और 'वर्ग' के अंतर्द्वंद को ध्यान में रखना होगा। अंबेडकर से भी हमको प्रेरणा प्राप्त करनी होगी।हमारे देश में 80 प्रतिशत सर्वहारा वर्ग दलित व पिछड़ों में से आता है। हमें नीतियाँ बनाते समय इस वर्ग के सामाजिक उत्पीड़न व आर्थिक शोषण को भी ध्यान में रखना होगा। 
 हमारे देश में एक विचारधारा 25 दिसंबर 1927 को 'मनु स्मृति' दहन की जो शुरू हुई थी आज भी प्रबल है। दूसरी विचारधारा इस संविधान को हटा कर मनु स्मृति के विधान को लागू करने की है। हमें इस अंतर्द्वंद को भी समझना होगा। देश में उठने वाली हर आंदोलनकारी परिस्थितियों में कम्युनिस्टों को हस्तक्षेप करना चाहिए। उनके अनुसार 'यूनाइटेड फ्रंट' की  आज वास्तव में बहुत आवश्यकता है। 'आत्म मुग्ध' होने की अपेक्षा पुनरावलोकन करने की यथार्थ आवश्यकता है। उन्होने बल देकर कहा कि लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा करने व नए सोपान तक पहुंचाने की आज बेहद ज़रूरत है। 

कामरेड ओ पी सिन्हा ने कहा कि आने वाले वर्ष 2016 में रूसी क्रांति की शताब्दी के समारोह शुरू होने वाले हैं हमें उस अवसर का सदुपयोग करते हुये अपनी शक्ति को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। हमें आज के नौजवानों की अपेक्षाओं व आदर्शों को समझ कर उनको अपनी ओर आकर्षित करना होगा। 1925 में स्थापित जो परम्पराओं की कड़ी टूट गई थी उसे फिर से जोड़ कर आगे बढ़ना होगा। 

शकील सिद्दीकी साहब ने बताया कि 'क्रांतिकारी आंदोलन' और 'भाकपा' का आंदोलन एक साथ प्रारम्भ हुआ था। अतः हमारे इस आंदोलन को थामने व रोकने के लिए ही जातिवादी व धार्मिक उन्माद को बढ़ाया जा रहा है। उन्होने उदाहरण देते हुये कहा कि जब पंजाब में कम्युनिस्ट आंदोलन प्रखरता के साथ अपने उभार पर था तभी अकाली आंदोलन खालिस्तान की मांग को लेकर खड़ा कर दिया गया जिस कारण कम्युनिस्ट आंदोलन बिखर गया। हमें इन चालों से सावधान रहना होगा। 

अपने अध्यक्षीय ऊदबोधन में आशा मिश्रा जी ने दोहराया कि हमारी पार्टी का गौरवशाली इतिहास हमारे लिए आज भी प्रेरक है। विभिन्न सुविधाओं को दिलाने में पार्टी द्वारा किए गए संघर्षों का योगदान महत्वपूर्ण है और हमें आज समाप्त की जा रही उन सुविधाओं को पाने के प्रयास फिर से करने होंगे। 

युवा वर्ग के कामरेड नरेश को विशेष रूप से अपने विचार रखने का अवसर अध्यक्ष मण्डल ने प्रदान कर दिया जिनका ज़ोर था कि मार्क्स ने 1880 से 1883 के मध्य जो स्पष्टीकरण अपने पत्रों द्वारा दिये थे उनका प्रकाशन 1984 में हो गया है उन विचारों पर आज गहन विचार कर नई नीतियाँ बनाए जाने की ज़रूरत है। 

अध्यक्ष मण्डल के सदस्य रामनाथ यादव जी ने एक काव्य-पाठ किया और कामरेड नरेश के उठाए प्रश्नों को आज की गोष्ठी के लिए अप्रासांगिक बताया। उनके अनुसार अलग किसी सेमिनार में उस विषय को रखा जाना चाहिए। 

जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने उपस्थित कामरेड्स व वक्ताओं का समारोह को सफल बनाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन किया और पार्टी के भविष्य को उज्ज्वल बताया। उन्होने सभी जनों से नाटक का अवलोकन करने के बाद भोजन ग्रहण करने का अनुरोध किया। 

प्रदीप घोष साहब के निर्देशन में IPTA के कलाकारों द्वारा नाटक 'अच्छे दिन' का प्रदर्शन किया गया। जिसके द्वारा मोदी सरकार के छल से गठन और बाद की परिस्थितियों का सूक्ष्म किन्तु प्रेरक व रोचक प्रस्तुतीकरण हुआ जिसे दर्शकों ने सराहा व खूब प्रशंसा की तथा कुछ क्षेत्रों से उनके यहाँ इसके प्रदर्शन की मांग भी की गई। 
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Friday, 25 December 2015

निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए प्रयत्नशील सांसद कामरेड डी राजा

*************************भाकपा की स्थापना के 90 वर्ष पूर्ण होने पर ***************


राज्यसभा सदस्य डी राजा साहब ने 10 नवंबर 2015 को यह बयान जारी किया था और अब शीतकालीन सत्र गुज़र चुका है। दिल्ली मे पार्टी कार्यालय पर भव्य सजावट हो चुकी है और पार्टी स्थापना के 90 वर्ष पूर्ण होने व 91वीं वर्षगांठ पर कानपुर  में भव्य आयोजन होने जा रहा है, परंतु कहीं पर भी राजा साहब के विचारों पर चिंता नहीं व्यक्त की जा रही है। कानपुर के  महत्वपूर्ण आयोजन का पर्चा/पोस्टर डी राजा साहब की उपस्थिती नहीं दर्शा रहा है। और तो और उत्तर-प्रदेश के ही वासी तथा शमीम फैजी साहब के साथ उत्तर-प्रदेश भाकपा के राज्य सम्मेलन में केंद्रीय पर्यवेक्षक रहे अतुल अंजान साहब भी इन पर्चों/पोस्टरों से अनुपस्थित है जबकि एक ही परिवार के लोगों के नाम प्रमुखता के साथ शामिल किए गए हैं। 





पार्टी कर्णधारों की एक झलक का आभास इस वक्तव्य से भी होता है :



और IPTA जिसके संचालक भी पार्टी के ही वरिष्ठ नेतृत्व के साथी हैं किस प्रकार रामलीला का ब्राह्मणवादी प्रचार-प्रसार करके फासिस्ट/सांप्रदायिक मनोवृति को मजबूत करने में जाने या अनजाने सहयोग कर रहा है :



और देखिये कि, किस प्रकार भाकपा को उन मायावती जी से गठबंधन की सलाह दी जा रही है जो तीन बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनी हैं तथा गुजरात दंगों की दोषी पार्टी का उनके मंच से चुनाव करने गुजरात  बड़े गर्व से जा चुकी हैं।
लेकिन अपनी ही पार्टी के सम्मानित व विद्वान सांसद कामरेड डी राजा साहब की सर्वथा उपेक्षा करके बसपा नेत्री के भरोसे पार्टी की नैया खेने की तैयारी चल रही है। जब तक पार्टी नेतृत्व ब्रहमनवाद से ग्रस्त है तब तक पार्टी को जनप्रियता हासिल नहीं हो सकती है। राम का आदर्श था साम्राज्यवादी -विसतारवादी रावण का दर्प चूर्ण करना और आज पार्टी द्वारा नियंत्रित संगठन पोंगापंथी पाखंड को प्रचारित कर रहे हैं बजाए उस आदर्श को जनता के सामने प्रस्तुत करने के। इन सब कार्यों से फासिस्ट/सांप्रदायिक शक्तियाँ दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही हैं। 

निजीकरण को बढ़ावा ही इसलिए दिया गया था कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण के प्राविधान से पिंड छुड़ाया जा सके। अतः डी राजा साहब द्वारा निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्राविधान करवाने की पहल अच्छी है और पार्टी को इस पर सक्रिय होना चाहिए। लेकिन क्या पार्टी का ब्राह्मणवादी नेतृत्व ऐसा होने देगा? 
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Sunday, 6 December 2015

साझा संघर्ष साझी विरासत मार्च ------ विजय राजबली माथुर

फोटो सौजन्य से -प्रदीप शर्मा जी 


दोनों फोटो सौजन्य से - ताहिरा हसन जी



लखनऊ, 06 दिसंबर 2015
आज दोपहर एक बजे रवींद्रालय, चारबाग से भाकपा, माकपा, भाकपा (माले ), एस यू सी आई (सी ), फारवर्ड ब्लाक, प्रलेस, जलेस, जसम, इप्टा, कलम, एपवा, एडवा, आइसा, एस एफ आई, डी वाई एफ आई, महिला फेडरेशन, निर्माण मजदूर यूनियन, भवन निर्माण मज़दूए सभा, सीटू, एटक, एकटू, दलित शोषण मुक्ति मंच के संयुक्त तत्वावधान में ' सद्भावना मार्च ' गांधी प्रतिमा, जी पी ओ पार्क तक निकाला गया जिसमें ई-रिक्शा यूनियन भी एक अलग मार्च द्वारा आकर संयुक्त हो गई।

सांप्रदायिक सौहाद्र, वाम  एकता से संबन्धित विभिन्न जोशीले नारों के साथ यह जुलूस चलता आया, मार्ग में एक स्थान पर जनता द्वारा पुष्प-वर्षा करके जुलूस का अभिनंदन भी किया गया। जी पी ओ पार्क पहुँचने पर यह जुलूस एक सभा में परिणत हो गया जिसकी अध्यक्षता कामरेड मधु गर्ग, कामरेड आशा, कामरेड रमेश सेंगर, कामरेड जय प्रकाश के अध्यक्ष - मण्डल द्वारा की गई। प्रारम्भ में इस अध्यक्ष -मण्डल के सदस्यों ने डॉ अंबेडकर की प्रतिमा पर जाकर माल्यार्पण कर उनको परिनिर्वाण दिवस की श्रद्धांजली अर्पित की। सभा का संचालन माकपा के जिलामंत्री डॉ प्रदीप शर्मा द्वारा किया गया जिनहोने आज के इस आयोजन का परिचय दिया व प्रथम वक्ता के रूप में भाकपा की ओर से कामरेड राकेश को उनके बाद भाकपा ( माले ) के कामरेड कौशल किशोर, माकपा की कामरेड मधु गर्ग एवं SUCIC के कामरेड जय प्रकाश को विचार व्यक्त करने हेतु आमंत्रित किया। सभी वक्ताओं ने एक स्वर से मोदी सरकार की फासिस्ट व सांप्रदायिक नीतियों की कड़ी आलोचना की व वाम एकता को बनाए रखने तथा भविष्य में  भी संयुक्त संघर्ष जारी रखने की घोषणा की।

ई-रिक्शा यूनियन की ओर से भाकपा के कामरेड मोहम्मद अकरम को अपने विचार रखने का अवसर मिला। उन्होने अपनी यूनियन की ओर से सद्भाव कार्यक्रमों में योगदान देते रहने की घोषणा की व इस मंच के माध्यम से ई-रिक्शा चालकों के हो रहे शोषण को समाप्त कराये जाने की मांग रखी।

सभा का मुख्य आकर्षण था इप्टा, लखनऊ द्वारा प्रस्तुत नाटक 'अच्छे दिन' ।' अच्छे दिन- अच्छे दिन '  से प्रारम्भ करके ' अब तो आपको सच्चाई समझ आ गई' पर नाटक का समापन हुआ जिसमें मोदी सरकार के झूठे व खोखले वादों का पर्दाफाश किया गया।

रवींद्रालय से ही जुलूस के साथ -साथ चलने वाले प्रमुख लोगों में सर्व कामरेड के के शुक्ला, ताहिरा हसन, मधु गर्ग, प्रदीप शर्मा, रमेश सेंगर, शकील अहमद सिद्दीकी, प्रदीप घोष शामिल थे। जी पी ओ पर जो प्रमुख लोग शामिल हुये उनमें डॉ चंद्रेश्वर, डॉ वीरेंद्र यादव, सुभाष राय ( प्रधान संपादक जन-संदेश टाईम्स ), भगवान स्वरूप कटियार, किरण सिंह, ऊषा राय, नलिन रंजन सिंह व फूल चंद यादव आदि थे। 

Sunday, 8 November 2015

विचारधारा से ज्यादा जमीनी और व्यवहारिक राजनीति को समझने की जरूरत है ------ चंद्रेश्वर पाण्डेय / विजय राजबली माथुर

******!अब बिहार और देश में भी बाकी सेकुलर और वाम शक्तियों को भी एक मोरचे में शामिल होने की जरूरत है !अभी विचारधारा से ज्यादा जमीनी और व्यवहारिक राजनीति को समझने की जरूरत है।



चंद्रेश्वर पाण्डेय
Edited

लालू और नीतीश की जोड़ी को सलाम !महागठबंधन को सलाम !राजद --जद यू ---काँग्रेस को सलाम !सोनिया --राहुल को सलाम !बिहार की महान जनता को सलाम !बिहार ने हमेशा देश की राजनीति को नई दिशा देने का काम किया है ! देश के इस दौर में फासिज्म के बढ़ते क़दम को रोकने की दिशा में ये बिहार अगुवा की भूमिका में आएगा !बिहार के डीएनए में सहिष्णुता ,समन्वय और उदारता के भाव अन्तर्निहित हैं !इस जीत के पीछे किञ्चित पुरस्कार वापसी आंदोलन की भूमिका भी जरूर होगी ! 'साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है। 'हिंदी और भारतीय भाषाओँ के उन तमाम लेखकों और उनके संगठनों को भी सलाम ,जिन्होंने इस जीत के लिए एक माहौल बनाया !बिहार में पिछड़े ,अति पिछड़े ,दलित ,महादलित ,अल्पसंख्यक और प्रगतिशील --जनवादी सवर्ण गोलबंद थे। आज लालू जी ने एक मार्के की बात कही कि हमारे और नीतीश में एक फ़र्क ये है कि हम खोल के बोलता है और नीतीश ढँक के बोलते हैं। लालू जी ने ये भी कहा कहा कि' हम बिहारी लोग उड़ती चिड़िया को हल्दी लगाता है !'लालू जी के खोल के बोलने की अदा पर भला कौन बिहारी न फ़िदा हो जाय !लालू जी ,आपने फ़ासिज्म और साम्प्रदायिकता को रोकने की दिशा में आगे दिल्ली कूच करने की बात की है ,आप छठ के बाद लालटेन लेकर बनारस भी जाने वाले हैं !आपके साहस और दिलेरी को सलाम ,जो एक खिलंदरपन भी लिए हुए है !अब बिहार और देश में भी बाकी सेकुलर और वाम शक्तियों को भी एक मोरचे में शामिल होने की जरूरत है !अभी विचारधारा से ज्यादा जमीनी और व्यवहारिक राजनीति को समझने की जरूरत है।अब लालू और नीतीश से उम्मीद है कि वे पिछली भूलों से सबक लेते हुए बिहार को एक नया बिहार और एक बेहतर बिहार बनाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे !वे बिहार और वहाँ की युवा पीढ़ी को निराश नहीं करेंगे !उन्हें अशेष शुभ कामनाओं के साथ एक बार फिर सलाम!

https://www.facebook.com/chandreshwar1/posts/870166289726663?pnref=story


1925 में  आज़ादी के आंदोलन को तीव्र करके एक समता मूलक समाज गठित करने को गठित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी आज विचार धारा के नाम पर अनेक पार्टियों में विभाजित है जबकि 1925 में ही ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा हेतु गठित आर एस एस अपने अनेक स्व-निर्मित संगठनों के माध्यम से विभिन्न राजनीतिक दलों में घुसपैठ बनाते हुये केंद्र की सत्ता पर काबिज है। आज संघ नियंत्रित फासिस्ट सरकार देश में एक दक्षिण पंथी असैनिक तानाशाही की दिशा में कदम-दर-कदम बढ़ती जा रही है। बिहार के इन चुनाव परिणामों के बाद यदि सभी फासिस्ट विरोधी दल एकजुट न हुये तो वामपंथियों को पहले साफ करते हुये सभी विपक्षी दलों को फासिस्ट शक्तियाँ निगलने का उपक्रम करेंगी। या तो उनसे उनकी ही तरह सैन्य संगठन बना कर रक्त रंजित संघर्ष में परास्त करना होगा या फिर अपनी प्रचार शैली को बदल कर जन-समर्थन हासिल करना होगा जिसमें वामपंथियों की सबसे बड़ी बाधा 'नास्तिकता' : एथीस्टवाद है। हमें जनता के सामने फासिस्ट शक्तियों को 'अधार्मिक' सिद्ध करना होगा तभी हम सफल हो सकते हैं अन्यथा सैन्य बल पर सत्ता प्राप्ति के बाद भी सोवियत रूस के पतन की भांति ही उसे गवां  भी देंगे। 



सभी बाम-पंथी विद्वान सबसे बड़ी गलती यही करते हैं कि हिन्दू को धर्म मान लेते हैं फिर सीधे-सीधे धर्म की खिलाफत करने लगते हैं। वस्तुतः 'धर्म'=शरीर को धारण करने हेतु जो आवश्यक है जैसे-सत्य,अहिंसा(मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह,और ब्रह्मचर्य। इंनका का विरोध करने को आप कह रहे हैं जब आप धर्म का विरोध करते हैं तो। अतः 'धर्म' का विरोध न करके केवल अधार्मिक और मनसा-वाचा- कर्मणा 'हिंसा देने वाले'=हिंदुओं का ही प्रबल विरोध करना चाहिए।
विदेशी शासकों की चापलूसी मे 'कुरान' की तर्ज पर 'पुराणों' की संरचना करने वाले छली विद्वानों ने 'वैदिक मत'को तोड़-मरोड़ कर तहस-नहस कर डाला है। इनही के प्रेरणा स्त्रोत हैं शंकराचार्य। जबकि वेदों मे 'नर' और 'नारी' की स्थिति समान है। वैदिक काल मे पुरुषों और स्त्रियॉं दोनों का ही यज्ञोपवीत संस्कार होता था। कालीदास ने महाश्वेता द्वारा 'जनेऊ'धारण करने का उल्लेख किया है। नर और नारी समान थे। पौराणिक हिंदुओं ने नारी-स्त्री-महिला को दोयम दर्जे का नागरिक बना डाला है। अपाला,घोशा,मैत्रेयी,गार्गी आदि अनेकों विदुषी महिलाओं का स्थान वैदिक काल मे पुरुष विद्वानों से कम न था। अतः वेदों मे नारी की निंदा की बात ढूँढना हिंदुओं के दोषों को ढकना है।
वेद जाति,संप्रदाय,देश,काल से परे सम्पूर्ण विश्व के समस्त मानवों के कल्याण की बात करते हैं। उदाहरण के रूप मे 'ऋग्वेद' के कुछ मंत्रों को देखें -
'संगच्छ्ध्व्म .....उपासते'=
प्रेम से मिल कर चलें बोलें सभी ज्ञानी बनें।
पूर्वजों की भांति हम कर्तव्य के मानी बनें। ।
'समानी मंत्र : ....... हविषा जुहोमी ' =
हों विचार समान सबके चित्त मन सब एक हों।
ज्ञान पाते हैं बराबर भोग्य पा सब नेक हों। ।
'समानी व आकूति....... सुसाहसती'=
हों सभी के दिल तथा संकल्प अविरोधी सदा।
मन भरे हों प्रेम से जिससे बढ़े सुख सम्पदा। ।
'सर्वे भवनतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पशयन्तु मा कश्चिद दुख भाग भवेत। । '=
सबका भला करो भगवान सब पर दया करो भगवान ।
सब पर कृपा करो भगवान ,सब का सब विधि हो कल्याण। ।
हे ईश सब सुखी हों कोई न हो दुखारी।
सब हों निरोग भगवनधन-धान्यके भण्डारी। ।
सब भद्रभाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों।
दुखिया न कोई होवे सृष्टि मे प्राण धारी। ।

ऋग्वेद न केवल अखिल विश्व की मानवता की भलाई चाहता है बल्कि समस्त जीवधारियों/प्रांणधारियों के कल्याण की कामना करता है। वेदों मे निहित यह समानता की भावना ही साम्यवाद का मूलाधार है । जब मैक्स मूलर साहब भारत से मूल पांडुलिपियाँ ले गए तो उनके द्वारा किए गए जर्मन भाषा मे अनुवाद के आधार पर महर्षि कार्ल मार्क्स ने 'दास केपिटल'एवं 'कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो'की रचना की। महात्मा हेनीमेन ने 'होम्योपैथी' की खोज की और डॉ शुसलर ने 'बायोकेमी' की। होम्योपैथी और बायोकेमी हमारे आयुर्वेद पर आधारित हैं और आयुर्वेद आधारित है 'अथर्ववेद'पर। अथर्ववेद मे मानव मात्र के स्वास्थ्य रक्षा के सूत्र दिये गए हैं फिर इसके द्वारा नारियों की निंदा होने की कल्पना कहाँ से आ गई। निश्चय ही साम्राज्यवादियो के पृष्ठ-पोषक RSS/भाजपा/विहिप आदि के कुसंस्कारों को धर्म मान लेने की गलती का ही यह नतीजा है कि,कम्युनिस्ट और बामपंथी 'धर्म' का विरोध करते हैं । मार्क्स महोदय ने भी वैसी ही गलती समझने मे की । यथार्थ से हट कर कल्पना लोक मे विचरण करने के कारण कम्युनिस्ट जन-समर्थन प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। नतीजा यह होता है कि शोषक -उत्पीड़क वर्ग और-और शक्तिशाली होता जाता है।
आज समय की आवश्यकता है कि 'धर्म' को व्यापारियों/उद्योगपतियों के दलालों (तथाकथित धर्माचार्यों)के चंगुल से मुक्त कराकर जनता को वास्तविकता का भान कराया जाये।संत कबीर, दयानंद,विवेकानंद,सरीखे पाखंड-विरोधी भारतीय विद्वानों की व्याख्या के आधार पर वेदों को समझ कर जनता को समझाया जाये तो जनता स्वतः ही साम्यवाद के पक्ष मे आ जाएगी। काश साम्यवादी/बामपंथी विद्वान और नेता समय की नजाकत को पहचान कर कदम उठाएँ तो सफलता उनके कदम चूम लेगी। वरना दिल्ली की सड़कों पर सत्ता के अंतिम रक्तरंजित संघर्ष के लिए आर एस एस से लड़ने हेतु मुकम्मल तैयारी करें।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/965212736874036

------ विजय राजबली माथुर 

Wednesday, 4 November 2015

जनता के मर्म को समझने वाले एक जन-प्रिय नेता : कामरेड अतुल अनजान ------ विजय राजबली माथुर



(Atul Kumar Anjaan recently was invited by Miss Rolene Strauss- MISS WORLD 2014 
both had a conversation on current issues..... had a great conversation with her... I also had an opportunity to meet Miss Carina Tyrrell - MISS ENGLAND 2014 and Miss Aditi Arya - MISS INDIA 2015
earlier I was having inmpression that these are only beautiful girls but I found they are just only not beautiful but they are so intelligent and intellectually sound too..)
https://www.facebook.com/atul.anjaan.9/timeline/story?ut=43&wstart=0&wend=1448956799&hash=3772699294389714288&pagefilter=3&pnref=story
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।
                                  (मैथिलीशरण गुप्त )


अहंकार से कोसों दूर हैं कामरेड अतुल अनजान साहब और इसी वजह से जनता व कार्यकर्ताओं के दिलों में उनके लिए जो जगह है उसे कोई छीन नहीं पाता है। 'खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे' की तर्ज़ पर कुछ सिरफिरे या हकीकत में बाजारवादी/ब्राह्मणवादी और अश्लीलता समर्थक वामपंथियों ने उनके व्यक्तित्व  पर एक नहीं अनेकों बार निजी हमले किए हैं। किन्तु वह पूर्ण समर्पण भाव से अपने कर्म में लगे रहते हैं और निंदकों पर जवाबी प्रहार किए बगैर ही आगे बढ़ते रहते हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि वह अपनी निजी चिंता किए बगैर जन-सेवा में लगे रहेंगे। अभी बिहार के चुनावों में भी उन्होने बावजूद अस्वस्थता के काफी सक्रिय भाग लिया है।वामपंथी होते हुये भी जिन अदूरदर्शी जनों ने उन पर अनर्गल, अवांछनीय और आधारहीन आरोपों की बौछार की उनके संबंध में भी उनका सिर्फ इतना ही कहना है की, 'दुश्मनी करो लेकिन इतनी भी नहीं कि फिर दोस्ती होने पर शर्मिंदा होना पड़े '।   

कामरेड अतुल अनजान लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और AISF के भी पूर्व अध्यक्ष तो हैं ही। वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 'राष्ट्रीय सचिव' तथा AIKS-अखिल भारतीय किसानसभा के 'राष्ट्रीय महामंत्री हैं'।  न केवल अपनी ओजस्वी वाक-शैली वरन जनता के मर्म को समझने वाले एक जन-प्रिय नेता के रूप में भी जाने जाते हैं। 

यदि भाकपा केंद्रीय नेतृत्व उनके राष्ट्रीय कृत्यों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में पार्टी के पथ -प्रदर्शक के रूप में उनको अतिरिक्त भार  दे दे  तो पार्टी को अत्यंत लाभ हो सकता है।  
http://communistvijai.blogspot.in/2013/12/blog-post_24.html
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Wednesday, 7 October 2015

Durgavati Devi (Durga Bhabhi) --- Sanjog Waltar







Durgavati Devi (Durga Bhabhi) (7 October 1907 – 15 October 1999) was an Indian revolutionary and a freedom fighter. She was one of the few women revolutionaries who took an active participation in armed revolution against the ruling British. She is best known for having accompanied Bhagat Singh on the train journey in which he made his escape in disguise after the Saunders killing, Since she was wife of another HSRA member Bhagwati Charan Vohra, other members of HSRA referred her as 'Bhabhi' (elder brother's wife) and became popular as "Durga Bhabhi" in Indian revolutionary circles. Durga was a Bengali and her mother tongue was Bengali.
Durgavati Devi was married to Bhagwati Charan Vohra when she was aged eleven.
An active member of the Naujawan Bharat Sabha, Durga came into prominence when the Sabha decided to observe the 11th anniversary of Kartar Singh Sarabha’s martyrdom on 16 November 1926 at Lahore. Her most glorious moment came on 19 December 1928 when Bhagat Singh and Sukhdev Thapar went to her house two days after killing Saunders.
She led the funeral procession of Jatin Das from Lahore to Calcutta after his death in the 63-day jail hunger strike. All along the way, huge crowds joined the funeral procession.
She tried to kill Lord Hailey after Bhagat Singh surrenderd himself for 1929 Assembly bomb throwing incident. Lord Hailey escaped but many of associates died. She was caught by the police and imprisoned for three years. She had also sold her ornaments worth Rs. 3,000 to rescue Bhagat Singh and his comrades under trial.
She, along with her husband, helped Vimal Prasad Jain, an HSRA member in running a bomb factory in the name of 'Himalayan Toilets' (a smokescreen to hide the agenda of making bombs) at Qutub Road, Delhi. In this factory, they handled picric acid, nitroglycerine and fulminate of mercury.
Two days after killing Saunders, on 19 December 1928, Sukhdev called on Durga for help, which she agreed to do. They decided to catch the train departing from Lahore for Bathinda en route to Howrah (Calcutta) early the next morning. She posed herself as the wife of Bhagat Singh and put her son Sachin in his lap while Rajguru carried their luggage as their servant. To avoid recognition, Singh had shaved off his beard and cut his hair short the previous day and dressed in a western attire. In fact, when Bhagat Singh and Sukhdev came to her house on the night of 19 December 1928, Sukhdev introduced Bhagat Singh as a new friend. Durga could not recognise Bhagat Singh at all. Then Sukhdev told Durga the truth and said that if Durga Bhabhi could not recognise Bhagat Singh in his changed clean-shaved appearance despite knowing him well, surely the police would not recognise him as they would be looking for a bearded Sikh.
They left the house early the next morning. At the station, Bhagat Singh, with his concealed identity, bought three tickets to Cawnpore (Kanpur) — two first class tickets for Bhabhi and himself and a third class one for Rajguru. Both men had loaded revolvers with them to deal with any unanticipated incident. They avoided raising the suspicions of the police and boarded the train.Breaking journey at Kanpur, they boarded a train for Lucknow since the CID at Howrah railway station usually scrutinised passengers on the direct train from Lahore. At Lucknow, Rajguru left separately for Benares while Bhagat Singh, Durga Bhabhi and the infant went to Howrah. Durga returned to Lahore a few days later with her infant child.
This section does not cite any references or sources. Please help improve this section by adding citations to reliable sources. Unsourced material may be challenged and removed. (June 2013)
Unlike other freedom fighters, after Indian independence Durga started living as a common citizen in quite anonymity and exclusion in Ghaziabad. She later opened a school for poor children in Lucknow. Prime minister Pandit Jawaharlal Nehru visited her school in 1956.
Durga died in Ghaziabad on 15 October 1999 at the age of 92.

Monday, 5 October 2015

उत्पीड़न,मंहगाई व सूखा तथा दादरी कांड के खिलाफ लखनऊ में आंदोलन






 भाकपा,लखनऊ के जिलामंत्री द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार आज दिनांक 05 अक्तूबर 2015 को राष्ट्रीय आव्हान पर जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ के नेतृत्व में मोदी सरकार की आम जनता पर कमर तोड़ आर्थिक बोझ लादने वाली कारपोरेट समर्थक जनविरोधी नीतियों के प्रतिरोध स्वरूप 'मंहगाई दिवस' के रूप मनाया गया व राष्ट्रपति को संबोधित एक सात सूत्रीय ज्ञापन जिलाधिकारी, लखनऊ के माध्यम से सौंपा गया। 
ज्ञापन द्वारा बेतहाशा बढ़ती मंहगाई,पार्टी कार्यकर्ताओं का अजय सिंह, का सागर सिंह, का नरेश चन्द्र,का राम निवास जोशी  पर अमरोहा व बिजनौर में किए गए पुलिस ज़ुल्म और तमाम गंभीर धाराओं में निरुद्ध किए जाने को गलत ठहराया गया है व उनके बिना शर्त रिहा किए जाने की मांग की गई है। प्रदेश में समान शिक्षा दिये जाने व अनुसूचित जाति एवं भूमि हड़पने जैसा कानून निरस्त करने तथा गौतम बुद्ध नगर -दादरी (बिसाहड़ा ) में सांप्रदायिक ताकतों द्वारा मिथ्या आरोप पर असामाजिक तत्वों द्वारा  बेगुनाह की हत्या करने वालों पर रासुका लगा कर गिरफ्तार किए जाने की मांग की गई है। ई-रिक्शा चालकों के हो रहे उत्पीड़न को भी बंद किए जाने की मांग उठाई गई है। 
ज्ञापन देने जाने वालों में प्रमुख रूप से सर्व कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़, मधुराम मधुकर, परमानंद दिवेदी, मोहम्मद अकरम, राम देव तिवारी, हरिहर प्रसाद गुप्ता, शरीफ, विजय माथुर,  डॉ संजीव सक्सेना, रूप नारायण आदि शामिल थे। 

गांधी प्रतिमा, जी पी ओ पार्क पर वाम  मोर्चे द्वारा दादरी कांड पर संयुक्त धरना :

छह वामपंथी दलों ने संयुक्त रूप से दादरी कांड पर दोपहर दो बजे से धरना दिया। लगभग सभी वक्ताओं ने पीड़ित परिवार को सुरक्षा व दोषियों को कडा दंड देने की मांग की। महिला नेता  कामरेड ताहिरा हसन ने सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध जनता की लामबंदी की बात रखी जबकि भाकपा, लखनऊ के जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़  ने आने वाले समय की कठोर चुनौतियों से वाकिफ कराया। उनका सुदृढ़ अभिमत था कि अब समय आ गया है कि हमको इन सांप्रदायिक शक्तियों से मुक़ाबला करने के लिए खुद को संगठित करना होगा और उनको मुंहतोड़ जवाब देना होगा। 
इस संयुक्त धरने में भाकपा की ओर से जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ के अतिरिक्त परमानंद दिवेदी, विजय माथुर और डॉ संजीव सक्सेना शामिल हुए । 

Sunday, 4 October 2015

पूर्ववर्तियों का स्मरण : सराहनीय व अनुकरणीय प्रयास -----विजय राज बली माथुर



लखनऊ,0 2 अक्तूबर 2015 : आज गांधी/शास्त्री जयंती थी 22-क़ैसर बाग,स्थित भाकपा ज़िला कार्यालय पर पूर्व जिलामंत्री कामरेड बाबू खाँ साहब की 20 वीं वीं पुण्य तिथि मनाने के लिए प्रमुख कामरेड्स एकत्रित हुये थे। गत वर्ष की भांति ही इस वर्ष भी जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब व मोहम्मद अकरम खान के सौजन्य से इस स्मृति सभा का आयोजन किया गया था। उपस्थित वक्ताओं ने कामरेड बाबू खान साहब के चरित्र व विचारों पर अमल करने का संकल्प दोहराया। आपा-धापी और उठा-पटक के इस नाज़ुक दौर मे कामरेड ख़ालिक़ साहब द्वारा अपने पूर्ववर्तियों का स्मरण करना एक सराहनीय व अनुकरणीय प्रयास है।
कामरेड अतुल अंजान - पार्टी की 'रीढ़' :कामरेड शिव प्रकाश तिवारी 
04/10/2014 --13 :11 
लखनऊ,04  अक्तूबर 2014 : परसों  गांधी/शास्त्री जयंती थी परंतु हम लोग 22-क़ैसर बाग,स्थित भाकपा कार्यालय पर पूर्व जिलामंत्री कामरेड बाबू खाँ साहब की 19 वीं पुण्य तिथि मनाने के लिए एकत्रित हुये थे।  विचार गोष्ठी की अध्यक्षता का भार वयोवृद्ध कामरेड शिव प्रकाश तिवारी जी के कंधों पर था। संचालन जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने किया। उन्होने बाबू खाँ साहब के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने हेतु सर्व प्रथम वयोवृद्ध कामरेड मुख्तार अहम्मद साहब को आमंत्रित किया।
मुख्तार साहब ने बाबू खाँ साहब के साथ काम करने के अनुभवों के आधार पर उनका सरल शब्दों में गूढ परिचय दिया। एक सादगी पसंद और नेक इंसान के रूप में उनको सदैव याद किया जाएगा ऐसी उम्मीद उन्होने ज़ाहिर की।

ओ पी अवस्थी साहब ने बताया कि उनकी जन्मतिथि उपलब्ध न होने के कारण उनकी पुण्य तिथि मनाई जा रही है। उन्होने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति के कार्यों का मूल्यांकन उसके जाने के बाद ही हो पाता है। 
मधुकर मौर्या ने नितांत निजी सम्बन्धों के आधार पर बाबू खाँ साहब का बेहद गुण गान किया। उन्होने कहा कि बाबू खाँ जैसा न कोई और कामरेड हुआ है और न आगे होगा। 


कामरेड राजपाल यादव ने इस दोहे के साथ बात की शुरुआत की कि ---
"दुख में सुमिरन सब करें,सुख में करे  न कोय। 
जो सुख में सुमिरन करे ,तो दुख काहे   होय । । "
उन्होने साफ-साफ कहा कि हमें निराश नहीं होना चाहिए और जीवन काल में ही कामरेड्स के गुणों को पहचान कर उनको सम्मान देना चाहिए। उन्होने कहा कि आदरणीय बाबू खाँ साहब जैसे और भी बहुत से कामरेड्स हमारे बीच में आज भी मौजूद हैं। इस कड़ी में उन्होने वर्तमान जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब की तुलना पूर्व जिलामंत्री बाबू खाँ साहब से की। 

कामरेड विजय माथुर ने कहा कि हमें महापुरुषों का स्मरण उनके आचरण को अपने व्यवहार में उतारने का संकल्प लेकर करना चाहिए न कि उनकी यादगार सभा में केवल चाय -नाश्ता करके और कोरा गुण गान  करके खाना-पूर्ती करनी चाहिए। 
उन्होने  प्रारम्भ में  कामरेड नजीरुल हक साहब का लिखा वह नोट पढ़ कर सुनाया जिसमें हक साहब ने 27-28 सितंबर 2014 को इस्लामाबाद में 5 वामपंथी गुटों के द्वारा मिल कर एक 'पाकिस्तान वर्कर्स अवामी पार्टी' बनाने की सूचना दी थी और भारतीय वामपंथियों का आह्वान किया था कि 'दुनिया के मजदूरों एक हो का स्लोगन देने वाले खुद तो एक हो'। http://vijai-vidrohi.blogspot.in/2014/09/duniya-ke-mazddoro-ek-ho-ka-slogan-dene.html
इसके बाद उन्होने किसान सभा व महिला सभा की कर्मठ नेत्री कामरेड अर्चना उपाध्याय जी द्वारा जारी नोट जिसमें उत्तर-प्रदेश भाकपा से सकारात्मक कदम उठाने की मांग की गई थी का ज़िक्र किया। एक कामरेड  ने सुझाव देते हुये कहा कि कामरेड माथुर को नजीरुल हक साहब का नोट 'मुक्ति संघर्ष' व 'पार्टी जीवन ' को प्रकाशनार्थ भेज देना चाहिए। उनका जवाब देते हुये कामरेड माथुर ने कहा कि 'मुक्ति संघर्ष' को भेज देंगे (प्रधान संपादक शमीम फैजी साहब को फेसबुक मेसेज के जरिये अब भेज दिया है ) लेकिन 'पार्टी जीवन ' नहीं छापेगा क्योंकि उसके कार्यकारी संपादक प्रदीप तेवारी उनके प्रति वितृष्णा भाव रखते हैं। उन्होने पार्टी की सिकुड़ती हुई स्थिति व गिरती हुई साख के लिए प्रदीप तेवारी को जिम्मेदार ठहराया। 
बीच में अनाधिकृत हस्तक्षेप करते हुये मधुकर मौर्या ने माथुर को बैठ जाने को कहा। उनको टोकते हुये राजपाल जी ने पूछा कि जब  सभा अध्यक्ष जी व जिलामंत्री जी कुछ नहीं कह रहे हैं तो मधुकर मौर्या किस हैसियत से हस्तक्षेप कर रहे हैं। इस पर अध्यक्ष जी व जिलामंत्री जी ने कामरेड माथुर को अपनी बात जारी रखने को कहा। किन्तु कामरेड माथुर ने यह कहते हुये कि --- 'सोते हुओं को तो जगाया जा सकता है लेकिन जो जागते हुये सोने का उपक्रम करें उनके लिए वह अब एक शब्द भी नहीं कहेंगे। जब इंसान उनको सुनने के लिए तैयार नहीं हैं तो दीवारों को सुनाने का कुछ फायदा नहीं है' ---आगे बोलने से इंकार कर दिया। *

कामरेड ख़ालिक़ साहब ने अपने मार्मिक उद्बोद्धन में बाबू खाँ साहब को निर्भीक,साहसी और ईमानदार नेता बताया। उन्होने ज़िक्र किया कि बाबू खाँ साहब कहते थे कि 'प' अक्षर से सावधान रहना चाहिए जैसे-पड़ौसी,पार्टी,पैसा,प्रचार,'प' अक्षर वाले आदमी आदि। ख़ालिक़ साहब ने बताया कि वह सबकी निस्स्वार्थ भाव से मदद करते थे और उनको किसी प्रकार का लालच नहीं था। बेहद सादगी से रहते हुये वह दबंग विचारों के धनी थे। सरकारी अधिकारी उनकी इज्ज़त करते हुये काम कर देते थे। उन्होने कहा कि सच में हमें आज बाबू खाँ साहब के आदर्शों पर चलने की बहुत ज़रूरत है।

अंत में धन्यवाद देने से पूर्व सभा-अध्यक्ष आदरणीय कामरेड शिव प्रकाश तिवारी जी ने कामरेड बाबू खाँ साहब के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर व्यापक प्रकाश डाला। उन्होने इस कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए कामरेड ख़ालिक़ को विशेष धन्यवाद भी दिया। उन्होने कहा कि बाबू खाँ साहब में न तो लालच था और न ही घमंड जिस वजह से वह हमेशा कामयाब रहे। लेकिन अब के कामरेड्स उनके आचरण को अपने जीवन में उतारना ही नहीं चाहते। उन्होने युवा साथी राजपाल यादव की इस बात के लिए भूरी-भूरी प्रशंसा की कि उन्होने लखनऊ पूर्व से चुनाव लड़ कर पार्टी का झण्डा और पहचान घर-घर फिर से पहुंचा दी। उन्होने राजपाल यादव को पार्टी के लिए आशा की एक किरण बताया। उन्होने अशोक मिश्रा जी की प्रशंसा करते हुये कहा कि जब वह जिलामंत्री थे तो उन्होने उनकी काफी सहायता की थी। शिव प्रकाश जी ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और किसानसभा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड अतुल अंजान को पार्टी की 'रीढ़' बताया। उन्होने कामरेड हरीश तिवारी के दामाद के भाजपा नेता होने का ज़िक्र करते हुये कहा कि कामरेड्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी सन्तानें भी पार्टी की विचार-धारा को ही आगे बढ़ाएँ इसके लिए पार्टी में सभी कामरेड्स को समान महत्व दिये जाने की उन्होने आवश्यकता बताई। पार्टी के सिकुड़ते जाने के लिए उन्होने कुछ नेताओं के अहंकार और स्टेटस को उत्तरदाई माना। इस दुर्वस्था से निकाल कर पार्टी को जनता के बीच ले जाने की ज़रूरत पर उन्होने ज़ोर दिया। 
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* ज्ञातव्य है कि मधुकर मौर्या डॉ गिरीश शर्मा/प्रदीप तेवारी गुट की ओर से जिलामंत्री पद के संभावित प्रत्याशी हैं और इसी अहंकार में अलोकतांत्रिक प्रक्रिया अपना कर प्रदीप तेवारी के प्रति अपनी निजी वफादारी का प्रदर्शन कर रहे थे। उनकी पुत्री AISF की प्रदेश कोषाध्यक्ष है  और प्रदीप तेवारी AISF के प्रदेश इंचार्ज जिस कारण भी उनको प्रदीप की तरफदारी करना  भी बेहद ज़रूरी था।

Tuesday, 22 September 2015

वाम बाजरवादियों की बौखलाहट --- विजय राजबली माथुर


अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर गोष्ठियाँ करने वाले खुद अभिव्यक्ति को कैसे प्रतिबंधित करते हैं उसका प्रमाण ---(सनातन संस्थान और इन बाजारवादी कामरेड्स में क्या अंतर है?) :
http://communistvijai.blogspot.in/2015/09/blog-post_20.html

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/946500785411898

बाजरवादियों के इस प्रतिनिधि के  उपरोक्त व निम्न कथन एब्यूसिव नहीं हैं। क्यों?



वाम बाजरवादियों की बौखलाहट का एहसास उपरोक्त फोटो स्कैन से हो जाता है। 'स्पष्ट सामयिक निर्णय' लिए जाते  तो केले के तने की तरह परत-दर-परत कैसे खुलती जाती? वस्तुतः उत्तर प्रदेश में पार्टी को कई-कई बार तोड़ने वाला अपनी तिकड़मों के जरिये इतना ऊपर उठ गया है कि बड़े से बड़े दिग्गज को अपनी उंगली पर नचाता है। उच्चस्थ पदाधिकारियों को वही कहने को मजबूर करता है जो उसके व उसके परिवार के हित में होता है। उत्तर प्रदेश से उस परिवार के तीन लोग (कुल सात में) नेशनल काउंसिल में विराजमान हैं। लखनऊ के ज़िला सम्मेलन में उसने पार्टी को संकुचित करने का खुला ऐलान किया था । अतः अर्चना उपाध्याय जी का कथन व सुमित का  उसको समर्थन वास्तविकता को ही प्रकट करते हैं। :



यदि केंद्रीय नेतृत्व ने अश्लीलता समर्थक बाजारवादियों पर लगाम नहीं लगाई तो वे पार्टी को फासिस्टों का पिछलग्गू ही बना डालेंगे। 

Sunday, 20 September 2015

सच्चाई सामने आना ज़रूरी : बाजरवादियो द्वारा अनजान साहब पर प्रहार क्यों? --- विजय राजबली माथुर






State Council UP CPI को बाजारवादियों से आज़ाद करो। आज़ाद करो।--- Fakhrey Alam:


उत्तर प्रदेश में बाजारवादी/ब्राह्मण वादी लोग भाकपा पर हावी हैं जो बार-बार अनजान साहब को निशाना बनवाते हैं।टी वी चेनल्स में एक के पुत्र के माध्यम से इंनका प्रभाव है  जिसका इस्तेमाल अनजान साहब के विरुद्ध दुष्प्रचार में किया जाता है। इनके नायक का कहना है कि अनजान साहब को केंद्र में उन्होने भेजा है और प्रदेश सचिव की पीठ पर भी उनका हाथ है। पिछली अफवाह के बाद उन नायक साहब ने अनजान साहब से लगभग आधा घंटे फोन वार्ता द्वारा आश्वासन दिया था कि इस बार वह प्रदेश सचिव बदल देंगे। किन्तु आश्वासन पूरा किया नहीं और जिनको विकल्प के रूप में पेश करने की बात कही थी उनको इस बार के दुष्प्रचार का मुखौटा बना दिया गया। इतने से भी बात नहीं बनी तो माले के संपर्को को आगे किया गया है। 


उन बाजारवादी/ब्राह्मण वादी लोगों की निगाह '22-क़ैसर बाग' की बिल्डिंग पर लगी हुई है और वे इसके वारे-न्यारे करके मालामाल होना चाहते हैं। उनको लगता है कि 'अनजान' साहब उनके इस काले कारनामे में सबसे बड़ी बाधा हैं। अतः अनजान साहब को पार्टी से अलग कराने हेतु जब-तब अभियान चलवाते रहते हैं। ये तत्व पिछले 21 वर्षों में दो बार प्रदेश में पार्टी को विभाजित करा चुके हैं। इनके नायक की हिदायत है कि SC/OBC वर्ग के कार्यकर्ताओं से काम तो लो लेकिन उनको दायित्व न दो अर्थात पदाधिकारी न बनाओ। इसी वर्ष इन दो वर्गों से संबन्धित 
विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी रहे दो लोगों को अपने समर्थकों सहित पार्टी छोडने पर मजबूर होना पड़ा है। इन तथ्यों को जाने बगैर अनजान साहब पर प्रहार करने वाले लोग वस्तुतः बाजारवादी/ब्राह्मण वादी लोगों के मंसूबे पूरे कर रहे हैं बल्कि प्रकारान्तर से सत्तरूढ़ फासिस्ट सरकार को मजबूत बनाने में मदद कर रहे हैं।

'22-क़ैसर बाग' :

'22-क़ैसर बाग' स्थित पार्टी कार्यालय  भवन  राजा ब्रजेश सिंह जी जो स्वेतालना स्टालिन के पति थे द्वारा भाकपा को दान में प्रदान किया गया था। आज इस भवन की कीमत बाज़ार मूल्य से करोड़ों में होगी। इस भवन की ऊपरी मंज़िल में ऐसे किराएदारों को बसा दिया गया है जो पार्टी को अधिकृत रूप से किराया नहीं देते हैं। बाजार वादी पार्टी नियंत्रकों ने इस भवन को औने-पौने बेच कर निजी जेबों में धन भरने का मंनसूबा पाल लिया है। इस हेतु एक बार केयर टेकर कामरेड को भवन से हटाने का प्रस्ताव पास कर लिया गया था जिसे वयोवृद्ध कामरेड शिव प्रकाश तिवारी जी के 'सत्याग्रह' के कारण वापिस लेना पड़ा था। वे जानते हैं कि राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अनजान साहब के रहते वे इस 'भवन' को तीन-तेरह नहीं कर सकते हैं। इसी लिए कामरेड बर्द्धन जी  व अनजान साहब के विरुद्ध सुनियोजित अभियान चलाये जाते रहते हैं। जब तब उनके द्वारा पार्टी छोडने की झूठी अफवाहें उड़ाई जाती हैं। अपने अभियान में विफल रहने पर इस कड़ी में इनको अपने एक मोहरे को पार्टी से निष्कासित भी करना पड़ गया था। अब जिन वरिष्ठ कामरेड को 'मोहरा' बनाया गया है पहले उनको राज्यसचिव बना देने का फोन पर अनजान साहब को आश्वासन दिया गया था जिसे पूरा नहीं किया गया । अब उनको ही 'मोहरा' बना कर अंनजान साहब पर इसलिए प्रहार करवाया जा रहा है कि जिससे उनके विरुद्ध कारवाई करके उनको भी पहले मोहरे की भांति ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये।  

पहले वाले निष्कासित मोहरे के कथन से स्पष्ट है कि सिर्फ अनजान साहब ही नहीं वरन बर्द्धन जी भी बाजरवादियों के निशाने पर हैं। इन बाजरवादियों को फासिस्टों से लड़ने की ज़रूरत नहीं है बल्कि उनको मदद करने के लिए अपनी पार्टी को ही तोड़ना चाहते हैं जिससे अफरा-तफरी के माहौल में वे आसानी से भवन को बेच कर मुनाफा कमा सकें। देश भर के पार्टी कामरेड्स को बर्द्धन जी व अनजान साहब पर बाजारवादियों के प्रहार की निंदा करनी चाहिए व पार्टी की जायदाद की रक्षा के लिए अनजान साहब व बर्द्धन जी का पुरजोर समर्थन करना चाहिए। 

इसी लिए साम्यवाद को समर्पित कार्यकर्ता का कहना है ---


State Council UP CPI को बाजारवादियों से आज़ाद करो। आज़ाद करो।--- Fakhrey Alam
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