वाम दलों का कांग्रेस को समर्थन नहीं:---अतुल कुमार अनजान
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एक प्रसिद्ध वामपंथी नेता (मैं नाम नहीं लूंगा) ने कहा था कि ‘जब दूसरे दल
गलती करते हैं तो जनता उस दल को सजा देती है लेकिन जब कांग्रेस गलती करती
है, तब देश सजा पाता है।’ यह कहते हुए ही वे वरिष्ठ नेता 2000 में कांग्रेस
के सभी बड़े नेताओं को सम्बोधित करते हुए हार्ट अटैक के शिकार हुए और काल
के गाल में समा गए। साल 1991 के बाद से गुलामी दर गुलामी का जाल बुनने,
लोगों को लुटने व लुटाने, आत्महत्या करने पर मजबूर करने वाली नव- उदारवादी
जिस आर्थिक नीति को कांग्रेस पार्टी लेकर चली है और जिसे सोनिया-मनमोहन की
टीम ने परवान चढ़ाकर लोगों के गर्दन पर बेतहाशा संगीन हमले किये, उसने तीन
लाख से अधिक किसानों को आत्महत्या करने पर ही मजबूर नहीं किया वरन् लाखों
लोगों को सोते हुए हृदयाघात देकर प्राण पखेरू छीन लिये। बारम्बार
लुढ़कते-डूबते सूचकांक से मध्यम वर्ग की पूंजी लुट जाने के कारण वे हमेशा
के लिए लम्बी नींद में चले गए।
‘मिलने पर हॉय, जुदा होने पर बॉय’:
शायद ये सब कांग्रेस समझ न पाये क्योंकि कांग्रेस में नये नेताओं की जो
कुलांच भरती हुई टीम खड़ी हुई है, वह संवेदनाओं को समझ ही नहीं सकती।
उन्होंने युवा होने का मतलब बताया है कि ‘रात गई बात गई’। उन्होंने एक नया
मंत्र बताया है कि उत्तर आधुनिकता का अर्थ है ‘मिलने पर हॉय, जुदा होने पर
बॉय’। पश्चिम की संस्कृति और हमारी संकीर्णता के दौर से पैदा फूहड़पन न
हमें आधुनिक बना पा रहा है और न पुरातन होने दे रहा है। यह संघर्ष वैचारिक
भी नहीं रहा और पारम्परिक भी नहीं रहा। हमारी विरासत को नव बाजारवादी
नीतियों ने मसल दिया और आदशर्ों के नये प्रतीक कांग्रेस पार्टी ने हर्षद
मेहताओं में देखे। पिछले पांच साल में कांग्रेस की नीतियों से देश का बारह
लाख करोड़ खजाना नुकसान हुआ है। 8.5 फीसद विकास दर लिए चेहरे का एक गाल हम
दुनिया को मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दिखा रहे थे कि हम कितने गतिशील हुए
हैं और उसी सरकार की नीतियों के चलते चेहरे के दूसरे गाल पर ‘ब्लैक जापान’
जैसा काला रंग लगाकर हम दुनिया में थू-थू करा रहे हैं। वे कहने लगे कि
संसदीय जनतंत्र की आवश्यक उपज भ्रष्टाचार है, देखो भारत का हाल। अगर
सुप्रीम कोर्ट नहीं होता तो कांग्रेस के भ्रष्ट नेता देश को खूंटी पर
टांगकर सरेबाजार नीलामी का डंका पीट रहे होते। बाजार के संकट में सेंसेक्स
गिरता है और जब राजनीति में संकट आता है तो लोकतंत्र से लोगों का विश्वास
घटता है। कांग्रेस की भूमिका अब लोगों की भलाई में नहीं रही। इंदिरा गांधी
में तो नैतिक साहस था कि वह ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दे सकती थीं। लेकिन आज की
कांग्रेस में नारा देने का भी साहस नहीं रहा। पिछले साल दामिनी के लिए हुए
आंदोलन के समय कांग्रेस के तथाकथित युवराज ने एक शब्द नहीं बोला, क्या वे
देश के महिलाओं की रक्षा कर पाएंगे? आज जनदबाव में और अपने ही संकट से
लोकपाल पास करना पड़ा तो कॉरपोरेट मीडिया के जरिए श्रेय ले रहे हैं।
अभी और सिमटेगी कांग्रेस:
कांग्रेस अपनी टूटी हुई छत में बांस का सहारा लगाए या बल्लम का किनारा खोल
दे, यह कांग्रेसियों का निजी अधिकार है। लेकिन कई लंगड़े मिलकर एक मिल्खा
सिंह नहीं बन सकते। क्या राहुल गांधी अभी पीएम घोषित नहीं हैं ? दर्जन भर
मंत्री कब से उन्हें अपना पीएम बता रहे हैं। वामपंथ ने कई बार कांग्रेस को
देश के कहने पर समर्थन दिया और उसे जनविरोधी काम नहीं करने दिया। वामपंथ का
साथ छूटने के बाद कांग्रेस न केवल बदनाम हुई बल्कि उसकी जवानी भी खत्म हो
गई। 2014 में कांग्रेस 100-110 सीट तक सिमट जाएगी। भाजपा भी 130-140 पर
रहेगी। इसलिए देश में गैर कांग्रेस व गैर भाजपा सरकार के आसार बढ़ते जा रहे
हैं। कांग्रेस को तब विघटित भी होने को तैयार रहना चाहिए। किसी भी दशा में
वामपंथी दल दोबारा कांग्रेस को समर्थन नहीं दे सकते। ऐसा करके क्या वे
अपनी सार्थकता पर ही प्रश्न चिह्न नहीं लगाएंगे। एक समय कांग्रेस उत्साह का
नाम था, त्याग का प्रतीक था, नौजवान उसके सिद्धांतों पर चलने के लिए हर
खतरे मोल लेने के लिए आगे बढ़ता था, कांग्रेस की बांह थामकर वह गरीब की
जिंदगी में बहार लाने का स्वप्न बुनता था। आज वह सपनों का लुटेरा ही नहीं,
सपनों के बलात्कारियों की एक जमात बन कर रह गई है। मेरे ये तर्क कांग्रेस
विरोध की भावना से नहीं उपजे हैं बल्कि एक लंबे संघर्षो के इतिहास से निकली
उस जमात से आशा और उम्मीद की किरणों से बावस्ता होने के कारण निकल रहे
हैं।
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