Wednesday 9 October 2013

बी जे पी उपाध्यक्ष का लेख झूठ का पुलिंदा ---विजय राजबली माथुर


वैसे तो भाजपा उपाध्यक्ष ने अपने लेख में व्यक्तिगत रूप से कामरेड सीताराम येचूरी को निशाना बनाया है ,जिसका जवाब वह खुद ही  देंगे या उनकी पार्टी को देना होगा। परंतु लेख में कुछ ऐसे अनर्गल तथ्य ठूँसे गए हैं जिंनका इशारा हमारी पार्टी भाकपा की ओर है। हमारे बड़े नेता जब जो जवाब देंगे तब देंगे किन्तु यहाँ मेरा उद्देश्य उन बी जे पी उपाध्यक्ष महोदय के झूठ का पर्दाफाश करना है। 

हिन्दू : 
'सनातन हिन्दू जीवन दर्शन' का उल्लेख किया गया है। जबकि आर्यसमाज के प्रचारक महोदय कहते हैं---

विश्वप्रिय वेदानुरागी हिन्दू का एक संक्षिप्तिकरण देखिये :- “हि” “न्” “दु”
“हि” अर्थात् हित ना करे वह
“न्” अर्थात् न्याय ना करे वह
“दु” अर्थात् दुष्टता करे वह
और इसका प्रमाण निम्न श्लोक है :-

हिन्दू शब्द की एक और व्याख्या देखिये जिसमें हिन्दू शब्द का निन्दित अर्थ दिया गया है |
हितम् न्यायम् न कुर्याद्यो
दुष्टतामेव आचरेत्
स पापात्मा स दुष्टात्मा
हिन्दू इत्युच्यते बुधै:||३/२१||
आत्मानम् यो वदेत् हिन्दू
स याति अधमां गतिम् |
दृष्ट्वा स्पृष्ट्वा तु त हिन्दुं
सद्य: स्नानमुपाचरेत् ||७/४७||
हिंकारेण परीहार्य:
नकारेण निषेधयेत् |
दुत्कारेण विलोप्तव्य:
यस्स हिन्दू सदास्मरेत् ||९/१२||
इति कात्थक्य: शिवस्मृतौ



शिव स्मृति
(जो हित और न्याय ना करे, दुष्टता का आचरण करे, वह पापी, वह दुष्टात्मा हिन्दू कहलाते हैं)
(जो व्यक्ति अपने आप को हिन्दू कहता है वह अधम गति को प्राप्त होता है और ऐसे हिन्दू को देख कर स्पर्श कर शीघ्र ही स्नान करें)
(हिं हिं करके जिसका परिहार करना चाहिए, न न करके जिसका निषेध करना चाहिए, दूत् दूत् करके जिसे दूर भगाना (नष्ट कर देना) चाहिए वही हिन्दू है इसे सदा याद रखें)

इस लिंक पर भी 'हिन्दू' शब्द विदेशी होने के प्रमाण हैं-http://madhyabharat.net/archives.asp?NewsID=179
 
 लेख में RSS की स्थापना के लिए केरल के दंगों को ज़िम्मेदार बताया गया है जबकि हकीकत यह है कि 1857 की क्रांति मुगल सम्राट 'बहादुर शाह जफर' के नेतृत्व में लड़े जाने जिसको शिवाजी के वंशज मराठों का सम्पूर्ण समर्थन था  के बाद ब्रिटिश शासकों ने  देश में फूट डालो और शासन करो की नीति के तहत ढाका के  नवाब मुश्ताक हुसैन को फुसला कर 1906 में 'मुस्लिम लीग' और लाला लाजपत राय,मदन मोहन मालवीय जैसे वयोवृद्ध कांग्रेसियों को फुसला कर 'हिंदूमहासभा' का गठन कराया था। मुस्लिम लीग तो सफल रही हिंदूमहासभा विफल। अतः डॉ हेडगेवार जैसे कांग्रेसी तथा विनायक दामोदर सावरकर जैसे पूर्व क्रांतिकारी को आगे करके 1925 में RSS की स्थापना कराई गई जिसका मूल उद्देश्य ही 1925 में ही स्थापित 'कम्युनिस्ट'पार्टी के नेतृत्व में चलाये जाने वाले क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलना था। शहीद भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद,रामप्रसाद बिस्मिल आदि आर्यसमाजी भी रहे और क्रांतिकारी कम्युनिस्ट भी। इनमे से किसी ने भी हिंदूवाद की बात नहीं की थी। 'हिंदूमहासभा' ने तो 'मुस्लिम लीग' से मिल कर सरकार भी बनाई थी और ब्रिटिश हुकूमत को पूरी पूरी मदद की थी :





 बी जे पी उपाध्यक्ष महोदय जिस हिंदूवाद की बात करते हैं उसके धर्म की दशा उपरोक्त अखबारी खबरें ही बता रही हैं। 'ढोंग-पाखंड-आडंबर-अधर्म' को ये लोग धर्म की संज्ञा देते हैं जिसके नमूने आशाराम,रामदेव,निर्मल आदि के कच्चे-चिट्ठे अब खुल चुके हैं। 

'धर्म' =सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के समुच्य को धर्म कहते हैं जो धारण करने योग्य है। इन सद्गुणों का विरोध किस कम्युनिस्ट पार्टी ने और कब किया इसका विवरण लेख में न देकर थोथी  बातों का आडंबर बघारा गया है।

बी जे पी आदि व्यापारियों/उद्योगपतियों की पार्टियां हैं उनका उद्देश्य उनके व्यापारिक -आर्थिक हितों की रक्षा करना है उनका सरोकार साधारण जनता से नहीं है इसीलिए पोंगा पंडितों के माध्यम से अधर्म को धर्म कह कर कम्युनिस्टों को कोसते हैं क्योंकि कम्युनिस्ट गरीब मेहनतकश किसान-मजदूर की आवाज़ को बुलंद करते हैं।


Bhavesh Bhardwaj
कम्यूनिस्ट पढ़ने की नहीं, अनुकरण करने की एक महापवित्र राजमार्ग है......
अगर ये पढ़े-लिखे नौजवान "लाचार और असहाय" हैं, तो इस देश का फिर भगवान ही मालिक है। देश के निर्णय जिम्मेदार लोगों के, तर्कशील लोगों के उपर निर्भर होना चाहिये, धार्मिक राष्ट्रवाद का सपना देखने वाले के हाथ में नहीं। कम्यूनिस्ट लोग ही नफ़रत की राजनीति को वैचारिक ढंग से परास्त कर सकते हैं, मार्क्सिस्ट विचारों में ही वो दम है जो धर्म मज़हब जाती बिरादरी और दूसरे हीन और संकीर्ण विचारों से लोगों को बाहर निकाल सकता है. कम्यूनिस्ट पढ़ने की नहीं, अनुकरण करने की एक महा पवित्र राजमार्ग है ......
वोट के सौदागरों ने वोट की ख़ातिर सामाजिक ताने-बाने को तार-तार किया है. मौजूदा राजनीति में वहीं फलफूल रहे हैं,जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों अौर पूँजीपतियों के दलाल हैं. अपराधी अौर भ्रष्ट हैं. जिनके पास अकूत पैसे का स्रोत है. जहां इनका प्रभाव नहीं हैं,वहाँ वोट जाति-क्षेत्र अौर धर्म के जलजले का शिकार है. पूरब से पश्चिम तक,उत्तर से दक्षिण तक लोकतंत्र मुट्ठीभर परिवारों में क़ैद है. इन परिवारों की दिलचस्पी लोक कल्याणकारी राज्य की व्यवस्था की जगह ख़ुद का कल्याण करने के माॅडल पर टीका हुआ है.'लोक','तंत्र' के नीचे दबा हुआ 'कम्यूनिस्ट' को पुकार रहा है. ......

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