Saturday, 5 October 2013

जन-हितैषी एवं देशभक्त सांसदों से आग्रह है कि वे जन-विरोधी तथा देशद्रोही 'आधार कार्ड' योजना को रद्द कराकर साधारण जनता के हितों की रक्षा करें


http://www.chauthiduniya.com/2011/08/uid-this-card-is-dangerous.html




 16 अप्रैल 2013 को गांधीवादी विचारक महोदय ने 'आधार कार्ड' की कमजोर 'नींव'का विस्तृत वर्णन दिया था और 28 अप्रैल को वित्तमंत्री ने अनुदार प्रधानमंत्री के इशारे पर आदेश जारी कर दिया कि,जिनके आधार कार्ड बैंक से सम्बद्ध नहीं हैं उनको गैस सबसीडी नहीं मिलेगी और बाज़ार भाव पर लगभग हज़ार रुपयों मे एक गैस सिलेन्डर लेना होगा। एक अरब 21 करोड़ से अधिक आबादी 2011 की जन गणना के वक्त थी जो अब और अधिक ही होगी। इस प्रकार कुल 80 लाख लोगों को छोड़ कर शेष समस्त जनता को मंहगाई की भट्टी में झोंक कर जलाने का इरादा है भ्रष्ट केंद्र सरकार का। जनता को अभी से कमर कस कर तैयार रहना चाहिए गैर कांग्रेस/गैर भाजपा सरकार अगले चुनावों द्वारा केंद्र में बनवाने हेतु अन्यथा देश को गृह-युद्ध का सामना करना पड़ सकता है। http://vijaimathur.blogspot.in/2013/05/blog-post.html



 चौथी दुनिया में प्रकाशित उपरोक्त संदर्भित लेख के महत्वपूर्ण तथ्य :
यूआईडीएआई ने इसके लिए तीन कंपनियों को चुना-एसेंचर, महिंद्रा सत्यम-मोर्फो और एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन. इन तीनों कंपनियों पर ही इस कार्ड से जुड़ी सारी ज़िम्मेदारियां हैं. इन तीनों कंपनियों पर ग़ौर करते हैं तो डर सा लगता है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन का उदाहरण लेते हैं. इस कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में ऐसे लोग हैं, जिनका अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और दूसरे सैन्य संगठनों से रिश्ता रहा है.

 दिल्ली सल्तनत का एक राजा था सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक. मुहम्मद बिन तुग़लक वैसे तो विद्वान था, लेकिन उसने जितनी भी योजनाएं बनाईं, वे असफल रहीं. इतिहास में यह अकेला सुल्तान है, जिसे विद्वान-मूर्ख कहकर बुलाया जाता है. मुहम्मद बिन तुगलक के फैसलों से ही तुग़लकी फरमान का सिलसिला चला. तुग़लकी फरमान का मतलब होता है कि बेवक़ू़फी भरा या बिना सोच-विचार किए लिया गया फैसला. वह इसलिए बदनाम हुआ, क्योंकि उसने अपनी राजधानी कभी दिल्ली तो कभी दौलताबाद तो फिर वापस दिल्ली बनाई. इतिहास से न सीखने की हमने कसम खाई है, वरना नए किस्म का पहचान पत्र यानी यूआईडी या आधार कार्ड लागू नहीं होता. यह कार्ड खतरनाक है, क्योंकि देश के नागरिक निजी कंपनियों के चंगुल में फंस जाएंगे, असुरक्षित हो जाएंगे. सबसे खतरनाक बात यह है कि भले ही हमारी सरकार सोती रहे, लेकिन विदेशी एजेंसियों को हमारी पूरी जानकारी रहेगी. अ़फसोस इस बात का है कि सब कुछ जानते हुए भी भारत जैसे ग़रीब देश के लाखों करोड़ रुपये यूं ही पानी में बह जाएंगे. सरकार ने इतना बड़ा फैसला कर लिया और संसद में बहस तक नहीं हुई.

सरकार की तऱफ से भ्रम फैलाया जा रहा है, रिपोट्‌र्स लिखवाई जा रही हैं, जनता को समझाने की कोशिश की जा रही है कि आधार कार्ड बनते ही सारा सरकारी काम आसान हो जाएगा. क्या सरकार संसद और सुप्रीम कोर्ट में यह हल़फनामा देगी कि इस कार्ड के बनने से ग़रीबों तक सभी अब तो वे संगठन भी हाथ खड़े कर रहे हैं, जो इस कार्ड को बनाने के कार्य में लगे हैं. इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसायटी ने कई गड़बड़ियों और सुरक्षा का सवाल उठा दिया है. इस योजना के तहत ऐसे लोग भी पहचान पत्र हासिल कर सकते हैं, जिनका इतिहास दाग़दार रहा है. एक अंग्रेजी अ़खबार ने विकीलीक्स के हवाले से अमेरिका के एक केबल के बारे में ज़िक्र करते हुए यह लिखा कि लश्कर-ए-तैय्यबा जैसे संगठन के आतंकवादी इस योजना का दुरुपयोग कर सकते हैं. यूआईडीएआई ने न स़िर्फ प्राइवेसी को ही नज़रअंदाज़ किया है, बल्कि उसने अपने पायलट प्रोजेक्ट के रिजल्ट को भी नज़रअंदाज़ कर दिया है. इतनी बड़ी आबादी के लिए इस तरह का कार्ड बनाना एक सपने जैसा है. अब जबकि दुनिया के किसी भी देश में बायोमेट्रिक्स का ऐसा इस्तेमाल नहीं हुआ है तो इसका मतलब यह है कि हमारे देश में जो भी होगा, वह प्रयोग ही होगा. यूआईडीएआई के पायलट प्रोजेक्ट के बारे में एक रिपोर्ट आई है, जो बताती है कि सरकार इतनी हड़बड़ी में है कि उसने पायलट प्रोजेक्ट के सारे मापदंडों को  दरकिनार कर दिया. मार्च और जून 2010 के बीच 20 हज़ार लोगों के डाटा पर काम हुआ. अथॉरिटी ने बताया कि फाल्स पोजिटिव आईडेंटिफिकेशन रेट 0.0025 फीसदी है. फाल्स पोजिटिव आईडेंटिफिकेशन रेट का मतलब यह है कि इसकी कितनी संभावना है कि यह मशीन एक व्यक्ति की पहचान किसी दूसरे व्यक्ति से करे. मतलब यह कि सही पहचान न बता सके. योजनाएं पहुंच जाएंगी, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा?
 प्रधानमंत्री और सरकार की ओर से दलील दी जा रही है कि यूआईडी से पीडीएस सिस्टम दुरुस्त होगा, ग़रीबों को फायदा पहुंचेगा, लेकिन नंदन नीलेकणी ने असलियत बता दी कि भारत के एक तिहाई लोग कंज्यूमर बैंकिंग और सामाजिक सेवा की पहुंच से बाहर हैं. पहचान नंबर मिलते ही मोबाइल फोन के ज़रिए इन तक पहुंचा जा सकता है.
  इसी कार्यक्रम के दौरान नेल्सन कंपनी के अध्यक्ष ने कहा कि यूआईडी सिस्टम से कंपनियों को फायदा पहुंचेगा. बड़ी अजीब बात है, प्रधानमंत्री और सरकार की ओर से यह दलील दी जा रही है कि यूआईडी से पीडीएस सिस्टम दुरुस्त होगा, ग़रीबों को फायदा पहुंचेगा, लेकिन नंदन नीलेकणी ने तो असलियत बता दी कि देश का इतना पैसा उद्योगपतियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए खर्च किया जा रहा है. बाज़ार को वैसे ही मुक्त कर दिया गया है. विदेशी कंपनियां भारत आ रही हैं, वह भी खुदरा बाज़ार में. तो क्या यह कोई साज़िश है, जिसमें सरकार के पैसे से विदेशी कंपनियों को ग़रीब उपभोक्ताओं तक पहुंचने का रास्ता दिखाया जा रहा है. बैंक, इंश्योरेंस कंपनियां और निजी कंपनियां यूआईडीएआई के डाटाबेस के ज़रिए वहां पहुंच जाएंगी, जहां पहुंचने के लिए उन्हें अरबों रुपये खर्च करने पड़ते. खबर यह भी है कि कुछ ऑनलाइन सर्विस प्रोवाइडर इस योजना के साथ जुड़ना चाहते हैं. अगर ऐसा होता है तो देश का हर नागरिक निजी कंपनियों के मार्केटिंग कैंपेन का हिस्सा बन जाएगा. यह देश की जनता के साथ किसी धोखे से कम नहीं है.

 क़रीब सौ साल पहले मोहनदास करमचंद गांधी ने अपना पहला सत्याग्रह दक्षिण अफ्रीका में किया. 22 अगस्त, 1906 को दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने एशियाटिक लॉ एमेंडमेंट आर्डिनेंस लागू किया. इसके तहत ट्रांसवल इलाक़े के सारे भारतीयों को रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर अपने फिंगर प्रिंट्स देने थे, जिससे उनका परिचय पत्र बनना था. इस परिचय पत्र को हमेशा साथ रखने की हिदायत दी गई, न रखने पर सज़ा भी तय कर दी गई. गांधी ने इसे काला क़ानून बताया. जोहान्सबर्ग में तीन हज़ार भारतीयों को साथ लेकर उन्होंने मार्च किया. अगर आज गांधी होते तो यूआईडी पर सत्याग्रह ज़रूर करते.

 

1 comment:

  1. फेसबुक पर प्राप्त कमेन्ट---
    Ram Kishore :GOOD,SAHI HAI

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