Thursday, 26 December 2013

हमारा सफर और वर्तमान -भाकपा के स्थापना दिवस पर ---विजय राजबली माथुर

हमारा सफर :



भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी :

इस दल की स्थापना तो 1924 ई में विदेश में हुई थी। किन्तु 25 दिसंबर 1925 ई को कानपुर में एक सम्मेलन बुलाया गया था जिसके स्वागताध्यक्ष  गणेश शंकर विद्यार्थी जी थे। 26 दिसंबर 1925 ई  को एक प्रस्ताव पास करके  'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' की स्थापना की विधिवत घोषणा की गई थी। 1931 ई में इसके संविधान का प्रारूप तैयार किया गया था किन्तु उसे 1943 ई में पार्टी कांग्रेस के खुले अधिवेन्शन में स्वीकार किया जा सका क्योंकि तब तक ब्रिटिश सरकार ने इसे 'अवैध'घोषित कर रखा था और इसके कार्यकर्ता 'कांग्रेस' में रह कर अपनी गतिविधियेँ चलाते थे। 

वस्तुतः क्रांतिकारी कांग्रेसी ही इस दल के संस्थापक थे। 1857 ई की क्रांति के विफल होने व निर्ममता पूर्वक कुचल दिये जाने के बाद स्वाधीनता संघर्ष चलाने हेतु स्वामी दयानन्द सरस्वती (जो उस क्रांति में सक्रिय भाग ले चुके थे)ने 07 अप्रैल 1875 ई (चैत्र शुक्ल  प्रतिपदा-नव संवत्सर)को 'आर्यसमाज' की स्थापना की थी। इसकी शाखाएँ शुरू-शुरू में ब्रिटिश छावनी वाले शहरों में ही खोली गईं थीं। ब्रिटिश सरकार उनको क्रांतिकारी सन्यासी (REVOLUTIONARY SAINT) मानती थी। उनके आंदोलन को विफल करने हेतु वाईस राय लार्ड डफरिन के आशीर्वाद से एक रिटायर्ड ICS एलेन आकटावियन (A.O.)हयूम ने 1885 ई में वोमेश चंद (W.C.) बैनर्जी की अध्यक्षता में 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' की स्थापना करवाई जिसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा करना था। दादा भाई नैरोजी तब कहा करते थे -''हम नस-नस में राज-भक्त हैं''। 

स्वामी दयानन्द के निर्देश पर आर्यसमाजी कांग्रेस में शामिल हो गए और उसे स्वाधीनता संघर्ष की ओर मोड दिया। 'कांग्रेस का इतिहास' में डॉ पट्टाभि सीता रमइय्या ने लिखा है कि गांधी जी के सत्याग्रह में जेल जाने वाले कांग्रेसियों में 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे। अतः ब्रिटिश सरकार ने 1906 में 'मुस्लिम लीग'फिर 1916 में 'हिंदूमहासभा' का गठन भारत में सांप्रदायिक विभाजन कराने हेतु करवाया। किन्तु आर्यसमाजियों व गांधी जी के प्रभाव से सफलता नहीं मिल सकी। तदुपरान्त कांग्रेसी डॉ हेद्गेवार तथा क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने अपनी ओर मिला कर RSS की स्थापना करवाई जो मुस्लिम लीग के समानान्तर सांप्रदायिक वैमनस्य भड़काने में सफल रहा। 

इन परिस्थितियों में कांग्रेस  में रह कर क्रांतिकारी आंदोलन चलाने वालों को एक क्रांतिकारी पार्टी की स्थापना की आवश्यकता महसूस हुई जिसका प्रतिफल 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी'के रूप में सामने आया। ब्रिटिश दासता के काल में इस दल के कुछ कार्यकर्ता पार्टी के निर्देश पर  कांग्रेस में रह कर स्वाधीनता संघर्ष में सक्रिय भाग लेते थे तो कुछ क्रांतिकारी गतिविधियों में भी संलग्न रहे। उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यवाद से देश को मुक्त कराना था। किन्तु 1951-52 के आम निर्वाचनों से पूर्व इस दल ने संसदीय लोकतन्त्र की व्यवस्था को अपना लिया था। इन चुनावों में 04.4 प्रतिशत मत पा कर इसने लोकसभा में 23 स्थान प्राप्त किए और मुख्य विपक्षी दल बना। दूसरे आम चुनावों में 1957 में केरल में बहुमत प्राप्त करके इसने सरकार बनाई और विश्व की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार बनाने का गौरव प्राप्त किया। 1957 व 1962 में लोकसभा में साम्यवादी दल के 27 सदस्य थे। 


आलोचना :

डॉ  परमात्मा शरण (पूर्व अध्यक्ष,राजनीतिशास्त्र विभाग एवं प्राचार्य,मेरठ कालेज,मेरठ) ने अपनी पुस्तक में जवाहर लाल नेहरू के एक भाषण के हवाले से इस दल की निम्न वत आलोचना की है---

*साधारण व्यक्तियों के लिए इसके सिद्धांतों को समझना कठिन है तथा दल ने अपनी नीति का निर्धारण देश की परिस्थितियों के अनुकूल नहीं किया है।  

**इसके सिद्धांतों व कार्यकर्ताओं के विचारों में 'धर्म' का कोई महत्व नहीं है,किन्तु अभी तक अधिकांश भारतवासी धर्म को महत्व देते हैं। 
***इसके तरीके भारतीयों को अधिक पसंद नहीं हैं क्योंकि यह हिंसात्मक व विनाशकारी कार्यों में विश्वास रखता है। 
****चीन की आपत्तीजनक कार्यवाहियों के कारण साम्यवादी दल की लोकप्रियता को बड़ा धक्का लगा है। 
*****1964 में वामपंथी,साम्यवादी दल से अलग हो गए हैं, उनका रुख भारत-चीन विवाद के संबंध में राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध कहा जा सकता है। लेकिन जनता इस दल और उस दल में विभेद नहीं कर पाती है। 

 दल का कार्यक्रम :

प्रथम आम चुनावों के अवसर पर दल के घोषणा-पत्र में कहा गया था :
कांग्रेस नेताओं ने हमारी स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं की है,उसने हमारे स्वातंत्र्य संघर्ष को धोखा दिया है और उसने विदेशियों व प्रतिगामी सन्निहित हितों (Vested intrests) को पूर्ववत जनता को लूटने खसोटने का अवसर दिया है। कांग्रेसी स्वयं लूट-खसोट में सम्मिलित हो गए हैं। कांग्रेस सरकार ने राष्ट्र को धोखा दिया है। यह तो जमींदारों,एकाधिकार प्राप्त व्यक्तियों की सरकार है और भ्रष्टाचार व घूसख़ोरी कांग्रेस शासन के मुख्य चिह्न हो गए हैं। सरकार ने लाठियों और गोलियों व दमनकारी क़ानूनों का प्रयोग किया है। सरकार की नीति शांति की नहीं वरन 'आंग्ल -अमरीकी साम्राज्यवादियों' का समर्थन करने वाली रही है। 

*नेहरू सरकार हटा कर देश में लोकतंत्रात्मक शासन स्थापित किया जाएगा। किसानों और मजदूरों के प्रतिनिधियों का शासन स्थापित किया जाएगा। 
*दल ब्रिटिश साम्राज्य से संबंध-विच्छेद करेगा,किसानों को ऋण भार से मुक्त करेगा,सभी भूमि और कृषि साधनों को किसानों को बिना प्रतिकर दिलाएगा। 
*यह राष्ट्रीयकृत पूंजी द्वारा देश के उद्योगों का विकास करेगा,जिसमें वह निजी पूँजीपतियों को उचित लाभ और मजदूरों को जीवन वेतन का आश्वासन देकर उनका सहयोग प्राप्त करेगा। 
*दल देश में एक राष्ट्रीय सेना की रचना करेगा और पुलिस के स्थान पर जनता का नैतिक दल संगठित करेगा। 
*प्रान्तों के पुनर्गठन व रियासतों के निर्मूलन द्वारा राष्ट्रीय राज्यों का निर्माण,
*अल्प-संख्यकों के हितों और अधिकारों का संरक्षण,
*सभी सामाजिक और आर्थिक अयोग्यताओं का अंत,नि:शुल्क और अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा,  
*सभी देशों से व्यापारिक और आर्थिक सम्बन्धों की स्थापना,
*विश्व की सभी बड़ी शक्तियों में शांति के लिए समझौता कराना आदि  बातें इसके कार्यक्रम में सम्मिलित थी।   

1958 ई में अमृतसर में साम्यवादी दल की असाधारण कांग्रेस हुई थी उसमें प्रमुख रूप से ये प्रस्ताव पास हुये थे:
*विश्व में शांति चाहने वाली शक्तियों-राष्ट्रीय स्वाधीनता व समाजवाद की प्रगति हो रही है;
*देश में लोकतंत्रात्मक आंदोलन की प्रगति हुई है,जैसा कि केरल तथा अनेक औद्योगिक निर्वाचन क्षेत्रों में हुये चुनावों के परिणामों से स्पष्ट है,कई राज्यों में कांग्रेस कमजोर पड़ी है;
*योजना की पूर्ती में बड़े व्यवसाय संयुक्त राज्य अमरीका पर अधिक निर्भर होते जा रहे हैं,जिसे दल उचित नहीं मानता;
*दल साम्यवाद के आदर्शों के प्रचार और शिक्षा प्रसार को अधिक मानता है (Importance of sustained,systematic and all sided ideological struggle by the Communist Party,a struggle conducted on the basis of the principles of Marxism,Leninism and proletarian internationalism)
*इन उद्देश्यों की पूर्ती के लिए साम्यवादी दल के संगठन में सर्वसाधारण जनता अधिक से अधिक भाग ले इस हेतु दल को कार्य करना चाहिए (communist Party as a mass political force,a party which will unite and rally the popular masses by its initiatve in every sphere of national life);
*दल दो वर्ष पूर्व हुई कांग्रेस के कार्यक्रम को फिर से दोहराता है,किन्तु इन महत्वपूर्ण प्रश्नों पर तत्काल राष्ट्रीय अभियानों (National Champaigns) की आवश्यकता पर बल देता है---

(अ)अमरीकी पूंजी का भारत में लगाए जाने का विरोध,
(इ)बड़े बैंकों,खाद्यानों में थोक व्यापार का राष्ट्रीयकरण,राजकीय व्यापार का विस्तार,
(ई )भूमि और किसानों संबंधी नीति में महत्वपूर्ण सुधार,
(उ )लोकतंत्रात्मक अधिकारों व नागरिक स्वतंत्रताओं  की रक्षा और विस्तार ,
(ऊ )भ्रष्टाचार का विरोध,
(ए )जातिवाद,संप्रदायवाद और अस्पृश्यता का विरोध इत्यादि। 

इन उद्देश्यों की पूर्ती के लिए दल को किसान सभाएं कायम करनी चाहिए और संयुक्त मोर्चे (United Front) को सुदृढ़ करना चाहिए। 

1925 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना से ब्रिटिश सरकार हिल गई थी अतः उसकी चालों के परिणाम स्वरूप 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' की स्थापना डॉ राम मनोहर लोहिया,आचार्य नरेंद्र देव आदि द्वारा की गई। इस दल का उद्देश्य भाकपा की गतिविधियों को बाधित करना तथा जनता को इससे दूर करना था। इस दल ने धर्म का विरोधी,तानाशाही आदि का समर्थक कह कर जनता को दिग्भ्रमित किया। जयप्रकाश नारायण ने तो एक खुले पत्र द्वारा  'हंगरी' के प्रश्न पर साम्यवादी नेताओं से जवाब भी मांगा था  जिसके उत्तर में तत्कालीन महामंत्री कामरेड अजय घोष ने कहा था कि वे स्वतन्त्रता को अधिक पसंद करते हैं किन्तु उन्होने विश्व समाजवाद के हित में सोवियत संघ की कार्यवाही को उचित बताया।  


वर्तमान परिस्थिति : 

 भाकपा स्थापना दिवस की पूर्व वेला में 25 दिसंबर 2013 को  22-क़ैसर बाग,लखनऊ में भाकपा ज़िला काउंसिल के तत्वावधान में एक विचार गोष्ठी का आयोजन'हमारा सफर और वर्तमान परिस्थिति'विषय पर किया गया जिसका संचालन प्रदेश कार्य समिति के एक सदस्य द्वारा किया गया। प्रवर्तन IPTA के प्रदेश महासचिव कामरेड राकेश ने किया तथा कामरेड शकील सिद्दीकी एवं साहित्यकार वीरेंद्र यादव जी ने भी संबोधित किया। बाराबंकी के सह-जिलामंत्री,हाई कोर्ट के वकील और प्रदेश सचिव अन्य वक्ताओं में थे। लखनऊ ज़िला काउंसिल की ओर से एकमात्र वक्ता के रूप में जिला मंत्री को  मात्र धन्यवाद ज्ञापन का अवसर दिया गया। 

अध्यक्षीय सम्बोधन में कामरेड एस पी सिंह ने नए-नए लोगों को विचार-धारा के आधार पर पार्टी से जोड़ने की आवश्यकता बताई। उनका सुदृढ़ अभिमत था कि 'कम्यूनिज़्म' एक विचार धारा है और जब तक इसका प्रसार-प्रचार नहीं होगा तब तक लोग हमसे नहीं जुड़ेंगे। उनकेअनुसार पहले पार्टी संघर्ष-शील थी। 1978 में हुये विकलांगों के एक प्रदर्शन में उन पर भी लाठी चार्ज हुआ था और कामरेड अतुल अनजान,राकेश जी एवं लोहित जी उनके संघर्ष में शामिल हुये थे।

डॉ परमात्मा शरण द्वारा की गई आलोचना कि  'धर्म' का विरोध करने के कारण भाकपा जनता में लोकप्रिय न हो सकी तथा वक्ताओं द्वारा उठाए वर्णाश्रम व्यवस्था/जातिवाद को बाधक तत्व बताना इस पार्टी के संकुचन के कारण होते हैं। 

इस संबंध में मेरा विचार है कि 'लकीर के फकीर' बन कर चलना ही पार्टी के पिछड़ने का कारण है। हालांकि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' फिर भी 'एकला चलो रे' की तर्ज पर मैं अपने ब्लाग 'क्रांतिस्वर'

के माध्यम इन बाधक तत्वों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्पष्ट करता रहा हूँ।

'धर्म'=जो शरीर को धरण करने के लिए आवश्यक है जैसे-'सत्य','अहिंसा','अस्तेय','अपरिग्रह'और 'ब्रह्मचर्य'।
(क्या मार्क्स ने इन सद्गुणों को अफीम बताया है?जी नहीं मार्क्स ने उस समय यूरोप मे प्रचलित 'ईसाई पाखंडवाद'को अफीम कह कर उसका विरोध किया था। पाखंडवाद चाहे ईसाइयत का हो,इस्लाम का हो या तथाकथित हिन्दुत्व का उन सब का प्रबल विरोध करना ही चाहिए परंतु 'विकल्प' भी तो देते चलिये। )

'भगवान'=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल) का समन्वय।

'खुदा'=चूंकि ये पाँच तत्व खुद ही बने हैं इन्हे किसी ने बनाया नहीं है इसलिए इन्हे खुदा भी कहते हैं।

GOD=G(जेनेरेट)+O(आपरेट)+D(देसट्राय)। 'भगवान' या 'खुदा' सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन,पालन और 'संहार' भी करते हैं इसलिए इन्हें GOD भी कहा जाता है।

क्या मार्क्स ने प्रकृति के इन पाँच तत्वों को अफीम कहा था?'साम्यवाद' को संकुचित करने वाले वीर-विद्वान क्या जवाब देंगे?  


देवता=जो देता है और लेता नहीं है जैसे-वृक्ष ,नदी,समुद्र,वायु,अग्नि,आकाश,ग्रह-नक्षत्र आदि न कि कोई व्यक्ति विशेष। क्या मार्क्स ने प्रकृति प्रदत्त इन उपादानों का कहीं भी विरोध किया है?'साम्यवाद' के नाम पर साम्यवाद का अवमूल्यन करने वाले दिग्गज विद्वान क्या जवाब देंगे?


 गोष्ठी में वक्ताओं और प्रदेश सचिव ने भी 'आप' की सफलता का ज़िक्र किया था। मैं अपने आंकलन देता रहा हूँ-



'रत्ना सिंह'जी ने वाजिब प्रश्न किया है कि 'CPI और अन्य वाम  दल क्यों नहीं कर पाते यह एक गहरे आत्म-मंथन का विषय है'।

 वस्तुतः निम्नांकित फोटो द्वारा प्रदेश के एक वरिष्ठ नेता द्वारा राष्ट्रीय नेताओं के विरुद्ध की गई  टिप्पणियाँ कुछ प्रकाश डाल देंगी। इन्हीं के एक दूसरे जाति-बंधु  कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न और टांग-खिंचाई करके पार्टी को आगे नहीं बढ्ने देना चाहते हैं। जिस प्रदेश से कभी सर्व कामरेड मोहानी,इशहाक संभली,ज़ेड ए अहमद भीखा लाल,ऊदल,सरजू पांडे,जंग बहादुर,झारखण्डे राय,रुस्तम सैटिन  आदि ने पार्टी को बुलंदियों पर पहुंचाया था और जिस प्रदेश के लाल बहादुर शास्त्री,राम मनोहर लोहिया,नरेंद्र देव आदि नेता जनता के बीच भाकपा की आलोचना धर्म के नाम पर करने में कामयाब रहे हैं उसी प्रदेश के पार्टी नेता अब खुद ही अपनी पार्टी की बढ़त को रोक रहे हैं। यही है वर्तमान परिस्थिति जिसे बदले और सुधारे बिना पार्टी को जन-प्रिय नहीं बनाया जा सकता है।









 छिप कर अपनी ही पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं पर किए गए इनके प्रहार को ब्लाग द्वारा सार्वजनिक करने पर :

राष्ट्रीय हितों से ऊपर अपने निजी हितों को साधने वाले ये लोग कार्यकर्ताओं के प्रति किस हद तक क्रूर हो सकते हैं इसका एक नमूना इस लिंक पर मिल जाएगा ---

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=517718558336136&set=a.423703111071015.1073741825.100002939890884&type=1


  ~विजय राजबली माथुर ©

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