Wednesday, 16 October 2013

हो कही भी आग लेकिन आग ज़लनी चाहिए ... आनंद प्रकाश तिवारी

आज एकमात्र बामपंथी  ही हैं --- आनंद प्रकाश तिवारी:
आज एकमात्र बामपंथी  ही हैं  जिनके बेदाग व्यक्तित्व पर देश भरोसा करता है.
लेकिन ये तो अमिबा हो गए हैं . खंड दर खंड टुकड़ों  मे बटते रहना इनकी नियति  है .विरोधी हिंसक विचारधारा के रूप मे प्रचार करते हैं.कुछ बहके हुए माओइस्ट साथ  ही उसे पुष्ट भी कर देते हैं.
यह सच है सभी  बामपंथी  एकजुट हो जाएँ  तो देश की सबसे बड़ी ताक़त हैं .इनका विलय संभव नही है.लेकिन मोर्चा तो बन ही सकता है.इस मे कुछ स्वंभू बड़े मेटल की अकड़न  बाधक है .उन्हे अहसास कराओ कि ठीक करें कि इनकी  ज़रूरत है.
सत्ता के लिए लूटेरे दल एक हो जाते  हैं, ज़नहित मे कमेरे एकज़ुट क्यो नही होते ? दूसरे चोर के ऊपर पर आँख गड़ाए समय और उर्ज़ा बर्बाद  करने की क्या ज़रूरत?
बृहत्तर बाम महासंघ बनाने की  ज़रूरत है.क्रांतिकारी चिंतन शिविर  से ही एकता निकलेगी.
भवानीपुर हत्याकांड के बाद एकज़ुटता का प्रयास हुआ था  .सफलता  ही मिली.लेकिन समय की धूल भारी पड़ी और पहल भी हम जैसे छोटे कार्यकर्ताओं  की थी, शायद  इसी  लिए वो प्रयास परवान  न चढ़ सका.फिर ही प्रयास होना चाहिए, प्रयास ज़ारी है.
हो कही भी आग लेकिन आग ज़लनी चाहिए ...


(पिछली पोस्ट को शेयर करते हुये आनंद प्रकाश तिवारी जी ने यह नोट अपनी फेसबुक वाल पर दिया था । )

Anand Prakash Tiwari
Aaj ekmatr Bampanthi hi gain jinke bedag vyktitwa par desh bharosa karta hai.
Lekin ye to Amiba gain khand dar khand tukro me batate rahana inki neeyti hai .virodhi hinsak vichardhara ke roop me prachar karate hain.kuchh bhayke huye Maoest sat hi use pusht bhi kar dete hain.
Yeh such hai sabhi Bampanyhi ekjut ho jay to Desh ki subse bari taqat hain .inka vilay sambhav nahi hai.Lekin morcha to bun hi sakta hai.Is me kuchh swambhoo bare metal ki akran badhak hai .unhe ahsas karaoke thick Karen kind zazoorat hai.
Satta ke liye lootere dal ek ho hate hain, Zanhit me kamere ekzut kyo nahi hote ? Dusre chorkayopar par aankh gareye samay aur urza bar bad karne ki kya zaroorat .
Brihattar Bam Mahasangh banane kind zaroorat hai.Krantikari chintan shivi se hi ekta niklegi.
Bhawanipur hatyakand ke bad ekzutata ka pray as hua that .safalaya hi mili.lekin samay ki dhool bhari park aur pahal bhi Hum jaise chhote karykaryayo ki thi, shayd issue liye wo prayas par wan n charh saka.Phir hi prayas hona chahiye, Prayas zari hai.
HO KAHI BHI AAG LEKIN AAG ZALNI CHAHIYE ...

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आनंद प्रकाश तिवारी जी ने जो भावनाएं व्यक्त की हैं उनके मद्दे नज़र 'क्रांतिस्वर' पर निम्नाकिंत अंश पूर्व प्रकाशित है:

बुधवार, 21 अगस्त 2013

आज जब देश कम्युनिस्टो की ओर आशा भरी नजर से देख रहा है ,ये पीठ करके खड़े हो रहे हैं--रईस अहमद सिद्दीकी

कम्युनिस्ट आंदोलन -विफल क्यों?---मनीषा पांडे
Manisha Pandey's status.

एक पुरानी एफबी पोस्‍ट, जो अचानक रेलेवेंट हो उठी है -

21 साल की उम्र में जब मैंने पहली बार इलाहाबाद छोड़ा, तो शहर के क्रांतिकारियों ने मुझे एक तमगे से नवाजा था - कॅरियरिस्ट । मनीषा अपना कॅरियर बनाने जा रही है। बेशक, मैं अपनी जिंदगी, अपना कॅरियर बनाने ही जा रही थी। और क्यों न बनाऊं कॅरियर। मैं आपकी पार्टी मीटिंगों और कार्यक्रमों में जाती थी, इसका मतलब ये नहीं कि अपना पूरा जीवन समर्पित करने के मूड में थी। और आखिर वो कौन लोग थे और क्यों उन्हेंी मेरे कॅरियर बनाने से तकलीफ हो रही थी। व्हाेय।
जो लोग इस सुगंधित मुगालते में हैं कि पार्टी के भीतर सब सुंदर और आदर्श दुनिया होती है तो या तो वो अज्ञानी हैं या महामूर्ख।
जैसे समाज में गरीबों की और औरतों की कोई औकात नहीं होती, वो सबसे ज्या दा लात खाए हुए होते हैं, वही क्ला स और जेंडर गैप पार्टी के भीतर भी है। जैसे मेरे घर में खाना बनाने वाली औरत और मुझमें फर्क साफ नजर आता है, उसी तरह मेरे पापा की पार्टी के ऊंचे लीडरानों के बच्चोंन और मुझमें फर्क साफ नजर आता था।
बड़े होने के बाद मैंने कम से कम सौ बड़े पार्टी नेताओं से सुना कि एक बड़े मकसद के लिए अपना जीवन समर्पित कर दो। क्रांति का काम करना है तो नौकरी करने की क्याच जरूरत। मूंगफली का ठेला लगाकर भी जिया जा सकता है। पार्टी होलटाइमर बन जाओ।
पता है, इन बातों का सबसे रोचक पहलू क्याच था।
ये कहने वाले वो लोग थे जो खुद अच्छे पदों पर बैठे हुए थे। जिनके बच्चेग प्रेस की हुई यूनीफॉर्म पहनकर शहर के महंगे अंग्रेजी स्कू लों में पढ़ने जाते थे। जो बड़े होकर फोटोग्राफी का कोर्स करने पेरिस गए। जो अमेरिका से ऊंची डिग्रियां लेकर लौटे। जिन्हों ने कैंब्रिज और हार्वर्ड में पढ़ाई की। जिनके बच्चोंि के लिए पार्टी का काम सिर्फ एक फैशन की तरह था। कभी-कभी आ जाया करते थे।
पार्टी की कमान भी कौन संभालता था। जिसके गांव में 200 बीघा जमीन है, जिसे रोटी जुगाड़ने का टेंशन नहीं, जिसका परिवार से मजे से चल रहा है, वो पार्टी में डिसिजन मेकर बना हुआ है। और गरीब होलटाइमरों के बच्चों को ज्ञान दे रहा है कि होलटाइमर बन जाओ।
मेरे होलटाइमर न बनने की दो वजहें थीं। एक तो मैं गरीब थी, दूसरे लड़की थी। पार्टी के अंदर भी मुझे दोनों तरफ से जूते पड़ते। एंड आय एम सॉरी, मैं जूते खाने के लिए नहीं पैदा हुई।
यकीन मानिए, होलटाइमरी और समर्पण का सारा ज्ञान पार्टी वाले मामूली घरों के लाचार बच्चों को ही देते हैं। जिनकी उम्र निकल गई इसी आदर्श के चक्कलर में।
जब से दिल्ली आई हूं, पापा कई बार पूछ चुके हैं, "तुम प्रकाश करात से मिली।"
मैं कहती हूं, "नहीं। आय एम नॉट इंटरेस्‍टेड। आय एम नॉट इंटरेस्टेपड इन पार्टीवालाजएट
ऑल।"

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03-08-2013 

आज जब देश कम्युनिस्टो की ओर आशा भरी नजर से देख रहा है ,ये पीठ करके खड़े हो रहे हैं--रईस अहमद सिद्दीकी

कुछ लोग जवानी के जोश में ईमानदारी, प्रगतिशीलता,धर्मनिरपेक्षता और कम्युनिज्म की बातें करते हैं .उम्र ढलने पर दकियानूसी बातें करने लगते है और घोर प्रतिक्रियावादी हो जाते हैं .मैं समझता हूँ वे कभी क्रान्तिकारी थे ही नहीं.ऐसे लोगो की हमारे देश में कमी नहीं है ,हाँ एक बात और अपनी जवानी के दिनों में इन्होंने धर्म और मज़हब की इतनी बुराई की ,,कि लोगो को लगा कि कम्युनिज्म का मतलब धर्म को डंडा मारो है और लोग कम्युनिज्म से दूर हो गये.कल भी ऐसे लोगो की कमी नहीं थी और आज भी भरमार है.
चीन में महज एक करोड़ डालर की रिश्वत लेने वाले रेल मंत्री को मौत की सजा सुनाई है|आप कहते है कि चीन ने तरक्की की है,क्या खाक तरक्की की है,तरक्की तो हमारे देश ने की है जहाँ एक अदना सा अस्पताल का कर्मचारी या फिर किसी कार्यालय का चपरासी हजारों करोड़ की चपत लगाने की क्षमता रखता है,मंत्री के तो कहने की क्या.मंत्री तो हमारे देश के है जो हजारों हजार करोड़ डकार जाते है और सांस भी नहीं लेते .शान से रहते है कोई उँगली उठाने की भी हिम्मत नहीं कर सकता.लानत है ऐसे विकास पर कि रेल मंत्री महज एक करोड़ की रिश्वत ले और मौत की सजा पाये.


  • Rajesh Tyagi लाल झंडे की आड़ में चीन ने एक ऐसे सैनिक पूंजीवाद की रचना कर ली है, जो भारत या अमेरिका के पूंजीपतियों के बस की बात नहीं है. यह लौह-राज्य मजदूरों किसानो के उस भयंकर दमन पर आधारित है जिसकी परिणति हम तिएनान्मेन चौक पर देख चुके हैं. मंत्री को सजा किसी जनपक्षीय उद्देश्य से नहीं, बल्कि पूंजीवाद के नियमों का उल्लंघन करने के लिए, चीनी लौह-पूंजीवाद की सुरक्षा के लिए दी गई है...
कांग्रेस तो देश की आजादी के लिये लड़ने वालों का एक समूह था ,जिसमें तमाम विचारधाराऑ के लोग शामिल थे.आजादी के बाद देश की सबसे बड़ी और अनुशासित राजनैतिक पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी थी ,फिर चूक कहाँ हुई कि कम्युनिस्ट आन्दोलन कमज़ोर हुआ.
 

Kalpesh Dobariya ये ज़रूरी मुद्दा उठाया है आपने , Rais जी , ये लोग धर्म को लेकर कुछ ज़्यादा ही हाइपर रहते है , और मूल शत्रु पूंजीवाद पर इनका ध्यान कभिकभार ही जाता है , फ़ेसबुक पे भी ये देख सकते है हम , भारत जैसे धर्मभीरू देश मे इन्ही लोगो की बदौलत मार्क्सवाद बदनाम है , बेशक ये क्रिया क्रांतिविरोधी है....आप Vijai RajBali Mathur का ब्लॉग क्रानतीस्वर देखिए , इस विषय पर उन्होने बहूत अच्छे लेख लिखे है
 
  • Rupesh Kumar Singh CPI ne 1947 ke bad se hi ek awsarwadi politics ka parichay diya aur congress se aar par ki larai kabhi nahi kiya ....telangana movement ko fail karne me CPI netaon ki bhi ek bari bhumika rahi....

  • Rais Ahmad Siddiqui सही फरमाया रूपेश सिंह जी आपने,काश उस वक्त कांग्रेस से आर पार की लड़ाई लड़ी होती तो आज देश की तस्वीर एकदम अलग होती|
  • Rupesh Kumar Singh Rais Ahmad Siddiqui ji, aaj bhi mukhydhara ki communist partiyon ne in sabse sabak nahi sikha hai, aaj bhi congress ke pichhe chalne ko utaru rahte hain.....inhi karano se ab logon ko communist party se vishwash uthta ja raha hai .....

  • Rais Ahmad Siddiqui रूपेश सिंह जी इन पार्टियों के अन्दर जो बुर्जुआ लोग घुसे बैठे है,वे आन्दोलन की धार कुंद कर रहे है .पार्टी कैडर आज भी ईमानदार है और किसी भी तरह के समझौते के खिलाफ है,आखिर कब तक साम्प्रदायिक पार्टियों के डर से कांग्रेस का साथ देंगे ये ,और कांग्रेस क्या कम साम्प्रदायिकता फैलाती है|
  • Rupesh Kumar Singh Rais Ahmad Siddiqui ji, in CPI-CPI(M) se ab india ke communist aandolan ko ummid bhi nahi rakhna chahiye, hame ek naya vikalp dena hoga....jan sangharsh- jan vikalp !

  • Rais Ahmad Siddiqui बिल्कुल सही फरमाया आपने,अगर कम्युनिस्ट आन्दोलन को इनके भरोसे छोड़ा गया तो और एक शताब्दी बीत जायेगी.आज जब देश कम्युनिस्टो की ओर आशा भरी नजर से देख रहा है ,ये पीठ करके खड़े हो रहे हैं|
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 (उपरोक्त फेसबुक स्टेटस यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि आज भी कम्युनिस्ट पार्टियां और वामपंथ जनता की नब्ज को पहचान कर चलने को तैयार नहीं हैं ,केवल कोरे 'नास्तिकवाद' के सहारे जनता को अपने पक्ष  में खड़ा नहीं किया जा सकता और जन-समर्थन के बगैर संसद में बहुमत कैसे हासिल किया जा सकता है। रूस में रक्तरंजित क्रान्ति के बाद स्थापित साम्यवादी शासन इसीलिए उखड़ गया कि वह 'धर्म' के विरुद्ध था। यह समझने की नितांत ज़रूरत है कि पोंगापंथ-ढोंग-पाखंड-आडंबर धर्म नहीं हैं। धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा -वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य है। इसे ठुकरा कर आप 'साम्यवाद' नहीं स्थापित कर सकते। रूस में इसका पालन न होने के कारण ही साम्यवाद उखड़ा है। तो भारत में बेवजह की ज़िद्द क्यों?---विजय राजबली माथुर)

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