Saturday, 28 December 2013

वाम से आप बन जाने का आग्रह भी कम दिलचस्प नहीं है--- धीरेश सैनी



December 24 at 10:28am · Edited
https://www.facebook.com/dheeresh.saini/posts/590603941005459
केजरीवाल लिमिटेड का किस्सा कई मायनों में दिलचस्प है। अरुंधति और कई अन्य विश्लेषकों ने इस बात को शुरू में ही भांप लिया था कि अन्ना की डोर किसके हाथ में है और केजरीवाल की महत्वकांक्षाएं इस डोर से बंधी नहीं रह सकती हैं। भ्रष्टाचार के मूल स्रोत कॉरपोरेट पर अन्ना एंड केजरीवाल की खामोशी के अर्थ भी बताए गए थे। लेकिन अन्ना और उनकी डोर थाम रही ताकत शुरू में केजरीवाल को समझने में गच्चा खा गई। बाद में संघ संभला और उसके शावकों ने अपने हर तरीके से हमले शुरू भी किए लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। हालांकि, उनके इन अभियानों ने इतना जरूर किया कि केजरीवाल लिमिटेड पूर्ण बहुमत से जरा दूर रह गई। कांग्रेस को अपनी हार का गुमान तो था लेकिन उसे दिल्ली असेंबली चुनाव में केजरीवाल के इतनी बड़ी ताकत बनकर उभर आने का अहसास तो कतई नहीं था। मीडिया की दुविधा भी दोहरी रही। `मेकिंग ऑफ केजरीवाल` में मीडिया की भूमिका बहुत बड़ी थी लेकिन अब यह कहना मुश्किल है कि मीडिया ने केजरीवाल को यूज किया या केजरीवाल ने मीडिया को। क्योंकि मीडिया की बड़ी प्रतिबद्धता इन दिनों मोदी से भी है और जब तक केजरीवाल सिर्फ कांग्रेस की नैया डुबो रहे थे, तब तक ठीक था लेकिन जैसे ही दिल्ली में मोदी कंपनी का जहाज डगमगाया तो मीडिया के लिए दुविधा बढ़ गई। नतीजों के बाद मीडिया बीजेपी को नहीं ललकार रहा था बल्कि केजरीवाल को ही जिम्मेदारी से न भागने की नसीहत दे रहा था। कांग्रेस की हालत जूते और प्याज दोनों खाने वाली कहानी जैसी है। लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों के ही नेताओं के बयान भी दिलचस्प और दुर्भाग्यपूर्ण हैं। वे कह रहे हैं कि केजरीवाल सरकार बनाएं और फिर बिजली-पानी और दूसरे लोकलुभावन वादे पूरा करके दिखाएं। मतलब, उन्हें जनता को जरूरी सुविधाएं न मिल पाने का पूरा यकीन है और उनकी यही इच्छा है। दोनों को लगता है कि इस तरह केजरीवाल औंधे मुंह गिरेंगे। क्या होगा, कौन जानता है लेकिन जिस व्यवस्था में जनता को उसका निरीह अधिकार मिलना दूभर कर दिया गया है, अगर वहां मामूली अधिकार भी कुछ समय के लिए मुहैया करा दिए जाएं तो बड़ा आश्चर्य मान लिया जाता है। लोकसभा चुनाव से पहले केजरीवाल अगर इस तरह के लोकलुभावन कामों की झड़ी लगा दें और इस बीच उनकी सरकार गिरा भी दी जाए तो नुकसान कांग्रेस को ही होगा। तब केजरीवाल को तो फायदा ही फायदा होगा। वैसे भी जनता को तात्कालिक लाभ देने के लिए जरूरी नहीं कि कंपनियों की लूट पर अंकुश लगाना जरूरी हो। गन्ना मिल मालिकों को हरामखोरी से बाज आने के लिए बाध्य करने के बजाय केंद्र सरकार ने उन्हें बड़े पैकेज मुहैया करा दिए। मतलब जनता का और पैसा उन्हें थमा दिया गया। यानी मियां की जूती, मियां के सिर। कहने का मतलब यह कि भयंकर लूट की इस व्यवस्था में अगर थोड़ा भी इधर-उधर कर लिया जाए तो जनता को तात्कालिक रूप से खुश किया जा सकता है। केजरीवाल लि. इस खेल को कितना साध पाती है, यह आने वाला समय बताएगा? प्रोग्रेसिव ताकतों की हालत भी अजब है। एक क्रांतिकारी संगठन तो अन्ना की जय-जयकार में इतना आगे था कि इस प्रायोजति आंदोलन पर कुछ तार्किक सवाल उठा देने भर से अरुंधति पर सरकंडे के तीर बरसाने में जुट गया था फेसबुक पर प्रो. आशुतोष इसकी अगुआई कर रहे थे। सामाजिक न्याय के विमर्शकार योगेंद्र यादव तो आरक्षण विरोध के हीरो रहे केजरीवाल के विमर्शकार ही बन बैठे। लेकिन, सीपीआई और सीपीआईएम में आस्था रखने वाले लोगों ने भी केजरीवाल को वोट नहीं किए हैं, यह कहना गलत होगा। आखिर वाम पार्टियों को दिल्ली में मिले वोट उनकी पार्टी सदस्यता और विभिन्न सहयोगी संगठनों की सदस्यता संख्या जितने तो होनी ही चाहिए थे। बहुत से बुद्धिजीवी तो आप पार्टी से वाम को कुछ बौद्धिक खुराक लेने की नसीहतें भी दे रहे हैं। वे यह तो जानते ही होंगे कि वाम की संशोधनवादी से संशोधनवादी पार्टी भी आर्थिक और सामाजिक-साम्प्रदायिक मसलों पर वैसी चुप्पी या पलटी नहीं साध सकती जैसी कि केजरीवाल लि. साध सकती है। वाम पार्टियों के दिल्ली तक के बड़े से बड़े आंदोलनों-रैलियों के लिए उस मीडिया में कोई जगह नहीं होती है, जिसमें केजरीवाल और अन्ना के आंदोलन बाकायदा प्रायोजित किए जाते थे। इन बुद्धिजीवियों का वाम से आप बन जाने का आग्रह भी कम दिलचस्प नहीं है।*

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 *धीरेश सैनी जी का कथन सत्य है:
 देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों के हितों में चलाये जा रहे NGOS के बलबूते बनी 'आप' पार्टी कैसे बामपंथ की नीतियों के सहारे चलने वाली बताई गई है?क्या बामपंथ ने कारपोरेट हितों के पक्ष में अपनी नीतियों को परिवर्तित कर लिया है?
 यह फोटो जो कह रहा है क्या CPI की अधिकृत नीति अब 'आप' को समर्थन देने की है?:
'आप ' के संबंध में CPM नेता के विचार ये हैं:
https://www.facebook.com/shriram.tiwari1/posts/686707368028027
 यह दृष्टिकोण यथार्थ का वास्तविक चित्रण है अतः जो वामपंथी 'आप'की वकालत कर रहे हैं वे निश्चय ही निजी स्वार्थों के वशीभूत होकर ही कर रहे हैं न कि 'जनहित'में।
(विजय राजबली माथुर)

4 comments:

  1. Comments through Facebook Group:'COMMUNIST PARTY OF INDIA ---
    .
    Yadhukrishnan Aalapad :-Lal salame sagave
    38 minutes ago via mobile · Unlike · 1
    Ajay Malik :-Thik kha

    10 minutes ago via mobile · Unlike · 1

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  2. No doubt AAP is funded by foreign funds. The western imperialist use various awards for promoting their interests in developing countries. Even awards like NOBEL for literature and social work are given to disrupting and destabilizaing elements. Such elements will always raise populist slogans that confuse even the left. .

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  3. I agree with the comments. Parties like AAP are supported financially and otherwise by foreign powers. We should not be duped by populist slogans of such organizations.

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  4. फेसबुक पर प्राप्त कमेन्ट---
    Ashutosh Kumar :
    कामरेड Dheeresh Saini कामरेड vijai के विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं ।इन मुद्दों पर बहस चलती रही है और आगे भी चलेगी। लोकतंत्र और अलग अलग तरह के आंदोलनों के प्रयोगों को एक मौक़ा तो मिलना ही चाहिए।

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